1. इससे तो बेहतर है
जीभ साबुत है
मगर सच बोलने से
क़तरा रही है
मगर न अत्याचारी देखती हैं
न अत्याचार
कान मौजूद हैं
मगर दुखियारे की
कराह नहीं सुनते
हे देव , इससे तो बेहतर है कि
गूँगी हो जाए ऐसी ज़बान
अंधी हो जाएँ ऐसी आँखें
बहरे हो जाएँ ऐसे कान
2. मुझे बुरे लगते हैं वे लोग
मुझे बुरे लगते हैं वे लोग
जो रोशनी के ख़िलाफ़
षड्यंत्र रचते हैं
अँधेरा जिनका
लंगोटिया यार होता है
हवाओं में
दिशाओं में
जो नफ़रत के बीज
बो देते हैं
आदमी और आदमी के बीच
जो दूरियों के ' प्रकाश-वर्ष '
फैला देते हैं
मुझे बुरे लगते हैं वे लोग
जिनकी कथनी में राम
पर करनी में रावण होता है
जिनकी ज़बान पर युधिष्ठिर
पर मन में दुर्योधन होता है
3. मैदान छोड़ जाने वालों के नाम
माना कि
आज समय दोमुँहा साँप है
यह दुनिया बारूद के ढेर पर खड़ी है
और संगीन की नोक पर
फूल उगाने की बेहूदा कोशिश जारी है ,
पर सुनो बीच रास्ते में
हिम्मत हार जाने वालो ,
मैं रोशनी की पैरवी करना
नहीं छोड़ूँगा क्योंकि मुझे
घने अंधकार में जलती
अकेली मोमबत्ती पर भरोसा है
जानता हूँ
ये ढीठ दिन और
कालिख़ लगी रातें
सारी उम्मीदें
ब्लॉटिंग-पेपर-सा
सोख लेती हैं
पर समुद्र के बीचोबीच
छोटी किश्ती पर
बड़ी मछली से संघर्ष करते
एक अकेले बूढ़े की जीत की कहानी
क्या तुम नहीं जानते ?
ज़ख़्मी चाँद
मानसरोवर के सहमे हंस और
मोनालिज़ा की मासूम आँखों
में उगी दहशत
मुझे नामर्द-बुज़दिल बन
जीने नहीं देगी
माना कि
आज समय दोमुँहा साँप है
यह दुनिया बारूद के ढेर पर खड़ी है
और संगीन की नोक पर
फूल उगाने की बेहूदा कोशिश जारी है ,
पर सुनो बीच रास्ते में
हिम्मत हार जाने वालो ,
मैं रोशनी के गीत गाना
बंद नहीं करूँगा
क्योंकि मुझे
घुप्प अंधकार में टिमटिमाते
अकेले दीपक पर भरोसा है
-A-5001, गौड़ ग्रीन सिटी, वैभव खंड , इंदिरा पुरम् , ग़ाज़ियाबाद -201014 ( उ. प्र. )
मो : 8512070086 , ई-मेल : sushant1968@gmail.com
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