अपनों-सी लगी मॉरीशस की धरती
संस्मरण: सुनीता प्रेम यादव
ॐ दीनानाथ-जगदीश-रमेश-राम-राजेश-रमाकांत-मिथिलेश
-सचीन्द्र-शिव की शुभेन्दु से झरती विमल-पूनम-प्रभा पाने की लालसा से सिक्त मैं .....
रवीन्द्र की माला से झरते अरुणालोक के अभिलेश-आभा में खिलते राजीव की सुषमा से संपृक्त मैं.....
मॉरीशस के सागर तट पर आद्या,मीनाक्षी की प्रतिमा की कुसुमार्चना करती
सत्य के संगीत में ओंकार भरती मैं.....
आत्मानुभूति से भरे मन में उठनेवाले भाव-तरंगों को शब्दों की
मेंड़ में जकड़ने का असमर्थ प्रयास करती मैं....
कैसे शब्द... कैसी भाषा ? कल्पना से परे परिकल्पना की परिभाषा!!!!
एक आदिम प्यास लिए चल पड़ती हूँ जो कभी नहीं बुझती। निरंतर मेरे आस-पास सरसराती है, मैं जब भी उसके आर-पार गोता लगाती हूँ, उसकी खामोशी को ढूंढती हूँ तो शीतल समीर बह जाता है यह कहकर कि सुन! ले ले मजा ... दे दे अन्तर्मन को सुखद अनुभूति। मैं हूँ न J फिर से एक कंकरी स्मृति –सागर में जाकर गिर ही जाती है और लहरों का रूप लेकर झिलमिलाती यादों की लड़ी बनकर आ जाती है...
उस दिन प्रभात जी का फोन था हर बार सम्मान को ठुकराती क्यूँ हो ? इस बार भी चलोगी नहीं? रक्त संबंध होना अपनों की शर्त नहीं होती इसलिए सौ मजबूरियों स्वाहा करती मैं तैयार हो गई।समझ गई । जब भी स्वस्तिमय प्रकाश को कण-कण में ढूँढने की आज्ञा हो असीम बहने लगता है।
मन उड़ने लगा उस हवाई जहाज के संग जब पहली सितंबर को मैं पुने से दिल्ली की उड़ान भरने लगी थी। 2 सितंबर की सूबह दिल्ली से मॉरीशस की उड़ान भरते समय जब कप्तान ने 30 हजार मीटर की ऊंचाई से घोषणा की कि थोड़ी देर में हम सर शिवसागर रामगुलाम अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे पर उतरनेवाले हैं । रग-रग में जैसे नव उमंग से अतिरिक्त खून दौड़ने लगा था। धरती धरा पर दीख पड़ी थी !!!
मॉरीशस की धरती----
धरती नापने चली हो? खो जाओगी पगली! सचमुच; महकती हवा की थपकियों से आत्मा की गहराइयों को छूती कुदरत ने बता ही दिया आखिर नापना आसान नहीं है। हिन्द महासागर के मध्य 45 किलोमीटर चौड़े और 65 किलोमेटर लंबे इस छोटे-से द्वीप की भाषा को कैसे पढ़ती ? भाषा मानो कृष्ण के बासुरी का स्वर और मीरा की आँखों से टपकते आँसू ! भाषा मानो पत्थरों से निकलते आकार,भुक्त-भोगी से निकलते विचार ! क्या कोई रिश्ता है उनकी भाषा में और मेरी भाषा में?
नजर से ओझल होती अप्रवासी घाट को निहारती मैं सोये हुए इतिहास को जगाने चली। पता चला 2 नवंबर,1834 में भारतीय गिरमिटिया मजदूरों का पहला बेड़ा उतरा था जब असंख्य मजदूरों को शर्तबद्ध कुलियों के रूप में चंद फ्रांसीसी और अंग्रेज़ उपनिवेशवादी मालिकों ने यहाँ धोखा-धाड़ी से कलकत्ता से लाए थे।जानवरों की तरह काम में झोंक दिया गया था। उन दलालों की भाषा कैसी होगी जिन्होने सोने का प्रलोभन इन कुलीन किसानों को दिया होगा ? द्वीप पर उतार कर कोठरी में डाल दिया होगा ? दंड विधान की भाषा कैसी होगी? गुलामी की कड़ियों में पोर-पोर जकड़े होने के बावजूद इन्होने अपनी आत्मा को मरने नहीं दिया ! अपनी अस्मिता की तलाश में अपनी भाषा-संस्कृति-परंपरा को जिस तरह जिंदा रखा, सामूहिक मंचों में बच्चों के भविष्य की चिंता व्यक्त करते हुए हिन्दी, तमिल, तेलुगू, मराठी और उर्दू भाषा की पढ़ाई पाठशाला के माध्यम से जारी रखा यह सम्पूर्ण इतिहास में किसी भी जाति के लिए गर्व की बात है ।
जिनके नस-नस में भोजपुरी बहती थी, हर बंदिश के बाद हिन्दी की अलख जगाए रखा। उनके प्रचुर साहस,प्रखर इच्छाशक्ति,धैर्य व अथक परिश्रम ने चट्टानों-झड़ियों, वाले द्वीप को सबसे सुंदर द्वीप आज का ‘मॉरीशस’ बना दिया। कल कहीं न कहीं उनका दर्द मेरा दर्द था ... आज उनकी भाषा मेरी भाषा है।अफसोस ...उनकी पीड़ा आज भी है कि फ्रेंच और अङ्ग्रेज़ी लिखने वालों को जो मान्यता फ़्रांस और इंग्लैंड मे मिलती रही हिन्दी लेखकों को भारत में नहीं। लेकिन ‘परिकल्पना’ का योगदान जरूर रहेगा इसमें कोई संदेह नहीं।
आज का मॉरीशस –
नयन तृप्त! कहीं हरियाली से लिपटे सुंदर पर्वत, चीड़ के घने जंगल, जल प्रपात तो कहीं नीले-हरे,कई रंग झलकता समुद्र! कहीं झरनों,झीलों की सौम्यता और उनकी पारदर्शिता मानो नीले पानी की चादर हो तो कहीं पहाड़ों से घिरा, धानी,अबीर,अंगूरी द्वीप को किसी चक्र की तरह घिरी लहरें और उछलती प्रवाल रेखाएँ!!!y! कहीं सफ़ेद नर्म रेत बिछ गई है तो कहीं होली खेलती लाल, पीली, हरी, नीली, काली, भूरी, सफ़ेद मिट्टी फैली है । कहीं मीलों फैले गन्ने के खेत हैं तो आम की खेती उसकी सहचरी है। मन में कहीं धुंध से ढके पहाड़ों को ज्वालामुखी के शून्य वृत्ताकार क्रेटर पर खड़े होकर छूने की इच्छा तो कहीं फेन उगलता उत्तरी तट के समुद्र को मनाने की पूरी कोशिश करती मैं ; दूर तक पसरी हुई पक्की सड़कें, सड़कों के किनारे फ्लेम व बोगोनवेलिया के पौधे, तट पर नारियल,सुपारी,इमली के पेड़ व कलात्मक कॉटेज को देखते ही पसर गई ...हा इतना सौंदर्य !!!
हे असीम ! धन्य तेरी सृष्टि! सचमुच रास आया जैसे था ही मेरा हमसाया !अभी भी मायावी मल्हार में पछाड़ें खा रहा है तीन चौथाई शरीर में समुद्र! लगता है अभी बादल हूँ,अभी बर्फ हूँ, अभी बारिश हूँ, अभी पानी हूँ, अभी लहर हूँ, अभी समुद्र हूँ.....फिर से मैं भाषा और प्रकृति मेरी परिभाषा ....
इंद्रधनुषी संस्कृति का देश: लोग और पर्यटन
क्रियोल, हिन्दू, मुसलमान, और गोरे समूह से भरा कुछ चीनी,कुछ ईसाई से धरा धरती ! फ्रांसीसी, अङ्ग्रेज़ी,अफ्रीकी व भारतीय संस्कृति से मिली-जुली झलक लिए धरती की राजभाषा क्रियोल है। फ्रेंच और अङ्ग्रेज़ी सबसे ज्यादा बोली जानेवाली भाषा है। तकरीबन 50 प्रतिशत लोग भारतीय मूल के होने के कारण हिन्दी और भोजपुरी भी बोली जाती है। सड़कों पर हिंदी में लिखे बोर्ड मिल जाते हैं। बॉलीवुड की फिल्में यहाँ रिलीज भी होती हैं। हमारा होटल ले ग्रांड ब्लू के सभी सदस्य तथा हमारी टुरिस्ट गाइड पूनम और रक्षा भी अच्छी हिंदी बोलतीं थीं। यहाँ की मुद्रा का नाम रुपया है ।पूनम रोज कहती थी फलां-फलां जगह जाओगे तो तुमको इतना-इतना रुपया खर्च करना पड़ेगा पैसे की भाषा....कभी आशा, कभी निराशा .....
हम सब निकले उत्तरी हिस्से का सैर करने ...देखने चले 100 मीटर की ऊंचाई पर स्थित मूरिश शैली में बना आयताकार सिटाडेल किला जो कि पेटिट मोंटिंग पहाड़ी पर शोभायमान है। कर्नल कनिंघम द्वारा ब्रिटिश सेना को दुश्मनों से बचाने के लिए यह बनाया गया था। हालांकि कभी आक्रमण नहीं हुआ ये और बात है। यहाँ किसी कोरियन सिरियल की शूटिंग चल रही थी। हम सभी उसका लुत्फ उठा रहे थे।अचानक मैं न जाने क्यूँ पिघल रही थी,तन्हाइयों में तराशी उदासी की आवाज मेरी लालकिले से बड़ी लग रही थी ....
बस चल पड़ी पोर्ट लुईस की तरफ। पोर्ट लुई एक व्यापारिक केंद्र है। पहाड़ों की श्रुंखला से घिरा अपनी आधुनिकता व परंपरा को समेटा हुआ यह यादगार स्थल अपने कौड़ान वाटरफ्रंट जहां बड़े ब्राण्डों की दुकानें हैं, केसीनों,बार एवं रेस्तराँ हैं,चाइना टाऊन है। अपने स्थानीय शिल्प, औपनिवेशिक वास्तुकला,डोमेने लेस पाइल्स की चीनी मील, मसाले, खाना-खजाना,लाइव मनोरंजन के साथ यह स्थल अनेक ख़रीदारों को ललचाता है। उदर पूर्ति के बाद आसमानी छतरियों के तले तस्वीर खींचने की जिज्ञासा को रोक न पाए। कुछ पल किनारे सुस्ता लिए...सिनेमा हाल की दीवार पर अमिताभ जी की तस्वीर देखकर खुश हुए, शिव पूजन जी के भजन का सुख ग्रहण करते हुए चल पड़े बस की ओर ...गन्ने के रस वाले को देख कर पूछा था ...उसने कहा 200 रुपया एक ग्लास भर गन्ना...फिर क्या कहना , न न न न ना रे नारे नारे .........
पूनम और रक्षा ले गईं शहर के बीचों-बीच स्थित इस द्विप का आकर्षण केंद्र बगातीले मॉल में ... बड़ा-सा पार्किंग, रेस्तरां,दुकानें,थिएटर, सुपरमार्केट से घिरा यह जगह सुंदर तो है पर मन को नहीं भाया। यूं ही घूमते-घामते, साहसी ख़रीदारों की भांति दाम पूछते-पूछते लौट पड़े वापस अपने होटल में। ठंडी हवा, बादलों से बरखा की फुहार, थकान को सुस्ताती बिस्तर....आहा ! सुख निद्रा में दो पल के लिए खोने ही वाले थे कि एक-एक करके सब हाल-चाल पूछने चले आए। मैं जागूँ तू सोजा रे कुसुम....मैं जागूँ तू सोजा.....:-) अपनत्व की भाषा .तृप्ति की भाषा !
अगले दिन ख़रीदारी का दिन था । खूब लंबा निकल गया। बेमन से; ख़रीदारी क्या करना सोच कर निकले, लेकिन जहाज बनाने की प्रक्रिया देख मन खुश हो गया । स्थानीय कारीगरों के हाथों से बने बैग, इत्र, कृत्रिम फूल, अद्वितीय डिजाईं वाले हीरे व गहनें,हस्त शिल्प आदि देखते हुए समय कैसे गुजरा पता न चला।
दक्षिणी हिस्से का सैर करते हम पहुंचे थे फ्लोरिअल पर जहाँ स्थानीय हस्तकला एवं शिल्प तथा जहाज बनाने की प्रक्रिया से अवगत हुए । इसके बाद पहूँचे थे क्यूरे पाइप ट्रौ औक्स सेफ़र्श डोरमेंट ज्वालामुखी या जो मूरर्स ज्वालामुखी नाम से भी जाना जाता है; यह अनेक स्वदेशी पौधों की प्रजातियों से घिरा है । मॉरीशस का जन्म दरअसल अन्तः समुद्री ज्वालामुखीय विस्फोट से हुआ था यह आज भी सुप्त है पर कहा जाता है आनेवाले समय में जागृत होने की संभावना है। यह निष्क्रिय ज्वालामुखी समुद्र के 605 मीटर ऊपर है। लग-भग 350 मीटर की व्यास एवं 100 मीटर की गहराई लिए हरी पाइन के पेड़ों से घिरे क्रेटर के केंद्र में एक झील है जिसकी सुंदरता को नग्न चक्षु ने बरसात के कारण जी भर देख न पाया। लेकिन राजीव जी की छतरी पलट- पलट कर कह रही थी जरा रेंपार्ट, ट्राइस मैमेल्स,और मोका पर्वत श्रुंखला भी देख लीजिए। हमने जी भर देखा...मंद –मंद मुसकुराते हुए चल पड़े 1800 फुट ऊंचाई पर स्थित ग्रांड बेसीन ‘गंगा तलाओ’ की ओर। शिव जी की 108 फुट ऊंची मूर्ति के दर्शन करते हुए गंगा तालाब के किनारे स्थापित ‘मॉरीशस ईश्वरनाथ’ नाम से तेरहवाँ ज्योतिर्लिंग का दर्शन लाभ कर, आरती की, पूजा अर्चना के बाद जल चढ़ाने गई ।
असीम ने मानो पी ही लिया। बरसाती फुहार, आरती व जुहार, अगरबत्ती की खुशबू, माँ दुर्गा के आशीर्वाद, हनुमान जी की कृपा, प्राणोत्सव के गीत गाती मैं ....जीवन-संगीत की भाषा लिए मन के सितार को छेड़ रही थी.... उसके बाद शमारेल के जंगल के बीचों-बीच एक वाटर फॉल देखने के बाद रु-ब-रु हुए सात रंग की मिट्टी से । हैरानी हुई इस ज्वालामुखी की जमी राख़ को देख कर। लाल, पीली, हरी, नीली, भूरी, काली, सफ़ेद रंग की मिट्टी !! खनिज की मात्रा ज्यादा होने के कारण यह जमीन रंग-बिरंगी है। मन में उठ रही सतरंगी ज्वाला लिए लौट पड़े होटल में... मन किया आगोश में भर लूँ तुम्हें, दो पल सुस्ता लूँ तुम्हारी बाहों में असीम!!! चैन-बेचैन मन लिए निकल पड़ी सागर के तट पर कुसुम के साथ.....अंतर्विरोधी मन के सपने में नीली-पीली चमकीली सीपियाँ....पढ़ती रही उठती –गिरती तरंगों की भाषा...
मन के कीड़े को मिली शांति अगले दिन अगला दिन वाटर स्पोर्ट्स का दिन रहा । पूर्वी तट पर बना कोरल रीफ़ के कुछ दूरी पर स्थित ट्रौ डी अउ डौस बे पहुंचे। टिकट खरीदकर एक बोट के जरिए इल ऑफ सर्फ बीच तक पहुँच गए। इश्क-इश्क-सा, बेफिक्र-सी मैं... निकली कुसुम के संग मन भीगा-तन भीगा! भीगी-सी मैं आनंद से भरपूर हम ...लौट कर खाना खाए फिर निकले बेलामारे बीच पर जल प्रपात देखने । मीठे पानी का प्रपात खारे जल के बीच ! लौट कर ट्यूब राईड किए। ये क्या सचिन जी की तबीयत खराब हो गई! उनके हिस्से का पैरा-सीलिंग, और सी- वॉकिंग का अवसर यूँ मिलेगा सोचा न था। सचिन जी ! धन्यवाद! समुद्र की सतह नापती , मछलियों को खाना खिलाती आसमान की सैर करती मैं उस असीम को याद कर रही थी ...आज ही के दिन तो हम कभी मिले थे...मन तार-तार झंकृत हो रहा था। मित्रों के संग समुद्र के बीच, अफ्रीकी धुन पर थिरकते हम, नाच-गाना-बजाना मजेदार अनुभव! तट पर आने के बाद सहेलियों संग समुद्र और हम....अनुभूति की भाषा, शब्द मौन....
शामें मलंग –सी .....रातें सुरंग–सी
हर शाम रंगीन, गजल और शेर-ओ–शायरी के नाम, नज्म, छंद, दोहे, मुक्तक, हाइकु, अकविता के नाम,कृष्ण के नाम ,उसकी सृष्टि के नाम, माँ के नाम जीवन के फलसफे के नाम .... प्यारी –सी कुसुम,नन्हा संगीत के नाम,बीच पर मिले दोस्तों के नाम,होटल में मिले अपनों के नाम.... लंबी प्रतीक्षा के बाद नयन दर्शनाभिलाषी पूजनीय गुरुजनों के शब्द – सामर्थ्य के नाम... परिकल्पना के नाम ....
उत्तरी मॉरीशस में स्थित ग्रांड बे कई बड़े पब और डिस्को के लिए मशहूर है। खुले रेस्तराँ में संगीत की धुन पर थिरकते लोगों को देखना तथा अपनी पसंद से गाने गवाना , अपने होटल में सभी मित्रों के साथ हिन्दी गानों के धुन पर थिरकना किसे अच्छा नहीं लगता !
सब मस्ती कर आई मैं /सुबह- दोपहर- शाम- रात तेरे नाम कर आई मैंJ/ रूह की थाली में दर्द परोस आई मैं/ कब आएगी जागन की बेला, इंतजार में थक गई मैं/ जीवन मृगतृष्णा, जल आभास , प्यास मिटाने व्याकुल-सी मैं...लौट आती लहरों के पास .. एक प्यासी की भाषा ...प्रतीक्षा उसकी आशा ...
दो महत्त्वपूर्ण सत्र (6 एवं 7 सितंबर) के यादगार पल
सहेली कुसुम वर्मा के रेखा चित्र, डॉ. अर्चना श्रीवास्तव के विचारों पर आधारित कला प्रस्तुति, श्रीमती आभा प्रकाश की एम्ब्रोयडरी प्रदर्शनी से सुसज्जित ले ग्रैंड होटल का सभागार, मंच पर आसीन मॉरीशस के डॉ. राम देव धुरंधर तथा राज हीरामन की अध्यक्षता व विषय प्रवर्तन के साथ ‘ हिन्दी के वैश्विक परिदृश्य के निर्माण में साहित्यकारों की भूमिका ‘, ‘हिन्दी के वैश्विक प्रसार में महिलाओं की भूमिका’ तथा ‘मॉरीशस में अवधि और भोजपुरी बोलियों का प्रभाव’ विषय पर रवीन्द्र प्रभात जी के संचालन व उपस्थिति में भारत से डॉ. राम बहादुर मिश्रा, श्री जगदीश पीयूष, डॉ. रमाकांत कुश्वाहा, डॉ. मिथिलेश दीक्षित,श्रीमती राजेश कुमारी,डॉ. सुषमा सिंह, एवं मॉरीशस से हिन्दी प्रचारिणी सभा के प्रधान श्री यंतु देव बधू श्री धनराज शंभु, श्री टहल राम दीन, श्रीमती कल्पना लाल जी ने अपने विचार प्रस्तुत किए।
गीत-गजल गोष्ठी में भारत से श्री रवीन्द्र प्रभात, सागर त्रिपाठी, डॉ.पूनम तिवारी, डॉ.अर्चना श्रीवास्तव, डॉ. रमाकांत कुशवाहा, श्री जगदीश पीयूष,श्रीमती राजेश कुमारी राज ,सत्या सिंह ,श्री दीनानाथ द्विवेदी, डॉ.मीनाक्षी सक्सेना,कुसुम वर्मा, सुनीता यादव (मैं), डॉ. सुषमा सिंह, डॉ. ओंकार नाथ द्विवेदी, डॉ. प्रभा गुप्ता, श्री आद्या प्रसाद जी, श्री राजीव प्रकाश, सचीन्द्र जी, अभिलेश जी तथा मेरा प्यारा सा मित्र शुभेन्दु आदि ने अपनी रचनाएँ प्रस्तुत कीं।
भाषा का आरोह ..सम्मान-समारोह
भारतीय उच्चायोग मॉरीशस,हिंदी प्रचारिणी सभा मॉरीशस तथा परिकल्पना भारत के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी उत्सव में मॉरीशस के मुख्य अतिथि सांसद व पी.पी.एस श्री विकास ओरी, विशिष्ट अतिथि माननीय उच्चायुक्त भारत सरकार श्री अभय ठाकुर, विश्व हिंदी सचिवालय मॉरीशस के मुख्य सचिव माननीय श्री विनोद कुमार मिश्र, हिंदी प्रचारिणी सभा के अध्यक्ष श्री यंतु देव बुधु, परिकल्पना के संपादक श्री रवीन्द्र प्रभात ।
साथ ही मॉरीशस एवं भारत के अनेक गणमान्य साहित्यकारों, संस्कृतिकर्मियों, रंगकर्मियों, और सौ-डेढ़ सौ हिंदी प्रेमियों की उपस्थिति में श्री धनराज शंभु जी के साथ कार्यक्रम को संचालन करती मैं,हिंदी उत्सव सम्मान ग्रहण करती, काव्य पाठ करती, अंतर्राष्ट्रीय मंच पर नाटक में सूत्रधार का कार्य वहन करती मैं, सुखद एहसास के तले दबी- दबी- सी मैं ..... प्यारी सहेली की सरस्वती वंदना, शिव पूजन जी के गणपती वंदन से गुंजित पावन वेला में, कई पुस्तकों के लोकार्पण की गवाह बनती, सभी मूर्धन्य साहित्यकारों के गीत-गजल, पहाड़ी काव्य प्रस्तुति के बीचों-बीच, डॉ. प्रतिमा वर्मा व राजीव प्रकाश जी के नाटकों के बीच डुबकी लगाती मैं कैसे भूलूँ उन पलों को ?
8 सितंबर अंतिम दिन
बारिश का मौसम, ठंडी हवाएँ , मेरी व्याप्त आँखों में, मेरी व्याप्त साँसों में उमड़ आई सागर की लहरें ... भागी-भागी –सी मैं ब्लू सफारी डाइवर के पास और फिर सब मरीन में रुका हुआ वक़्त, पूरे आसमान का रंग सिमट आया पारदर्शी जल के अंतस में ...मछलियों, नील नाही के तल की सुंदरता को देख मन प्लावन ...आहा ॥हे ईश! जल,थल,आसमान अंतस को भिगाता तू और गुलाबी नसों से उमड़ती छाती की धड़कन से महकती मैं...
सामान धरे निकल पड़ी केजीला की ओर ...मिस्टर जेफ़ के संग सफर यादगार सफर ... प्रकृति को आत्मसात करती हुई , मुड़िया पहाड़ के पास सिर नवाटी हुई, स्थानीय मार्केट की सैर करती, भाजी- दुकानों में लीची, पपीता देखती, दम बिरियानी खाती हुई जा पहुंची मेरे प्यारे शेर व शेरनियों के पास....खुला आकाश, खुली धरती, मुक्त विचरण करते मूक जानवर, रंग-बिरंगे पंछी, पंख फैलाता मोर, धीमी चाल चलते कछुए, नन्हें ऑस्ट्रिच, हिरणों की ज़ेब्रा की झुंड, अनोखी प्रकृति, अनोखी भाषा फिर से मिलने की प्रत्याशा ...
फ्लाइट के रद्द होने की खुशी कहूँ या गम मिश्रित भावों से रात गुजरी ...अगले दिन सब से विदा लेने का मन नहीं किया...आखिर बिछड़े ही कब ?
धन्यवाद मॉरीशस !!! धन्य परिकल्पना !!
हृदय के भाव शब्द पाखी से उड़ गए, शब्दों में समाए समय बिखर गए ‘परिकल्पना’ के ताड़ पत्री पर ...भाषा इस कलरव को क्या कहेगी नहीं पता पर मेरे लिए यह शब्द यज्ञ है !!!!
-औरंगाबाद, महाराष्ट्र