tag:blogger.com,1999:blog-4674277109634493422024-03-15T22:31:28.315-07:00परिकल्पना समय हिन्दी की वहुचर्चित मासिक पत्रिका (पंजी.संख्या-UPHIN/2013/57294) parikalpna samayhttp://www.blogger.com/profile/07378005813677948207noreply@blogger.comBlogger343125tag:blogger.com,1999:blog-467427710963449342.post-55801930150364459012024-03-15T22:30:00.000-07:002024-03-15T22:30:40.878-07:00परिकल्पना की रजत जयंती यात्रा पर आयोजित समारोह बाकू में <p style="text-align: justify;"></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: justify;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiKBE2M-Igp1XgBcj4qodjFwyljUksRQUcAQXQz99WeczzXL_wYajfDcjr9K_lwoNz0Xge3XwX7hzWgaau7nIP2H9mQyWppV0iwr6c9-hWTG-DsjAtFTg8aJSQ724AUJJtmsel4VzyOfHYzzyOG8lHQlF6IM3Nzd7I1SrbTQJYgCgmGAcxo-Uu64IMcacJO/s1600/IMG-20240316-WA0014.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="718" data-original-width="1600" height="180" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiKBE2M-Igp1XgBcj4qodjFwyljUksRQUcAQXQz99WeczzXL_wYajfDcjr9K_lwoNz0Xge3XwX7hzWgaau7nIP2H9mQyWppV0iwr6c9-hWTG-DsjAtFTg8aJSQ724AUJJtmsel4VzyOfHYzzyOG8lHQlF6IM3Nzd7I1SrbTQJYgCgmGAcxo-Uu64IMcacJO/w400-h180/IMG-20240316-WA0014.jpg" width="400" /></a></div><br />बाकू (अजरबैजान) में परिकल्पना की रजत जयंती यात्रा के सम्मान में एक विशेष आयोजन किया गया, जिसमें परिकल्पना से जुड़े सम्मानित सदस्यों को विशेष सम्मान प्रदान किए गए। इस अवसर पर परिकल्पना परिवार के 17 सदस्यों को रजत पदक प्रदान किया गया। <p></p><p style="text-align: justify;"></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhjdyslqDEGonCK5GeLHpHyEMH1cz_CwKnYBdX_aIb4g6dgVfat_bjwIi5fax3hzrGMM53o9g6rJUHGIWWwWFoqXRqfC_M7xIT9V9ycUkxqANr5fgx7nAlbw_05PNQCMETUzQcVy3sg6PcNxIlUCtLps2UOlDD-cyC6a4yCHrcsQ9im0CfF8nlHUEbiub8s/s1600/IMG-20240316-WA0013.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="718" data-original-width="1600" height="144" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhjdyslqDEGonCK5GeLHpHyEMH1cz_CwKnYBdX_aIb4g6dgVfat_bjwIi5fax3hzrGMM53o9g6rJUHGIWWwWFoqXRqfC_M7xIT9V9ycUkxqANr5fgx7nAlbw_05PNQCMETUzQcVy3sg6PcNxIlUCtLps2UOlDD-cyC6a4yCHrcsQ9im0CfF8nlHUEbiub8s/w320-h144/IMG-20240316-WA0013.jpg" width="320" /></a></div><br />परिवार के आठ सदस्यों क्रमश: श्री निर्भय नारायण गुप्ता, डॉ सत्या सिंह, श्री मती निशा मिश्रा, डॉ प्रतिमा वर्मा, डॉ बालकृष्ण पांडेय, श्री मती नम्रता मिश्रा, डॉ प्रमिला उपाध्याय और श्री मती सरोज सिंह को अंगवस्त्र, रजत पदक, मोमेंटो एवं मानपत्र के साथ परिकल्पना रजत जयंती सम्मान प्रदान किया गया। इस अवसर पर पत्रकारिता के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए पच्चीस हजार नकद सम्मान राशि एवं अंगवस्त्र, रजत पदक, मोमेंटो एवं मानपत्र के साथ परिकल्पना सम्मान प्रदान किया गया। <p></p><p style="text-align: justify;"></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjIbr38QME2wWWbYiJMRWHm5UHcnfY57JZuKwAoEy_ffOGCQcdLYuM46ZU1wJhOLoQ_FHS6Gd6CHShc92v399PkOkuwEriU5FtJS-xVMk3PD6KzIKPB81nBJV1SLW_pqppdhW89U4wd2ANMSJr6XGmn9k5Rzm-U5Cj1Je-dUjFUsYNTAOehlp6vzbAXPZah/s1280/IMG-20240316-WA0010.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="575" data-original-width="1280" height="144" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjIbr38QME2wWWbYiJMRWHm5UHcnfY57JZuKwAoEy_ffOGCQcdLYuM46ZU1wJhOLoQ_FHS6Gd6CHShc92v399PkOkuwEriU5FtJS-xVMk3PD6KzIKPB81nBJV1SLW_pqppdhW89U4wd2ANMSJr6XGmn9k5Rzm-U5Cj1Je-dUjFUsYNTAOehlp6vzbAXPZah/s320/IMG-20240316-WA0010.jpg" width="320" /></a></div><br />साथ हीं हिंदी पत्रिका रेवांत की ओर से परिकल्पना परिवार को विशेष रूप से इस उपलब्धि के लिए प्रशंसित किया गया।<p></p>parikalpna samayhttp://www.blogger.com/profile/07378005813677948207noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-467427710963449342.post-54501688877251283832024-03-11T19:50:00.000-07:002024-03-11T19:50:26.124-07:00आधुनिक अवधी के तीन महाकवियों का संगम है तिरबेनी: डाॅ0 शितिकंठ<p style="text-align: justify;"><b></b></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><b><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhhlkjUU1mpOl1BgaeBPV-Tfgaa4MfXOLekarwGWsF3h1OeDV2lnQYlNW6I087QtiG6clt_7nuY1IM-HyZnLKNTxFX1gaGqgHDz9SeE4M0Csb-xwMTNZiVfOELauLiPB4URqfrUvtpbmUfqwhbzphSCQawhAlPKk_l-ApUVwxS1qg30N56z4PrBpMM6bBcr/s1600/IMG-20240311-WA0079.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="900" data-original-width="1600" height="225" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhhlkjUU1mpOl1BgaeBPV-Tfgaa4MfXOLekarwGWsF3h1OeDV2lnQYlNW6I087QtiG6clt_7nuY1IM-HyZnLKNTxFX1gaGqgHDz9SeE4M0Csb-xwMTNZiVfOELauLiPB4URqfrUvtpbmUfqwhbzphSCQawhAlPKk_l-ApUVwxS1qg30N56z4PrBpMM6bBcr/w400-h225/IMG-20240311-WA0079.jpg" width="400" /></a></b></div><b><br />बाराबंकी। </b>आधुनिक अवधी के तीन महाकवियों का संगम है डाॅ0 रामबहादुर मिश्र की कृति तिरबेनी। यह पुस्तक वंशीधर शुक्ल, पढ़ीस व रमई काका के व्यक्तित्व व कृतित्व में एक साथ अवगाहन का अवसर प्रदान करती है।<p></p><p style="text-align: justify;">यह बात आशीर्वाद सदन दशहराबाग में साहित्यकार समिति द्वारा आयोजित डाॅ0 रामबहादुर मिश्र की पुस्तक तिरबेनी की समीक्षात्मक परिचर्चा में मुख्य अतिथि साहित्यभूषण डाॅ0 उमाशंकर शुक्ल ‘शितिकंठ’ ने कही। उन्होंने यह भी कहा कि हिन्दी के समानान्तर अवधी को स्थापित करने में वंशीधर शुक्ल, पढ़ीस व रमई काका का महत्वपूर्ण योगदान है।</p><p style="text-align: justify;"></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: left;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhNATyGctu0pprUAC97WWdYt4JJAs7WNic1NygE2oS6RbtbfQOUwkbS-h7r6R53B60Qbvyi3-k9f7odmVJQ9NbC2QxFBED9CuhWHf5L-A8mIz3wYek-RDcaS4zYtOXQ5QFvQsDScLAc1LEnqm-FMJ99UlpljX-Kxkvfe6-Dnl_21Ttn9IorWvhyyrfeMCzF/s1600/IMG-20240311-WA0080.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="900" data-original-width="1600" height="113" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhNATyGctu0pprUAC97WWdYt4JJAs7WNic1NygE2oS6RbtbfQOUwkbS-h7r6R53B60Qbvyi3-k9f7odmVJQ9NbC2QxFBED9CuhWHf5L-A8mIz3wYek-RDcaS4zYtOXQ5QFvQsDScLAc1LEnqm-FMJ99UlpljX-Kxkvfe6-Dnl_21Ttn9IorWvhyyrfeMCzF/w200-h113/IMG-20240311-WA0080.jpg" width="200" /></a></div><br />परिचर्चा की अध्यक्षता करते हुए रामनगर डिग्री काॅलेज के पूर्व प्राचार्य डाॅ0 नरेश चन्द्र त्रिपाठी ने कहा कि वर्तमान परिप्रेक्ष्य में अवधी को नया आयाम देने व अवधी के साथ अन्य क्षेत्रीय भाषाओं के परस्पर समन्वय स्थापित करने में डाॅ0 राम बहादुर मिश्र ने सराहनीय कार्य किया है। उन्होंने यह भी कहा कि डाॅ0 मिश्र द्वारा सम्पादित अवध ज्योति पत्रिका तथा अवध भारती संस्थान द्वारा विभिन्न लेखकों की डेढ़ सौ से अधिक पुस्तकों का प्रकाशन अवधी के प्रचार-प्रसार में मील का पत्थर साबित होंगी। इस दौरान डॉ0 रामबहादुर मिश्र ने अपनी पुस्तक तिरबेनी के लेखन की प्रेरणा को रेखांकित करते हुए इन तीनो कवियो के अनछुए जीवन प्रसंगो को सुनाया।<p></p><p style="text-align: justify;"></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhYZNL9XCU89g63lkpnn0amMZ04c7UdGkJbqFQA66c5SMFL3AOZ7sXQFFKLtUFb5WLWcJQX2OYR_67LxwiJ7rwngtoA5u-eqeLRNLVVok0fImFDMoBdzhi7-b95AlHSNKH7TWxiwyep1E57f3T3Bxcko8yZ8qA5DZc3IWeZ8iuYjNQmBUf749FmZvK51tJ2/s1600/IMG-20240311-WA0081.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="1191" data-original-width="1600" height="149" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhYZNL9XCU89g63lkpnn0amMZ04c7UdGkJbqFQA66c5SMFL3AOZ7sXQFFKLtUFb5WLWcJQX2OYR_67LxwiJ7rwngtoA5u-eqeLRNLVVok0fImFDMoBdzhi7-b95AlHSNKH7TWxiwyep1E57f3T3Bxcko8yZ8qA5DZc3IWeZ8iuYjNQmBUf749FmZvK51tJ2/w200-h149/IMG-20240311-WA0081.jpg" width="200" /></a></div><br />विषय प्रवर्तन करते हुए साहित्यकार समिति के अध्यक्ष डाॅ0 विनय दास ने कहा कि तिरबेनी के तीनों महाकवियों ने अपने समय व समाज की धारा के विपरीत जोखिम उठाकर अपनी बोली-बानी अवधी को स्थापित करने का कार्य किया है तथा आम जनमानस की रोजमर्रा की समस्याओं को विषय बनाकर रंजनात्मक एवं व्यंग्यात्मक शैली में किया गया काव्य सृजन अवधी को बोली से साहित्य की भाषा में बनाने में किया गया योगदान सदैव स्मरणीय है। <p></p><p style="text-align: justify;">वीणा सुधाकर ओझा महाविद्यालय के प्राचार्य डाॅ0 बलराम वर्मा ने कहा कि तिरबेनी पुस्तक अवधी के प्रति लोगों को जागरूक करने का कार्य करेगी। परिचर्चा के दौरान साहित्यकार डाॅ0 सत्या सिंह, ए0 राही, नीम मैन राम अवतार सिंह खंगार ने भी सम्बोधित किया। कार्यक्रम का संचालन साहित्यकार प्रदीप सारंग ने किया।</p><p style="text-align: justify;">इस दौरान कवि ओपी वर्मा ओम, साहब नरायन शर्मा, प्रदीप महाजन, अजय प्रधान, योगेंद्र मधुप ने काव्यपाठ किया। इस मौके पर अनिल श्रीवास्तव लल्लूजी, पंकज कँवल, अनुपम वर्मा, सदानंद वर्मा, रजत वर्मा, रजनी श्रीवास्तव निशा, गुलजार बानो, सीताकांत मिश्र स्वयम्भू आदि मौजूद थे।</p>parikalpna samayhttp://www.blogger.com/profile/07378005813677948207noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-467427710963449342.post-83180982835654667002024-03-07T19:10:00.000-08:002024-03-07T19:14:22.522-08:00महिलाएं पुरुषों से ज्यादा मजबूत होती हैं क्योंकि वो पुरुषों को जन्म देती हैं।<p style="text-align: justify;"></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjUV4iLyC5n06INzT4G2gaAL2addqczPdxlWocW5k3hhU47TFM1bzXxfAA7Mmd3csnTMHCjh1g8aReNqx1Kx4J_LkbLPTAhHMZ5IKVijV2zwzQ88MQ4ThU1GtyZAL6mKL1-EeTKS8R1jWlk0O5RVPxAryf18oD9b8QxfqDjIzLZ72ci_tNlqZmi0Qc49SFG/s1311/IMG_20240307_163233.jpg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="1311" data-original-width="1080" height="400" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjUV4iLyC5n06INzT4G2gaAL2addqczPdxlWocW5k3hhU47TFM1bzXxfAA7Mmd3csnTMHCjh1g8aReNqx1Kx4J_LkbLPTAhHMZ5IKVijV2zwzQ88MQ4ThU1GtyZAL6mKL1-EeTKS8R1jWlk0O5RVPxAryf18oD9b8QxfqDjIzLZ72ci_tNlqZmi0Qc49SFG/w330-h400/IMG_20240307_163233.jpg" width="330" /></a></div><div style="text-align: center;"><b>अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर विशेष</b> </div><div style="text-align: justify;">भारतीय संविधान द्वारा प्रदत्त भारत के मौलिक के मौलिक अधिकारों के अंतर्गत सभी को अनुच्छेद 14-18 के अंतर्गत समानता का अधिकार दिया गया है। जो कि महिलाओं और पुरुषों को बराबरी का अधिकार देता है। इसके अन्तर्गत यह भी सुनिश्चित किया गया है कि राज्य के तहत होने वाली नियुक्तियों और रोजगार के संबंध में किसी तरह का भेदभाव नहीं किया जाएगा। और संविधान द्वारा मौलिक अधिकारों के अन्तर्गत दिये गया समानता का अधिकार भारतीय राज्य को किसी के भी खिलाफ लिंग के आधार पर भेदभाव करने से रोकता है। देष में महिलाओं के उत्थान और सशक्तीकरण को देखते हुए हमारे संविधान को 1993 में संशोधित किया गया। 73वें संशोधन के जरिये संविधान में अनुच्छेद 243ए से 243ओ तक जोड़ा गया। इस संशोधन में इस बात की व्यवस्था की गई कि पंचायतों और नगरपालिकाओं में कुल सीटों की एक तिहाई सीटें महिलाओं के लिए सुरक्षित होंगी। इस संशोधन में इसकी भी व्यवस्था की गई कि पंचायतों और नगरपालिकाओं में कम से कम एक तिहाई चेयरपर्सन की सीटें महिलाओं के लिए सुरक्षित हों। पंचायती राज संस्थानों द्वारा महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत आरक्षण को लागू करने में सकारात्मक कार्यवाही से महिलाओं के प्रतिनिधित्व में तेजी से वृद्धि हुई है। वास्तव में देखा जाए तो देशभर में पंचायतों में चुनी गई महिलाओं का प्रतिनिधित्व 40 प्रतिशत हो गया है। कुछ राज्यों में पंचायतों में महिलाओं का प्रतिनिधित्व 50 प्रतिशत तक पहुंच गया है। बिना प्रतिनिधित्व के महिलाओं का सशक्तिकरण असंभव है। जब तक महिलाओं को प्रतिनिधित्व नहीं दिया जाएगा तब तक हम महिलाओं के सशक्तिकरण की कल्पना नहीं कर सकते।</div><p></p><p style="text-align: justify;">नए संसद भवन में 20 सितंबर 2023 को नारी शक्ति वंदन विधेयक लोकसभा में पास हुआ था। लोकसभा में पास होने के बाद 21 सितंबर 2023 को यह नारी शक्ति वंदन विधेयक राज्यसभा से भी पारित होने के बाद राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने इस विधेयक को अपनी मंजूरी दे दी है। नारी शक्ति वंदन अधिनियम के तहत लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं को 33 फीसदी आरक्षण प्रदान करने का प्रावधान किया गया है। आने वाले सालों में कानून के अमल में आने बाद लोकसभा और विधानसभा में बहुत कुछ बदल जाएगा। लेकिन नारी शक्ति वंदन अधिनियम की सबसे बडी कमी है कि इसके अन्तर्गत पिछडे और आदिवासी वर्ग की महिलाओं को अलग से कोटा नही दिया गया है। अगर इसके अन्तर्गत पिछड़े और आदिवासी वर्ग की महिलाओं को अलग से कोटा दिया जाता तो पिछडे और दबे कुचले वर्ग की महिलाओं का प्रतिनिधित्व भी आने वाले सालों में लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में बढ पाता। इसके लिये सरकार को नारी शक्ति वंदन अधिनियम इसके अन्तर्गत पिछड़े और आदिवासी वर्ग की महिलाओं के लिये कोटे की व्यवस्था आने वाले समय में करनी चाहिये। कोई भी राष्ट्र महिलाओं के बिना शक्तिहीन है। क्योंकि राष्ट्र को हमेशा से महिलाओं से ही शक्ति मिलती है। किसी भी जीवंत और मजबूत राष्ट्र के निर्माण में महिलाओं का योगदान महत्वपूर्ण है। महिलाओं की राजनैतिक भागीदारी से लोकतंत्र की जड़ें मजबूत होती है।</p><p style="text-align: justify;">आज जरूरत है कि समाज में महिलाओं को अज्ञानता, अशिक्षा, कूपमंडूकता, संकुचित विचारों और रूढ़िवादी भावनाओं के गर्त से निकालकर प्रगति के पथ पर ले जाने के लिए उसे आधुनिक घटनाओं, ऐतिहासिक गरिमामयी जानकारी और जातीय क्रियाकलापों से अवगत कराने के लिए उसमे आर्थिक ,सामाजिक, शैक्षिक, राजनैतिक चेतना पैदा करने की। जिससे की नारी पुरुषों के साथ कंधे से कन्धा मिलाकर समाज को आगे बढ़ाने में सहयोग कर सके। साथ-साथ आज जरूरत है कि समाज की जितनी भी रूढ़िवादी समस्याएं हैं हमें उनका समाधान खोजते हुए हठधर्मिता त्याग कर शैक्षिक, सामाजिक, सोहद पूर्ण, व्यावसायिक और राजनैतिक चेतना का मार्ग प्रशस्त करते हुए महिलाओं के सामाजिक उत्थान का संकल्प लेना चाहिये। क्योंकि हजारों मील की यात्रा भी एक पहले कदम से शुरू होती है। सही मायने में महिला दिवस तब सार्थक होगा जब असलियत में महिलाओं को वह सम्मान मिलेगा जिसकी वे हकदार हैं। इसके साथ ही समाज को संकल्प लेना चाहिए कि भारत में समरसता की बयार बहे, भारत के किसी घर में कन्या भ्रूण हत्या न हो और भारत की किसा भी बेटी को दहेज के नाम पर न जलाया जाये। विश्व के मानस पटल पर एक अखंड और प्रखर भारत की तस्वीर तभी प्रकट होगी जब हमारी मातृशक्ति अपने अधिकारों और शक्ति को पहचान कर अपनी गरिमा और गौरव का परिचय देगी और राष्ट्र निर्माण में अपनी प्रमुख भूमिका निभाएंगी।</p><p style="text-align: justify;"><b>-ब्रह्मानंद राजपूत, आगरा </b></p><p style="text-align: justify;"><br /></p>parikalpna samayhttp://www.blogger.com/profile/07378005813677948207noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-467427710963449342.post-23378680509652525432024-03-02T23:55:00.000-08:002024-03-02T23:55:54.035-08:00डॉ विश्वास मेहता ने केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन को अपनी पुस्तक अति जीवनम (सर्वाइवल) की प्रति भेंट की<p style="text-align: justify;"><b></b></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><b><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgeRkYHtSF7HiArpU5NK2GsdOvAIA0pp_6aHpeVKCeu2tSFiHG4FgftLb2J3OmVB0HevppkIYBgjzsODe9DLhwcsaPGEPnIKjRDgO2EpH33YAtomgx9dXyexLUMJlv3nloazumKeoJO677a71y1At_bgAPd7x0g2OMMsCE5r6_oN4Eg9xgVhSwhjxMUma-Y/s1024/DR%20VISHWASH%20MEHTA%20MEETS%20WITH%20KERELA%20CM.jpeg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="768" data-original-width="1024" height="300" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgeRkYHtSF7HiArpU5NK2GsdOvAIA0pp_6aHpeVKCeu2tSFiHG4FgftLb2J3OmVB0HevppkIYBgjzsODe9DLhwcsaPGEPnIKjRDgO2EpH33YAtomgx9dXyexLUMJlv3nloazumKeoJO677a71y1At_bgAPd7x0g2OMMsCE5r6_oN4Eg9xgVhSwhjxMUma-Y/w400-h300/DR%20VISHWASH%20MEHTA%20MEETS%20WITH%20KERELA%20CM.jpeg" width="400" /></a></b></div><b><br />नई दिल्ली/ तिरुवनंतपुरम। </b>केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन को भारतीय प्रशासनिक सेवा के वरिष्ठ अधिकारी, केरल के पूर्व मुख्य सचिव और प्रदेश के निवर्तमान मुख्य सूचना आयुक्त तथा दक्षिणी राजस्थान के डूंगरपुर मूल के निवासी डॉ विश्वास मेहता ने मलयालम भाषा में लिखी अपनी पुस्तक अति जीवनम (सर्वाइवल) की एक प्रति मुख्यमंत्री निवास पर भेंट की।<p></p><p style="text-align: justify;">मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन ने डॉ विश्वास मेहता के इस सराहनीय प्रयास की मुक्त कंठ से प्रशंसा करते हुए केरल के मुख्य सचिव और प्रदेश के निवर्तमान मुख्य सूचना आयुक्त के रूप में चालीस वर्षों तक दी गई उनकी सेवाओं में स्थापित किए गए कई अनुकरणीय आयामों को सराहा। उन्होंने यह भी कहा कि कोविड 19 के कालखण्ड में डॉ विश्वास मेहता ने रात दिन काम कर प्रदेश की जनता की जो सेवा की उसे कभी भुलाया नही जा सकता।</p><p style="text-align: justify;">मुख्यमंत्री ने कहा कि वैसे तो कई ब्यूरोक्रेट्स अपनी पुस्तके लिखते है लेकिन डॉ विश्वास मेहता ने अपनी कर्म भूमि केरल की आधिकारिक भाषा मलयालम में किताब लिखकर और उसमें अनेक प्रेरणादायी संस्मरणों का संग्रह कर सभी का दिल जीत लिया है. वे बहुत अच्छी मलयालम भी बोलते और लिखते है।</p><p style="text-align: justify;">विजयज ने उम्मीद जताई कि राजस्थान के एक छोटे से नगर डूंगरपुर के गरीब परिवार से बाहर निकल कर और सिविल सेवाओं के उच्चतम शिखर तक पहुंच कर डॉ विश्वास मेहता ने एक मिसाल कायम की है।</p><p style="text-align: justify;">मुझे विश्वास है कि अपने प्रशासनिक अनुभवो के निचोड़ के रूप में आई उनकी यह पुस्तक प्रशासनिक सेवाओं में आने वाले युवाओं का पथ प्रदर्शक बनेगी।</p><p style="text-align: justify;">इस मौके पर मुख्यमंत्री विजयन की धर्म पत्नी कमला विजयन और डॉ विश्वास मेहता धर्म पत्नी प्रीति मेहता भी मौजूद थी ।</p><p style="text-align: justify;">उल्लेखनीय है कि पिछली 19 फरवरी को केरल के राज्यपाल डॉ आरिफ मोहम्मद खान द्वारा केरल राजभवन में डॉ विश्वास मेहता की पुस्तक अति जीवनम (सर्वाइवल) का लोकार्पण हुआ था तीन सौ से अधिक पृष्ठों की इस पुस्तक की भूमिका पश्चिम बंगाल के राज्यपाल डॉ सीवी आनंद बोस ने लिखी हैं,जोकि डॉ विश्वास मेहता के प्रथम कलक्टर रहे हैं।</p><p style="text-align: justify;">डॉ विश्वास मेहता ने गुरुवार को सायं केरल के मुख्य सूचना आयुक्त का तीन वर्ष का कार्य पूरा कर लिया इस संवैधानिक पद की शपथ लेने से पूर्व वे केरल के मुख्य सचिव थे ।</p><p style="text-align: justify;">उनकी उल्लेखनीय सेवाओं को देखते हुए सरकार द्वारा उन्हें सेवानिवृति के बाद तीन वर्ष का यह विशेष दायित्व दिया गया था ।नई दिल्ली/ तिरुवनंतपुरम। केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन को भारतीय प्रशासनिक सेवा के वरिष्ठ अधिकारी, केरल के पूर्व मुख्य सचिव और प्रदेश के निवर्तमान मुख्य सूचना आयुक्त तथा दक्षिणी राजस्थान के डूंगरपुर मूल के निवासी डॉ विश्वास मेहता ने मलयालम भाषा में लिखी अपनी पुस्तक अति जीवनम (सर्वाइवल) की एक प्रति मुख्यमंत्री निवास पर भेंट की।</p><p style="text-align: justify;">मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन ने डॉ विश्वास मेहता के इस सराहनीय प्रयास की मुक्त कंठ से प्रशंसा करते हुए केरल के मुख्य सचिव और प्रदेश के निवर्तमान मुख्य सूचना आयुक्त के रूप में चालीस वर्षों तक दी गई उनकी सेवाओं में स्थापित किए गए कई अनुकरणीय आयामों को सराहा। उन्होंने यह भी कहा कि कोविड 19 के कालखण्ड में डॉ विश्वास मेहता ने रात दिन काम कर प्रदेश की जनता की जो सेवा की उसे कभी भुलाया नही जा सकता।</p><p style="text-align: justify;">मुख्यमंत्री ने कहा कि वैसे तो कई ब्यूरोक्रेट्स अपनी पुस्तके लिखते है लेकिन डॉ विश्वास मेहता ने अपनी कर्म भूमि केरल की आधिकारिक भाषा मलयालम में किताब लिखकर और उसमें अनेक प्रेरणादायी संस्मरणों का संग्रह कर सभी का दिल जीत लिया है। वे बहुत अच्छी मलयालम भी बोलते और लिखते है। विजयज ने उम्मीद जताई कि राजस्थान के एक छोटे से नगर डूंगरपुर के गरीब परिवार से बाहर निकल कर और सिविल सेवाओं के उच्चतम शिखर तक पहुंच कर डॉ विश्वास मेहता ने एक मिसाल कायम की है। मुझे विश्वास है कि अपने प्रशासनिक अनुभवो के निचोड़ के रूप में आई उनकी यह पुस्तक प्रशासनिक सेवाओं में आने वाले युवाओं का पथ प्रदर्शक बनेगी।</p><p style="text-align: justify;">इस मौके पर मुख्यमंत्री विजयन की धर्म पत्नी कमला विजयन और डॉ विश्वास मेहता धर्म पत्नी प्रीति मेहता भी मौजूद थी ।</p><p style="text-align: justify;">उल्लेखनीय है कि पिछली 19 फरवरी को केरल के राज्यपाल डॉ आरिफ मोहम्मद खान द्वारा केरल राजभवन में डॉ विश्वास मेहता की पुस्तक अति जीवनम (सर्वाइवल) का लोकार्पण हुआ था। तीन सौ से अधिक पृष्ठों की इस पुस्तक की भूमिका पश्चिम बंगाल के राज्यपाल डॉ सीवी आनंद बोस ने लिखी हैं,जोकि डॉ विश्वास मेहता के प्रथम कलक्टर रहे हैं।</p><p style="text-align: justify;">डॉ विश्वास मेहता ने गुरुवार को सायं केरल के मुख्य सूचना आयुक्त का तीन वर्ष का कार्य पूरा कर लिया। इस संवैधानिक पद की शपथ लेने से पूर्व वे केरल के मुख्य सचिव थे । उनकी उल्लेखनीय सेवाओं को देखते हुए सरकार द्वारा उन्हें सेवानिवृति के बाद तीन वर्ष का यह विशेष दायित्व दिया गया था ।</p><p style="text-align: justify;"><b>-नीति गोपेन्द्र भट्ट</b></p>parikalpna samayhttp://www.blogger.com/profile/07378005813677948207noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-467427710963449342.post-3230059513710126802024-02-28T19:37:00.000-08:002024-02-28T19:37:26.225-08:00माधवी फाउण्डेशन और विश्व साहित्य सेवा ट्रस्ट का राम काव्य पर राष्ट्रीय आयोजन<p style="text-align: justify;"></p><div style="text-align: center;"><b>राम काव्य में मूल्य चेतना विषय पर राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन </b></div><b><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgfkCpIW7TkL03PWbbS82xqMhhmkpNXaWM4WeCPvBctq-Ss3Dc9taYc5QVHt4RcjrdTfaiqKIoKnFf6O0NOqdGRwotx5j-pMLGyTzz53Ard0WjIzhO9rg6iZKPlLmLdXR-OHc6TxXDYyqxbfVbPh3wbh-zgZEX6nvHc2NWIf8rGmHA5NTRXIP6ihgm4vFr9/s1600/IMG-20240229-WA0002.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="719" data-original-width="1600" height="180" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgfkCpIW7TkL03PWbbS82xqMhhmkpNXaWM4WeCPvBctq-Ss3Dc9taYc5QVHt4RcjrdTfaiqKIoKnFf6O0NOqdGRwotx5j-pMLGyTzz53Ard0WjIzhO9rg6iZKPlLmLdXR-OHc6TxXDYyqxbfVbPh3wbh-zgZEX6nvHc2NWIf8rGmHA5NTRXIP6ihgm4vFr9/w400-h180/IMG-20240229-WA0002.jpg" width="400" /></a></div><br /></b><p></p><p style="text-align: justify;"><b>झांसी (सांस्कृतिक संवाददाता)।</b> उत्तर प्रदेश के प्रसिद्ध नगर झाँसी में डाॅ. मिथिलेश दीक्षित और डाॅ. मोहन मुरारी शर्मा ने माधवी फाउण्डेशन और विश्व साहित्य सेवा ट्रस्ट के माध्यम से सम्पन्न कराया जिसमें प्रसिद्ध विद्वानों ने सहभागिता की ।</p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh5me6MkcyTYClyd5dRg9KgM0C2UuYp-OdZJudL42c-VHLDsL4iPlQVjUzSxywxyKdrDrNb-ZcE5zwUO0u8aVe6ZwecJfdIqSebhwjrGjrRQWKJkVAasNR1k9Kr7RnNUEC5jSy-t_CHscz-vsbRGpb5E4k2-4dP2C52Y_EYnvt6p7G-cW2hRwo7MhfmkZxK/s1600/IMG-20240229-WA0003.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="721" data-original-width="1600" height="144" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh5me6MkcyTYClyd5dRg9KgM0C2UuYp-OdZJudL42c-VHLDsL4iPlQVjUzSxywxyKdrDrNb-ZcE5zwUO0u8aVe6ZwecJfdIqSebhwjrGjrRQWKJkVAasNR1k9Kr7RnNUEC5jSy-t_CHscz-vsbRGpb5E4k2-4dP2C52Y_EYnvt6p7G-cW2hRwo7MhfmkZxK/w320-h144/IMG-20240229-WA0003.jpg" width="320" /></a></div><br /><p></p><p style="text-align: justify;">सबसे पहले समारोह का उद्घाटन प्रसिद्ध आचार्य पं. हरी ओम पाठक जी द्वारा माँ सरस्वती पूजन और श्रीराम पूजन के साथ किया गया । </p><p style="text-align: justify;">उसके बाद दोनो संस्थाओं के माध्यम से विद्वानों का सम्मान किया गया । </p><p style="text-align: justify;">समारोह का आयोजन तीन सत्रों में हुआ। तीनों सत्रों के अतिथियों में डॉ. प्रमोद अग्रवाल आई ए एस, डॉ. सुषमा सिंह पूर्व प्राचार्य, विचार प्रवाह इन्दौर के अध्यक्ष श्री मुकेश तिवारी, बुन्देलखण्ड विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग के अध्यक्ष डॉ. पुनीत बिसारिया जी, संस्कृत शोध संस्थान के निदेशक डॉ. बी बी त्रिपाठी, राजकीय संग्रहालय के निदेशक डॉ. मनोज गौतम, प्रसिद्ध साहित्यकार डॉ. पुष्पा सिंघी, मधूलिका सिंह, डॉ. निहाल चन्द्र शिवहरे,डॉ.राम शंकर भारती, प्रताप नारायण दुबे,साकेत सुमन चतुर्वेदी,अभिराज पंकज आदि ने मंच को सुशोभित किया ।</p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgRJ2qUSzWpu8nicuJjlK_fDxVn736lIQJYMeBtA-1CL_SbAKRLrYudHh0VKKYKTMMSeHuV2A1neCktXy49PRsrGBTuF6BvWKnTRbChPS3sRVqlU9ZM9Ndiy4wZ1VAe_jT1alcZYjQyp1kqBSSJpHzNIr6eewyeMajJ3xlgCmSkT0JnzHf5jL6gqdgbNr5C/s1600/IMG-20240229-WA0004.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="721" data-original-width="1600" height="144" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgRJ2qUSzWpu8nicuJjlK_fDxVn736lIQJYMeBtA-1CL_SbAKRLrYudHh0VKKYKTMMSeHuV2A1neCktXy49PRsrGBTuF6BvWKnTRbChPS3sRVqlU9ZM9Ndiy4wZ1VAe_jT1alcZYjQyp1kqBSSJpHzNIr6eewyeMajJ3xlgCmSkT0JnzHf5jL6gqdgbNr5C/w320-h144/IMG-20240229-WA0004.jpg" width="320" /></a></div><br /><p></p><p style="text-align: justify;">समारोह में डाॅ. सुषमा सिंह, डाॅ. पुष्पा सिंघी, डाॅ. सुखराम चतुर्वेदी की पुस्तकों का लोकार्पण किया गया । </p><p style="text-align: justify;">सभी सत्रों का संचालन डाॅ.निहाल चन्द्र शिवहरे और डाॅ. राम शंकर भारती ने किया ।</p><p style="text-align: justify;">समारोह में नीहारिका जैन, मिथिलेश पाठक, सन्ध्या निगम, ब्रज लता मिश्रा, विजय परकाश सैनी,प्रगति सहाय, उमा शंकर खरे, डॉ. के के साहू, मंजू खरे , सुशील जैन, शरद मिश्रा, संजय राष्ट्र वादी, हर शरण शुक्ल, बलराम सोनी, राहुल मिश्रा, सतीश अकिंचन, रवि कुशवाहा, धर्मेंश सक्सेना, देवेन्द्र भारद्वाज, सनी शिवहरे, मालती शिवहरे, सुधीर रंजन भट्ट, एस के मेहरा, कुंज बिहारी गुप्ता, रमा शुक्ला आदि -आदि साहित्य कारों विद्वानों ने सहभागिता कर समारोह को सफल बनाया ।</p>parikalpna samayhttp://www.blogger.com/profile/07378005813677948207noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-467427710963449342.post-14370857992393452522024-02-22T19:42:00.000-08:002024-02-22T19:44:05.241-08:00डॉ. अनीता श्रीवास्तव सहित आठ रचनाकारों को परिकल्पना सम्मान <p style="text-align: justify;"><b></b></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><b><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEheRaZadaH8pufiOv20efchhrfhMfZU4h3qRWqU5yV3ZqI9hqRqJmmUG8H7_Mu1b2PJHzg8i1ead7pFqUpQEc9E4xYeOHMjcYAqzjsX-HXfnbkVeA0sXW-QJ3iZ08rWFhSFsHb_YlVXHGv8RfMIDeavp-MPOJzgue4qUiQfaIjflC2vobuX4J7M45Oj8lsH/s1362/IMG_20240223_090943.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="1362" data-original-width="965" height="400" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEheRaZadaH8pufiOv20efchhrfhMfZU4h3qRWqU5yV3ZqI9hqRqJmmUG8H7_Mu1b2PJHzg8i1ead7pFqUpQEc9E4xYeOHMjcYAqzjsX-HXfnbkVeA0sXW-QJ3iZ08rWFhSFsHb_YlVXHGv8RfMIDeavp-MPOJzgue4qUiQfaIjflC2vobuX4J7M45Oj8lsH/w284-h400/IMG_20240223_090943.jpg" width="284" /></a></b></div><b><br />लखनऊ। </b>लखनऊ की साहित्यिक संस्था परिकल्पना इस बार बाकू (अजरबैजान) से अपनी 25 वीं विदेश यात्रा की शुरुआत कर रही है और इस यात्रा में डॉ अनीता श्रीवास्तव को पत्रकारिता के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य के लिए उन्हें 25,000/- नकद पुरस्कार राशि मय अंगवस्त्र,पदक, सम्मान पत्र, मेमेंटो आदि के साथ "परिकल्पना सम्मान" बाकू के एटलस सभागार में दिनांक 15 मार्च 2024 को प्रदान करने जा रही है। इस बात की पुष्टि परिकल्पना परिवार की अध्यक्ष श्रीमती माला चौबे ने प्रेस वार्ता के दौरान की। <p></p><p style="text-align: justify;">उन्होंने बताया कि डॉ अनीता श्रीवास्तव संस्था की स्थापना से लगातार जुड़ी रहीं हैं और संस्था के सभी महत्वपूर्ण कार्यक्रमों में सक्रिय योगदान दिया है। उनके द्वारा संपादित पत्रिका "रेवांत" हिन्दी साहित्य की उत्कृष्ट लघु पत्रिकाओं में शुमार है। परिकल्पना की पच्चीसवीं यात्रा पर इस सम्मान के साथ हम उन्हें संस्था के संरक्षक पद पर नियुक्त करते हुए गौरवान्वित महसूस करते हैं। हम उनके उज्वल भविष्य की कामना करते हैं। </p><p style="text-align: justify;">उन्होंने आगे बताया कि इसके अलावा विभिन्न क्षेत्रों में उल्लेखनीय योगदान हेतु 7 विशिष्ट जनों क्रमश: श्रीयुत निर्भय नारायण गुप्ता को काव्य, डॉ सत्या सिंह को हाइकु, डॉ बालकृष्ण पांडेय को समाज सेवा, श्रीमती निशा मिश्रा को खेल, श्रीमती प्रतिमा वर्मा को रंगकर्म , डॉ प्रमिला उपाध्याय को चित्रांकन एवं श्रीमती नम्रता मिश्रा को कलात्मक लेखन के लिए "परिकल्पना परिवार" द्वारा उन्हें अंगवस्त्र,पदक, सम्मान पत्र, मेमेंटो आदि के साथ "परिकल्पना रजत जयंती यात्रा सम्मान" बाकू के एटलस सभागार में दिनांक 15 मार्च 2024 को प्रदान किया जाएगा। </p><p style="text-align: justify;">परिकल्पना परिवार की रजत जयंती यात्रा की शुरुआत दिनांक 13 मार्च को बाकू (अजरबैजान) के लिए दिल्ली से होगी जिसमें दोनों देशों के सांस्कृतिक विरासत और भाषा का आदान प्रदान होगा। साथ ही हिन्दी भाषा और साहित्य का प्रसार वहां के विभिन्न हिस्सों में किया जाएगा। बीस सदस्यीय प्रधिनिधि मंडल का नेतृत्व वरिष्ठ साहित्यकार डॉ रवीन्द्र प्रभात करेंगे।</p>parikalpna samayhttp://www.blogger.com/profile/07378005813677948207noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-467427710963449342.post-67860938819486345732024-02-10T19:49:00.000-08:002024-02-10T19:49:01.863-08:00 नई शिक्षा नीति के अंतर्गत किया गया कार्यशाला का आयोजन<p style="text-align: justify;"><b></b></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><b><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjS9n6TiemABOA9TOXj7pj-_bWK3gfZdDKM6DYO-UTGUqoF6T6d4rySaoKiI3cEseaSQ3nenY3dAsLC8gtmuhN3JY_fI50M8mxvgdno41Z1aANVbRQsqZgDTsw3NtY8dy1fp-5L84yXkDi1JRs8tTrO5zjy52N__0r5DdopavBn9lS9_zTkXmOYkRAFlOqe/s1280/IMG-20240211-WA0003.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="1280" data-original-width="996" height="400" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjS9n6TiemABOA9TOXj7pj-_bWK3gfZdDKM6DYO-UTGUqoF6T6d4rySaoKiI3cEseaSQ3nenY3dAsLC8gtmuhN3JY_fI50M8mxvgdno41Z1aANVbRQsqZgDTsw3NtY8dy1fp-5L84yXkDi1JRs8tTrO5zjy52N__0r5DdopavBn9lS9_zTkXmOYkRAFlOqe/w311-h400/IMG-20240211-WA0003.jpg" width="311" /></a></b></div><b><br />गाजियाबाद</b>।शनिवार को गौतम बुद्ध विश्वविद्यालय, ग्रेटर नोएडा, के शिक्षा एवम प्रशिक्षण विभाग में शिक्षण प्रक्रिया में कठपुतली के प्रयोग से संबंधित कार्यशाला का आयोजन किया गया। कार्यशाला का उद्देश्य भावी शिक्षकों को अपने शिक्षण को रोचक एवं प्रभावपूर्ण बनाने हेतु कठपुतलियों का निर्माण एवं प्रयोग करना सिखाना था।<p></p><p style="text-align: justify;">कार्यशाला में मुख्य अतिथि के रूप में श्रीमती हरीतिमा दीक्षित ,असिस्टेंट प्रोफेसर ,शिक्षा विभाग ,मॉडर्न कॉलेज ,ग़ाज़ियाबाद उपस्थित रहीं। स्कूल की डीन प्रो. बंदना पांडे के द्वारा दीप प्रज्ज्वलन के साथ कार्यक्रम का आरंभ हुआ। तत्पश्चात मुख्य अतिथि एवं डीन महोदया को विद्यार्थियों द्वारा निर्मित कलाकृतियां भेंट करी गईं।</p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgm5HmAD_szEZ9pTvVHB9-3nkRQ0EdSmmZN_swUrIlPPccR_0RwAVX0FqlsM52eZfASFQQa_0frvTYNy9pyqPxjWnoosAb6D29sUM7u50uBIRl2pDs7B3Owqgg6X3G1VtiqxbdnmZx6dPXkzt25yrGEJaTGRugWdrlW_F9imrqSM001tVDWKz_8mRAF1UvX/s1280/IMG-20240211-WA0000.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="960" data-original-width="1280" height="240" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgm5HmAD_szEZ9pTvVHB9-3nkRQ0EdSmmZN_swUrIlPPccR_0RwAVX0FqlsM52eZfASFQQa_0frvTYNy9pyqPxjWnoosAb6D29sUM7u50uBIRl2pDs7B3Owqgg6X3G1VtiqxbdnmZx6dPXkzt25yrGEJaTGRugWdrlW_F9imrqSM001tVDWKz_8mRAF1UvX/s320/IMG-20240211-WA0000.jpg" width="320" /></a></div><br /><p></p><p style="text-align: justify;">डीन प्रो. बंदना पांडे ने विद्यार्थियों के साथ अपने अनुभव साझा करते हुए कठपुतलियों का महत्व समझाया। उन्होंने कहा कि शिक्षा का उद्देश्य मात्र डिग्री बांटना नहीं अपितु मनुष्य के आधारभूत गुणों का संपूर्ण विकास करना है। इसके साथ ही कार्यक्रम के सफल संयोजन हेतु विभाग की प्रवक्ता डॉ. श्रुति कंवर की सराहना करी।</p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjMdTmsebGgwg1tPQj_Cksf9McUU963O22yN9wc1hDIkwZUlL3YIBVd5jyA_BgghS3lyOTiDlIGaATLLfPYUlompGZeUphdEC8o-6RhwfIFalbAifL-AjY5pbaete9fehdDfkLqLGpbNLn2jS43wUMOGSYKIiKjzpZM5ruxbH9aG-dSymUDPxSnEJBot_w_/s1170/IMG-20240211-WA0002.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="870" data-original-width="1170" height="238" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjMdTmsebGgwg1tPQj_Cksf9McUU963O22yN9wc1hDIkwZUlL3YIBVd5jyA_BgghS3lyOTiDlIGaATLLfPYUlompGZeUphdEC8o-6RhwfIFalbAifL-AjY5pbaete9fehdDfkLqLGpbNLn2jS43wUMOGSYKIiKjzpZM5ruxbH9aG-dSymUDPxSnEJBot_w_/s320/IMG-20240211-WA0002.jpg" width="320" /></a></div><br /><p></p><p style="text-align: justify;">विभागाध्यक्ष डॉ. राकेश कुमार श्रीवास्तव ने अपने संबोधन में कहा कि शिक्षण प्रक्रिया में कठपुतलियों का प्रयोग विद्यार्थियों के भावनात्मक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।</p><p style="text-align: justify;">मुख्य अतिथि श्रीमती हरीतिमा दीक्षित ने अपनी प्रस्तुतियों के माध्यम से विद्यार्थियों को कठपुतली के महत्व एवं आवश्यकता से परिचित कराया। तत्पश्चात उन्होंने स्वयं कठपुतली का निर्माण करके दिखाया। साथ साथ विद्यार्थियों ने भी कठपुतली का निर्माण करना सीखा। कार्यक्रम के अंत में इस प्रशिक्षण को व्यावहारिक रूप देते हुए विद्यार्थियों ने स्वनिर्मित कठपुतलियों के माध्यम से विभिन्न कहानियों को आकर्षक रूप से प्रस्तुत किया।</p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi7yYaoN0yVnaGfBWPT8mnoRgA_45BTgQvbVn9UnmuRV_Z3ZTLNqexagyyUP7xs0SBXkg44e0L30qfTgfB-ldRVhckvmh66kqNWnX55bs1jk2IRxY2XZuRcX4XAAXe3ofQG7BBUQcPKT9LgWlh_VFTtYLh5nCa8n1H_IHOINCqJAWIM9Bb2gGCTq_S9643x/s1170/IMG-20240211-WA0001.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="587" data-original-width="1170" height="161" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi7yYaoN0yVnaGfBWPT8mnoRgA_45BTgQvbVn9UnmuRV_Z3ZTLNqexagyyUP7xs0SBXkg44e0L30qfTgfB-ldRVhckvmh66kqNWnX55bs1jk2IRxY2XZuRcX4XAAXe3ofQG7BBUQcPKT9LgWlh_VFTtYLh5nCa8n1H_IHOINCqJAWIM9Bb2gGCTq_S9643x/w320-h161/IMG-20240211-WA0001.jpg" width="320" /></a></div><br /><p></p><p style="text-align: justify;">कार्यक्रम की संयोजक डॉ. श्रुति कंवर के संबोधन के साथ कार्यक्रम का समापन हुआ। विभाग के प्रवक्ता डॉ. विनोद कुमार शानवाल, डॉ. नीलिमा, डॉ. वैशाली आदि उपस्थित रहे।</p>parikalpna samayhttp://www.blogger.com/profile/07378005813677948207noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-467427710963449342.post-48945083311251222912024-02-08T19:04:00.000-08:002024-02-08T19:30:34.160-08:00डॉ. सत्या सिंह की पांच पुस्तकों का लोकार्पण <p style="text-align: justify;"></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgvlJTnotra20yHzo1Ih_pHje2bBT7QWfaqPHBJUqV7SpZm-gRz81Neg2Q02gYpm8xkRywAHinSqCGO6EBZKNr_LtAAN6o_cNed21FF1kd5CoPVMx1-228t5o88OjbJH6Yg6a5SzOEOCJ8GogTdBmC5f3ra-zwg8JJZx6d2ZotTpkG_hrguzcrM-mugu0D4/s1280/IMG-20240209-WA0000.jpg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="960" data-original-width="1280" height="300" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgvlJTnotra20yHzo1Ih_pHje2bBT7QWfaqPHBJUqV7SpZm-gRz81Neg2Q02gYpm8xkRywAHinSqCGO6EBZKNr_LtAAN6o_cNed21FF1kd5CoPVMx1-228t5o88OjbJH6Yg6a5SzOEOCJ8GogTdBmC5f3ra-zwg8JJZx6d2ZotTpkG_hrguzcrM-mugu0D4/w400-h300/IMG-20240209-WA0000.jpg" width="400" /></a></div><br /><div style="text-align: justify;">8 फरवरी। हिन्दी संस्थान लखनऊ में पूर्व पुलिस अधिकारी और साहित्यकार तथा समाज सेविका डॉ. सत्या सिंह की सद्यः प्रकाशित पांच पुस्तकों का लोकार्पण समारोह हिन्दी संस्थान के निराला सभागार में सम्पन्न हुआ। प्रो. सूर्य प्रसाद दीक्षित की अध्यक्षता एवं डॉ. अमिता दुबे के संचालन में सत्या जी की कृतियाँ मैं हूँ ना, दम तोड़ते सपनों का शहर कोटा, अनाम पातियाँ, महाभारत की प्रबुद्ध महिलाएं एवं भारतीय कानून में महिलाओं का लोकार्पण साहित्यकारों द्वारा किया गया।</div><p></p><p style="text-align: justify;">इस अवसर पर कृतियों पर हुई चर्चा का विषय प्रवर्तन करते हुए डॉ. राम बहादुर मिश्र ने कहा कि सेवानिवृत्ति के पश्चात 6 वर्षों में सत्या जी ने 20 पुस्तकों का सृजन किया जिसमें विषय वैविध्य है।</p><p style="text-align: justify;">प्रकाशित कृति मैं हूं ना! पर अपने विचार व्यक्त करते हुए अरुण सिंह ने कहा कि एक उद्देश्यपरक संतुलित जीवन के लिए सकारात्मकता, क्रोध भय एवं तनाव पर नियंत्राण उचित नजरिया आदि की गहरी समझ के साथ विवेचना की गई है।</p><p style="text-align: justify;">अनाम पातियाँ (काव्य संग्रह) की रचनाओं को भोगे हुए यथार्थ का सजीव चित्राण बताते हुए रवीन्द्र प्रभात ने कहा कि सत्या सिंह की कविताएं जीवनानुभवों से जुड़ी है।</p><p style="text-align: justify;">विधिविद् श्रीयुत महेन्द्र भीष्म ने ‘भारतीय कानून में महिलाओं के अधिकार पर अपना मंतव्य देते हुए कहा कि गागर में सागर की तरह सुलभ सरल भाषा में लिखी यह पुस्तक देश केे कानून - पुलिस की कार्यशैली उनके व्यवहार दायित्व से परिचय कराती है।</p><p style="text-align: justify;">वरिष्ठ साहित्यकार दयानन्द पाण्डेय ने ‘दम तोड़ते सपनों का शहर कोटा’ पुस्तक पर अपना वक्तव्य देते हुए कहा कि कोटा इंजीनियरिंग और मेडिकल कोचिंग का हब बन चुका है। इन कोचिंग संस्थानों द्वारा अभिभावकों का अंधाधुंध आर्थिक शोषण बदस्तूर जारी है। आर्थिक शोषण तो गौण है लेकिन जिस समस्या ने भयावह रूप धारण कर लिया है बच्चों द्वारा आत्महत्यया रूपी महामारी।</p><p style="text-align: justify;">वरिष्ठ कवि सर्वेश अस्थाना ने डॉ. सत्या सिंह के साहित्यिक अवदान की चर्चा करते हुए कहा - सत्या जी ने कविता, कहानी, निबंध और सामाजिक विसंगतियों पर बहुत ही प्रभावशाली ढंग से लिखा है। </p><p style="text-align: justify;">समारोह के अध्यक्ष प्रो. सूर्य प्रसाद दीक्षित ने पांचवीं पुस्तक ‘महाभारत की प्रबुद्ध महिलाएं’ पर अपना सारगर्भित वक्तव्य देते हुए वैदिक कालीन और महाभारत कालीन नारियों के वैदुष्य और उनकी सामाजिक स्वीकृत पर विस्तार पूर्वक चर्चा की। इसके अतिरिक्त डॉ. विनोदचन्द्रा एवं डॉ. मिथिलेश दीक्षित ने भी अपने विचार व्यक्त किए।</p><p style="text-align: justify;">सबके प्रति आभार प्रदर्शन डॉ. सत्या सिंह ने किया।</p>parikalpna samayhttp://www.blogger.com/profile/07378005813677948207noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-467427710963449342.post-6459386907435218422024-01-26T20:57:00.000-08:002024-01-26T20:59:26.520-08:00कश्मीरी रामायण 'रामावतारचरित<p style="text-align: justify;"></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjQS7ATp_dvraKVqIPdCv6ADRVuzvYYrzkIiNjIKlB6BIxt_BMOAc7Zk43ifNslgeAU6fm9X6UuJMFstc1ll-zpQvLG0dCi0J_0kPGQW0ANK9EEMER-qmmgVr30M4zwo8QwEu-6HpsRCyQi_1mSz8g4BA97XlWZPl1yLu5txIhtpL0Ruyc5FSdG1W9IyKRC/s1123/IMG_20240127_101750.jpg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="1123" data-original-width="816" height="400" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjQS7ATp_dvraKVqIPdCv6ADRVuzvYYrzkIiNjIKlB6BIxt_BMOAc7Zk43ifNslgeAU6fm9X6UuJMFstc1ll-zpQvLG0dCi0J_0kPGQW0ANK9EEMER-qmmgVr30M4zwo8QwEu-6HpsRCyQi_1mSz8g4BA97XlWZPl1yLu5txIhtpL0Ruyc5FSdG1W9IyKRC/w291-h400/IMG_20240127_101750.jpg" width="291" /></a></div><br /><div style="text-align: justify;">श्रीनगर के महाराजगंज इलाके में एक साहित्यिक दुकान उन्नीस सौ तैंतीस से कश्मीरी साहित्य को संरक्षित कर रही है। ये साहित्यिक दुकान,कुरान प्रकाशित करने वाली पहली दुकान भी है। यहां कश्मीरी भाषा में रामायण भी मिलती है। ये न केवल कश्मीरी साहित्य के संरक्षण में योगदान देती है, बल्कि स्थानीय समुदाय को उनकी मूल भाषा में आवश्यक धार्मिक ग्रंथों तक पहुंचाने में भी सक्षम है। ये दुकान लेखकों, पाठकों और विद्वानों के लिए एक केंद्र के रूप में कार्य करती है, जो कश्मीरी भाषा और संस्कृति के विकास को बढ़ावा देते हैं। इस दुकान ने इतने सालों में विभिन्न चुनौतियों के बावजूद, कश्मीरी साहित्य को बढ़ावा देने और संरक्षित करने में अहम योगदान दिया है। यह साहित्यिक दुकान वहाँ के लोगों के दिलों में एक विशेष स्थान रखती है और क्षेत्र की समृद्ध साहित्यिक विरासत को दिखाती है। लोग भगवान के विविध रूपों की आराधना करते हैं। कौशलपुरी में उनके बाल रूप की आराधना की जाती है, तो मिथिला में वे पाहुन (दूल्हा) स्वरूप पूजे जाते हैं। दंडकारण्य चित्रकूट के आस-पास उनके वनवासी रूप की पूजा होती है, तो दक्षिण में कोदंडकारी रूप की। (भगवान राम उत्तम नैतिक और सामाजिक आचरण के प्रतीक, सत्य और सदाचार के उज्ज्वल अवतार के रूप में खड़े हैं। भगवान राम का सार धर्म के प्रति उनकी अटूट प्रतिबद्धता, धार्मिकता का पवित्र कर्तव्य है) , जिसे वह एक राजकुमार, एक भाई, एक पति, एक बेटे और एक प्यारे इंसान के रूप में अपनी भूमिकाओं में ईमानदारी से निभाते हैं। नैतिक सिद्धांतों के प्रति उनका दृढ़ समर्पण कठिन प्रतिकूल परिस्थितियों में भी अटल रहता है, जो उनकी दृढ़ निष्ठा का एक प्रमाण है। कश्मीरी भाषा-साहित्य में रामकथा काव्य के रूप में कुल मिलाकर सात रामायणे लिखी गई थी। जो </div><p></p><p style="text-align: justify;">1 - 'रामावतार चरित' ( अठारह सौ सैंतालीस ई०), </p><p style="text-align: justify;">2 - 'शंकर-रामायण' (अठारह सौ सत्तर ई. ),</p><p style="text-align: justify;">3 - 'विष्णुप्रताप रामायण' (उन्नीस सौ चार से उन्नीस सौ चौदह), </p><p style="text-align: justify;">4 - आनंद रामावतारवरित (अठारह सौ अट्ठासी ),</p><p style="text-align: justify;">5 - रामायण-इ-शर्मा (उन्नीस सौ उन्नीस से उन्नीस सौ छब्बीस ), </p><p style="text-align: justify;">6 - 'ताराचंद रामायण' (उन्नीस सौ छब्बीस से उन्नीस सौ सत्ताईस) </p><p style="text-align: justify;">7 - अमर-रामायण' (उन्नीस सौ पचास)। </p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEggXq00tHKxSACKFKBZFquAgk3SXrLtdwCxG0ZX2Fx32_hi1XrHHDMpGRz3KGG9wOfYRuFO8Ex1jJSZ9ZvJAdgM7Gmtm3fEhy5F9lryt8fKePViZ8UjZQ_V4jzAKxdh9fVlszxw-5bnT-IQjfJYFi71-oGmd2x9Sslkc88Pgdo8WFNJQRHcAlrk7bsEQaC-/s1301/IMG_20240127_101818.jpg" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em; text-align: justify;"><img border="0" data-original-height="1301" data-original-width="1046" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEggXq00tHKxSACKFKBZFquAgk3SXrLtdwCxG0ZX2Fx32_hi1XrHHDMpGRz3KGG9wOfYRuFO8Ex1jJSZ9ZvJAdgM7Gmtm3fEhy5F9lryt8fKePViZ8UjZQ_V4jzAKxdh9fVlszxw-5bnT-IQjfJYFi71-oGmd2x9Sslkc88Pgdo8WFNJQRHcAlrk7bsEQaC-/s320/IMG_20240127_101818.jpg" width="257" /></a></div><div style="text-align: justify;">इनमें सर्वाधिक लोकप्रिय प्रथम कश्मीरी रामायण रामावतारचरित' है जो प्रकाशित हो चुकी है। विष्णु प्रताप रामायण' (रथयिता पं० विष्णु कौल, रचनाकाल उन्नीस सौ चार से उन्नीस सौ चौदह ) की हस्तलिखित पाण्डुलिपि (कलमी-नुस्खा) उपलब्ध है और विष्णुप्रताप रामायण का आलोचनात्मक अध्ययन शीर्षक से इस रामायण पर कश्मीर विश्वविद्यालय में उन्नीस सौ छिहत्तर में शोधकार्य भी हुआ है। रामावतार चरित को साहित्य में एक विशिष्ट स्थान प्राप्त है। भक्तिरस से ओतप्रोत रामकथा इसमें गायी गई है। रामावतारचरित के रचयिता टी.प्रकाश राम कुरिगामी (कश्मीर) द्वारा लिखित "रामावतार चरित" कश्मीरी भक्ति साहित्य की समृद्ध परंपरा में एक रत्न के रूप में खड़ा है। यह काव्य कृति न केवल कवि की विशिष्ट शैली और कल्पनाशील कौशल को प्रदर्शित करती है, बल्कि कश्मीरी सांस्कृतिक पहचान के सार को भी संक्षेप में प्रस्तुत करती है, जो व्यापक और समृद्ध भारतीय रामायण परंपरा में एक अद्वितीय अध्याय का योगदान देती है। पृथ्वी के रक्षक के रूप में भगवान राम: प्रकाश राम के अनुसार, "रामावतार चरित" का केंद्रीय संदेश रावण द्वारा सन्निहित बुराई की ताकतों पर काबू पाने के लिए भगवान राम के दिव्य अवतार के इर्द-गिर्द घूमता है। कवि ने राम को मानव जाति का रक्षक, पृथ्वी का मुक्तिदाता और पापों का नाश करने वाला बताया है। दशरथ के पुत्र के रूप में जन्म लेने के बावजूद, राम को भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है, जो नश्वर लोक से पाप को मिटाने की जिम्मेदारी निभाते हैं। टी.प्रकाश राम के छंद गहरी सरलता और गहराई के साथ रामायण के सार को व्यक्त करते हैं। कवि इस बात पर जोर देते हैं कि रामावतार चरित केवल एक कथा नहीं है बल्कि एक परिवर्तनकारी अनुभव है, जिसकी शिक्षाओं के अनुसार भगवान राम की कृपा से, इस पवित्र कहानी को सुनने से खुशी और आध्यात्मिक उन्नति मिलती है, जिससे नकारात्मक विचारों का अंत होता है और व्यक्ति को अपनी सकारात्मकता का अनुभव होता है। प्रकाश राम द्वारा बुने गए प्रतीकवाद के जटिल जाल में, रामायण के पात्रों का गहरा अर्थ निकलता है। इसमें सीता धार्मिकता और सद्भावना का प्रतिनिधित्व करती हैं, जबकि राम और लक्ष्मण सच्चाई के प्रतिनिधि के रूप में नजर आते हैं। हनुमान साहस के अवतार प्रतीत होते हैं तो वहीं दुष्ट रावण के कपटी और धोखेबाज़ के रूप में दिखाई देता हैं। डॉ. शिबेन कृष्ण रैना एक प्रसिद्ध शिक्षाविद्, शिक्षक और अनुवादक हैं। उन्हें कश्मीरी, उर्दू और अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद करने के क्षेत्र में लंबा अनुभव रखने वाले एक प्रतिष्ठित अनुवादक के रूप में जाना जाता है। प्रसिद्ध कश्मीरी रामायण "रामावतार चरित" के अनुवाद और लिप्यंतरण सहित उनका अनुवाद कार्य हिंदी साहित्य के क्षेत्र में एक मूल्यवान योगदान है। भुवन वाणी ट्रस्ट, लखनऊ से प्रकाशित इस स्मारकीय कार्य ने डॉ. रैना को उन्नीस सौ पचहत्तर में बिहार राज्य भाषा विभाग, बिहार सरकार से ताम्र-पत्र दिलाया था। डॉ.शिबेन कृष्ण रैना भारतीय उन्नत अध्ययन संस्थान, राष्ट्रपति निवास, शिमला में फेलो थे जहाँ उन्होंने अनुवाद की समस्याओं पर काम किया था। यह कार्य आई.आई.ए.एस.शिमला द्वारा पहले ही प्रकाशित किया जा चुका है। डॉ. रैना को राजस्थान साहित्य अकादमी, उदयपुर के पहले अनुवाद पुरस्कार और भारतीय अनुवाद परिषद, दिल्ली से अनुवाद-श्री सम्मान प्राप्त कर चुके हैं। वह देश के कई साहित्यिक और सांस्कृतिक निकायों से जुड़े हुए हैं।</div><p></p><p style="text-align: justify;">'रामावतर चरित' की कथा 'शिव-पार्वती' संवाद से प्रारंभ होती है। पूरी कथा आठ काण्डों-बालकाण्ड, आयोध्याकाण्ड, अरण्य काण्ड, किष्कििड सुन्दर काण्ड, युद्ध काण्ड उत्तर काण्ड तथा लवकुश काण्ड में विभाजित है। इन काण्डों के अन्तर्गत मुख्य कथा-बिन्दुओं को मसनवी-शैली के अनुरूप विभिन्न उपशीर्षकों में बांटा गया है। इन उपशीर्षकों की कुल संख्या छप्पन है। 'रामावतार चरित' में वर्णित अधिकांश प्रसंग अत्यन्त मार्मिक एवं हृदय-ग्राही बन पड़े हैं जिससे कवि की विलक्षण काव्यप्रतिभा का परिचय मिल जाता है। अयोध्यापति दशरथ की संतान-कामना, कामनापूर्ति के लिए व्रत आदि रखना तथा स्वप्न में भगवान विष्णु द्वारा वरदान देना आदि प्रसंग इस कश्मीरी रामायण में बहुत ही भावपूर्ण ढंग से लिखा गया है जैसे,' राजा दशरथ प्रभात-वेला मे प्रतिदिन सुबह जागकर स्नान करते थे तथा साधु-सन्तों और जोगियों के पास आशीर्वाद लेने जाते थे। पुत्र के सुख के अभाव में उनका मन हमेंशा दुःखी रहता था । एक रात स्वप्न में नारायण ने उन्हें दर्शन दिया और कहा कि मैं शीघ्र ही तुम्हारे घर में स्वयं जन्म लूँगा। बचनबद्धता के प्रश्न को लेकर दशरथ और कैकेयी के बीच जो परि-संवाद होता है, उसमें एक पिता के हृदय की व्याकुलता तथा वात्सल्यमयी भाव का सजीव वर्णन हुआ है।</p><p style="text-align: justify;">देखा जाय तो सही मायने में रामावतार चरित की मुख्य कथा का आधार वाल्मीकि कृत रामायण ही है, परन्तु कथासूत्र को कवि ने अपनी प्रतिभा और दृष्टि के अनुरूप ढालने की कोशिश किया है। सीता के जन्म में कवि का कहना यह है कि सीता, दरअसल, रावण-मंदोदरी की पुत्री थी। मन्दोदरी एक अप्सरा थी जिसकी शादी रावण से हुई थी। उनके पुत्री हुई जिसे ज्योतिषियों ने रावण-कुल के लिए घातक बताया। फलस्वरूप मंदोदरी उसके जन्म लेते ही, अपने पति रावण को बताए विना, उसे सन्दूक में बंदकर के नदी में फेंक देती है। बाद में राजा जनक यज्ञ की तैयारी के दौरान नदी-किनारे उसे पाकर धन्य हो उठते हैं। तभी तो लंका में सीता को देख कर मंदोदरी वात्सल्य भाव से विभोर हो उठती है, और उस माँ के स्तनों से दूध की धारा द्रुत गति से फूट पड़ी है। रामावतार चरित में आई दूसरी कथा राम द्वारा सीता के परित्याग की है। सीता को वनवास दिलाने में कवि ने सीता की छोटी ननद को दोषी ठहराया है, जो पति-पत्नी के पावन प्रेम में यों फूट डालती है। एक दिन वह भाभी (सीता जी) से कहती है कि रावण का आकार कैसा था, तनिक उसका हुलिया तो बताना। सीता जी सहज भाव से कागज़ पर रावण का एक रेखाचित्रा बना देती है जिसे ननद अपने भाई को दिखाकर पति-पत्नी के पावन प्रेम में फूट डाल देती है। वह रावण का चित्र राम को दिखा कर कहती है देखो भैया, यह क्या है, सीता इसे देख कर रोज़ विलाप करती है। जब से मैंने यह चित्र चुरा लिया है, तब से उसकी आँखों से आँसू बहे जा रहे है। यदि वह यह जान जाए कि ननद ने उसका यह कागज चित्र चुरा लिया है तो मुझे ज़िन्दा न छोड़ेगी।</p><p style="text-align: justify;">रामावतार चरित के युद्धकाण्ड प्रकरण में उपलब्ध एक अत्यन्त अद्भुत और विरल प्रसंग मक्केश्वर-लिंग से सम्बधित है जो प्रायः अन्य रामायणों में नहीं मिलता है। यह प्रसंग बहुत ही दिलचस्प है जिसमें शिव रावण को याचना करने पर उसे युद्ध में विजयी होने के लिए एक लिंग (मक्केश्वर) दे देते हैं और कहते हैं कि जा, यह तेरी रक्षा करेगा, मगर ले जाते समय इसे मार्ग में कहीं पर भी धरती पर न रखना। लिंग को अपने हाथों में आदर पूर्वक थामकर रावण आकाश मार्ग द्वारा लंका की ओर प्रस्थान करता है। रास्ते में उन्हें लघु-शंका महसूस होती है तो वह आकाश से नीचे उतरता है तथा इस असमंजस में पड़ जाता है कि लिंग को वह कहां रखे ? तभी ब्राह्मण-वेश में नारद मुनि वहां पर प्रगट होते हैं जो रावण की दुविधा को भाप जाते हैं। रावण लिंग उनके हाथों में यह कहकर पकड़ा जाता है कि वह अभी निवृत्त होकर आ रहा है। रावण लघुशंका से निवृत्त हो ही नहीं पाता क्योंकि धारा रुकने का नाम ही नहीं लेती शायद यह प्रभु की लीला थी। काफी देर तक प्रतीक्षा करने के उपरान्त नारदजी लिंग को धरती पर रखकर चले जाते है। तब रावण के खूब प्रयत्न करने पर भी लिंग उस स्थान से हिलता नहीं है और इस प्रकार शिब द्वारा प्रदत्त लिंग की शक्ति का उपयोग करने से रावण बंचित हो जाता है। रामावतार चरित' में एक और दिलचस्प कथा-प्रसंग लंका-निर्माण के सम्बन्ध में है। पार्वती जी ने एक दिन अपने निवास-हेतु भवन निर्माण की इच्छा शिवजी के सम्मुख व्यक्त की। विश्वकर्मा द्वारा शिवजी की आज्ञा पर एक सुन्दर भवन बनाया गया। भवन के लिए स्थान के चयन के बारे में रामावतार चरित में एक रोचक प्रसंग मिलता है। गुरुड़ एक दिन क्षुधा पीड़ित होकर कश्यप के पास गये और कुछ खाने को मांगा। कश्यप ने उसे कहा जा, उस मदमस्त हाथी और ग्राह को खा डाल जो तीन सौ कोस ऊंचे और उससे भी दुगने लम्बे हैं। वे दोनों इस समय युद्ध कर रहे हैं। गरुड़ वायु के वेग की तरह उड़ा और उन पर टूट पड़ा तथा अपने दोनों पंजों में पकड़कर उन्हें आकाश-मार्ग की ओर ले गया। भूख मिटाने के लिए वह एक विशालकाय वृक्ष पर बैठ गया। भार से इस वृक्ष की एक डाल टूटकर जब गिरने को हुई तो गरुड़ ने उसे अपनी चोंच में उठाकर बीच समुद्र में फोक दिया, यह सोचकर कि यदि डाल (शाख) पृथ्वी पर गिर जाएगी तो पृथ्वी धंस कर पाताल में चली जाएगी। इस प्रकार जिस जगह पर यह शाख (कस्मीरी लंग) समुद्र में जा गिरी, वह जगह कालांतर में लंका कहलाई विश्वकर्मा ने अपने अद्भुत कौशल से पूरे त्रिभुवन में इसे अंगूठी में नग के समान बना दिया। गृहप्रवेश के समय कई अतिधि एकत्रा हुए। अपने पितामह पुलस्त्य के साथ रावण भी आया और लंका के वैभव ने उसे मोहित कर दिया। गृह प्रवेश की पूजा के उपरान्त जब शिव ने दक्षिणास्वरूप सबसे कुछ मांगने का अनुरोध किया तो रावण ने अवसर जानकर शिवजी से लंका ही मांग ली ( रावण ने कहा, "मैं लंका को मांगता हूं, यह मुझे धर्म के नाम पर मिल जानी चाहिए क्योंकि आप ईश्वर के रूप में सब से बड़े दाता हैं। तब शिव ने पार्टी और पानी छिड़कर लंका को रावण के हवाले कर दिया और तभी से भगवान शिव स्वयं पर्वत-पर्वत घूमने लगे।)। जटायु-प्रसंग भी रामावतार परित में अपनी मौलिक उद्भावना के साथ वर्जित हुआ है। जटायु के पंख प्रहार जब रावण के लिए असहनीय हो उठते हैं ती यह इससे छुटकारा पाने की पुक्ति पर विचार करता है।वह जटायु वध की युक्ति बताने के लिए सीता को विवश कर देता है।विवस होकर सीता को उसे जटायु वध का उपाय बताना पड़ता है</p><p style="text-align: justify;">रामावतार चरित में कुछ ऐसे कथा-प्रसंग भी है जो तनिक भित्र रूप में संयोजित किए गये हैं। उदाहरण के तौर पर रावण-दरबार में अंगद के स्थान पर हनुमान के पैर को असुर पूरा जोर लगाने पर भी उठा नहीं पाते। एक अन्य स्थान पर रावण युद्धनीति का प्रयोग कर सुग्रीव को अलग से एक खत लिखता है और अपने पक्ष में करना चाहता है। वह तर्क यह देता है कि क्या मालूम किसी दिन उसकी गति भी उसके भाई (बाली) जैसी हो जाए इसलिए वह भाई के वध का प्रतिशोध लेने के लिए सुग्रीव को उकसाता है और लंका आने की दावत देता है जिसे सुग्रीव ठुकरा देते हैं। इसी प्रकार महिरावण (अहिरावण) का राम और लक्ष्मण को उठाकर पाताल लोक ले जाना और बाद में हनुमान द्वारा उसे युद्ध में परास्त कर दोनों की रक्षा करना प्रसंग भी रामावतार परित का एक रोचक प्रकरण है। रामावतार चरित के लवकुश काण्ड में भी कुछ ऐसे कथा-प्रसंग हैं जिनमें कवि प्रकाशराम की कतिपय मौलिक उद्भावनाओं का परिचय मिल जाता है। लवकुश द्वारा युद्ध में मारे गये राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न के मुकुटों को देखकर सीता का बिलाप करना, गीता जी के रुदन से द्रवित होकर वशिष्ठजी द्वारा अमृत वर्षा कराना और सेना सहित रामादि का पुनर्जीवित हो उठना वसिष्ठ के आग्रह पर सीता जी का अयोध्या जाना किन्तु हाँ राम द्वारा पुन अग्नि-परीक्षा की मांग करने पर उनका भूमि-प्रवेश करना आदि प्रसंग ऐसे हैं जिनमें बाल्मीकी रामायण की झलक देखने को मिलती है।</p><p style="text-align: justify;">भगवान राम के जीवन पर आधारित कथाएँ लिखने की एक उल्लेखनीय और महत्वपूर्ण कश्मीरी साहित्य परंपरा उन्नीसवीं शताब्दी की शुरुआत में प्रमुखता से सामने आई थी, कहा जय तो वैसे वहाँ लगभग सात रामायण उपलब्ध हैं, परन्तु रामावतारचरित, जो कि प्रकाशित है वह इनमें सबसे अधिक प्रसिद्ध और महत्वपूर्ण है। शेष रामायणें या तो अप्रकाशित हैं अथवा उनके नाम मात्र बताये गये हैं। "विष्णु प्रताप रामायण" की एक हस्तलिखित पांडुलिपि (जो कलमी-नुस्खा है) है। हरि कृष्ण कौल उपलब्ध हैं जिन्होंने इसे उन्नीस सौ चार और उन्नीस सौ चौदह के बीच लिखा था। सत्तर के दशक के मध्य में कौल के नाटक "नातुक करिव बैंड" का पहली बार मंचन श्रीनगर के टैगोर हॉल में किया गया था। यह नाटक महाकाव्य रामायण पर आधारित है, और इसमें हनुमान सीता को निर्वासित करने के राम के फैसले के खिलाफ विद्रोह करते हैं। जैसे-जैसे नाटक सामने आता है, दर्शक पाते हैं कि राम सत्तारूढ़ राजनेताओं का प्रतिनिधित्व करते हैं जो सत्ता में बने रहने के एकमात्र उद्देश्य के लिए सीता, लोगों को धोखा देने के लिए हमेशा तैयार रहते हैं और हनुमान नातुक करिव बैंड का रोना रोते हुए इस विश्वासघात का पर्दाफाश करते हैं । यह नाटक कश्मीरी साहित्य में एक मील का पत्थर है और इसका मंचन हिंदी के साथ-साथ अन्य भारतीय भाषाओं में भी किया गया है। राज्य के मुख्यमंत्री शेख अब्दुल्ला ने दिल्ली में एक प्रदर्शन देखा और बहुत प्रभावित हुए थे।उन्होंने अपने लेखन के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार सहित कई राष्ट्रीय पुरस्कार जीते थे। </p><p style="text-align: justify;">"रामावतारचरित" रामायण पर कश्मीर विश्वविद्यालय में उन्नीस सौ छिहत्तर में "विष्णु प्रताप रामायण का आलोचनात्मक अध्ययन" नामक एक अध्ययन परियोजना आयोजित की गई थी। कश्मीर की उपलब्ध और अनुपलब्ध रामायणों में से 'रामावतारचरित' का कश्मीरी साहित्य में विशेष स्थान है और वह अपनी लोकप्रियता के कारण सबसे आगे है। कहा जाता है कि एक दिन बहुत तेज बारिश हो रही थी. अँधेरा पहले ही छा चुका था तो इसके लेखक प्रकाशराम ने दूर से एक पालकी को अपनी ओर आते देखा। पालकी ढोने वालों ने प्रकाशराम को आवाज लगाई। प्रकाशराम निकट आये तो पालकी का पर्दा उठ गया। पालकी में साक्षात् देवी त्रिपुरसुंदरी स्वयं विराजमान थीं। देवी को देखकर प्रकाशराम बहुत प्रसन्न हुआ। उसकी आँखें चमक उठीं। कुछ क्षण बाद भगवती देवी अदृश्य हो गईं। देवी त्रिपुरसुंदरी के दिव्य दर्शन से धन्य होने के बाद, प्रकाशराम का शरीर और मन सर्वशक्तिमान की स्तुति में तल्लीन हो गया और उन्होंने सुंदर छंदों की रचना करना शुरू कर दिया। उनकी प्रमुख कृतियाँ हैं (1) रामावतारचरित, (2) लवकुश-चरित, (3) कृष्णावतार, (4) अकनन्दुन, और (5) शिवलग्न। इन पांच कृतियों में से केवल 'रामावतारचरित' और 'लवकुश-चरित' ही प्रकाशित हो पाये हैं। 'रामावतार-चरित' के अंत में 'लवकुश-चरित' मुद्रित है। कश्मीरी विद्वान डॉ. शशिशेखर तोशखानी के अनुसार, ''रामवाचारचरित' की सबसे बड़ी विशेषता स्थानीय परिवेश की प्रधानता है। प्रकाशराम युग के सामाजिक, सांस्कृतिक और भौगोलिक वातावरण का इस कार्य पर इतना गहरा प्रभाव पड़ा कि स्थानीय तत्वों के समावेश से यह पूर्णतया कश्मीरीकृत हो गया। ये तत्व इस कृति में इतनी प्रचुरता से स्थापित हैं कि कई पात्रों के नाम भी कश्मीरी उच्चारण के अनुसार निर्मित किए गए हैं। जैसे यहां जटायु 'जटायन' है, कैकेयी 'किकी' है, इंद्रजीत 'इंद्रजेठ' है और संपाती 'संपत' है आदि। यहाँ के रहन-सहन, रीति-रिवाज, वेशभूषा आदि में स्थानीय वातावरण इतना झलकता है कि यहाँ का जनजीवन में उन्नीसवीं सदी का कश्मीर मूर्त हो जाता है। राम के वनवास पर विलाप करते हुए, दशरथ को कश्मीर के परिचित सौंदर्य स्थलों और तीर्थों में राम की खोज करते हुए व्यथित दिखाया गया है। कवि ने लंका के अशोक उद्यान में कश्मीर की घाटी में अपने रंग बिखेरने वाले सभी फूलों को गिना और दर्शाया है। राम का विवाह भी कश्मीरी हिंदुओं में प्रचलित द्वार-पूजा, पुष्प-पूजा आदि रीति-रिवाजों के अनुसार होता है।” 'रामावतारचरित' कश्मीरी भाषा एवं साहित्य में उपलब्ध भगवान राम की कथा का एक बहुमूल्य ग्रंथ है, जिसमें कवि ने राम के जीवन वृत्त से संबंधित घटनाओं का अत्यंत भक्ति भाव से पाठ किया है। कवि की वर्णन-शैली और कल्पना शक्ति इतनी प्रभावशाली और स्थानीय रंग से सराबोर है कि ऐसा लगता है मानो 'रामावतार-चरित' की सारी घटनाएँ अयोध्या, जनकपुरी, लंका आदि में न होकर कश्मीर संभाग में घटित हो रही हों। 'रामावतारचरित' का महत्वपूर्ण गुण है और यही इस रामायण को अत्यंत विशिष्ट एवं विशिष्ट बनाता है। निस्संदेह, 'कश्मीरियत' के अनूठे स्थानीय रंग से भरपूर इस खूबसूरत काव्य कृति का भारतीय साहित्य की समृद्ध रामायण परंपरा में एक विशेष स्थान है।15 जनवरी 2009 को हरिकृष्ण कौल का निधन हो गया।</p><p style="text-align: justify;"> -- डॉ सत्या सिंह </p>रवीन्द्र प्रभातhttp://www.blogger.com/profile/11471859655099784046noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-467427710963449342.post-84093161008034944762024-01-26T20:37:00.000-08:002024-01-26T20:42:30.573-08:00बौद्ध रामायण: दसरथ जातक कथा <p style="text-align: justify;"></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: justify;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgYnsNSLVvUBhMAPzEjwjqagGNsp-EdaDhFW0PR4omM1AXbSB8XWLbKzedqqNRB84aniN2p2Q3W_Rw8SdzFLNuaZQBa6SNxnoQT3Mw5qLv1QYeOGpMYWSZWjefrmt8xwCoF-oCBd7K4X4zmngEJOn1oP5QOnQiHKmYCc4KAV3m1-Zy2EEGKv4wSrQUmVMJE/s1381/IMG_20240127_095404.jpg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="1381" data-original-width="1080" height="400" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgYnsNSLVvUBhMAPzEjwjqagGNsp-EdaDhFW0PR4omM1AXbSB8XWLbKzedqqNRB84aniN2p2Q3W_Rw8SdzFLNuaZQBa6SNxnoQT3Mw5qLv1QYeOGpMYWSZWjefrmt8xwCoF-oCBd7K4X4zmngEJOn1oP5QOnQiHKmYCc4KAV3m1-Zy2EEGKv4wSrQUmVMJE/w313-h400/IMG_20240127_095404.jpg" width="313" /></a></div><div style="text-align: justify;"><br /></div><div style="text-align: justify;">बौद्ध की रामायण किसी भी ग्रंथ को नहीं कहा जाता है, असल में जो वाल्मीकि रामायण है वो बौद्ध त्रिपिटक के जातक (दशरथ जातक) कथाओं को आधार बनाकर लिखा हुआ महाकाव्य मात्र हैं। हिंदू धर्म में सतयुग में उत्पन्न हुए राजा हरिश्चंद्र की सत्यता और दान वीरता का अक्सर जिक्र आता हैं। इन्ही राजा हरिश्चंद्र की कथा को महावेस्सन्तर जातक में संकलित किया गया है या बुद्ध के मुह से कहलवाया गया है, जिसके अंतर्गत दान परिमिता का महत्त्व बताया गया है। कट्ठहारी जातक में शकुंतला का प्रकरण ज्यों का त्यों दिया गया है सुत्तभस्त जातक का विस्तृत वर्णन किया गया है। वही दसरथ जातक में राजा दसरथ, तथा राम को बोधिसत्व राम के रूप में लिखा गया है, इसमें लक्खन कुमार और सीता का भी वर्णन मिलता है। अंतर सिर्फ इतना ही है कि हिंदू वांडमय में सीता राम की पत्नी बताई गयी है जबकि बौद्ध धर्म शक्यो में बहनो से विवाह करने की प्रथा के चलते सीता को राम की बहन के रूप में लिखा गया है, क्यों की स्वयं बुद्ध ने भी अपनी फुफेरी बहन यशोदरा से विवाह किया था। अतः इस युक्ति को सही ठहराने हेतु दसरथ जातक में सीता को राम की बहिन फिर पत्नी बताया गया है। मिथिला के राजा जनक (महाजनक जातक) और चित्रकूट पर्वत (चुल्लहंस जातक)में उल्लेख मिलता है कि दसरथ जातक में राजा दसरथ को वाराणसी का राजा कहा गया और उनकी सोलह हजार रानियाँ थी ऐसा लिखा गया है। उनकी पटरानी से राम पडित और लक्खन कुमार दो पुत्र और सीता देवी एक पुत्री उत्पन्न हुई थी। पहली पटरानी के मरने के बाद सोलह हजार रानियों में से एक नयी पटरानी नियुक्त की गई। उससे भरत नाम का एक और पुत्र उत्पन्न हुआ। बाकि संपूर्ण कथा रामायण की कहानी की तरह चलती है। इसमें रावण वध के बारे में लिखा गया है कि रावण का वध राम ने नही अपितु लक्खन नें किया था और अंत समय में उनका शरीर रोग ग्रस्त हो गया था। राम पण्डित बोधिसत्व थे और अपने पिता की आज्ञा मानकर वनवास चले गए थे। उनके साथ ही उनके छोटे भाई लक्खन कुमार और सीता देवी भी गई थी। वनवास से लौटने के बाद राम के राजा बनने पर सीता की शादी राम से कर दी गई। ध्यान देने वाली बात यह भी है कि जिस प्रकार बौद्ध धर्म में राम को बोधिसत्व कहा गया है उसी तरह जैन धर्म में उनको और उनसे सम्बंधित लोगो को जैन। जबकि बौद्ध और जैन दोनों समकालीन थे। निश्चय ही राम का अस्तित्व उनसे पहले रहा होगा जिसे उन्होने अपने मत के अनुसार पृथक कर के अपने मत में आत्म सात किया था। यद्यपि दोनों ही सम्प्रदायो में राम कथा है, यह बात अलग है कि अब इन सम्प्रदायो ने राम को आत्मसात करने के लिए अपने अपने ढंग से बौद्ध और जैन बना दिया। किन्तु इससे इस बात की भी पुष्टि हो जाती है कि राम बौधों में भी आदर्श व्यक्तित्व है। महाजनक जातक, दसरथ जातक, सामजातक और चुल्लहंस जातक, में चित्रकूट पर्वत का वर्णन है, इन सब से यह प्रमाणित होता है कि इतिहास में शकुंतला, भरत, हरिश्चंद्र, दसरथ, जनक, राम, लक्षण, सीता, भरत जैसे चरित्र काल्पनिक नही है और न ही मिथ्या हैं। साम जातक में पितृ भक्त श्रमण कुमार का उलेख किया गया है। वही श्रीकृष्ण को बौद्धों के बोधिसत्व के रूप में दर्शाया गया है। श्रीकृष्ण की संपूर्ण कथा कन्ह जातक में, घत जातक और श्रीकृष्ण के द्वारा दिया गया ज्ञान महानारद कश्यप जातक में लिखा गया है। इतना ही नही महाभारत में उल्लेखित, युधिष्टिर् यक्ष संवाद को देव धम्म जातक, और सुत्त निपात में ज्यो का त्यों लिखा गया है। राजा ध्रुतराष्ट्र की जानकारी सिरकालकन्नी जातक ,चुल्लहंस जातक और महासंस जातक में लिखी गई है। महाभारत के मुख्य पात्र युधिष्ठिर और विदुर तथा उनकी राजधानी इंद्रप्रस्थ की जानकारी दस जातक, सम्भव जातक और जुए का संपूर्ण विवरण और विदुर का संपूर्ण चरित्र-चित्रण विधुर नामक जातक में लिखा गया है। इसके अतिरिक्त धनंजय, विदुर, संजय के बारे में जानकारी सम्भव जातक से प्राप्त होती है। अर्जुन के बारे में भुरिदत्त जातक और कुणाल जातक एवं भीम के बारे में कुणाल जातक में पूरी कहानी लिखी गई है।भगवान विश्वकर्मा का वर्णन ययोधर जातक और ह्रुषी ह्रंग की पूरी जानकारी अलम्बुस जातक और नलिनिका जातक में लिखी गई है।</div><p></p><p style="text-align: justify;">एक इतिहासकार होपकिन्स के अनुसार, ”रामायण की रचना कब हुई, इसके बारे में निश्चित रूप से कहना कठिन है। लेकिन सुस्थापित कथन यह है की राम वाली घटना पाण्डवों वाली घटना से अधिक पुरानी है, और रामायण के मुख्य नायक श्रीराम और नायिका सीता है। इसी को बौद्ध धर्म में दसरथ जातक के रूप में लिखा गया है। इनके बावजूद जातक कथाएं बौद्ध धर्म में अपना बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान रखती है। इनकी कुल संख्या पाँच सौ सैंतालीस है। यह कथाएं बुद्ध के समय में प्रचलित थी और इन्हें बुद्ध ने ही कहा है ऐसा बौद्ध ग्रंथो में कहा गया है। जातक कथाएं बुद्ध के युग में प्रचलित थीं, जिसमे बुद्ध पूर्व जन्मों के बोधिसत्वों के बारे में बताते है। इन जातक कथाओ में सिर्फ राम का ही नही बल्कि महाभारत के पात्रो का भी उलेख है।</p><p style="text-align: justify;">परन्तु एक सबसे बड़ा प्रश्न अक्सर सर उठा कर खड़ा हो जाता है कि, क्या वास्तव में रामायण में गौतम बुद्ध का जिक्र है और अगर ऐसा है तो क्या रामायण गौतम बुद्ध के बाद लिखी गई थी। चलिए हम देखते हैं रामायण में कहाँ कहाँ पर बुद्ध शब्द का प्रयोग हुआ है, और किस परिपेक्ष्य में हुआ है। रामायण के अयोध्या काण्ड सर्ग एक सौ दस श्लोक चौंतीस में एक यह श्लोक आया है, जिसको लेकर रामायण को बुद्ध के बाद का बताया जाता है। </p><p style="text-align: justify;">यथा हि चोरः स तथा ही बुद्धस्तथागतं नास्तीक मंत्र विद्धि तस्माद्धि यः शक्यतमः प्रजानाम् स नास्तीके नाभि मुखो बुद्धः स्यातम् –</p><p style="text-align: justify;">( जिसका अर्थ है कि “जैसे चोर दंडनीय होता है, उसी प्रकार बुद्धिमान ज्ञानी तथागत अर्थात सब कुछ जान कर भी नास्तिकता को बढ़वा देने वाले भी दण्डनीय है। इस कोटि के नास्तिक को यदि दंड दिलाया जा सके तो उसे चोर के समान दंड दिलाया जाय। परन्तु जो पकड़ के या वश के बाहर हो तो उस नास्तिक से आस्तिक जन कभी वार्तालाप ना करे!” (श्लोक 34, सर्ग 110 , वाल्मीकि रामायण, अयोध्या कांड)” </p><p style="text-align: justify;">इस श्लोक से पूर्व तैंतीस नम्बर श्लोक आता है और इसमें बुद्ध शब्द का फिर से उपयोग किया गया है जैसे,-</p><p style="text-align: justify;">"अहं निन्दामि तत् कर्म कृतम् पितुः त्वाम् आगृह्णात् यः विषमस्थ बुद्धिम् चरन्तं अनय एवं विधया बुद्धया सुनास्तिकम् अपेतं धर्म पथात्।"</p><p style="text-align: justify;">– श्लोक 33, सर्ग 110 </p><p style="text-align: justify;">(अर्थात, जबालि को भगवान श्रीराम उसके नास्तिक विचारों के कारण विषमस्थ बुद्धिम् एवं अनय बुद्धया शब्दों से परिभाषित करते हुए देखे जा सकते है। यहाँ विषमस्थ बुद्धिम् का अर्थ है "वेद मार्ग से भ्रष्ट नास्तिक बुद्धि" एवं अनय बुद्धया का अर्थ है "(अ-नय) माने कुत्सित बुद्धि।)" मतलब, “हे जबालि ! मै अपने पिता के इस कार्य की निन्दा करता हूँ कि उन्होंने तुम्हारे जैसे वेदमार्ग से भ्रष्ट बुद्धि वाले धर्मच्युत नास्तिक को अपने यहाँ रखा।” )(श्लोक 33)</p><p style="text-align: justify;">वही आगे का श्लोक-34, जिसमे भगवान राम ठीक इसी प्रसंग को आगे बढाते कहते हैं कि जाबालि के समान वेदमार्ग से भ्रष्ट बुद्धि वाले धर्मच्युत नास्तिक को सभा में रखना तो दूर की बात, राजा को ऐसे व्यक्ति को एक चोर के समान दण्ड देना चाहिये। अगर दण्ड न दे सके तो ऐसे नास्तिक बुद्धि के व्यक्ति से सम्बन्ध विच्छेद कर लेना चाहिए। </p><p style="text-align: justify;">अगर दोनो श्लोकों का क्रम से अध्ययन किया जाय तो पूरा प्रकरण स्वतः स्पष्ट हो जाएगा। फिर भी कुछ बुद्धिजीवी लोग ऐसे भी होंगे जिनका कहना यही होगा कि रामायण में जो 'बुद्धस्थगत' शब्द आया है, वह नास्तिक रूप में आया और बुद्ध नास्तिक थे। अतः यह श्लोक सिद्धार्थ गौतम बुद्ध पर लिखा गया है, जबकि बुद्ध नास्तिक थे यह आज तक किसी बौद्ध साहित्य से सिद्ध नही हो पाया है। </p><p style="text-align: justify;">यह आज भी मनन और खोज का विषय है कि, 'बुद्धस्थगत' शब्द का वास्तव में अर्थ क्या है ? क्या यह शब्द व्यक्ति विशेष के तौर पर लिखा गया है ! अगर ऐसा होता तो यह बुद्ध शब्द सिर्फ सिद्धार्थ गौतम बुद्ध के साथ जुड़ा होता। जबकि स्पष्ट है कि सिद्धार्थ को यह बुद्ध की संज्ञा बोधि प्राप्ति के बाद मिली थी। साथ ही सिद्धार्थ गौतम, बुद्ध से पूर्व के भी अनेक बोधिसत्वों को बोधि के बाद बुद्ध की संज्ञा दी गई थी। यह शब्द व्यक्ति बोधक नही, गुण बोधक है। ठीक इसी रूप में तथागत शब्द भी है, इसका भी अर्थ “जैसे आया वैसे ही चला गया” या फिर “जैसा बोलना वैसा ही अमल करना”, यह तथागत शब्द के अर्थ हैं, इसलिए यह दोनो ही शब्द व्यक्ति विशेष के लिए नही है। और प्रस्तुत श्लोक चौंतीस में भी राम जबाली को उसकी विषमस्थ बुद्धि, बुद्धस्थगत अर्थात “वेद विरुद्ध नास्तिक बुद्धि” और “जैसा जानता है, वैसा ही ज्ञान और विचार प्रदर्शित करता है”, के लिए फटकारते है। वैसे भी कहा जाता है कि बुद्ध तो कुल अट्ठाइस हुए हैं तो यह रामयण का श्लोक तैंतीस और चौंतीस किस बुद्ध के लिए है ? और रामायण किस बुद्ध के बाद की रचना है। </p><p style="text-align: justify;">वैसे देखा जाय तो श्लोक चौंतीस में बुद्धस्तथागतं में विसर्ग सन्धि है। जिसका विच्छेद करने पर बुद्धः + तथागतः एवं इसके बाद शब्द आया है नास्तिकमत्र! जिसमें दो शब्द हैं नास्तिकम् + अत्र, इसके बाद आया है “विद्धिसंधि”। इसका अन्वय हुआ – विद्धि नास्तिकम अत्र तथागतम्।</p><p style="text-align: justify;">अर्थात् नास्तिक को केवल मात्र जो बुद्धिजीवी है उसके समान मानना चाहिए। इसके पहले की पंक्ति का अन्वय हुआ– “यथा हि तथा हि सः बुद्धाः चोर” अर्थात “केवल मात्र जो बुद्धिजीवी है, उसको चोर के समान मानना चाहिए और दण्डित करना चहिए”।</p><p style="text-align: justify;">अगर इनकी माने तो रामायण में बुद्धस्थगत शब्द आने से रामायण बुद्ध के बाद की रचना है? फिर इस बात से भी इन्हें मुँह नही फेरना चाहिये की बौद्ध ग्रथो विशेषतः दशरथ जातक आदि में भी राम, सीता, लक्षण,भारत, शत्रुघ्न, राजा दसरथ आदि का जिक्र है। इसमे बुद्ध के कथन से स्पष्ट किया गया की “मैं ही पूर्व जन्म में राम था और देवदत्त रावण”! </p><p style="text-align: justify;">उपरोक्त जातक प्रकरणों के बाद अगर गंभीरता से मनन किया जाय तो यही प्रतीत होता है कि, रामयण बुद्ध से पूर्व की रचना है। क्यो की बौद्ध ग्रथो में तो रामयण के सभी पात्र मिलते है। अतः यह ज्यादा पुष्ट प्रमाण है की रामयण बुद्ध से पूर्व की घटना है, बुद्ध राम के बाद पैदा हुए। और जातक तो स्वयं बुद्ध वाणी है। इतना ही नही भगवान राम का उल्लेख तो बुद्ध के समकालीन चल रहे जैन धर्म में भी है, जिसमे राम को जैनियो का तीर्थंकर बताया गया है। और पद्मपुराण में राम कथा लिखी गई है। </p><p style="text-align: justify;">रामायण और महाभारत के प्रमाणिक होने का सबसे बड़ा तथ्य है आठ सौ ई. पूर्व एक ग्रीक लेखक हमर द्वारा ग्रीक भाषा में लिखा गया ग्रन्थ 'ओदिसी' (ओदिसी प्राचीन यूनानी भाषा , होमरकृत दो प्रख्यात यूनानी महाकाव्यों में से एक है। इलियड में होमर ने ट्रोजन युद्ध तथा उसके बाद की घटनाओं का वर्णन किया है जबकि ओदिसी में ट्राय के पतन के बाद ईथाका के राजा ओदिसियस की, जिसे यूलिसीज़ नाम से भी जाना जाता है, उस रोमांचक यात्रा का वर्णन है जिसमें वह अनेक कठिनाइयों का सामना करते हुए, दस वर्ष बाद अपने घर पहुँचता है। ओडेसी ई.पू.आठवीं शताब्दी में लिखी गयी है। यह कहाँ लिखी गई इस संबंध में माना जाता है कि यह इस समय के यूनान अधिकृत में सागर तट आयोनिया में लिखी गई जो अब टर्की का भाग है।) और 'इलियड' ( इलियड ग्रीक सभ्यता की पहली और सबसे बड़ी साहित्यिक उपलब्धि है। दुनिया के साहित्य में प्रतिद्वंद्वी के बिना एक महाकाव्य कविता, और पश्चिमी संस्कृति की आधारशिला है।) यह प्रमाण सबसे पुख्ता प्रमाण है राम के ऐहतिहासिक पुरुष होने की जिन्हें बाद में बौद्धों और जैन धर्मावलंबियो ने आत्म सात कर लिया।</p><p style="text-align: justify;"><b>--सत्या सिंह</b> </p>parikalpna samayhttp://www.blogger.com/profile/07378005813677948207noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-467427710963449342.post-56306614093584543842024-01-22T21:13:00.000-08:002024-01-26T20:30:22.309-08:00परिकल्पना के तत्वावधान में मेरी इंडोनेशिया की यात्रा और इंडोनेशिया की रामकथा "रामायण काकावीन"<p style="text-align: justify;"></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhQNY8asXMRiE03CqC5jLOL3pIPLPrn3nNnvmoPiLS-eGVHDQ5MGMEJpvYRDdOTAwhiJ_wfLnQNQiZpkf_Sr837WyCNEChF-UncG1qQuLkyZwTtnye4UlGZe4FfKisRo6Csh_aDxbaScyave5Qd5UWz6dMhcJfOUA_K27Gs1-c24dvVjIKi90XjGELhbg/s1080/IMG_20240123_104601.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="743" data-original-width="1080" height="275" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhQNY8asXMRiE03CqC5jLOL3pIPLPrn3nNnvmoPiLS-eGVHDQ5MGMEJpvYRDdOTAwhiJ_wfLnQNQiZpkf_Sr837WyCNEChF-UncG1qQuLkyZwTtnye4UlGZe4FfKisRo6Csh_aDxbaScyave5Qd5UWz6dMhcJfOUA_K27Gs1-c24dvVjIKi90XjGELhbg/w400-h275/IMG_20240123_104601.jpg" width="400" /></a></div><br />विगत वर्ष मुझे परिकल्पना के सौजन्य से ऐसे देश में जाने का मौका मिला जहां की नब्बे प्रतिशत आबादी मुसलमान है लेकिन वहां रामायण की गहरी छाप देखने को मिली, नाम है इंडोनेशिया। नब्बे प्रतिशत निवासी मुसलमान होने के बावजूद उनकी सभ्यता और संस्कृति पर रामायण की गहरी छाप है। इस सम्बंध में फादर कामिल बुल्के नें लिखा है कि, 'पैंतीस वर्ष पहले मेरे एक मित्र ने जावा के किसी गाँव में एक मुस्लिम शिक्षक को रामायण पढ़ते देखकर पूछा था कि आप रामायण क्यों पढ़ते है तो उन्हें उत्तर मिला था कि, 'मैं और अच्छा मनुष्य बनने के लिए रामायण पढ़ता हूँ। साल 1973 में यहाँ सरकार ने अंतरराष्ट्रीय रामायण सम्मलेन का आयोजन भी किया था। यह अपने आप में काफी अनूठा आयोजन था, क्योंकि घोषित रूप से कोई मुस्लिम राष्ट्र पहली बार किसी अन्य धर्म के धर्मग्रन्थ के सम्मान में इस तरह का कोई आयोजन कर रहा था। इंडोनेशिया में आज भी रामायण का इतना गहरा प्रभाव है कि देश के कई इलाकों में रामायण के अवशेष और पत्थरों तक की नक्काशी पर रामकथा के चित्र आसानी से मिल जाते हैं।<p></p><p style="text-align: justify;">इंडोनेशिया देश में रामायण का एक ऐसा संस्करण या हम कहे एक ऐसा रूप प्रचलित है जो शायद हमारे ऋषि वाल्मीकि जितना ही सुंदर और मधुर है जिसे 'काकविन रामायण' कहा जाता है। 'काकविन रामायण' का अर्थ है वह रामायण जो इंडोनेशिया, बाली और सुमात्रा देशों की प्राचीन भाषा जावनी और संस्कृत भाषा के मिश्रण के माध्यम से काव्य के रूप में प्रस्तुत किया जाता है। यह रामायण ऋषि वाल्मीकि जी की रामायण से नहीं बल्कि सातवीं शताब्दी में लिखी गई ओवी भट्टी की कविता भट्टीकाव्य से प्रेरित है, जिसमे रावण के वध का वर्णन किया गया है। इस रामायण का पहला भाग तो सामान्य रामायण के अनुरूप है, लेकिन इसके दूसरे भाग को बहुत से भारतीय विद्वानों द्वारा समझा नहीं जा सका है। इंडोनेशिया में रामायण को पुस्तक द्वारा कम पढ़ा जाता है, इसके अतिरिक्त रामायण को थियेटर में नाटक, कविताएं, भजन एवं गाने, विभिन्न प्रकार के नाच और कठपुतली के द्वारा जन-जन तक पहुंचाया एवं दिखाया जाता है। वायंग कठपुतली शो इंडोनेशिया का सबसे पुराना कठपुतली खेल शो है जिसमें रामायण की कहानियां होती है।रामकथा पर आधारित जावा की प्राचीनतम कृति 'रामायण काकावीन' है। यह नौवीं शताब्दी की रचना है। परंपरानुसार इसके रचनाकार योगीश्वर हैं और यहाँ की एक प्राचीन रचना 'उत्तरकांड' भी है जिसकी रचना गद्य में हुई है। 'चरित रामायण' अथवा कवि जानकी में रामायण के प्रथम छह खण्डों की कथा के साथ साथ व्याकरण के उदाहरण भी दिये गये हैं। बाली द्वीप के संस्कृत साहित्य में अनुष्ठभ छंद में पचास श्लोकों की संक्षिप्त रामकथा है। रामकथा पर आधारित परवर्ती रचनाओं में 'सेरतकांड', 'रामकेलिंग' और 'सेरी राम' का नाम उल्लेखनीय है। इनके अतिरिक्त ग्यारहवीं शताब्दी की रचना 'सुमनसांतक' में इंदुमती का जन्म, अज का विवाह और दशरथ की जन्मकथा का वर्णन हुआ है। चौदहवीं शताब्दी की रचना अर्जुन विजय की कथावस्तु का आधार अर्जुन सहस्त्रवाहु द्वारा रावण की पराजय है।</p><p style="text-align: justify;">वैसे रामायण काकावीन की रचना कावी भाषा में हुई है। यह जावा की प्राचीन शास्रीय भाषा है। काकावीन का अर्थ महाकाव्य है। कावी भाषा में कई महाकाव्यों का सृजन हुआ है,उनमें रामायण काकावीन का स्थान सर्वोपरि है। रामायण का कावीन छब्बीस अध्यायों में विभक्त एक विशाल ग्रंथ है, जिसमें महाराज दशरथ को विश्वरंजन की संज्ञा से विभूषित किया गया है और उन्हें शैव मतावलंबी कहा गया है। इस रचना का आरंभ राम जन्म से होता है। विश्वामित्र के साथ राम और लक्ष्मण के प्रस्थान के समय अष्टनेम ॠषि उनकी मंगल कामना करते हैं और दशरथ के राज प्रसाद में हिंदेशिया का वाद्य यंत्र गामलान बजने लगता है।केकक और योग्यकर्ता नाम के नृत्य के द्वारा भी रामायण की कहानियों को दर्शकों तक पहुंचाया जाता है। इस रामायण में मां सीता का नाम बदलकर सिंटा कर दिया है, बाकी सभी किरदार और व्यक्तियों के नाम समान है। हालांकि एक महत्वपूर्ण अंतर यह है कि जैसे भारतीय रामायण मां सीता को एक कोमल, सुंदर, और धैर्यवान महिला के रूप में चित्रित करती है वहीं काकाविन रामायण उन्हें बोल्ड, मजबूत के रूप में चित्रित करती है, और प्रभु राम की प्रतीक्षा करने के बजाय रावण की लंका में असुरों से लड़ती हुई दिखाई देती है।</p><p style="text-align: justify;">इसकी कथा में अयोध्या के राजा दशरथ के चार पुत्र थे। राम , भरत , लक्ष्मण और शत्रुघ्न । एक दिन विश्वामित्र नाम के एक तपस्वी ने अनुरोध किया कि दशरथ उनके आश्रम पर एक राक्षस के हमले को रोकने में उनकी मदद करें। फिर राम और लक्ष्मण चले गए। आश्रम में, राम और लक्ष्मण ने राक्षसों का विनाश किया और मिथिला देश की ओर चले गए जहां एक स्वयंबर का आयोजन किया जा रहा था। स्वयंबर के आगंतुक को राजा की बेटी सिंता से विवाह कराया जाना था। प्रतिभागियों को उस धनुष को खींचने के लिए कहा गया था जो सिंता के जन्म के समय उसके साथ था। राम को छोड़कर एक भी सफल नहीं हुआ, फिर उन्होंने शादी कर ली और अयोध्या लौट आए। अयोध्या में राम राजा बनने को तैयार थे, क्योंकि वे सबसे बड़े पुत्र थे। हालाँकि, राजा दशरथ की एक और पत्नी कैकेयी ने राजा की शपथ लेते हुए अपने पुत्र भरत को राजा बनाने के लिए कहा। निराश होकर राजा दशरथ ने उन्हें राजपाट दे दिया। राम, सिंता और लक्ष्मण को महल छोड़ने के लिए मजबूर किया गया, और, गहन शोक में, राजा दशरथ की मृत्यु हो गई। नये राजा भरत ने राम की खोज की। उन्हें लगा कि वह राजा बनने के लायक नहीं हैं और उन्होंने राम से अयोध्या लौटने के लिए कहा। हालाँकि, राम ने इनकार कर दिया और अपने अधिकार के प्रतीक के रूप में भरत को अपनी पादुकाएँ दे दीं। भरत राम की पादुकाएँ लेकर महल में लौट आये। राम अपने दोनों साथियों के साथ जंगल में रहने चले गये। उनके प्रवास के दौरान, शूर्पणखा नामक एक राक्षसी ने लक्ष्मण को देखा और उससे प्यार करने लगी और एक सुंदर महिला का रूप धारण कर लिया। लक्ष्मण को उसमें कोई दिलचस्पी नहीं थी और जब उसने हिंसक होने की धमकी दी तो उसने उसकी नाक भी काट दी। वह क्रोधित हो गई और उसने यह बात अपने भाई लंका के राक्षस राजा रावण को बताई। सुपर्णखा ने रावण को सिंता की सुंदरता के बारे में बताया और इस तरह उसे सिंता का अपहरण करने के लिए राजी किया। सिंता ने एक सुंदर हिरण देखा और राम से उसे पकड़ने के लिए कहा। राम ने सिंता की रक्षा का दायित्व लक्ष्मण को सौंपा। राम लंबे समय के लिए चले गए थे, और सिंता ने चिंतित होकर लक्ष्मण को उसे छोड़ने और राम की तलाश में जाने के लिए मना लिया। रावण ने उस क्षण का लाभ उठाते हुए सिंता का अपहरण कर लिया और उसे लंका ले गया। तब राम और लक्ष्मण ने उसे वापस लाने की कोशिश की। अपने प्रयास में उन्हें शिव के अवतार हनुमान से मदद मिली। अंत में रावण मारा गया। राम और सिंता फिर अयोध्या लौट आए जहाँ राम का राज्याभिषेक किया गया था। रामायण काकावीन में परशुराम का आगमन विवाह के बाद अयोध्या लौटने के समय वन प्रदेश में होता है। उनका शरीर ताल वृक्ष के समान लंबा है। वे धनुर्धभंग की चर्चा किये बिना उन्हें अपने धनुष की प्रत्यंचा चढ़ाने के लिए ललकारते हैं, किंतु राम के प्रभाव से वे परास्त होकर लौट जाते हैं। इस महाकाव्य में श्री राम के अतिरिक्त उनके अनेय किसी भाई के विवाह की चर्चा नहीं हुई है। अयोध्याकांड की घटनाओं की गति इस रचना में बहुत तीव्र है। राम राज्यभिषेक की तैयारी, कैकेयी कोप, राम वनवास, राजा दशरथ की मृत्यु और भरत के अयोध्या आगमन की घटनाएँ यहाँ पलक झपकते ही समाप्त हो जाती हैं। भारत और इंडोनेशिया की रामायण में थोड़ा अंतर है। भारत में राम की नगरी जहाँ अयोध्या है, वहीं इंडोनेशिया में यह योग्या के नाम से स्थित है तथा यहाँ राम कथा को ककनिन, या 'काकावीन रामायण' नाम से जाना जाता है। भारतीय प्राचीन सांस्कृतिक रामायण के रचियता आदिकवि ऋषि वाल्मिकी हैं, तो वहीं इंडोनेशिया में इसके रचयिता कवि योगेश्वर हैं। इंडोनेशिया की रामायण छब्बीस अध्यायों का एक विशाल ग्रंथ है। इस रामायण में प्राचीन लोकप्रिय चरित्र दशरथ को विश्वरंजन कहा गया है, जबकि उसमें उन्हें एक शैव भी माना गया है, यानी की वे शिव के अराधक हैं। इंडोनेशिया की रामायण में नौसेना के अध्यक्ष को लक्ष्मण कहा जाता है, जबकि सीता को सिंता कहते हैं। हनुमान तो इंडोनेशिया के सर्वाधिक लोकप्रिय पात्र हैं। हनुमान की लोकप्रियता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि आज भी हर साल इस मुस्लिम आबादी वाले देश के आजादी के जश्न के दिन यानी की सत्ताईस दिसंबर को बड़ी तादाद में राजधानी जकार्ता की सड़कों पर युवा हनुमान का वेश धारण कर सरकारी परेड में शामिल होते हैं तथा हनुमान को इंडोनेशिया में ‘अनोमान’ कहा जाता है। </p><p style="text-align: justify;"><b>- डॉ सत्या सिंह</b></p>रवीन्द्र प्रभातhttp://www.blogger.com/profile/11471859655099784046noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-467427710963449342.post-76047792221988693302023-12-01T07:30:00.000-08:002023-12-01T07:30:57.438-08:00 ’समीक्षा के सोपान’: डाॅ0 विनयदास की निष्पक्ष दृष्टि <p><b> </b></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><b><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi3D4HFhs6KKMUeYU00rUQxTF-om67mDREiTeqJW5U88GnEB8IDMSFvQv03E_rvGoAJYRvBYS_Y9TnezRG94pJ-R7PDyoOMEBiFf1y070Iq042PAgk6yYQL_2tFxml9m4-PYBuRn0RhsdQ4VVfuPanna39fPXzOB2zj60DVhyphenhyphendrOe1Hpl_DqYoTyq8SG1vn/s1459/IMG_20231127_130410.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="1459" data-original-width="846" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi3D4HFhs6KKMUeYU00rUQxTF-om67mDREiTeqJW5U88GnEB8IDMSFvQv03E_rvGoAJYRvBYS_Y9TnezRG94pJ-R7PDyoOMEBiFf1y070Iq042PAgk6yYQL_2tFxml9m4-PYBuRn0RhsdQ4VVfuPanna39fPXzOB2zj60DVhyphenhyphendrOe1Hpl_DqYoTyq8SG1vn/s320/IMG_20231127_130410.jpg" width="186" /></a></b></div><b><br />-डाॅ0 अमिता दुबे, </b><p></p><p style="text-align: justify;">डाॅ0 विनयदास द्वारा तैयार की गयी और उद्योग नगर प्रकाशन (गाजियाबाद) से प्रकाशित पुस्तक ’समीक्षा के सोपान’ 27 पुस्तकों की समीक्षा को अपने अंदर समाहित किये हुए हैं। विनय जी केवल ससीक्षाक ही नही हैं वे रचनाकार भी हैं; उनकी रचनात्मकता और उनका लेखन-चिंतन का अलग और स्पष्ट दृष्टिकोण की समीक्षाओं में भी देखने को मिलता है। यह साहित्य और साहित्यकार दोनों ही के लिए महत्त्वपूर्ण है। </p><p style="text-align: justify;">"समीक्षा के सोपान" विनय जी की समीक्षा की पाँचवी पुस्तक है। उन्होंने समीक्षा के बहाने साहित्य की विभिन्न विधाओं में सार्थक हस्तक्षेप किया है। इस हस्तक्षेप में वे उदार होते नहीं दिखते। उनका निर्मम होना ही आलोचना या समीक्षा की कसौटी का खरापन है जो डाॅ0 विनयदास को सफल आलोचक या समीक्षक सिद्द करता है।</p><p style="text-align: justify;"> इस पुस्तक में डाॅ0 विनयदास ने मेरे उपन्यास ’एकान्तवासी शत्रुध्न’ को भी स्थान दिया है। उनकी उत्साहवर्धक टिप्पणी एक ओर मेरा मनोबल बढाती है वही दूसरी ओर उनकी यह टिप्पणी-’यह उपन्यास गंभीर सैंशलिस्टअर्थी न होकर इकहरेपन का शिकार है। यदि इसके केन्द्र में डाॅ0 अमिता दुबे कोई गंभीर वैचारिकी रखकर बहुआयामी उद्देश्य से इसे लिखतीं तो यह निश्चय ही और भी अधिक ऊँचाइयो को छूने में समर्थ होता, मेरे लेखक को सजग करता है। ऐसी सुझावात्मक टिप्पणी साहित्य की समीक्षा में कम देखने को मिलती है। यह समीक्षाक के गम्भीर अध्ययन और निष्पक्ष दृष्टि का सुफल है! साधुवाद। </p><p style="text-align: justify;"><b> प्रधान सम्पादक : उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान, लखनऊ </b></p><p style="text-align: justify;"><br /></p>parikalpna samayhttp://www.blogger.com/profile/07378005813677948207noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-467427710963449342.post-3403309568786385682023-11-26T23:48:00.000-08:002023-11-26T23:51:24.204-08:00मौलिकता के साथ बेबाकी से भरी एक पुस्तक समीक्षा के सोपान <p style="text-align: justify;"></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhwbo_m9FNRSJF-YWrhr0shZZfz_R-LLZdidh56QZZVTYAikqE6xKRjKz0MvHBcPtdQT08_JolXRNxdyxyLU6lozbTfLrQ4GBsn10DKKK16ROeMdknjHSjuvCoBrmYewuQu6WZKUNQPMp9D6nbwUiPV8ihSWZ_jxLPP5d8IVQ6NaYGQHmGB8Pg1VNEevtM-/s1459/IMG_20231127_130410.jpg" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="1459" data-original-width="846" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhwbo_m9FNRSJF-YWrhr0shZZfz_R-LLZdidh56QZZVTYAikqE6xKRjKz0MvHBcPtdQT08_JolXRNxdyxyLU6lozbTfLrQ4GBsn10DKKK16ROeMdknjHSjuvCoBrmYewuQu6WZKUNQPMp9D6nbwUiPV8ihSWZ_jxLPP5d8IVQ6NaYGQHmGB8Pg1VNEevtM-/s320/IMG_20231127_130410.jpg" width="186" /></a></div><b>- रवीन्द्र प्रभात</b><br />आज मैं समीक्षा की एक महत्वपूर्ण पुस्तक "समीक्षा के सोपान" और उसके लेखक डॉ विनय दास की चर्चा करने जा रहा हूं । डॉ विनय दास उन गिने चुने समीक्षकों मे है, जिनकी समीक्षाओं मे मौलिकता के साथ बेबाकी भी रहती है, जो शायद आज के समीक्षको मे विरल हो चला है।<p></p><p style="text-align: justify;">डॉक्टर श्यामसुन्दर दास ने ठीक ही कहा है कि "यदि हम साहित्य को जीवन की व्याख्या मानें तो आलोचना को उस व्याख्या की व्याख्या मानना पड़ेगा।" अर्थात् आलोचना का कर्तव्य साहित्यक कृति की विश्लेषण परक व्याख्या से है। क्योंकि साहित्यकार जीवन और अनभुव के जिन तत्वों के संश्लेषण से साहित्य रचना करता है, आलोचना उन्हीं तत्वों का विश्लेषण करती है। </p><p style="text-align: justify;">आलोचक, साहित्यकार डॉ विनय दास की नई पुस्तक "समीक्षा के सोपान" की बात की जाए तो यह स्पष्ट होता है कि समीक्षक ने अपनी पुस्तक में एक ओर जहां समीक्षा को रचनात्मक साहित्य से जोड़ा है वहीं दूसरी तरफ समकालीन साहित्य से। साथ ही कुछ कलजयी लेखकों के जीवन वृत्त को समेटने का बेहद जरूरी काम भी उन्होंने किया है वहीं तेजी से बढ़ते अभिव्यक्ति के नए मध्यम जैसे ब्लॉग और सोशल मीडिया से संबधित पुस्तकों की समीक्षा से भी जोड़ा है, जो इस पुस्तक की स्तरियता को एक नया सोपान देता है।</p><p style="text-align: justify;">इस पुस्तक में 28 लेख संकलित हैं, इन लेखों में जहां एक ओर शिवमूर्ति, संजीव, शकील सिद्दीकी, लक्ष्मीकांत वर्मा, मुद्राराक्षस आदि के व्यक्तित्व व कृतित्त्व की पड़ताल की गई है वहीं दूसरी ओर मानुष पुराण, एकांतवासी शत्रुघ्न, माकड़ किस्सा, प्रेम न हाट बिकाय, शोषण के अभ्यारण्य आदि पुस्तकों की समीक्षा भी। वहीं तीसरी ओर 'उपन्यास की दशा- दिशा' एवं 'वामपंथी आलोचना की ढहती दीवार' की पड़ताल भी गई है। साथ ही इक्कीसवीं सदी में अभिव्यक्ति की नई क्रांति- 'सोशल मीडिया और उसकी चर्चित विधा -'ब्लॉगिंग' पर विस्तार से लिखा गया है। </p><p style="text-align: justify;">कहा गया है कि किसी भी आलोचक अथवा समीक्षक के लिए सबसे अहम उसका आलोचनात्मक विवेक होता है | इस गुण के बिना आलोचक साहित्य की आत्मा में प्रवेश ही नहीं कर सकता है। क्योंकि किसी भी साहित्य के आलोचना के विकास की दो प्रमुख शर्त्तें हैं-पहली कि आलोचना रचनात्मक साहित्य से जुड़ती हो और दूसरी कि वह समकालीन साहित्य से जुडती हो | हिंदी आलोचना अपने प्रस्थान बिंदु से ही इन दोनों कसौटियों पर खरी उतरती रही है | जबकि डॉ विनय दास ने अपनी पुस्तक में समीक्षा के इन दोनों आयामों से आगे बढ़कर कलजयी रचनाकारों के बारे में एक महत्वपूर्ण विमर्श के साथ साथ इक्कीसवीं शताब्दी में अभिव्यक्ति की नई क्रांति को भी स्थान दिया है, जो इस पुस्तक की गरिमा को बढ़ाता है।</p><p style="text-align: justify;">समीक्षा के क्षेत्र में अपने सशक्त कदम आगे बढ़ाने वाले डॉ.विनय दास को उनकी सद्य प्रकाशित कृति के लिए बहुत बहुत बधाई और इस आशा व विश्वास के साथ अनंत शुभकामनाएं कि यह पुस्तक आने वाली नई पीढ़ी को एक दृष्टि देने में सफल होगी।</p><p style="text-align: justify;">पुस्तक - समीक्षा के सोपान</p><p style="text-align: justify;">लेखक - डॉ विनय दास </p><p style="text-align: justify;">प्रकाशक - उद्योग नगर प्रकाशन गाजियाबाद </p><p style="text-align: justify;">मोबाइल - 9818249902 </p><p style="text-align: justify;">मूल्य - 300 रुपए</p><p> <b> - रवीन्द्र प्रभात </b></p>parikalpna samayhttp://www.blogger.com/profile/07378005813677948207noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-467427710963449342.post-31572599676772148602023-11-20T04:28:00.000-08:002023-11-20T04:28:08.264-08:00जापान,यू0एस0ए0,नेपाल सहित 16 प्रांतों के 152 साहित्यकारों का सम्मान<p style="text-align: justify;"><b></b></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><b><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj0obZosBjWsO9RdzPcr0eho9NJv8HpxQV1OE3uqP1qS-N2Y8J3PzCC19Pf4EVZMVp_lRQuuj1bwHy4CvwvbU-klrVsn43yCdXmQyEFjZD0yaCSlqEj21PZaMg703NCDIkElVnM-37ZH1GFQFBV_G0OuFm_zInI9wI9rJCHVMRxvoBMhXonUnxu4yZVi58z/s1156/IMG-20231120-WA0062.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="867" data-original-width="1156" height="480" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj0obZosBjWsO9RdzPcr0eho9NJv8HpxQV1OE3uqP1qS-N2Y8J3PzCC19Pf4EVZMVp_lRQuuj1bwHy4CvwvbU-klrVsn43yCdXmQyEFjZD0yaCSlqEj21PZaMg703NCDIkElVnM-37ZH1GFQFBV_G0OuFm_zInI9wI9rJCHVMRxvoBMhXonUnxu4yZVi58z/w640-h480/IMG-20231120-WA0062.jpg" width="640" /></a></b></div><b><br />बिसौली</b> (सांस्कृतिक संवाददाता ) के0 बी0 हिंदी सेवा न्यास व डॉ0 मिथिलेश दीक्षित साहित्य-संस्कृति सेवा न्यास बिसौली द्वारा 9वें अंतरराष्ट्रीय सम्मान समारोह में सम्मानित किया गया।<p></p><p style="text-align: justify;"></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgiP10Nvt5gYTkW09YpxS8vhU1z84txvxBbr8FvV6cgcAQXDWGYT-FxnkxyZ2742moeELQZMIUo0fQQzEL-5LT6xRT8r32-ddrk78-ZhJrbPPjHwbQLUpsWv9wro8opwfKRr9O1aCKczK5KBtPWvrgk-x1AvF-c_Vew10fCrFA0lqvdDrkeLQhNFJKLic-E/s1600/IMG-20231120-WA0057.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="1200" data-original-width="1600" height="150" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgiP10Nvt5gYTkW09YpxS8vhU1z84txvxBbr8FvV6cgcAQXDWGYT-FxnkxyZ2742moeELQZMIUo0fQQzEL-5LT6xRT8r32-ddrk78-ZhJrbPPjHwbQLUpsWv9wro8opwfKRr9O1aCKczK5KBtPWvrgk-x1AvF-c_Vew10fCrFA0lqvdDrkeLQhNFJKLic-E/w200-h150/IMG-20231120-WA0057.jpg" width="200" /></a></div><br />आर0 के0 इंटरनेशनल स्कूल के सभागार में आयोजित भव्य समारोह में 5 साहित्यकारों को ₹5000, 1 साहित्यकार को ₹3000, 15 साहित्यकारों को ₹2100 एवम 35 साहित्यकारों को ₹1100 शाल, सम्मानपत्र व प्रतीक चिन्ह प्रदान कर सम्मानित किया गया। समारोह की अध्यक्षता डॉ0 मिथिलेश दीक्षित ने की। मुख्य अतिथि यू0एस0ए0 से पधारे इंद्रजीत शर्मा, विशिष्ट अथिति नेपाल के प्रो0 देवीपंथी, डॉ0 ओमप्रकाश सिंह, डॉ0 महेश दिवाकर रहे। संचालन डॉ0 नितिन सेठी व अतुल कुमार शर्मा ने संयुक्त रूप से किया। वाणी वंदना रमा वर्मा श्याम ने की। अथितियों का स्वागत व संक्षिप्त परिचय न्यास के अध्यक्ष डॉ0सतीश चंद्र शर्मा 'सुधांशु' ने किया, न्यास का वार्षिक प्रतिवेदन न्यास के सचिव आशीष कुमार शर्मा व आशुतोष कुमार शर्मा ने प्रस्तुत किया। यू0 एस0 ए0 के इन्द्रजीत शर्मा, डॉ0 सरिता मेहता व रामबाबू गौतम, जापान की रमा शर्मा, नेपाल के प्रो0 देवीपंथी, डॉ0 घनश्याम परिश्रमी, राधिका शर्मा, राधा देवी एवम हरियाणा, छ0ग0,महाराष्ट्र, दिल्ली, राजस्थान, मध्यप्रदेश, उड़ीसा, उत्तराखंड, बिहार, अरुणाचल, प0बंगाल, गुजरात, गोवा, केरल, आसाम, सहित वरिष्ठ नवगीतकार डॉ0 ओमप्रकाश सिंह, डॉ0मिथिलेश दीक्षित, डॉ0महेश दिवाकर, डॉ0अंजना सिंह सेंगर, प्रो0 विशाल पांडेय, निखिल प्रकाशन समूह व विश्व साहित्य सेवा ट्रस्ट के न्यासी डॉ0 मोहन मुरारी शर्मा, डॉ0 शेख शहनाज, डॉ0 शेख रजिया शहनाज, डॉ0 अंजू शुक्ला, राजकुमार निजात, किशोर शर्मा, डॉ0 अनिता श्रीवास्तव, रामकृष्ण वि0 सहस्रबुद्धे, नरेंद्र परिहार, डॉ0 कमल किशोर गुप्ता, यशोधरा 'यशो, सन्तोष कुमार तिवारी, गाफिल स्वामी, सविता चड्ढा, डॉ0 प्रवीण त्रिपाठी, डॉ0 अजित कुमार जैन, डॉ0 गोपाल कृष्ण शर्मा 'मृदुलसी, डॉ0 कृष्ण कुमार द्विवेदी, डॉ0 सरोजिनी तन्हा, डॉ0 नूतन जैन, डॉ0लक्ष्मी कांत त्रिपाठी, अखिलेश कुमार श्रीवास्तव,अनुज कुमार तिवारी, रामावतार पाल, दीपक गोस्वामी, डॉ0 देवीदास बामने, मृदुल कपिल, उपमा आर्य, अंकुर गोयल, संदीप सचेत, कविता शक्टा, रघुराज सिंह, डॉ0 रामप्रकाश पथिक, राजेश डोभाल, इंदुलेखा, तरुण कुमार कुलश्रेष्ठ, हरस्वरूप शर्मा, राजेन्द्र नाथ, दुर्गा प्रसाद कृषणा, रामराज भारती, शिवकुमार चन्दन, जेमिनी वार्ष्णेय, एस0 के0 कपूर, डॉ0 नितिन सेठी, अतुल कुमार शर्मा, अतुल प्रताप सिंह चौहान, वेदभानु आर्य, खुशी गुप्ता, सूबेदार सिंह, अवजीत 'अवि' सहित 152 साहित्यकारों, समाजसेवियों को सम्मानित किया गया।अतिथियों का आभार न्यास उपाध्यक्ष डॉ0 नितिन सेठी ने व्यक्त किया। न्यास द्वारा विगत 8 वर्षों में 100 से अधिक मासिक काव्य गोष्ठी, अंतरराष्ट्रीय साहित्यिक कवि सम्मेलन, <div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiuV2BOiWfyVGeXgU7ANR_h1J1Hov8lTQMHFbdMTBB9S97sqa35v_G9EKfpRj-ZVmi63NLwbRUvi05-a929wC_RQpQI9pdNMwpVKHv78DVKCLe9mxD1llfTiEDoDcQKIPXP5BqHN5cEBNWwQJkpwAit-FTKcJWH9QcsyVUtFewZQtRRIWYuCA3H_cpA1xl6/s1156/IMG-20231120-WA0058.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="1156" data-original-width="867" height="200" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiuV2BOiWfyVGeXgU7ANR_h1J1Hov8lTQMHFbdMTBB9S97sqa35v_G9EKfpRj-ZVmi63NLwbRUvi05-a929wC_RQpQI9pdNMwpVKHv78DVKCLe9mxD1llfTiEDoDcQKIPXP5BqHN5cEBNWwQJkpwAit-FTKcJWH9QcsyVUtFewZQtRRIWYuCA3H_cpA1xl6/w150-h200/IMG-20231120-WA0058.jpg" width="150" /></a></div><br />पत्र पत्रिका प्रदर्शनी सहित देश विदेश के 700 से अधिक साहित्यकारों को सम्मानित कर चुका है। <p></p>parikalpna samayhttp://www.blogger.com/profile/07378005813677948207noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-467427710963449342.post-91674659917618709052023-11-14T22:57:00.000-08:002023-11-16T02:18:16.824-08:00समीक्षा के सोपान ने समकालीन साहित्य और समय को नया आयाम दिया।<p style="text-align: justify;"></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhQmCrUu5PWL3zhnF0uJHHYqV6pHoc4vZgqbj7_1NOyhZhnoZA-J1OKXtAmItR0W0_Nog9njuxFJftrUvImouv9kUHbsBG2fHrZRtMSmzk37nz___lCCT2IvPDw0ZKyeL7tCdk5ptRFAxbThterR_9iGxkD8SKKS1ZiLsZa4JEGIm-M9N4DXDVbdQDasMUt/s1600/IMG-20231114-WA0005.jpg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="1200" data-original-width="1600" height="300" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhQmCrUu5PWL3zhnF0uJHHYqV6pHoc4vZgqbj7_1NOyhZhnoZA-J1OKXtAmItR0W0_Nog9njuxFJftrUvImouv9kUHbsBG2fHrZRtMSmzk37nz___lCCT2IvPDw0ZKyeL7tCdk5ptRFAxbThterR_9iGxkD8SKKS1ZiLsZa4JEGIm-M9N4DXDVbdQDasMUt/w400-h300/IMG-20231114-WA0005.jpg" width="400" /></a></div><br /><b>लखनऊ (14 नवम्बर):</b> मौका था परिकल्पना परिवार के दीपावली मिलन समारोह की। लखनऊ के डंडैया बाजार स्थित आस्था प्लाजा के परिकल्पना कार्यालय में आयोजित एक समारोह में उपस्थित हुए अवधी के वरिष्ठ साहित्यकार डॉ राम बहादुर मिश्र, प्रख्यात कथाकार एवं आलोचक डॉ विनय दास, कवियत्री डॉ सत्या सिंह, रेवांत पत्रिका की संपादक डॉ अनिता श्रीवास्तव, चर्चित लोक गायिका श्रीमती कुसुम वर्मा, शॉर्ट फिल्मों के निदेशक श्री राजीव प्रकाश, श्रीमती आभा प्रकाश, अनुवादक श्री गौतम रॉय, कवि राजा भैया गुप्ता "राजाभ", अनिल सक्सेना, कविता सक्सेना, अनुपम वर्मा, एक्सपर्टीज एजुकेशन के निदेशक शुभ चर्तुवेदी आदि की उपस्थिति रही। <div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiX026ZrHhFkbfvwDbIRFsmp5hBrkGmWQ_cGYiYdeCHBF4-_tLGxB1iBCBvDHex_ba4ZR6bMPwobAT2tl7OmTde9vlzX_IIROllvjnXyYuYHXlglRy7fMhRjbw9xv9UNHmVE1OSa7rRVMJBWRYVmXhhiujD6jSDCGPT774nY5IH9fAwbx_ysQuaDpySCgq1/s1600/IMG-20231114-WA0011.jpg" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="1200" data-original-width="1600" height="150" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiX026ZrHhFkbfvwDbIRFsmp5hBrkGmWQ_cGYiYdeCHBF4-_tLGxB1iBCBvDHex_ba4ZR6bMPwobAT2tl7OmTde9vlzX_IIROllvjnXyYuYHXlglRy7fMhRjbw9xv9UNHmVE1OSa7rRVMJBWRYVmXhhiujD6jSDCGPT774nY5IH9fAwbx_ysQuaDpySCgq1/w200-h150/IMG-20231114-WA0011.jpg" width="200" /></a></div><br /><p></p><p style="text-align: justify;">इस अवसर पर आलोचक,साहित्यकार डॉ विनय दास की नई पुस्तक "समीक्षा सोपान" समारोह का मुख्य आकर्षण रही। इस पुस्तक में 28 लेख संकलित हैं, इन लेखों में जहां एक ओर शिवमूर्ति,संजीव,शकील सिद्दीकी,लक्ष्मीकांत वर्मा,मुद्राराक्षस आदि के व्यक्तित्व कृतित्त्व की पड़ताल है वहीं दूसरी ओर मानुष पुराण, एकांतवासी शत्रुघ्न, माकड़ किस्सा, प्रेम न हाट बिकाय, शोषण के अभ्यारण्य आदि पुस्तकों की समीक्षा। वहीं तीसरी ओर 'उपन्यास की दशा- दिशा' एवं 'वामपंथी आलोचना की ढहती दीवार' की पड़ताल भी है। साथ ही इक्कीसवीं सदी में अभिव्यक्ति की नई क्रांति- 'सोशल मीडिया और उसकी चर्चित विधा -'ब्लॉगिंग' पर विस्तार से लिखा गया है।</p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEihtcsnAwRCY3I3s7U0WbFFg9P3mGXR8PiySlDAjStj0WkI3DxTHE3xePbfd52-imTqokhkH_W2h7oAWNi3MF6LdHqQUjO3pLMG4aXTLcyZy5sb77rPFKCbkMt7e-5L7ty1IG9XgyTlKeHbx66O0Lfzf0QDjYbKPuw2rKXHYKXL5l_rqKrfMxgaEezIu4Wy/s1600/IMG-20231114-WA0010.jpg" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="1200" data-original-width="1600" height="150" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEihtcsnAwRCY3I3s7U0WbFFg9P3mGXR8PiySlDAjStj0WkI3DxTHE3xePbfd52-imTqokhkH_W2h7oAWNi3MF6LdHqQUjO3pLMG4aXTLcyZy5sb77rPFKCbkMt7e-5L7ty1IG9XgyTlKeHbx66O0Lfzf0QDjYbKPuw2rKXHYKXL5l_rqKrfMxgaEezIu4Wy/w200-h150/IMG-20231114-WA0010.jpg" width="200" /></a></div><br /><p></p><p style="text-align: justify;">समीक्षा के क्षेत्र में अपने सशक्त कदम आगे बढ़ाने वाले डॉ.विनय दास को उनकी नवीन प्रकाशित कृति के लिए बधाई दी गई और विश्वास व्यक्त किया गया कि यह पुस्तक साहित्यकारों को एक दृष्टि देने में सफल होगी। </p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhT8cKwTkB6V-vjMHAABI-YbIctSxeb0DUBLf9eyFux3rocO3HCT_HVfsWGgXX9H_RISelHGq_Pr3qtWM1wZnD5rodlT4SwLSVGA1neNpJfqCQt1aGwTy8ofBzS-PEp01OfuMfQ9SJWvaoAs51QyBmRx6nZnX5AozTXEdZeqeDMK5TyGTZTLis6etfR3Ypa/s1600/IMG-20231114-WA0004.jpg" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="1200" data-original-width="1600" height="150" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhT8cKwTkB6V-vjMHAABI-YbIctSxeb0DUBLf9eyFux3rocO3HCT_HVfsWGgXX9H_RISelHGq_Pr3qtWM1wZnD5rodlT4SwLSVGA1neNpJfqCQt1aGwTy8ofBzS-PEp01OfuMfQ9SJWvaoAs51QyBmRx6nZnX5AozTXEdZeqeDMK5TyGTZTLis6etfR3Ypa/w200-h150/IMG-20231114-WA0004.jpg" width="200" /></a></div><br /><p></p><p style="text-align: justify;">इस अवसर पर लेखिका एवं चर्चित कवियित्री डॉ सत्या सिंह की पुस्तक "हाशिए पर गीत", "जीवन उल्लास" और "मैं हूं ना" काव्य संग्रह की भी चर्चा हुई। उन्होंने अपनी बेहतरीन कविताओं का पाठ भी किया। वरिष्ठ साहित्यकार डॉ राम बहादुर मिश्र ने अपनी पुस्तक " बिन्दास जिन्दगी की झक्कास यात्रा" के कुछ महत्वपूर्ण अंश का पाठ कर समारोह को अपने नाम कर लिया। वरिष्ठ रंगकर्मी श्री राजीव प्रकाश ने अपनी आने वाली फिल्म के बारे जानकारी दी। डॉ अनिता श्रीवास्तव ने भी अपने विचार व्यक्त किए। आज की खुशी दोहरी और तेहरी तब हो गयी जब डॉक्टर अनीता श्रीवास्तव ने बताया आज तो परिकल्पना परिवार की अध्यक्षा माला चौबे जी का जन्म दिन है।</p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiZNBirgkG-vy6h98YbRK_-kswqfgOH1kRjy1p0cqNPXO8IT7pV_CP4gM35D6U0vFZap87C-RUNLwoFQTeLrKXpNLXnDca2w3lISSmcQAOqqOmgOmYrD5zkb7oqEE7t6wpoMh07izuzV_9M4w0rEduAzrRot5g3XfWZYt5wpSMfMmkZQFW1v503G2QdIZNj/s1600/IMG-20231114-WA0009.jpg" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="1200" data-original-width="1600" height="150" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiZNBirgkG-vy6h98YbRK_-kswqfgOH1kRjy1p0cqNPXO8IT7pV_CP4gM35D6U0vFZap87C-RUNLwoFQTeLrKXpNLXnDca2w3lISSmcQAOqqOmgOmYrD5zkb7oqEE7t6wpoMh07izuzV_9M4w0rEduAzrRot5g3XfWZYt5wpSMfMmkZQFW1v503G2QdIZNj/w200-h150/IMG-20231114-WA0009.jpg" width="200" /></a></div><br /><p></p><p style="text-align: justify;">इस अवसर पर समारोह को शबाब पर ले जाने का काम किया प्रसिद्ध लोक गायिका कल्चर दीदी श्री मती कुसुम वर्मा ने। उन्होंने अपने नए एलबम "जन जन के राम" से कुछ चुनिंदा गीत गुनगुनाए। इस अवसर पर अनुपम वर्मा, आभा प्रकाश, कविता सक्सेना, अनिल सक्सेना ने भी अपने विचार व्यक्त किए। </p><br /><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgB39NslEBOHJ8S_1lD90sXerrUurAbup-ZPCa5nRgoSL6ghF85OSLTdl-zqfbwK-b2HCkn8q-Ssc9xMWIWmgv4q5SosnoxqcWGav8Q_MQSq-woDQ3l0aRpeupLXvY62krfuoWi0m19XJ7dIiN5qM0BvbvdSUErfpxp6fOYgnRtYylF0Ac6gxLPrK_bzYa1/s1600/IMG-20231114-WA0007.jpg" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="1200" data-original-width="1600" height="150" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgB39NslEBOHJ8S_1lD90sXerrUurAbup-ZPCa5nRgoSL6ghF85OSLTdl-zqfbwK-b2HCkn8q-Ssc9xMWIWmgv4q5SosnoxqcWGav8Q_MQSq-woDQ3l0aRpeupLXvY62krfuoWi0m19XJ7dIiN5qM0BvbvdSUErfpxp6fOYgnRtYylF0Ac6gxLPrK_bzYa1/w200-h150/IMG-20231114-WA0007.jpg" width="200" /></a></div><p style="text-align: justify;">आभार व्यक्त किया प्रसिद्ध उपन्यासकार डॉ रवीन्द्र प्रभात ने।</p><p style="text-align: justify;">(सांस्कृतिक संवाददाता की रिपोर्ट)</p>parikalpna samayhttp://www.blogger.com/profile/07378005813677948207noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-467427710963449342.post-62750394820281508022023-09-17T01:35:00.003-07:002023-09-17T03:12:47.600-07:00मेरी पहली समुद्रीय यात्रा: डाॅ.क्षमा सिसोदिया<div style="text-align: justify;"><b>मालदीव संस्मरण- </b></div><div style="text-align: justify;"><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><br /></div><br /><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjmVNMvVgBiKIsuoSE_PqfxjAPHcgbjfez2P3Sha6wqyAgOZs-VvTCv84hIUZmeAq0XQZF2_3b5QPh1Di6-4djppKn5xo5obRbyu2Cc4WCUccSHM8vp-IvOLTErFn9ZJ4ByhKcyMoEWhgS3Z8qvOK1_hU_39eYTp2feZVm6eK413rNUs6OSbzYKq0yLK3n1/s3968/IMG_20200112_065301.jpg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="2976" data-original-width="3968" height="300" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjmVNMvVgBiKIsuoSE_PqfxjAPHcgbjfez2P3Sha6wqyAgOZs-VvTCv84hIUZmeAq0XQZF2_3b5QPh1Di6-4djppKn5xo5obRbyu2Cc4WCUccSHM8vp-IvOLTErFn9ZJ4ByhKcyMoEWhgS3Z8qvOK1_hU_39eYTp2feZVm6eK413rNUs6OSbzYKq0yLK3n1/w400-h300/IMG_20200112_065301.jpg" width="400" /></a></div><br /><b><br /></b></div><div style="text-align: justify;">"वही गम,वही शाम,वही तन्हाई है", </div><div style="text-align: justify;">फिर भी दिल को समझाने
यह यादें चली आयी है।</div><div style="text-align: justify;"><br /></div><div style="text-align: justify;">"Costa Victoria cruise' पर यात्रा की कुछ यादें।
अभी कुछ दिनों पूर्व महाराष्ट्र में आए तूफ़ान से लड़ते,विकराल समुंद्र से जूझते हुए अथाह सागर के जल में जब एक समुंद्ररीय जहाज को देखा,तो विगत दिनों में अपनी 'समुद्रीय-यात्रा' याद आ गयी और जब लिखने बैठी,तो ऐसा लगा कि बीच-बीच में यादों से रूबरू होते हुए 'कलम' रूक-रूक कर चलती रही ।"
हमारे ग्रुप के सभी सदस्यों की यह पहली समुद्रीय यात्रा थी।
दुबई से निकल कर हम लोग सुबह 5.30 से 6 बजे के करीब कोच्चि पहुँचे। टूरिस्ट बस आने में देर थी,तो एयरपोर्ट पर ही नियमित मार्निंग वाक के साथ ही सुबह का 'मंत्र-जाप' सम्पन्न किए।
उसके बाद तो चाय की तलब लगी लेकिन चाय की झलक तक का कहीं अता-पता नही था।</div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgW-6cOyZ6xtVjcyPa7qLVcCmEWnKoSxtE30-xO2k67Mh4tlYO2mSfjHzwrBub4kgemiLwsHjAL8fTvcgjnS82tKilQlLXzQuBQMKkHHPYcDp3j2dwtiM24wgJN6WxCRz6VBB_2iMMCNcA5MRLZvvRpExw4ttcA_ugJtuSZzsI5rJr8Qb1YjS2AEnJfTBBU/s3968/IMG_20200111_132244_1.jpg" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="2976" data-original-width="3968" height="240" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgW-6cOyZ6xtVjcyPa7qLVcCmEWnKoSxtE30-xO2k67Mh4tlYO2mSfjHzwrBub4kgemiLwsHjAL8fTvcgjnS82tKilQlLXzQuBQMKkHHPYcDp3j2dwtiM24wgJN6WxCRz6VBB_2iMMCNcA5MRLZvvRpExw4ttcA_ugJtuSZzsI5rJr8Qb1YjS2AEnJfTBBU/w320-h240/IMG_20200111_132244_1.jpg" width="320" /></a></div><br /><div style="text-align: justify;"><br /></div><div style="text-align: justify;">हम लोग वहीं रूक कर अगले गंतव्य तक पहुँचने के लिए बस का इंतजार करने लगे।
ग्रुप की एक सदस्या जिनके पाँव में बहुत दर्द था,वो अधिक देर तक खड़े रहने में शारीरिक रूप से सक्षम नही थीं, तो मैंने बिना कुछ सोचे ही उन्हें सामने के बैग पर बैठने के लिए बोल दिया,उन्हें बैठे हुए अभी पाँच मिनट भी नही हुआ होगा और उस बैग का मालिक तेज़ कदमों से चलता हुआ आया और उन्हें धक्का देते हुए इतनी तेजी से बैग को खींचा कि अगर मैं उन्हें नहीं पकड़ी होती,तो वो औंधे मुँह जमीन पर गिर गयी होतीं।
"यह दृश्य देख कर मैं हतप्रभ रह गयी कि जो सज्जन एक दिन पहले मांसाहार पर लेक्चर दे रहे थे,उन शाकाहारी सज्जन की हरकत क्या बोल रही है... ?"</div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj5h5DZmUMeK4VhR-YqPgRd2AZoqDuof_p6w59GYX_rByMcDSLkme4tNeQNjgCbCCw2cn9OR84UPrwgWwMh407tH-rabX8evaVpb6tbjAyB3JEbk9oeKlbb977-CXboRq3Ua0lCwX0dwElEjN8eOvSNNJbE4GIHfA4RjCNwxOtEF5fME5CICslW0YKrfOHW/s3968/IMG_20200108_180512.jpg" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="2976" data-original-width="3968" height="240" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj5h5DZmUMeK4VhR-YqPgRd2AZoqDuof_p6w59GYX_rByMcDSLkme4tNeQNjgCbCCw2cn9OR84UPrwgWwMh407tH-rabX8evaVpb6tbjAyB3JEbk9oeKlbb977-CXboRq3Ua0lCwX0dwElEjN8eOvSNNJbE4GIHfA4RjCNwxOtEF5fME5CICslW0YKrfOHW/w320-h240/IMG_20200108_180512.jpg" width="320" /></a></div><br /><div style="text-align: justify;"><br /></div><div style="text-align: justify;">थोड़ी देर इधर-उधर टाइम पास करने के बाद बस आयी और हम सब लोग उस टूरिस्ट बस में बैठ कर बंदरगाह के लिए चल पड़े,अभी थोड़ी दूर ही पहुँचे थे कि-
"कुछ लोग सफेद लुंगी पहले खड़े दिखाई दिए,जो गुड़,मुड, गुड़मुड आवाज में कुछ बोलते हुए बस को रोकते हैं।
"क्यों...?"
"क्योंकि आज भारत बंद है।"
बस का ड्राइवर उस शख्स से अपनी साउथ इंडियन भाषा में कुछ बोलता है,उतनी देर में तो भीड़ से एक नेतानुमा शख़्स आकर बस की चाबी निकाल लिया। बस ड्राइवर,बस से उतर कर कुछ बात करता और फिर बस को लेकर आगे बढ़ता है।
वहाँ पहुँचने पर मौसम का तो कुछ ऐसा मिजाज था,जैसे मई-जून का तपता महीना हो। </div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhv6iDYXTg0fbKTDWQvhaAgfsYYJZDau9jaZGgYNX9bw-BBUALmi6k0KUauyyViG12zdZfZhx3QMgMncgSLLU1bcwTGw4nbB-Vqg8l0em8RVkEs94W3YUv0dMaQayhXhQSzCLarOy9ZFI6r9hTzhf8VGHDtzfgrqs2W6OT3Q0k6YE5XZ0WwCcji1zXuFvr9/s3968/IMG_20200108_181530.jpg" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="2976" data-original-width="3968" height="240" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhv6iDYXTg0fbKTDWQvhaAgfsYYJZDau9jaZGgYNX9bw-BBUALmi6k0KUauyyViG12zdZfZhx3QMgMncgSLLU1bcwTGw4nbB-Vqg8l0em8RVkEs94W3YUv0dMaQayhXhQSzCLarOy9ZFI6r9hTzhf8VGHDtzfgrqs2W6OT3Q0k6YE5XZ0WwCcji1zXuFvr9/w320-h240/IMG_20200108_181530.jpg" width="320" /></a></div><br /><div style="text-align: justify;"><br /></div><div style="text-align: justify;">भयंकर गर्मी और उस बंदरगाह पर पीने के लिए पानी तक की व्यवस्था नहीं।टूट-फूट के साथ सुरक्षित एक शौचालय अवश्य वहाँ मौजूद मिला।
"उफ्फ्फ..."
इमिग्रेशन के लिए लगने वाले जरूरी काग़ज़ात को कम्प्लीट करके,आस-पास लगी दुकानों का जायज़ा लेने के लिए पहुँचे और एक दुकानदार से पानी और चाय के लिए पूछे, तो उसने अपने पास से पीने के लिए पानी तो दे दिया लेकिन आज यहाँ पर चाय कही नही मिलेगी उसका 'नो बोर्ड' दिखा दिया। बंदरगाह के तट पर स्थापित स्थानीय दुकानों से कुछ खरीदारी करने के बाद प्रस्थान का समय हो गया है और हम सब लोग समुद्रीय जहाज में Enter होते हैं।
भारत बंद के कारण सुबह से बिना कुछ खाए-पिए ही अब दिन के दो बज चुके थे। रात की फ्लाइट में भी ढंग से कुछ खाने को नही मिला था। भूख के मारे आंते कुलबुला रही थीं। </div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjHjHDIvU2qYJlNRbuwWIR79hPenloSd9crdRRz_oDOQ4NMCr_dNae91rhZzeG0opyX91ng6umYu-ZvFZr30RGP8MzJ6dIBARabtnJxRZl3Zn4_Zo9bB94YndTjyNzY5TbTT3gdeb1xRUHnPe1sn9st8ZAFu-wY3u7snV1LBbV8m1e1AieGpW-RVvUrlw/s3968/IMG_20200111_124228.jpg" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="2976" data-original-width="3968" height="240" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjHjHDIvU2qYJlNRbuwWIR79hPenloSd9crdRRz_oDOQ4NMCr_dNae91rhZzeG0opyX91ng6umYu-ZvFZr30RGP8MzJ6dIBARabtnJxRZl3Zn4_Zo9bB94YndTjyNzY5TbTT3gdeb1xRUHnPe1sn9st8ZAFu-wY3u7snV1LBbV8m1e1AieGpW-RVvUrlw/s320/IMG_20200111_124228.jpg" width="320" /></a></div><br /><div style="text-align: justify;"><br /></div><div style="text-align: justify;">क्रूज़ पर पहुँचते ही जब पता चला कि लंच टाइम स्टार्ट है और वह समय 3 से 3.30तक ही रहता है,फिर शाम की चाय शुरू हो जाएगी।
जैसे और जिस हालत में थे,उसी हालत में पहले लंच लिए,फिर अपने रूम की तरफ जो लखनऊ के भूल-भूलइय्या से कम नहीं था,क्योंकि समुंद्रीय जहाज पर बने यात्री कमरे नंबर के सिरियल से होतें हैं और उसे ढूँढना बहुत मुश्किल काम था।
रूम में सामान पहले ही पहुँच कर इंतजार कर रहा था। एकदम बंद कमरा...,
साथ में बेटी थी और उसे कमरे से बाहर का नज़ारा भी देखना था। एक-दो सहयात्री तो उसी समय नाराज़ हुए और टूर प्रबंधक से..., अपने कमरों को बदलकर,उस कमरों को लिए जिसमें से समुंद्रीय नज़ारा भी दिख रहा था।
"मैंने बेटी को समझाया कि..., कमरे से बाहर निकल कर समुंद्रीय दृश्य ही तो देखना है। </div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiAHYSaXDqgPHxf_XG0DWLQDkRa-dHh3xUKxOz75CQPOzLLQer5YwkTltT3-GAVT1MQIWZzeUq-jdtVQD2RNTCLsBrZEbHXiHC2oV56XwYO8Cx6VgoznmOVTIdn21zDHUHChqzECrW4rjAbkDiixMgfzCS_tDgofGirMA_7LiPFSUbND-HI0FkvAwLo4A/s3968/IMG_20210802_020028.jpg" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="3968" data-original-width="2976" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiAHYSaXDqgPHxf_XG0DWLQDkRa-dHh3xUKxOz75CQPOzLLQer5YwkTltT3-GAVT1MQIWZzeUq-jdtVQD2RNTCLsBrZEbHXiHC2oV56XwYO8Cx6VgoznmOVTIdn21zDHUHChqzECrW4rjAbkDiixMgfzCS_tDgofGirMA_7LiPFSUbND-HI0FkvAwLo4A/s320/IMG_20210802_020028.jpg" width="240" /></a></div><br /><div style="text-align: justify;"><br /></div><div style="text-align: justify;">तरो-ताजा होकर शाम पाँच बजे तक वापस रेस्तरां में पहुँचे।
पहले दो बार तो ग्रीन टी लिए, पीते ही ऐसा लगा जैसे थके-मुर्झाए शरीर में जान आ गयी हो। स्नान के बाद और वह भी शाम को चाय मिल जाए तो फिर क्या बात है। Cruise पर खाने-पीने के इतने आयटम की खाने वाला थक जाए लेकिन न आयटम खत्म हो और न ही मन भरे।
उधर से फ्री होकर फिर खुली जगह पर पहुँचे,जहाँ से समुंद्र का साम्राज्य दूर-दूर तक दिखाई दे रहा था।
Cruise का यह पहला सफर अत्यंत रोमांच से भर रहा था।
थोड़ी देर में Cruise स्टार्ट हुआ, तो ऐसा लगा कि हम सब समुंद्र की लहरों से बात करते हुए,उसके लहरों को पार करते हुए समुंद्र के सीने पर सवार होकर चल रहें हैं। अथाह समुंद्र जिसका दूर-दूर तक कहीं किनारा न दिख रहा हो,समुंद के ऊपर जहाज और उस जहाज में हम तीन हजार यात्री और चारो तरफ पानी ही पानी।
देखते ही देखते सूरज भी हम सबका साथ छोड़ कर किसी और देश चला गया और चारो तरफ सायं-सायं करता हुआ गुप्प अंधेरा छा गया। बीच-बीच में अनजाना सा भय आकर जरूर थोड़ी देर डरा जाता था। भय की वजह से तरह-तरह के विचार आना स्वाभाविक था लेकिन वो भयावह विचार सिर्फ़ दिल-दिमाग पर थोड़ी देर तक के लिए रहा,उसे भगा कर समुंद्र की उठती-गिरती लहरों को देखते हुए रात का भोजन लिए और निंदिया रानी के आगोश में चले गये। </div><div style="text-align: justify;"><br /></div><div style="text-align: justify;">थकान के बाद भी सुबह अपने समय से उठे लेकिन तब तक वहाँ सूर्य निकल चुका था,फिर दूसरे दिन सूर्योदय देखने के लिए और जल्दी उठे,वह भी इतनी जल्दी कि उस दिन सूर्य देवता ही अभी तक नींद की सुस्ती में थे,फिर वहीं टहलते और नियमित मंत्र का जप करते हुए सूर्य देवता का इंतजार करती रही।
सूर्य देवता के आते ही उनके दर्शन और मानसिक रूप से जल अर्पित किए।
वहाँ रोज हर फ्लोर पर अलग-अलग एक्टिविटी होती थी।
आपको स्वीमिंग करना है,
जकूज़ी करना है।
योगा करना है।
खेलना है।
यह आपकी च्वाइस पर निर्भर था।वहाँ हम कुछ सखियों ने जकूज़ी का आनंद उठाया और उसमें अंताक्षरी खेलते हुए बच्चों की तरह मस्ती किए। </div><div style="text-align: justify;"><br /></div><div style="text-align: justify;">शाम होते ही,कल्चरल प्रोग्राम शुरू होते थे, कलाकारों द्वारा होता था लेकिन ओपन फ्लोर पर सब टूरिस्ट भी डांस करते थे।"
जहाज पर ही 'पूर्णिमा-तिथि' आयी और उस तिथि पर कभी-कभी समुंद्र में ज्वारभाटा भी आता है,जब वहाँ पर ऐसा किसी ने कहा,तो लगा कि....,
उसी दिन अंतरराष्ट्रीय हिन्दी दिवस था और 'परिकल्पना परिवार' की तरफ से 'अंतरराष्ट्रीय काव्य समारोह' रखा गया था।
यात्रा में शामिल साहित्यकारों, सुधीजनों के साथ काव्य गोष्ठी सम्पन्न हुई जिसे सुनकर श्रोताओं को भी खूब आनंद आया।
वहाँ पर मैंने 'नायिका के लम्बे-घने केश' शीर्षक से अपनी एक कविता का पाठ किया,जिसे वहाँ बैठे श्रोताओं ने भी खूब पसंद किया।
इस तरह से खाते-पीते,उठते-बैठते 'Cruising' का तीन दिवसीय सफर कब निकल गया, कुछ पता ही नही चला।
वहाँ से चलने का जब समय हुआ,तो फिर उसी अथाह समुंद्र के बीच में जहाज से आकर दूसरी बोट एकदम चिपक कर लग गयी और हम सब यात्री अपनी-अपनी जान को अपनी मुठ्ठी में जकड़ कर बोट में सवार हुए और फिर समुंद्र के ऊपर खुले बोट में करीब 15मिनट का सफर तय करते समुंद्र का नजारा देखते हुए मालदीव पहुँचे,जहाँ पर जनवरी माह में भी बहुत गर्मी थी। </div><div style="text-align: justify;"><br /></div><div style="text-align: justify;">जिस होटल में रूके थे, उसका मालिक बहुत ही खराब दिमाग का इंसान था, इतना खराब कि उसके जैसा इंसान अभी तक कभी नहीं मिला था। थोड़ी देर आराम करने के बाद,शाम को उठकर फिर समुंद्र के किनारे पहुँचे...।
मीठी सी संध्या अब धीरे धीरे रात में तब्दील हो चुकी थी। नीचे समुंद्र का जल और उपर आसमान में चंद्रमा की चमक दोनों का मिलन हो रहा था, हिलोरें लेती हुई लहरों से जब चंद्रमा की किरणें मिलती,तो उसे देखकर ऐसा लग रहा था कि चंचल चाँदनी समुंद्र के अंदर समा जाना चाहती हो।
समुंद्र की लहरों संग डूबती-उतराती हुई चंद्रमा की किरणें को देखकर बरबस ही-
'मैथिली शरण गुप्त जी',कि यह पंक्तियां याद आ गयी थीं।
"चारू चंद की चंचल किरणें,खेल रही हैं जल-थल में।
स्वच्छ चाँदनी बिछी हुई है,अवनि और अम्बर तल में।"</div><div style="text-align: justify;"><br /></div><div style="text-align: justify;">समुंद्रीय जल में उतरते हुए चंद्रमा की किरणों का अलौकिक सौन्दर्य देखकर वहाँ बैठे-बैठे उस दृश्य पर मेरी कलम ने भी अंदर उठते भावों से मिल कर एक सुन्दर कविता से मुलाकात कर लिया और एक कविता का सृजन कर लिया। </div><div style="text-align: justify;">साथ प्रस्तुत कविता का भी आनंद लीजिए- </div><div style="text-align: justify;"><br /></div><div style="text-align: justify;"><b>।।कविता-समुंद्र सी जिन्दगी।।</b></div><div style="text-align: justify;"><br /></div><div style="text-align: justify;">समुद्रीय लहरों-सी कभी खामोश,तो कभी बल-खाती है जिंदगी।</div><div style="text-align: justify;">कभी खारापन लिए तो कभी मीठी सी लगती है जिंदगी....।</div><div style="text-align: justify;"><br /></div><div style="text-align: justify;">कभी ख़्वाहिशों का बोझ, तो कभी मधुर मुस्कान-सी है जिंदगी। खोए हुए सपनों की कुछ अन-छुई, अन-सुनी आहटों-सी जिंदगी। </div><div style="text-align: justify;"><br /></div><div style="text-align: justify;">कभी सुकून-सी तो कभी दर्द भरी बोझ सी लगती है जिंदगी।</div><div style="text-align: justify;">कभी लम्हातों की चादर ताने कुम्भकर्णी-सी लगती है जिंदगी।</div><div style="text-align: justify;"><br /></div><div style="text-align: justify;">कभी दुःखते मंजरों को थामे 'चक्रवर्ती तूफ़ान-सी जिंदगी। </div><div style="text-align: justify;">कभी मंद-मंद फुहारों की मद्धिम बरसात-सी लगती है जिंदगी।</div><div style="text-align: justify;"><br /></div><div style="text-align: justify;">कभी फुहारों-सी मूक अल्फ़ाज़ तो कभी शोर मचाती है जिंदगी।</div><div style="text-align: justify;">समुंद्र-सी शोर मचाती तो कभी खामोश-सी लगती है जिंदगी....। </div><div style="text-align: justify;"><br /></div><div style="text-align: justify;">कभी समझदार इशारों सी कभी ना-समझ सी लगती है जिंदगी। किनारों का मंजर ऐसा,जिसके कभी नहीं मिलते मझधार-सी जिन्दगी। </div><div style="text-align: justify;"><br /></div><div style="text-align: justify;">उलझे-सुलझे उलझनों की कंटक भरे बेमिसाल-सी राहों में
कोशिशों की हिसाब लगाती हुई बेहिसाब-सी जिंदगी...। </div><div style="text-align: justify;">नादान भावों के तूफानी पलों को शब्दों में पिरोती अन-कही सी जिंदगी, </div><div style="text-align: justify;"><br /></div><div style="text-align: justify;">कलरव करती समुद्री तूफान-सी अथाह सागर है जिंदगी। </div><div style="text-align: justify;">हाँ सच है, कल-कल समुद्री तूफ़ान-सी अथाह है जिंदगी...।। </div><div style="text-align: justify;"><br /></div><div style="text-align: justify;">आइए कविता से आगे बढ़ते हैं।
दूसरे दिन भोर में जब समुंद्र के किनारे पहुँचे तो इतना मनमोहक दृश्य था। मंद-मंद मुस्कुराती पवन चल रही थी, हौले-हौले रात की स्याही सूर्य के तेज़ किरणों के साथ सुबह में तब्दील होने को आतुरता के साथ आगमन हो रहा था। किनारे-किनारे टहलते हुए मैंने भी 'समुंद्र देवता' से कुछ यादगार चिन्ह माँगे,तो थोड़ी देर में ही 'समुंद्र देवता' लौटती हुई लहरों रूपी हाथ से मुझे दो पत्थर यादगार स्मृति के रूप में दिए थे।जिसमें एक पाषाण 'मानव-हस्त' आकृति लिए हुआ था,तो पाषाण दूसरा टुकड़ा 'माँ के गोद में बच्चा' को लिए हुए ममत्व भरा आकृति में था।जिसे अपने आँचल में पाकर अभिभूत हो गयी थी। </div><div style="text-align: justify;"><br /></div><div style="text-align: justify;">यह थी 'Costa Victoria cruise' और 'मालदीव यात्रा' का संस्मरण,अगले संस्मरणात्मक विवरण में आप लोगों से फिर मुलाकात होगी,तब तक के लिए विदा लेती हूँ। </div><div style="text-align: justify;"><span style="text-align: left;"><br /></span></div><div style="text-align: justify;"><span style="text-align: left;"><b>डाॅ.क्षमा सिसोदिया</b></span></div><div style="text-align: justify;"><span style="text-align: left;">Kshamasisodia@gmail.com </span></div><div style="text-align: justify;"> </div>parikalpna samayhttp://www.blogger.com/profile/07378005813677948207noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-467427710963449342.post-80951521988097559592023-07-13T00:45:00.001-07:002023-07-13T00:47:10.493-07:00 आखिर क्यों नदियां बनती हैं खलनायिकाएं?<p style="text-align: justify;"><span face="Arial, Helvetica, sans-serif" style="background-color: white; color: #222222; font-size: small;"><b></b></span></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><b><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/a/AVvXsEgO3RY0zmJ-Ql_TKADprKlu-b6TEYO8t5ASadvJR5VxSjtp5ZvGwMNB6pJo36UW41IAuvfz6bH_SI0DWCKelNSHTfVn-K49zt1NKvivV6d4OUyJqegPgZGP4DPRVI7-NdnRIThu6HyNiv6MvsL2xSBbnk36Nrv9wxlg69GRiqUW6AoSx8dRwDGJA04UPcIF" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img alt="" data-original-height="248" data-original-width="980" height="162" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/a/AVvXsEgO3RY0zmJ-Ql_TKADprKlu-b6TEYO8t5ASadvJR5VxSjtp5ZvGwMNB6pJo36UW41IAuvfz6bH_SI0DWCKelNSHTfVn-K49zt1NKvivV6d4OUyJqegPgZGP4DPRVI7-NdnRIThu6HyNiv6MvsL2xSBbnk36Nrv9wxlg69GRiqUW6AoSx8dRwDGJA04UPcIF=w640-h162" width="640" /></a></b></div><b><br />हाल के वर्षों में नदियों के पानी से डूबने वाले क्षेत्रों में शहरी बस्तियां बसने की रफ़्तार तेज़ हो गई है. इस कारण से भी बाढ़ से होने वाली क्षति का दायरा बढ़ रहा है. क्योंकि किसी भी शहर का भौगोलिक दायरा और आबादी बढ़ने से ज़्यादा से ज़्यादा लोगो के बाढ़ के शिकार होने की आशंका बढ़ जाती है. जैसे ही बाढ़ प्रभावित इलाक़ों में बस्तियां बसने लगती हैं, तो बाढ़ के पानी के निकलने का रास्ता रुक जाता है. इससे बाढ़ का पानी निकल नहीं पाता. फिर बस्तियों को बाढ़ के पानी से बचाने के लिए उनके इर्द गिर्द बंध बनाए जाते हैं. बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में बस्तियां बसने और इन बंधों के बनने से नदी घाटी और नदियों के इकोसिस्टम पर भी विपरीत प्रभाव पड़ता है.</b><p></p><p style="text-align: justify;"><span face="Arial, Helvetica, sans-serif" style="background-color: white; color: #222222; font-size: small;"><b>-डॉ सत्यवान सौरभ</b></span></p><div style="text-align: justify;"><span face="Arial, Helvetica, sans-serif" style="background-color: white; color: #222222; font-size: small;">नदियां हमारी सभ्यता की जड़ों का अभिन्न अंग हैं, तो उनकी वजह से आने वाली बाढ़ भी हमारे देश का हिस्सा हैं. अगर हम जलीय और मौसम विज्ञान की दृष्टि से कहें तो, भारत में बाढ़ का सीधा संबंध देश में मॉनसून के सीज़न में होने वाली बारिश से है. बाढ़ के चलते होने वाला नुक़सान लगातार बढ़ रहा है. इसकी बड़ी वजह ये है कि डूब क्षेत्र में आने वाले इलाक़ों में पिछले कुछ वर्षों के दौरान आर्थिक गतिविधियां बहुत बढ़ गई हैं. और, इंसानी बस्तियां भी बस रही हैं. इससे नदियों के डूब क्षेत्र में आने वाले लोगों के बाढ़ के शिकार होने की आशंका साल दर साल बढ़ती ही जात रही है. नतीजा ये कि नदी का क़ुदरती बहाव क्षेत्र बाढ़ का शिकार इलाक़ा नज़र आने लगता है. हाल के वर्षों में नदियों के पानी से डूबने वाले क्षेत्रों में शहरी बस्तियां बसने की रफ़्तार तेज़ हो गई है. इस कारण से भी बाढ़ से होने वाली क्षति का दायरा बढ़ रहा है. क्योंकि किसी भी शहर का भौगोलिक दायरा और आबादी बढ़ने से ज़्यादा से ज़्यादा लोगो के बाढ़ के शिकार होने की आशंका बढ़ जाती है. जैसे ही बाढ़ प्रभावित इलाक़ों में बस्तियां बसने लगती हैं, तो बाढ़ के पानी के निकलने का रास्ता रुक जाता है. इससे बाढ़ का पानी निकल नहीं पाता. फिर बस्तियों को बाढ़ के पानी से बचाने के लिए उनके इर्द गिर्द बंध बनाए जाते हैं. बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में बस्तियां बसने और इन बंधों के बनने से नदी घाटी और नदियों के इकोसिस्टम पर भी विपरीत प्रभाव पड़ता है.</span></div><div style="text-align: justify;"><span face="Arial, Helvetica, sans-serif" style="color: #222222; font-size: small;"><br /></span></div><span face="Arial, Helvetica, sans-serif" style="background-color: white; color: #222222; font-size: small;"><div style="text-align: justify;">पहले दौर में मनुष्य शिकारी था, फिर खेती करने लगा। इसके बाद सुदूर व्यापार करने लगा और व्यापार के नाम पर सत्ता हड़पने लगा। इसके बाद औद्योगिक युग आया और सबसे बाद में, द्वितीय विश्व युद्ध के बाद पूंजीवादी व्यवस्था उभरी। हरेक दौर में मानव पहले से अधिक विकसित होता गया और साथ ही ऊर्जा और प्राकृतिक संसाधनों का उपभोग बढ़ता गया। हरेक दौर में सूचनाएं भी पिछले दौर से अधिक उपलब्ध होने लगीं। हरेक नए दौर में जनसंख्या भी पहले से अधिक बढ़ती गयी। यहां तक प्रकृति हमसे अधिक शक्तिशाली थी, पर वर्त्तमान दौर विकास की अगली सीढ़ी है, इसे मानव युग कह सकते हैं क्योकि अब प्रकृति पर पूरा नियंत्रण मनुष्य का है और मानवीय गतिविधियां प्रकृति से अधिक सशक्त हो गयी हैं। हर डूब क्षेत्र से लोगों को हटाने और तय दिशा-निर्देशों के अनुसार उन्हें कहीं और बसाने की चुनौती बहुत बड़ी है. और इसकी शुरुआत से ही बाधाएं आने लगती हैं. आज भी ज़मीन अधिग्रहण करना एक बहुत बड़ी चुनौती है. और सरकारों पर अक्सर ये आरोप लगते रहे हैं कि वो मुआवज़ा देने में निष्पक्षता नहीं बरतते और लोगों के पुनर्वास की सरकारी योजनाएं अपर्याप्त होती हैं. इसीलिए, यथास्थिति बनाए रखने के राजनीतिक लाभ अधिक हैं. क्योंकि इसमें हर सीज़न में बाढ़ पीड़ितों को राहत और मुआवज़ा देकर काम चल जाता है. इसीलिए राज्यों की ओर से दूसरे विकल्पों पर विचार नहीं किया जाता.</div></span><div style="text-align: justify;"><span face="Arial, Helvetica, sans-serif" style="color: #222222; font-size: small;"><br /></span></div><span face="Arial, Helvetica, sans-serif" style="background-color: white; color: #222222; font-size: small;"><div style="text-align: justify;">क्योंकि, इससे उनके राजनीतिक हितों पर बुरा प्रभाव पड़ता है. इसके अलावा, यहां ध्यान देने वाली बात ये भी है कि शहरी घनी बस्तियों को पूरी तरह से विस्थापित नहीं किया जा सकता. और इसके लिए इन बस्तियों के इर्द गिर्द बांध बनाकर उनकी सुरक्षा का इंतज़ाम करना भी ज़रूरी होता है. पर, इसके साथ ही साथ ये ज़रूर हो सकता है कि शहरों के बुनियादी ढांचे का और विकास रोका जाए. ताकि बाढ़ प्रभावित इलाक़ों में और बस्तियां न बसें. यहां पर एक और महत्वपूर्ण बात जो ध्यान देने योग्य है, वो ये है कि डूब क्षेत्र की ज़ोनिंग का लाभ आबादी के एक बड़े हिस्से और क्षेत्र को मिलेगा. मिसाल के तौर पर, अगर असम राज्य में डूब क्षेत्र को दोबारा संरक्षित किया जाए और ब्रह्मपुत्र नदी के प्राकृतिक बहाव के रास्ते को पुनर्जीवित किया जाए, तो इसका फ़ायदा बांग्लादेश तक को मिलेगा. क्योंकि तब बारिश होने और बाढ़ का पानी बांग्लादेश के निचले इलाक़ों तक पहुंचने के बीच काफ़ी समय मिल जाएगा. इससे नदियों में लंबे समय तक पानी का अच्छा स्तर भी बना रह सकेगा.यहां हमें ये स्वीकार करना होगा कि नदियां इस भूक्षेत्र का अभिन्न अंग हैं. ऐसे में इंसानों को अपनी गतिविधियां प्राकृतिक परिस्थितियों द्वारा तय की गई सीमाओं के दायरे में रहकर ही संचालित करनी होंगी. प्राचीन काल में जिस तरह मानवीय गतिविधियों को प्राकृतिक व्यवस्था के तालमेल से संचालित किया जाता था. उसी विचार को हमें नए सिरे से अपनाने के बारे में सोचना होगा. तभी हम इस महत्वपूर्ण नीति को ज़मीनी स्तर पर लागू कर सकेंगे, जो बरसों से धूल फांक रही है.</div></span><div style="text-align: justify;"><span face="Arial, Helvetica, sans-serif" style="color: #222222; font-size: small;"><br /></span></div><span face="Arial, Helvetica, sans-serif" style="background-color: white; color: #222222; font-size: small;"><div style="text-align: justify;">कुल मिलाकर हम बहुत ही खतरनाक दौर में पहुंच गए हैं और संभव है कि मानव की गतिविधियां ही इसके विनाश का कारण बन जाएं। आज के दौर में समस्या केवल प्राकृतिक संसाधनों को नष्ट करने की ही नहीं हैं, बल्कि हम सभी चीजों को बदलते जा रहे हैं। वायुमंडल को बदल दिया, भूमि की संरचना को बदल दिया, साधारण फसलों से जेनेटिकली मॉडिफाइड फसलों पर पहुंच गए, नए जानवर बनाने लगे, जीन के स्तर तक जीवन से छेड़छाड़ कर रहे हैं। अब तो कृत्रिम बुद्धि का ज़माना आ गया है। संभव है कि आने वाले समय में पृथ्वी पर सब कुछ बदल जाए, पर प्रकृति पर इनका क्या प्रभाव पड़ेगा कोई नहीं जानता।</div><div style="text-align: justify;"><br /></div></span><span face="Arial, Helvetica, sans-serif" style="background-color: white; color: #222222; font-size: small;"><div style="text-align: justify;">इन चुनौतियों के उलट अगर हम नदियों के क़ुदरती बहाव के रास्ते तैयार करने की कोशिश करें, तो इसमें भी बाढ़ नियंत्रण की काफ़ी संभावनाएं दिखती हैं. इससे बाढ़ से होने वाली क्षति को भी कम किया जा सकेगा. जिन इलाक़ों में अक्सर बाढ़ आया करती है, वहां ज़मीन के दाम ज़्यादा नहीं होते. इसीलिए, समाज के सबसे कमज़ोर तबक़े के लोग ही ऐसे जोखिम भरे इलाक़ों में आबाद होते हैं. जो अपनी ज़िंदगी बेहद ख़तरनाक जगह पर बिताते हैं. उन्हें सरकारी योजनाओं और सेवाओं का भी लाभ नहीं मिलता. ऐसे लोगों को अगर दूसरे स्थानों पर बसाया जाए, तो उनके पास ख़ुद को ग़रीबी के विषैले दुष्चक्र से आज़ाद करने का अवसर मिलेगा. वो हर साल आने वाली बाढ़ की तबाही से बच सकेंगे. इससे उनके सीमित पूंजीगत संसाधनों का भी संरक्षण हो सकेगा.</div></span><div style="background-color: white; color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: small; text-align: justify;"><br /></div><span class="gmail_signature_prefix" face="Arial, Helvetica, sans-serif" style="background-color: white; color: #222222; font-size: small;"><div style="text-align: justify;"><br /><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/a/AVvXsEh6HGA8s7NGNu4etWdeed1JajcrX1FEphmsCnLMHqEcDbA-ca1mT2om86nZDlyFzYsUSw6JAYkyHq8sPQUBDhwXTjkkkzZRPCo_Niw5a-QcGY8IWLSfZZXc1CqH-ebB5PuxdSIkK_fO3-Swnek47PmKf1whUzAQdA_BZ0qL_o02WWp5KUPaLooT0Nnt5F_8" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img alt="" data-original-height="907" data-original-width="738" height="200" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/a/AVvXsEh6HGA8s7NGNu4etWdeed1JajcrX1FEphmsCnLMHqEcDbA-ca1mT2om86nZDlyFzYsUSw6JAYkyHq8sPQUBDhwXTjkkkzZRPCo_Niw5a-QcGY8IWLSfZZXc1CqH-ebB5PuxdSIkK_fO3-Swnek47PmKf1whUzAQdA_BZ0qL_o02WWp5KUPaLooT0Nnt5F_8=w163-h200" width="163" /></a></div><blockquote style="border-left: 1px solid rgb(204, 204, 204); margin: 0px 0px 0px 0.8ex; padding-left: 1ex; text-align: start;"><b>- डॉo सत्यवान सौरभ,</b></blockquote><blockquote style="border-left: 1px solid rgb(204, 204, 204); margin: 0px 0px 0px 0.8ex; padding-left: 1ex; text-align: start;">कवि,स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार, आकाशवाणी एवं टीवी पेनालिस्ट,</blockquote><blockquote style="border-left: 1px solid rgb(204, 204, 204); margin: 0px 0px 0px 0.8ex; padding-left: 1ex; text-align: start;">333, परी वाटिका, कौशल्या भवन, बड़वा (सिवानी) भिवानी,</blockquote><blockquote style="border-left: 1px solid rgb(204, 204, 204); margin: 0px 0px 0px 0.8ex; padding-left: 1ex; text-align: start;"> हरियाणा – 127045</blockquote></div></span>parikalpna samayhttp://www.blogger.com/profile/07378005813677948207noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-467427710963449342.post-73985170769853507042023-05-26T21:23:00.006-07:002023-05-27T02:01:54.154-07:00कपिल कुमार को मिला अन्तरराष्ट्रीय साहित्य सेतु सम्मान<p style="text-align: justify;"><b></b></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><b><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhPhUA_IDjhtXyGZHZROlGLfL5K338DDkdSFuxXpKKjJv-iFhdHj2W9Tr3mAfQmAAiF6U7imJ9K6JsDATgn3EQC-cf1XYmmoku6MgwkUMww_eDSNHNAY2qNo6qEr5UdNKOj2u71Mv3CJ3HVPvKNBZdc9ZLjHTw78yMKD9qoT-81uGiPqaSXkIx17PS3fg/s1772/IMG-20230526-WA0018.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="1772" data-original-width="1079" height="400" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhPhUA_IDjhtXyGZHZROlGLfL5K338DDkdSFuxXpKKjJv-iFhdHj2W9Tr3mAfQmAAiF6U7imJ9K6JsDATgn3EQC-cf1XYmmoku6MgwkUMww_eDSNHNAY2qNo6qEr5UdNKOj2u71Mv3CJ3HVPvKNBZdc9ZLjHTw78yMKD9qoT-81uGiPqaSXkIx17PS3fg/w244-h400/IMG-20230526-WA0018.jpg" width="244" /></a></b></div><b><br />लंदन</b> (25.05.2023)। बेल्जियम के हिन्दी साहित्यकार श्री कपिल कुमार को लंदन के हाउस ऑफ़ कॉमन्स (ब्रिटिश पार्लियामेंट) में ब्रिटिश सांसद श्री विरेंद्र शर्मा, भारतीय उच्चायोग के मंत्री समन्वय श्री दीपक चौधरी, कौंसलर ज़ाकिया जुबैरी जी के हाथों "अंतरराष्ट्रीय साहित्य सेतु सम्मान" प्रदान किया गया। <div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhfymQ-5b347KOo05S1pYIgqcUh_3E0WaxjKZXwnwfybRkJSj2V7IjScMp1Zs7KmUGfeJWGeSkKY8JN10enDHWrqBo0nAIJ2nEcpMl7pIthemZokq8V3ji6iaio8nYl85gdDSCq2-c24rNfT_weSYC_09b18D5S2IEdstSkLqBo1E_q4IwyT7iXR9YkkQ/s1144/IMG-20230526-WA0017.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="780" data-original-width="1144" height="136" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhfymQ-5b347KOo05S1pYIgqcUh_3E0WaxjKZXwnwfybRkJSj2V7IjScMp1Zs7KmUGfeJWGeSkKY8JN10enDHWrqBo0nAIJ2nEcpMl7pIthemZokq8V3ji6iaio8nYl85gdDSCq2-c24rNfT_weSYC_09b18D5S2IEdstSkLqBo1E_q4IwyT7iXR9YkkQ/w200-h136/IMG-20230526-WA0017.jpg" width="200" /></a></div>यह कार्यक्रम हिन्दी अकादमी, भारत और कथा यूके द्वारा आयोजित किया गया। इसमें भारत से आये लगभग चालीस साहित्यकारों ने भी भाग लिया। <p></p>parikalpna samayhttp://www.blogger.com/profile/07378005813677948207noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-467427710963449342.post-77714988010052079822023-05-23T23:50:00.003-07:002023-05-24T00:30:03.349-07:00ब्रसेल्स के गोस्सित सभागार में 13 वां अन्तरराष्ट्रीय हिन्दी उत्सव संपन्न <p style="text-align: justify;"></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi4EohHfoV5eVVTgjiW0oSO1jfEx-_QFfTKUP0CspzNm7CjrL50smeRa9hEpTcWFlL6Au5jTd4b6fIUaKjakiBbdVsDBjFufka3lmid2wGljzOlXPbV4X9YNCbPdmH0mOcjTFceCA1AFPNw90uUneubfvEEurwCaRSakeRQ7JZghG2zLBGIgpAVkv8/s1280/IMG-20230524-WA0113.jpg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="960" data-original-width="1280" height="300" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi4EohHfoV5eVVTgjiW0oSO1jfEx-_QFfTKUP0CspzNm7CjrL50smeRa9hEpTcWFlL6Au5jTd4b6fIUaKjakiBbdVsDBjFufka3lmid2wGljzOlXPbV4X9YNCbPdmH0mOcjTFceCA1AFPNw90uUneubfvEEurwCaRSakeRQ7JZghG2zLBGIgpAVkv8/w400-h300/IMG-20230524-WA0113.jpg" width="400" /></a></div><br />दिनांक 20.05.2023 को बेल्जियम की राजधानी ब्रसेल्स के गोस्सित सभागार में 13 वां अन्तरराष्ट्रीय हिन्दी उत्सव संपन्न हुआ। मुख्य अतिथि रहे बेल्जियम में हिन्दी के चर्चित ग़ज़लकार श्री कपिल कुमार।<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgl8O0bl0JY9iZdDGEOT4Pl2X3pYwSS00N2JBvxXu7wTgQMooLLPyI2uiI2Bxbj3rZmpjQjSZ9mk1neeW91H5JktH9q9Y9HlRkZ8cfXTIPLC8j3fpIhuQ01Lvj1Gcabx11QsH_BX14gvx34jd72mxNjRIay6zTdiJjdSX54W-pB-JJF-oME2bN4uVM/s1080/IMG_20230524_125251.jpg" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em; text-align: justify;"><img border="0" data-original-height="563" data-original-width="1080" height="104" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgl8O0bl0JY9iZdDGEOT4Pl2X3pYwSS00N2JBvxXu7wTgQMooLLPyI2uiI2Bxbj3rZmpjQjSZ9mk1neeW91H5JktH9q9Y9HlRkZ8cfXTIPLC8j3fpIhuQ01Lvj1Gcabx11QsH_BX14gvx34jd72mxNjRIay6zTdiJjdSX54W-pB-JJF-oME2bN4uVM/w200-h104/IMG_20230524_125251.jpg" width="200" /></a></div><div style="text-align: justify;"><br /></div><div style="text-align: justify;">इस अवसर पर विशेष अतिथि रहे प्रसिद्ध पत्रकार डॉ आर बी श्रीवास्तव तथा प्रसिद्ध अवधी लोक गायिका कल्चर दीदी श्रीमती कुसुम वर्मा। इस अवसर पर प्रमुख साहित्यकार डॉ मिथिलेश दीक्षित, डॉ क्षमा सिसोदिया, डॉ सुभासिनी शर्मा, सचिंद्र नाथ मिश्र, डॉ. रवींद्र प्रभात आदि की एक दर्जन से ज्यादा पुस्तकें लोकार्पित हुई। इस अवसर पर अवधी की लोक गायिका श्रीमती कुसुम वर्मा और प्रसिद्ध पत्रकार डॉ आर बी श्रीवास्तव विशेष अतिथि थे। साथ ही विशिष्ट अतिथि के तौर पर उपस्थित रहे ब्रसेल्स के श्री संजय बाली और रेणु बाली। </div><div><p></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEicd4SG9ye6jIosn8IoMVUEEVZNDHe4uQb_nLEVVw1vO9fvK6_r0c-jwA3OfnJvST7krcVi3YvBmPUAn_7y1_h9S5qsQgoeG0JAwbLpPI1IVozyHvJZGGISGIAQkt0CpDIUndAXtiePb-8qA6lrvIN-g7Yc50a3a5h0yTlzUaWsf7Knd1zy1_oB5vo/s1280/IMG-20230524-WA0116.jpg" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em; text-align: justify;"><img border="0" data-original-height="960" data-original-width="1280" height="150" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEicd4SG9ye6jIosn8IoMVUEEVZNDHe4uQb_nLEVVw1vO9fvK6_r0c-jwA3OfnJvST7krcVi3YvBmPUAn_7y1_h9S5qsQgoeG0JAwbLpPI1IVozyHvJZGGISGIAQkt0CpDIUndAXtiePb-8qA6lrvIN-g7Yc50a3a5h0yTlzUaWsf7Knd1zy1_oB5vo/w200-h150/IMG-20230524-WA0116.jpg" width="200" /></a></div><div style="text-align: justify;">इस अवसर पर हिन्दी की चर्चित कवियित्री डॉ चम्पा श्रीवास्तव को 25 हजार रुपए नकद,शॉल,स्मृति चिन्ह के साथ <b>परिकल्पना शिखर सम्मान </b>से नवाजा गया। </div><div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgWUuyjARCkgr6Lf1_q_9MVDCJHuuUClsJoaDdq4vnlrdT3-DUIQ4N4Qn1vuIViIAy1gQSl2es1V04Rncl4Sn3HTAPirFOP8B8XmSmtM8lrJWTX71fuGwR50xl4GIzU_3oYgHY6tUIeuGCqGYPh97_SYw6ITHLz50ZhVl_IjWHVluFGmZZLS_CHLRk/s1280/IMG-20230524-WA0114.jpg" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em; text-align: justify;"><img border="0" data-original-height="960" data-original-width="1280" height="150" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgWUuyjARCkgr6Lf1_q_9MVDCJHuuUClsJoaDdq4vnlrdT3-DUIQ4N4Qn1vuIViIAy1gQSl2es1V04Rncl4Sn3HTAPirFOP8B8XmSmtM8lrJWTX71fuGwR50xl4GIzU_3oYgHY6tUIeuGCqGYPh97_SYw6ITHLz50ZhVl_IjWHVluFGmZZLS_CHLRk/w200-h150/IMG-20230524-WA0114.jpg" width="200" /></a></div><div style="text-align: justify;">साथ ही प्रसिद्ध लोक गायिका श्रीमती कुसुम वर्मा और श्री बिमल बहुगुणा को <b>परिकल्पना हिन्दी उत्सव सम्मान</b> प्रदान किया गया। </div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhiedXQxpEmGtXKuFtWeXnarJZMrW-89P0Sw9yoHWpn1dAu04FfxTXEZWK60cuWg3zej1JaSE_l7qUgin6RPERD1rm7qEkNvWtK5PsMUEIEC3mGadVx_PzBR4z-3Kq43EKbcO-kW6bUDDMZD3gYoylrZQnZB26xtIqdGnODEVkGufGUi5_lzm2ZSCc/s1280/IMG-20230524-WA0112.jpg" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em; text-align: justify;"><img border="0" data-original-height="960" data-original-width="1280" height="150" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhiedXQxpEmGtXKuFtWeXnarJZMrW-89P0Sw9yoHWpn1dAu04FfxTXEZWK60cuWg3zej1JaSE_l7qUgin6RPERD1rm7qEkNvWtK5PsMUEIEC3mGadVx_PzBR4z-3Kq43EKbcO-kW6bUDDMZD3gYoylrZQnZB26xtIqdGnODEVkGufGUi5_lzm2ZSCc/w200-h150/IMG-20230524-WA0112.jpg" width="200" /></a></div><div style="text-align: justify;">वहीं 5100/- रुपए नकद, अंगवस्त्र, स्मृति चिन्ह के साथ डॉ क्षमा सिसोदिया, सचिंद्रनाथ मिश्र और डॉ सुभाषिणी शर्मा को परिकल्पना सम्मान प्रदान किया गया। </div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhMrTyhGpEymolzMdNbpDTBVzXHTJQ8mqTW3lmQcTBDupDK58z8TI6d0m2A5fHV_itRz57lhd_PTEFbWcvP3GRYivdG9AywMGRqgmrpb_5DnzXXdReBmwSbBAAUgOpBsrJygU3iCzIAHAcCGBY0YGEbIB3aZG3zUZl4pOJusxLjysfdMx3H1A4_Kqw/s1280/IMG-20230524-WA0113.jpg" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em; text-align: justify;">9<img border="0" data-original-height="960" data-original-width="1280" height="150" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhMrTyhGpEymolzMdNbpDTBVzXHTJQ8mqTW3lmQcTBDupDK58z8TI6d0m2A5fHV_itRz57lhd_PTEFbWcvP3GRYivdG9AywMGRqgmrpb_5DnzXXdReBmwSbBAAUgOpBsrJygU3iCzIAHAcCGBY0YGEbIB3aZG3zUZl4pOJusxLjysfdMx3H1A4_Kqw/w200-h150/IMG-20230524-WA0113.jpg" width="200" /></a></div><div style="text-align: justify;">लगभग दो दर्जन विद्वतजनों क्रमश: डॉ अनिता श्रीवास्तव, कल्पना अग्रवाल, कविता सक्सेना, डॉ सुकेश शर्मा, डॉ पूनम सिंह, प्रिया मिश्रा, बृज किशोर अग्रवाल, अनिल सक्सेना, शुभम शर्मा, आयुषी सिंह, नंदिनी रावत, माला चौबे, शुभ चतुर्वेदी, उर्विजा प्रभात आदि को <b>परिकल्पना हिन्दी उत्सव यात्रा सम्मान </b>प्रदान किया गया।</div></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi-XLFJWZtvcJRLb6zsolyiyg55TccMDjCN_yq2tFEB3UEja_IUsmfafaEV9qLPkAWnMb0wE_g93Z-BEIISq4wIbbe4PAZlEEOkSzA-x5bpgB4KVu2qsGe5yT2FB45ymNK0i23q3Tta-gDhoK3PaQyGQWfGbsArnOtSrW1VzMWwd1XhPgwi9HWnH1E/s1600/IMG-20230524-WA0060.jpg" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em; text-align: justify;"><img border="0" data-original-height="716" data-original-width="1600" height="89" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi-XLFJWZtvcJRLb6zsolyiyg55TccMDjCN_yq2tFEB3UEja_IUsmfafaEV9qLPkAWnMb0wE_g93Z-BEIISq4wIbbe4PAZlEEOkSzA-x5bpgB4KVu2qsGe5yT2FB45ymNK0i23q3Tta-gDhoK3PaQyGQWfGbsArnOtSrW1VzMWwd1XhPgwi9HWnH1E/w200-h89/IMG-20230524-WA0060.jpg" width="200" /></a></div><div style="text-align: justify;">इस अवसर पर डॉ मिथिलेश दीक्षित की कतिपय पुस्तकों के साथ साथ डॉ क्षमा सिसोदिया की विज्ञान प्रकाशन से प्रकाशित पुस्तक इंद्रधनुषीय हाइकु संग्रह, डॉ सुभाषिणी शर्मा की जिज्ञासा प्रकाशन से प्रकाशित पुस्तक हाइकु संग्रह मन-बगिया, सचिंद्रनाथ मिश्र के द्वारा संपादित पत्रिका ब्रह्मराष्ट्र एकम के प्रवेशांक के साथ डॉ रवींद्र प्रभात की पुस्तक sting of the exodus (अनुवाद: गौतम रॉय) लोकर्पित हुई। </div><div style="text-align: justify;"> </div><div style="text-align: justify;"><br /></div></div>parikalpna samayhttp://www.blogger.com/profile/07378005813677948207noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-467427710963449342.post-35291753984680028362023-03-18T23:12:00.003-07:002023-03-18T23:15:14.095-07:00स्नेहा राज को मिला एक साथ रजत और कांस्य पदक<p style="text-align: justify;"><b>बंगलोर (सांस्कृतिक संवाददाता)। </b>लवली प्रोफेशनल यूनिवर्सिटी, जलन्धर (पंजाब) से म्यूजिक में ग्रेजुएशन की पढ़ाई कर रही स्नेहा राज को स्थानीय जैन यूनिवर्सिटी में भारतीय विश्वविद्यालय संघ द्वारा आयोजित युवा महोत्सव कार्यक्रम में इंडियन म्यूजिक ग्रुप सॉन्ग में शानदार प्रदर्शन के लिए एक साथ ब्रॉन्ज और सिल्वर दो दो मेडल से सम्मानित किया गया । इस प्रतियोगिता में देश भर से बड़ी संख्या में यूनिवर्सिटी के बच्चें भाग लिए थे । स्नेहा ने अपने प्रदर्शन से सबका मन मोहा। </p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi4tXlHrTcjgly8dSLHq7KHcRk6TtJORZIHt2MMw_ulBwZ_PnMOcKrs9dR6Lq-CaAlZ8TT7rFxsIPcpQid3g-lnj7AfGeXcBgt8INOx5E3ywcEdzCdRTA-ih1EbCsfAXPmWcGuHTyQwIGZjIYd1kA0dtEbhWLQc0mcEPksOJicB4d4V-unSQQCSnObqzw/s1612/IMG_20230319_111855.jpg" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="1612" data-original-width="1080" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi4tXlHrTcjgly8dSLHq7KHcRk6TtJORZIHt2MMw_ulBwZ_PnMOcKrs9dR6Lq-CaAlZ8TT7rFxsIPcpQid3g-lnj7AfGeXcBgt8INOx5E3ywcEdzCdRTA-ih1EbCsfAXPmWcGuHTyQwIGZjIYd1kA0dtEbhWLQc0mcEPksOJicB4d4V-unSQQCSnObqzw/s320/IMG_20230319_111855.jpg" width="214" /></a></div>स्नेहा इससे पहले भी सीतामढ़ी में हुए एक प्रोग्राम में बिहार के चर्चित रैपर श्लोका द्वारा सम्मानित हो चुकी है। <p></p><p style="text-align: justify;">स्नेहा लवली प्रोफेशनल यूनिवर्सिटी, जलन्धर (पंजाब) से म्यूजिक में ग्रेजुएशन की पढ़ाई कर रही है । उसकी बचपन से ही गीत संगीत में गहरी रुचि रही है । वह म्यूजिक में ही करियर बनाना चाहती है । इसीलिए वह म्यूजिक में ही उच्च शिक्षा ग्रहण कर रही है। </p>parikalpna samayhttp://www.blogger.com/profile/07378005813677948207noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-467427710963449342.post-22445890350772992232023-03-08T03:14:00.000-08:002023-03-08T03:14:54.724-08:00एक साधारण मनुष्य के जीवन की संघर्ष गाथा है लखनऊवा कक्का<p style="text-align: justify;">उपन्यास को आधुनिक जीवन का महाकाव्य कहा गया है। अपने उत्पत्ति काल से ही उपन्यासों ने जीवन को उसकी समग्रता में पकड़ने और व्यक्त करने की कोशिश की है। समकालीन दौर में जब नए-नए विमर्शों ने अपनी अभिव्यक्ति के सबसे सशक्त माध्यम के रूप में इस विधा को चुना तो स्वाभाविक रूप से उपन्यासों में रूप और अंतर्वस्तु के स्तर पर कई परिवर्तन हुए। वर्तमान समय में कुछ उपन्यास गांवों को विषय बनाकर आए हैं। उनमें विस्थापन से लेकर स्त्री प्रश्न तक कई मुद्दे हैं। ऐसा हीं एक उपन्यास है 'लखनऊवा कक्का' जिसे लिखा है अपने समय के बेहद प्रखर उपन्यासकार रवीन्द्र प्रभात ने।</p><p style="text-align: justify;">रवींद्र प्रभात का ‘लखनऊवा कक्का' गंबई भाषा यानी भोजपुरी,अवधी और खड़ी बोली के भाषाई कॉकटेल में प्रकाशित उनका पहला उपन्यास है, जो एक साधारण मनुष्य के जीवन में पैदा हुए संघर्षों की असाधारण कथा है। लखनऊवा कक्का एक ऐसा किरदार है, जिनके इर्दगिर्द अनगिनत कथाएं घूमती रहती है और साथ ही हर दिन बनती रहती हैं, हर दिन मिटती रहती हैं। लेखक ने इतने विस्तृत फलक पर, इतने विविध आयामों के साथ कथा को बुना है, मानो वह एक पूरे देशकाल को उसकी समग्रता में उकेर देने की मासूम-सी जिद ठाने बैठा है। लखनऊ के किसी तहसील में अमीन के पद पर काम करने के कारण उनके गाँव बढईपुरवा के लोग उन्हें लखनौआ कक्का के नाम से पुकारने लगे। गाँव से लखनऊ और लखनऊ से गाँव लौटते हुए कक्का के लिए यह जीवन यात्रा अपने घर-परिवार को बचाने की संघर्ष कथा से शुरू होकर जीवन को संजोने और संवारने की संकल्प कथा बन जाती है। दो पीढ़ियों के बीच फैली इस संघर्ष कथा में और भी कई प्रासंगिक कथाएं हैं। सरकार की उपेक्षा और गरीबी व विवशता भरी जिंदगी का संघर्ष, तत्कालीन जेलों में गलत ढंग से बंद कैदियों की कथा, पाश्चात्य संस्कृति और सभ्यता में मदहोश होता धनिक वर्ग और अकेला पड़ता बचपन, कर्ज के बोझ तले डूबकर अपना घर-बार-बैल खोते गांव के गरीब किसान और इन किसानों का अपना निजी दर्द– इन सबकी कथा इस उपन्यास को एक बृहद आयाम देती है।</p><p style="text-align: justify;">सबसे आश्चर्य की बात तो यह है कि इतने विस्तृत फलक पर, इतने ‘पसार’ के साथ कथा को रचने के बावजूद रवीन्द्र प्रभात की लेखनी कहीं कथा को बिखरने नहीं देती, इसे जोड़े रखती है। उपन्यास चूंकि गंबई भाषा में है, कथाकार गंबई संस्कृति को उसकी पूरी जीवंतता और प्रामाणिकता के साथ बचाए रखने के लिए विशेष सावधान दिखाई देता है। लखनऊवा कक्का का तकिया कलाम ' जय सिया राम जय जय सिया राम' हर वाक्य को पूरा करते ही किरदार के द्वारा दुहराना इस उपन्यास की भाषाई लालित्य को चार चाँद लगा देता है।</p><p style="text-align: justify;">सच तो यह है कि हर रचनाकार, अपनी परवरिश और अपने जीवन की परिस्थितियों से गढ़ा जाता है। उसमें कुछ भी असाधारण नहीं होता, क्योंकि साधारण भी कुछ नहीं होता। वह मात्र अपनी संवेदना के स्पर्शबोध से अभिव्यक्ति टटोलता फिरता है और उसे ही अपनी रचनाओं में उजागर करता है। रवींद्र प्रभात ने भी इस उपन्यास में कमोवेश वही किया है जो समकालीनता की मांग थी। यह उपन्यास सिद्ध करता है कि आंचलिक भाषा में केवल आँचलिकता की बात ही नहीं, बल्कि सारे विश्व की बात की जा सकती है। वैसे इस गाथा के मुख्य पात्र यानी लखनौआ कक्का भले हीं भोजपुरी क्षेत्र के हैं, लेकिन उनकी जीवन-कथा उन तमाम जगहों के जीवन से जुड़ी है जहाँ जा-जा कर वे बसे हैं, या जहाँ-जहाँ उनके तलवे घिसे हैं। और यही इस उपन्यास की सबसे बड़ी विशेषता है।</p><p style="text-align: justify;">रवीन्द्र प्रभात ने निश्चित रूप से अपने इस नए उपन्यास ‘लखनऊवा कक्का' में गंवई धरती को अपनी मुख्य कथा-भूमि के रूप में चुना है और सादगीपूर्ण रचना शैली से विशिष्ट प्रभाव उत्पन्न करने में सफलता पाई है। यह उपन्यास एक ओर जहाँ धार्मिक आस्था के नाम पर चलनेवाले धर्म-व्यापार की सचाइयों से रूबरू कराता है, वहीं दूसरी ओर वर्तमान शिक्षा व्यवस्था, चिकित्सा जगत, स्त्रियों और अन्य पिछड़े तबकों की सामाजिक स्थिति, महानगरों में आत्मीय संबंधों का अभाव, परिवारों में बुजुर्गों की बढ़ती उपेक्षा और उनका एकाकीपन – ऐसी तमाम समस्याओं की तरफ लेखक की पैनी दृष्टि गई है। और इस प्रकार उपन्यास धार्मिक आस्था के रास्तों से चलकर कुछ जरूरी सामाजिक प्रश्नों तक पहुंचता है। लेखक ने प्रभावशाली ढंग से दिखाया है कि किस तरह हमारे समाज से खत्म हो रहा परस्पर सद्भाव, सहयोग और भाईचारे का संबंध आश्रमों की ओर लोगों को आकर्षित कर रहा है। सामाजिक विसंगतियों के मारे, हाशिए के लोग भेदभाव रहित समाज में समान अधिकार और सम्मानपूर्ण सह जीवन की तलाश में ऐसे आश्रमों तक पहुंच रहे हैं। उपन्यास में कई ऐसे अनाथ, गरीब, पिछड़ी जाति के लड़के-लड़कियों की कथा दर्ज है, जिनके जीवन को आश्रम ने एक नई दिशा दी है। यह स्थिति सोचने पर मजबूर करती है कि क्यों इन तबकों तक लोकतांत्रिक भारत की विकास योजनाएं नहीं पहुँच पाईं?</p><p style="text-align: justify;">लेखक ने इस उपन्यास में बदलते गांव की तस्वीर रची है, जो असल में बेहद धीमी गति से बदलते कुछ दृश्यों के कोलाज से बनी है। यहाँ एक तरफ खेती और साथ ही खेतिहर समाज का बदलता हुआ प्रारूप है तो दूसरी तरफ बदलते जातिगत समीकरण हैं। उपन्यास में ग्रामीण परिवेश रचने के लिए लेखक ने जिस तरह की गंवई भाषा और बिंब-विधान की शैली को अपनाया है, वह अलग से ध्यान खींचती है। कथा का बेहद आकर्षक पक्ष है प्रकृति का किसी जीते-जागते पात्र की तरह हर जगह मौजूद होना। प्रकृति के अलग-अलग घटकों, ऋतुओं के सजीव वर्णन में लेखक का मन रमा है।</p><p style="text-align: justify;">यह उपन्यास रेणु और श्रीलाल शुक्ल की याद दिलाता है, जिसमें राजनीति एक बहुत महत्वपूर्ण घटक के रूप में मौजूद है। उपन्यास का आरंभ ही राजनीतिक उद्देश्य से होता है। पूरे उपन्यास में राजनीतिक गहमा-गहमी चलती रहती है और अंत भी चुनावी चर्चा से होता है। भोजपुरी क्षेत्रों में प्रचलित लोकगीतों का उपन्यास में बखूबी इस्तेमाल किया गया है। हालांकि लेखक ने लोकगीतों का केवल अर्थ देकर काम चला लिया है, अगर उनका सीधे-सीधे प्रयोग किया जाता तो प्रभाव कुछ और होता।</p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjgDC4l31rIpFoQVpS_lOME9tWiOCGwc0y1lPK2JOOfD2FS8-GlPkU62AYAagMdM2ER8aQkNDzulPOLtcTEUUJzRcArzx21SR9iyIJgKFpKO-L3uZ32z-o8rGX1vbKEBD-Q-7ze_7Va3ZVNtDiBsBwMIiwBSRxI3fOlIczJceRIE4CHQpCixpuvBEvKWg/s1280/IMG-20230308-WA0000.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="1280" data-original-width="938" height="200" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjgDC4l31rIpFoQVpS_lOME9tWiOCGwc0y1lPK2JOOfD2FS8-GlPkU62AYAagMdM2ER8aQkNDzulPOLtcTEUUJzRcArzx21SR9iyIJgKFpKO-L3uZ32z-o8rGX1vbKEBD-Q-7ze_7Va3ZVNtDiBsBwMIiwBSRxI3fOlIczJceRIE4CHQpCixpuvBEvKWg/w147-h200/IMG-20230308-WA0000.jpg" width="147" /></a></div><br /><p></p><p style="text-align: justify;">पुस्तक का नाम: लखनऊवा कक्का</p><p style="text-align: justify;">( आंचलिक उपन्यास) </p><p style="text-align: justify;">लेखक का नाम: रवीन्द्र प्रभात</p><p style="text-align: justify;">पृष्ठ संख्या: 96</p><p style="text-align: justify;">मूल्य:, 150/-</p><p style="text-align: justify;">प्रकाशक: अवध भारती प्रकाशन, नरौली, हैदरगढ़, बाराबंकी</p><p style="text-align: justify;"><b>समीक्षक: डॉ. राम बहादुर मिश्र</b></p>parikalpna samayhttp://www.blogger.com/profile/07378005813677948207noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-467427710963449342.post-82094423529305318682023-02-02T20:06:00.006-08:002023-02-02T20:21:21.985-08:00मित्र स्मृति अवधी सम्मान से नवाज़े गए पंडित सत्यधर शुक्ल<p><b></b></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><b><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhkGtUCH7fZA6sWWkyFONIxdvPUT5iOQeVqI5mNg9L2jRjfeEGc-5A1FBhHDEUUNMavL6_W8duLj_U38GwxcelfO_tOrmzlv0R3qmqdXcKxzd1HLuVAfscfVx7x56grig6zeevsvjht-DVUQcf1n2IUfxxmozVYFK0pP1e8D8-sKtdd1ldBAz5F0PMKyw/s855/IMG_20230203_093103.jpg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="594" data-original-width="855" height="278" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhkGtUCH7fZA6sWWkyFONIxdvPUT5iOQeVqI5mNg9L2jRjfeEGc-5A1FBhHDEUUNMavL6_W8duLj_U38GwxcelfO_tOrmzlv0R3qmqdXcKxzd1HLuVAfscfVx7x56grig6zeevsvjht-DVUQcf1n2IUfxxmozVYFK0pP1e8D8-sKtdd1ldBAz5F0PMKyw/w400-h278/IMG_20230203_093103.jpg" width="400" /></a></b></div><b><br /><div style="text-align: justify;"><b>मित्र जी ने समकालीन समाज की विसंगतियों को अपने सृजन का हिस्सा बनाया: डॉ. सुधाकर अदीब</b></div></b><p></p><p style="text-align: justify;">लखनऊ (परिकल्पना समय) : स्थानीय प्रेस क्लब में लक्ष्मण प्रसाद मित्र सेवा संस्थान द्वारा आयोजित एक सम्मान समारोह में अवधी भाषा के वरिष्ठ साहित्यकार पंडित सत्यधर शुक्ल को मित्र स्मृति अवधी सम्मान प्रदान किया गया। उन्हें अंगवस्त्र और स्मृति चिन्ह के साथ ग्यारह हजार रुपये की धनराशि प्रदान की गयी। </p><p style="text-align: justify;">इस अवसर पर मुख्य अतिथि डॉ सुधाकर अदीब ने मित्र जी के नाटकों की चर्चा करते हुए कहा कि<b> "मित्र जी ने अवधी और खडी बोली में कुल 15 नाटक और एकांकी लिखे। उनके नाटकों में समकालीन समाज की विसंगतियाँ को बड़े सलीके से दर्शाया गया है।" </b>विशिष्ट अतिथि परिकल्पना समय के प्रधान संपादक रवीन्द्र प्रभात ने कहा कि <b>"ऐसे साहित्यकार बहुत कम देखने को मिले हैं जिनके जीवन और विचार दोनों महान हों। मित्र जी के बारे में मैंने जो सुना है उसके आधार पर यह कहते हुए मुझे गर्व की अनुभूति हो रही है कि उन्होंने जैसा जीया वैसा लिखा।" </b>कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ साहित्यकार विजय प्रसाद त्रिपाठी ने कहा कि<b> "आधुनिक अवधी की गौरवशाली परंपरा में लक्ष्मण प्रसाद मित्र का नाम अग्रगण्य है। वे मूलत: ग्राम्य संस्कृति और श्रम संस्कृति के गायक थे।"</b></p><p></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: justify;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhTCNzVABGajXxHUGG75vGhNJyNaN5U6e0MY73LBB5v2oUjRjew98LUED2mXYWUCclbEaJdapyV_z2fxnuNCp-E6S4nIFdeS-5cY-Ew-3EvUaTSpvVtha6YGabd7GThIm6Au7a1oyOpfDGSTrkblQ0kdbtBreauGYD6ApRSslY8LZ4Oi9SzwFf4Ju62fQ/s859/IMG_20230203_093028.jpg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="433" data-original-width="859" height="201" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhTCNzVABGajXxHUGG75vGhNJyNaN5U6e0MY73LBB5v2oUjRjew98LUED2mXYWUCclbEaJdapyV_z2fxnuNCp-E6S4nIFdeS-5cY-Ew-3EvUaTSpvVtha6YGabd7GThIm6Au7a1oyOpfDGSTrkblQ0kdbtBreauGYD6ApRSslY8LZ4Oi9SzwFf4Ju62fQ/w400-h201/IMG_20230203_093028.jpg" width="400" /></a></div><div style="text-align: justify;"><br /></div><div style="text-align: justify;">कार्यक्रम के मुख्य वक्ता डॉ संत लाल ने मित्र जी को अवधी लोक जीवन का कुशल चितेरा बताते हुए उनके व्यक्तित्व और कृतित्व पर विहंगम प्रकाश डाला। वहीं आराध्य शुक्ल ने भी मित्र जी से जुड़े संस्मरण पटल पर रखे। कार्यक्रम के संयोजक डॉ राम बहादुर मिश्र ने सभी आगत अतिथियों का स्वागत किया और कहा कि "मुझे मित्र जी पर कार्य करते हुए अपार खुशी हुई। मनोरमा साहू जी के द्वारा अपने पिता की रचनाओं को समाज के सामने की यह कोशिश उल्लेखनीय उपलब्धि है।" </div><p></p><p style="text-align: justify;">कार्यक्रम में अर्जुन पांडेय, डॉ शोभा मिश्रा, डॉ विंध्यमणि, अनिल मिश्र, कुमार तरल, विष्णु शर्मा, अरुण तिवारी, रजत वर्मा, राकेश गुप्ता, अशोक साहू, प्रति साहू और अवध भारती संस्थान के उपाध्यक्ष पप्पू अवस्थी ने भी अपने विचार व्यक्त किये। कार्यक्रम का संचालन प्रदीप सारंग ने किया। </p><p style="text-align: justify;">(सांस्कृतिक संवाददाता की रपट) </p>parikalpna samayhttp://www.blogger.com/profile/07378005813677948207noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-467427710963449342.post-7455813489093342262023-02-01T20:35:00.001-08:002023-02-02T20:40:51.872-08:00 डॉ अवधेश्वर अरुण के निधन पर शोक सभा आयोजित<p></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiAiNLIyA4xDtLvOOSv7rZA2ETYXIcCywzdqnz7dv3q-DNhEQOqbjEW5Tpzoiyskv6CiPkZLScY7SKxzzHAD9ogaDB-dEA2-6Tc3SkOOlXx_YOzlZQKxPB_hwjb0T40lEwt_8qqW6-jVbMKcBGjxzAUVHoVpKGJmd674IGy9X95dLlNVZInz7QU3d5d4w/s1280/IMG-20230203-WA0005.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="960" data-original-width="1280" height="300" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiAiNLIyA4xDtLvOOSv7rZA2ETYXIcCywzdqnz7dv3q-DNhEQOqbjEW5Tpzoiyskv6CiPkZLScY7SKxzzHAD9ogaDB-dEA2-6Tc3SkOOlXx_YOzlZQKxPB_hwjb0T40lEwt_8qqW6-jVbMKcBGjxzAUVHoVpKGJmd674IGy9X95dLlNVZInz7QU3d5d4w/w400-h300/IMG-20230203-WA0005.jpg" width="400" /></a></div><br /><div style="text-align: justify;">सीतामढ़ी (परिकल्पना समय)। दिनांक 29/01/2023 को सीतामढ़ी संस्कृति मंच के तत्वावधान में एक शोकगोष्टी का आयोजन किया गया जिसमें बज्जिका साहित्य के महाकवि, बज्जिका रामायण के रचयिता, हिन्दी साहित्य के उद्भट विद्वान , रामेश्वर सिंह कॉलेज के पूर्व प्राचार्य डॉ अवधेश्वर अरुण के निधन पर शोक जताते हुए श्रद्धांजलि दी गयी। इनके साथ अथरी निवासी अवकाश प्राप्त शिक्षा अधिकारी श्याम नंदन सिंह उर्फ भोला बाबू को भी श्रद्धांजलि दी गयी।</div><p></p><p style="text-align: justify;">विदित हो कि दोनों विभूतियों का निधन पिछले सरस्वती पूजा के दिन 26 जनवरी (गणतंत्र दिवस) को हो गया। कार्यक्रम जानकी विद्या निकेतन सीतामढ़ी के सभाकक्ष में आयोजित किया गया जिसकी अध्यक्षता श्रीमती सुभद्रा ठाकुर ने की और संचालन विमल कुमार परिमल कर रहे थे। सुभद्रा ठाकुर ने कहा कि डा अवधेश्वर अरुण बज्जिका के बड़े कवि और हिन्दी के प्रतिष्ठित साहित्यकार थे। </p><p style="text-align: justify;">कई लोगों ने अपना संस्मरण सुनाते हुए उनको सहज व्यक्ति बतलाया। परिमल ने बतलाया कि डा अवधेश्वर अरुण और भोला बाबू दोनों सरल , सहज और अनुशासनप्रिय लोग थे। श्रद्धांजलि अर्पित करने वालों में डी सी द्विवेदी, हृषिकेश कुमार, डा शशि रंजन, रामबाबू सिंह, बच्चा प्रसाद विह्वल, राघव मिश्र, राम किशोर सिंह चकवा, प्रमोद सिन्हा, सुरेश वर्मा आदि प्रमुख थे।</p><p style="text-align: justify;">(सीतामढ़ी से सांस्कृतिक संवाददाता की रपट) </p>parikalpna samayhttp://www.blogger.com/profile/07378005813677948207noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-467427710963449342.post-44474129631656924392022-12-27T02:53:00.002-08:002022-12-27T03:03:22.885-08:00बाराबंकी में कवि सम्मेलन आयोजित <p></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgpOjBp5yGikwcnG_JeRe_HDlD7pTCkIDOTh8LZDw6LG-JjkjbFXgnkiQtA_FStF6QGdmV42UdYI5Wiyu9BO8wCWxB4P6Qe-d6tI8lOpz-2VyyHllmNH8XxcZE6DhKu0i_3wM_z9G64T4m14biWgDnCMOFN1wYQjXZ-fzxOmZBn3yA0_4YwElDCpqc/s1280/WhatsApp%20Image%202022-12-27%20at%203.31.17%20PM.jpeg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="576" data-original-width="1280" height="180" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgpOjBp5yGikwcnG_JeRe_HDlD7pTCkIDOTh8LZDw6LG-JjkjbFXgnkiQtA_FStF6QGdmV42UdYI5Wiyu9BO8wCWxB4P6Qe-d6tI8lOpz-2VyyHllmNH8XxcZE6DhKu0i_3wM_z9G64T4m14biWgDnCMOFN1wYQjXZ-fzxOmZBn3yA0_4YwElDCpqc/w400-h180/WhatsApp%20Image%202022-12-27%20at%203.31.17%20PM.jpeg" width="400" /></a></div><div style="text-align: justify;"><div>बाराबंकी ।<b> कैसे कह दूँ कि सवेरा हो गया ,किन्तु आज उल्लुओं का बस्रेरा हो गया</b> का उद्घोष करते हुए भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा आयोजित कवि सम्मलेन को वरिष्ठ रचनाकार श्री राम किशोर तिवारी ने कहा कि <b>मची हुई चारों ओर लूट मार है ,हत्या,व्यभिचार और अनाचार है | </b>वहीँ हिंदी के अप्रितम गीतकार डा.अलोक शुक्ल ने धार्मिक विसंगतियों पर प्रहार करते हुए <b>" मैं राम से भी मिल चूका ,मैं श्याम से भी मिल चूका ,मैं हीर से भी मिल चूका ,मैं सुर से भी मिल चूका,कबीर से भी मिल चूका ,मैं पीर से भी मिल चूका ,मैं फ़कीर से भी मिल चूका,वजीर से भी मिल चूका ,मेरी तुला पे सब तुले ,मैं आखिरी पड़ाव हूँ "</b> पढ़कर वर्तमान अंध-धर्मान्धता पर करारी चोट की कवि सम्मलेन में हास्य-व्यंग्य के रचनाकार अजय प्रधान ने वर्तमान सरकार की अकर्मण्यता पर करारा व्यंग्य करते हुए कहा कि <b>कहाँ तक धर्म,मज़हब ,जाति के अध्याय बेचोगे ,हमारी आस्था गंगा व गीता,गाय बेचोगे |अगर इस बार कुछ अच्छा न कर सके ,तो पक्का है 24 में तुम चाय बेंचोगे| </b></div><div><br /></div><div> थाने में लिखते हैं आपकी सेवा में है पुलिस ,जाकर तो देखिये। <b>यह तरक्की का दौर है पैसा नहीं तो ,लाश भी देते नहीं अस्पताल ,हैरान होइए कि ,यह तरक्की का दौर है </b>पढ़कर आदर्श बाराबंकवी ने योगी-मोदी सरकार पर करारा प्रहार किया |श्रृंगार के कवि जीतेन्द्र श्रीवास्तव "जित्तू भैया "ने <b>फूल चन्दन सी खुशबु सा तेरा बदन,छु के तेरा बदन,मैं लहक जाऊंगा ,तेरी आँखों को जो मैं निहारा करूँ,बिन पिए ही सनम में बहक जाऊंगा</b> पढ़कर श्रोताओं की तालियाँ बटोरी। कवियत्री श्री मती लता श्रीवास्तव व अतुल सिंह माधुरी को भी सराहा| कवि सम्मलेन की अध्यक्षता डा.अम्बरीश अम्बर ने की|</div><div><br /></div><div>भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के बृजमोहन वर्मा ,रणधीर सिंह सुमन ,प्रवीण कुमार ,महेंद्र यादव,मिथलेश कुमार,दीपक वर्मा,शिव दर्शन वर्मा,विनय कुमार सिंह व बिंदु सिंह ने कविगणों को माला पहनकर व उपहार देकर सम्मानित किया |</div></div>रवीन्द्र प्रभातhttp://www.blogger.com/profile/11471859655099784046noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-467427710963449342.post-67247273639312228362022-11-08T00:20:00.000-08:002022-11-08T00:20:02.626-08:00अमेरिका,ताइवान,जर्मनी, नेपाल के साहित्यकारों सहित देश के 15 प्रान्तों के 112 साहित्यकार हुए सम्मानित<div style="text-align: justify;"><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgJ9KOSOaeUYmKK4LnJ_1cCGob9kqHgPGKyPXtGrn_q5-Inly_wS1wojS7WlVqtcqTCdnA1h6-VKMx00OIwcYsGSgP_xgtDfnKN7ixKAIjqhu40_m8lrvJrl7FslRjvdAurYp0em5A7SBDR02BSb6jRJSuXTolyN86W4gqDTPhh78lCWpWezz8PY3Y/s1294/IMG-20221108-WA0009.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="775" data-original-width="1294" height="192" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgJ9KOSOaeUYmKK4LnJ_1cCGob9kqHgPGKyPXtGrn_q5-Inly_wS1wojS7WlVqtcqTCdnA1h6-VKMx00OIwcYsGSgP_xgtDfnKN7ixKAIjqhu40_m8lrvJrl7FslRjvdAurYp0em5A7SBDR02BSb6jRJSuXTolyN86W4gqDTPhh78lCWpWezz8PY3Y/s320/IMG-20221108-WA0009.jpg" width="320" /></a></div><br /><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiTf6TkbiDYI9496YOsOL1I5A5T2Shil6FToOg8p2ZzuXiepsn4f1Vh_xx34bxYLaNowshc7221HM5zrpOc0dTNFK_C36UEOxya4j5D1V49S33i08DR5GVR9wOGU1ScrN-au1Cjh2XZpmgpY55xKeGmjxBzSU18ovkOAmp6y4bEhAISKtCsGMYbwl0/s1333/IMG-20221108-WA0011.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="501" data-original-width="1333" height="120" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiTf6TkbiDYI9496YOsOL1I5A5T2Shil6FToOg8p2ZzuXiepsn4f1Vh_xx34bxYLaNowshc7221HM5zrpOc0dTNFK_C36UEOxya4j5D1V49S33i08DR5GVR9wOGU1ScrN-au1Cjh2XZpmgpY55xKeGmjxBzSU18ovkOAmp6y4bEhAISKtCsGMYbwl0/w320-h120/IMG-20221108-WA0011.jpg" width="320" /></a></div><br />बिसौली:
बिसौली की साहित्यिक संस्थाओं के0बी0 हिंदी सेवा न्यास ( पंजी0) एवम डॉ0मिथिलेश दीक्षित साहित्य-संस्कृति सेवा न्यास ( पंजी0) के संयुक्त तत्वाधान में नगर के आर0के0 इंटरनेशनल स्कूल में 8वें
अंतर्राष्ट्रीय साहित्यकार सम्मान समारोह का भव्य आयोजन हुआ।समारोह की अध्यक्षता देश की वरिष्ठ साहित्यकार डॉ0मिथिलेश दीक्षित ने की। मुख्य अतिथि न्यूयार्क (अमेरिका) से पधारे श्री इंद्रजीत शर्मा रहे। विशिष्ट अथिति अमेरिका से ही पधारे साहित्यकार श्री प्रेम भारद्वाज 'ज्ञानभिक्षु' , श्री मुकेश तिवारी ( म0प्र0),डॉ0अर्पण जैन 'अविचल' , हिंदी के कई नवीन छंदों के जनक पं0ज्वाला प्रसाद शांडिल्य 'दिव्य' (उत्तराखंड), डॉ0ओंकारनाथ द्विवेदी रहे।</div><div style="text-align: justify;"><br /></div><div style="text-align: justify;">उत्कृष्ट संचालन सम्भल के उभरते कवि श्री अतुल कुमार शर्मा ने किया।
शुभारम्भ मंचासीन अतिथियों संग दोनों न्यास के अध्यक्ष डॉ0सतीश चंद्र शर्मा 'सुधांशु' द्वारा माँ वाणी के समक्ष दीप प्रज्वलन से हुआ।
समारोह में डॉ0 मिथिलेश दीक्षित साहित्य संस्कृति सेवा न्यास द्वारा 'साहित्य गौरव सम्मान' व 'कला शिरोमणि सम्मान' दोनों ₹5000/- धनराशि सहित व 8 सम्मान ₹1100/- की धनराशि सहित प्रदान किये गए।म0प्र0 के साहित्यकार मुकेश तिवारी, म0प्र0 के डॉ0अर्पण जैन 'अविचल' ,पर्यावरण विद विवेक यादव को ' सेवा रत्न' सम्मान ₹ 1100/- धनराशि सहित एवम 'माधवी मनीषी 'प्रदान किया गया।
के0बी0 सेवा न्यास द्वारा ₹ 5000/- धनराशि सहित 3 सम्मान ,₹3000/- सहित एक सम्मान , ₹2100/- सहित 9 सम्मान , ₹1100/- सहित 26 सम्मान एवम ₹ 500/- सहित नवोदितों को 4 सम्मान कुल 43 सम्मान प्रदान किये गए।बिसौली
डॉ0 ओंकार नाथ द्विवेदी को ₹5000/- सहित 'साहित्य सिंधु'सम्मान , डॉ0 मिथिलेश दीक्षित को ₹ 5000/- सहित 'साहित्य वारिधि' सम्मान, ₹2100/- सहित 'हिंदी विभूषण श्री'सम्मान डॉ0रूपा पारीक (राजस्थान) डॉ0रमाकांत आपरे
( महाराष्ट्र ) एवम डॉ0 पूनम बंसल(मुरादाबाद) को
एवम ₹1100/- सहित 'हिंदी भूषण श्री 'सम्मान डॉ0राकेश कुमार आर्य (नौएडा), प्रो0अरविंद नाथ तिवारी (बिहार), डॉ0संगीता परमानंद (छत्तीसगढ़) डॉ0 जहीरुद्दीन पठान (महाराष्ट्र)
डॉ0रामकृष्ण (बिहार)
अवजीत 'अवि'( बिसौली)
विजय कुमार सक्सेना (बिसौली) को प्रदान किया गया।इसके अतिरिक्त धनराशि रहित सम्मान इंद्रजीत शर्मा (अमेरिका) प्रेम भारद्वाज (अमेरिका) डॉ0
शिवि राठौर (जर्मनी) ज्योतिष सिंह(ताइवान)डॉ0उमा शंकर पारीक(राज0
किशोर परमानंद (छ0ग0)
डॉ0रेशमा अंसारी (छ0ग0)
सुनील सौरभ (बिहार) डॉ0विनोद श्रीराम जाधव (महाराष्ट्र) डॉ0अभिनंदन अभि 'रसमय' (उत्तराखंड) पं0 ज्वालाप्रसाद शांडिल्य (उत्तराखंड) एवम उ0प्र0 के डॉ0 निहालचंद्र शिवहरे, डॉ0 रामबहादुर 'व्यथित', गाफिल स्वामी, उज्ज्वल वशिष्ठ, सुरेंद्र नाज, अतुल कुमार शर्मा, जगदीश सरन शर्मा, जेमिनी वार्ष्णेय, साक्षी शर्मा, राम कृपाल तिवारी, अमित सिंघल, अंकुर गोयल, प्रवीण अग्रवाल 'नादान', शिवकुमार चंदन,
सुग्रीव वार्ष्णेय 'अमन' सहित 112 साहित्यकारों, समाजसेवी महानुभावों को शाल, सम्मानपत्र, प्रतीक चिन्ह से सम्मानित किया गया।</div><div style="text-align: justify;"><br /></div><div style="text-align: justify;">इस अवसर पर हरस्वरूप शर्मा, श्रीपाल शर्मा, एस0एन0शुक्ल, राजेन्द्र नाथ, विनय कुमार शर्मा, कृष्णा गुप्ता, कमला देवी, शीला देवी, नेहा शर्मा, कल्पना शर्मा, शिप्रा शर्मा, भक्ति शर्मा, अक्षांश, रुद्रांश, गिरीश चन्द्र शर्मा, आर0के0 स्कूल के संस्थापक कन्हई लाल गुप्ता, निदेशक देवरत्न वार्ष्णेय, सुधांशु सक्सेना, राकेश कुमार शर्मा, सूबेदार सिंह,पत्रकार अतुल शर्मा व दानवीर सिंह सहित नगर के अनेक गणमान्य व्यक्ति व साहित्यकार उपस्थित रहे। आभार व्यक्त के0बी0हिंदी सेवा न्यास के महासचिव आशुतोष शर्मा ने व्यक्त किया।</div><div style="text-align: justify;"><br /></div><div style="text-align: justify;">(बिसौली से सांस्कृतिक संवाददाता की रिपोर्ट) </div>रवीन्द्र प्रभातhttp://www.blogger.com/profile/11471859655099784046noreply@blogger.com0