- डॉ रवीन्द्र प्रभात


नौकरी छोड़ने के बाद मैं गाँव आ गया। वहां के एक स्थानीय अखबार में कॉलम लिखने लगा। मेरा कॉलम काफी चर्चित हुआ और मेरी इच्छा हुई बड़ा पत्रकार बनने की। मैं सतना से भोपाल आ गया। भोपाल में माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय में मास्टर ऑफ जर्नलिज्म एण्ड मास कम्युनिकेशन में दाखिला लिया। मैने अपने मन में एक बात ठान ली थी कि मुझे अब इस फील्ड में सक्सेस होकर दिखाना है ताकि मेरे माई बाबूजी का नाम गर्व से ऊंचा हो सके। विश्वविद्यालय में मेरा पहला दिन था और मैं उस दिन काफी ज्यादा उत्साहित भी लग रहा था। अपने उत्साहित मन को बरकरार रखते हुए जब मैं  विश्वविद्यालय पहुंचा तो देखा कि क्लास में काफी स्टूडेंट है जिन्होंने इस कोर्स को करने के लिए एडमिशन करवाया है जिसमें कुछ लड़के और लड़कियां थी, मगर ज्यादातर स्टूडेंट्स उसमें अमीर थे।

क्लास शुरू होने में थोड़ा ही समय रह गया था कि अचानक मेरी नज़र एक लड़की पर पड़ी, उसका नाम केतकी था जिसे देखते ही मेरे दिल में एक हलचल सी होने लगी। वो इतनी सुन्दर थी कि मेरी नज़र उसपर से हट ही नहीं रही थी। उसे देखते देखते अचानक क्लास शुरू होने की घंटी बजी और सभी स्टूडेंट्स अपनी सीट पर बैठ गए तो मैने देखा कि केतकी उसकी बगल वाली बेंच पर बैठी है। यह देखकर मैं खुश हुआ, मैने सोचा आज क्लास ओवर होने के बाद मैं उससे बात करूंगा।

मेरे क्लास का पहला दिन यूंही केतकी को देखते देखते बीत गया। मैं जब भी केतकी को पलक झपक कर दुबारा देखता वो मुझे और भी खूबसूरत दिखने लगती। थोड़ी देर बाद क्लास ओवर हो गई और मैं केतकी से बात करने को जा ही रहा था, कि मैने देखा कि बाहर उसको कोई अपनी कार लेकर लेने आ रखा है और वो उसके लिए गाड़ी में बैठने के लिए दरवाजा खोल रहा है। वह शायद उसका ड्राइवर था, मुझे अहसास हो गया था कि केतकी काफी अमीर घराने की लड़की है और वह मुझ जैसे मध्यम वर्गीय लड़के कभी नहीं प्यार करेगी, यह सोचते हुए मैं वहां से चला गया।

मैं जब घर पहुंचा तो मुझे अहसास हुआ कि आज मैने अपना पहला दिन एक लड़की के पीछे खराब  कर दिया जो अब शायद ही मेरी हो पाएगी। अगले दिन जब मैं विश्वविद्यालय पहुंचा तो ठान लिया कि आज उसकी तरफ बिल्कुल नहीं देखूंगा पर क्या करे प्यार है हीं ऐसी चीज अगर एक बार हो जाए तो जीते जी कभी पीछा नहीं छोड़ता, यही हुआ मेरे साथ। मैं जैसे ही क्लास में पहुंचा मेरी नज़र सीधा केतकी पर पहुंची और मेरी नज़र फिर वहां से बिल्कुल नहीं हटी। थोड़ी देर में क्लास शुरू हो गई थी कि मैंने अपने जज्बातों पर काबू करके अपना ध्यान पढ़ाई में लगाना शुरू किया पर कभी कभी मैं केतकी की तरफ देख लिया करता था।

यह सिलसिला लगभग यूंही तीन महीनों तक चलता रहा। मैं क्लास में जाता अपनी पढ़ाई पर तो ध्यान लगाता था पर क्लास के बीच कभी कभी उसे देखता रहता। और इन तीन महीनों के बीच हम दोनों में कभी बात भी नहीं हुई थी। मैं जब भी विश्वविद्यालय से घर पहुंचता तो रात को अक्सर अपनी पर्सनल डायरी में उसके बारे में लिखा करता और अपने दिल का हाल उस डायरी में बयां करता था।

छ: महीने बाद फर्स्ट सेमिस्टर की परीक्षा हुई, जिसमें मैं सबसे अच्छा परिणाम लाया और मैं अपने परिणाम के कारण क्लास में काफी चर्चित भी हो गया। मेरी अच्छी परफॉर्मेंस देख केतकी का ध्यान उस दिन मेरी तरफ पहली बार गया, और उसने हाथ मिलाते हुए मुझे मेरी सफलता की बधाई दी, यह सुनते ही मेरे अन्दर खुशी की लहर दौड़ उठी कि जिस लड़की को मैं इतने समय से चाहता था आज उसने मुझसे बात की। क्लास ओवर होते ही केतकी मुझसे बात करने लगी और मैं उससे बातें करने लगा।

हम दोनों में रोज यूंही बातें होती रहती थी और धीरे धीरे हम एक अच्छे दोस्त बन गए थे। जब भी क्लास में परीक्षाएं होने वाली होती तो मैं उसे अच्छी तरह रिवीजन करा दिया करता था और केतकी को टीचर के बजाय मेरा बताया जाना ज्यादा जल्दी समझ में आता था जिसकी वजह से वो भी क्लास में अच्छा परफॉर्म करने लग गई थी। मैं अक्सर केतकी को हंसाने की कोशिश किया करता था और केतकी अक्सर मेरी बातों पर हंसा भी करती थी, हम दोनों कभी -कभी एक साथ घूमने भी चले जाया करते थे। हमलोग काफी अच्छे दोस्त बन गए थे। एक दूसरे के इतना करीब आ गए थे कि हम अपनी पर्सनल बातें भी एक दूसरे से शेयर करने लग गए थे।

हमलोग फाइनल ईयर में पहुंच चुके थे। मुझे लगने लगा था, कि अब शायद केतकी भी उससे प्यार करने लगी है इसलिए मुझे अपने दिल की बात अब केतकी को बता देनी चाहिए। अगले दिन मैने केतकी को कॉफी के बहाने मिलने को बुलाया और थोड़ी देर बाद कॉफी शॉप पर उसको प्रपोज कर दिया। उस समय केतकी यह सुनकर अत्यधिक हैरान हो गई। अपनी दास्तां सुनाते सुनाते मुझे खांसी आ गई। लतिका पूरी तरह से स्तब्ध हो गई। उसके मुंह से एक शब्द भी नहीं फूटे। शायद कुछ मजबूरियां रही होंगी केतकी की।

प्रेम संबंधों में मैं भाग्यशाली नहीं रहा कभी भी। हमारे जीवन में कुछ ऐसी कहानियां होती है जो कभी पूरी नहीं होती। लेकिन जीवन का ऐसा भाग जो हमारे लिए बहुत ही भावुक होता है जिससे हमारे भाव सीधे जुड़े होते हैं। इस क्षण को भोगना मेरे लिए काफी कष्टप्रद था। मैं समझ नहीं पा रहा था, कि केतकी को प्रपोज करने में मैने जल्दीबाजी कर दी या फिर केतकी को समझने में देर हो गई...। केतकी की मजबूरी तो मैं आजतक नहीं समझ पाया।

उसके बाद वह मुझसे कटी -कटी सी रहने लगी। मैने सोचा, शायद मैने प्रपोज्ड करके कोई गलती कर दी है। मैं अपने आप को गलत महसूस करने लगा। मैं  नहीं समझ पा रहा था,कि जिंदगी में इतने रंग, इतने अंदाज, इतने एहसास और वह भी इतने जुदा-जुदा किसी का हो भी सकता है। लेकिन मैने प्रपोज्ड करके कुछ गलत भी तो नहीं किया था। उसकी बातें मुझे बरबस खींचती थी अपनी तरफ। उसके विचार मुझे चर्च के घण्टे की तर्ज पर गढ़े गए संगीत सा महसूस होता था, कभी मंदिरों की आरती तो कभी मस्जिदों के अजान सा। उसका मेरी ओर न देखना और बगल से गुजर जाना काफी खिलने लगा। मैने अपने प्यार का इजहार ही तो किया था,  कोई गुनाह तो नहीं। बहुत सारे प्रश्न के तीर मुझे जख्मी किए जा रहा था।

धीरे -धीरे मुझे ऐसा महसूस होने लगा कि मैं बीमार होता जा रहा हूं। मैं कई दिनों से विश्वविद्यालय के परिसर में नहीं झांका। घर पर आराम करता रहा। मुझे ऐसा लग रहा था, कि शायद मैं फाइनल एक्जाम भी नहीं दे पाऊंगा। इसी उधेड़ बुन में पड़ा था, कि मोबाईल का रिंगटोन बजा, रिसीव करने पर पता चला कि वो कोई और नहीं बल्कि केतकी है। मैने आवाज से पहले ही पहचान लिया था, लेकिन मेरे पूछने पर कि "कौन बोल रहा है?" उधर से जवाब आया, "पहचानिए, कौन?" मैने कहा -" केतकी। " वो आश्चर्यचकित थी कि मैने उसे पहचान कैसे लिया। मैने उससे कहा कि मेरे लाइफ में कोई ऐसा लड़की नहीं जो मुझसे पूछे "कौन?"हताशा में उससे बात करते हुए मेरी जान में जान आ गई। फिर उसने कहा मैं सौरी कहने के लिए तुम्हे फोन की हूं।

"किस बात की सौरी?"

"उस दिन बिना कुछ जवाब दिए मैं चली आई थी और उसके बाद फिर तुमसे मिली नहीं, इसलिए।" केतकी ने कहा।

"सुदेश, मैं जन्म से क्षत्रिय हूं और तुम वैश्य। भले ही भारतीय समाज में धर्म, भगवान और कानून दो दिलों को अपना जीवन साथी आज चुनने का अधिकार देता हो, परन्तु आज भी राधा -कृष्ण को पूजने वाले इस रूढ़िवादी समाज में यह एक गुनाह है। एक ऐसा गुनाह जिसे रोकने के लिए हमारा समाज धर्म, कानून और ईमान सबको ताक पर रख देता है। परंपरा, शान और इज्जत के नाम पर खूनी खेल से मैं बहुत डरती हूं। मेरे पापा पुराने ख्यालातों के हैं, मैं उनसे विद्रोह नहीं कर सकती। इसलिए तुम भूल जाओ, कि तुमने मुझे प्रपोज किया और हम दोनों दोस्त थे, दोस्त हैं और दोस्त रहेंगे आखिरी दम तक।"

"चुंकि मैं इन परंपराओं की परवाह नहीं करता जो मानव को मानव से अलग करता हो, अत: मैं अपने फैसले पर अडिग हूं केतकी।"

"देखो बचपना न करो सुदेश, एक औरत किसी की बीबी के साथ- साथ किसी की बेटी और बहन भी होती है। वैसे भी दुनिया के सारे रिश्ते एक औरत को ही तो निभाने होते हैं। मैं नहीं चाहती कि एक तरफ रिश्ते बनाने के चक्कर में दूसरे तरफ के रिश्ते को आहुति दे दूं। यह मुझसे नहीं होगा। बेहतर यही होगा, कि तुम मुझे भूल जाओ। एक्जाम के बाद ऐसे ही हम अलग हो जाएंगे। मुझे फिर कभी याद न करना। " इतना कहकर उसने फोन काट दिया।

मुझे आभास हो रहा था, कि केतकी कुछ छुपा रही है। सिर्फ परम्परा और रिवाज की दुहाई देकर कोई किसी ऐसे दिल तोड़ता है क्या, जैसे केतकी ने मेरा तोड़ा।

ऐसा लग रहा था, जैसे मेरे पैरों तले से जमीं खींच ली गई हो। मेरे रोने और चिल्लाने से मेरे कमरे कि दीवारें गूंज उठी। मगर अफसोस इस बात का था कि मेरी करुण आवाज सुनकर वो धराशाई नहीं हुई। सच्चा प्यार तब होता है, जब दिल टूटता है और यही दिल मेरा भी उसी दिन टूटा जिस दिन मुझे सच्चा प्यार हुआ। मैं यह नहीं समझ पा रहा था, कि आखिर केतकी ने मुझे प्यार न करने जो कारण बताया है, वह कारण आज के जमाने में भला कोई बताता है। मैं हमेशा परेशान रहने लगा। केतकी मेरी पहली दोस्त और पहला प्यार थी। एक ऐसी अनुभूति थी जो कभी न मिटने वाली छाप छोड़ कर चली गई।

मेरे एक्जाम हुए और मैं दिल्ली शिफ्ट कर गया। दिल्ली में मैं टाइम्स ऑफ इंडिया ग्रुप में बतौर उप संपादक ज्वाइन किया। महीने - दो -महीने बितते गए मगर मेरी जेहन से केतकी की यादें नहीं गई। स्थिति धीरे -धीरे सामान्य होने लगी और मैं अपने काम में मन लगाने की कोशिश करने लगा। समय का पहिया चलता रहा और नए जॉब में मेरी सा संलग्नता बढ़ती गई।

कहा गया है, कि जिंदगी में सब कुछ वैसा नहीं होता, जैसा हम चाहते हैं, प्यार में तो बिल्कुल भी नहीं लेकिन कभी कभी ऐसा हो जाता है, जो हम कभी नहीं चाहते। मेरे जीवन में प्रेम के उद्भव से होने वाली सारी घटनाओं तथा उससे उत्पन्न होने वाले भावों को व्यक्त कर पाना उस वक्त मेरे लिए अत्यंत ही कठिन था। महीने साल गुजरते गए, मगर मेरी जेहन से केतकी की याद नहीं गई। घर वाले बार-बार मुझपर शादी के लिए दबाव डालते मगर यह कबीरा मन जिसमें एक बार रम गया तो रम गया।

एक दिन की बात है, रिपोर्टिंग के क्रम में मुझे भोपाल जाना हुआ, जब मुझे खबर मिली कि भोपाल में एकतरफे प्यार में पागल एक अधेड़ व्यक्ति ने अपनी बेटी की उम्र की एक युवती पर एसिड से हमला करने के बाद खुद को चाकू मारकर खुदकुशी कर ली। हमले में घायल युवती फिलहाल अस्पताल में भर्ती है। मैं जब भोपाल पहुंचा तो देखा कि उस युवती का खूबसूरत चेहरा बदनुमा हो चुका था। उसकी हसरतें, उसके ख़्वाब और उसके जज्बात कुचले जा चुके थे। सरेराह और सरेआम उसका तमाशा बन चुका था। उसकी इज्जत, मान और मर्यादा तार -तार हो चुकी थी। वहीं अस्पताल के सूत्रों से जानकारी मिली कि युवती के पिता का अठारह साल पहले देहांत हो चुका था। यह युवती एक जिम में फिटनेस ट्रेनर की नौकरी कर अपने घर का खर्चा चलाती थीं। अधेड़ उम्र का वह हमलावर युवती के पिता का दोस्त था और युवती के घर उसका आना जाना था। वह विवाहित था। उसके तीन बच्चे भी थे। घायल युवती की मां ने बताया कि हमलावर पिछले कुछ दिनों से युवती को परेशान कर रहा था। वह कई बार युवती के समक्ष प्रेम और उससे शादी का प्रस्ताव रख चुका था। लेकिन युवती द्वारा प्रेम और शादी का प्रस्ताव ठुकराए जाने के बाद से वह नाराज था। वह युवती को घर से लेकर उसके दफ्तर तक उसे परेशान करता था। इसकी सूचना युवती ने कई बार स्थानीय पुलिस को दी थी, लेकिन हर बार पुलिस ने उसकी फरियाद को अनसुना कर दिया।

मैं अस्पताल की उस बेड के पास एक स्टूल पर बैठ कर युवती का साक्षात्कार ले रहा था, पीछे से एक जानी पहचानी आवाज़ आई। "पत्रकार बाबू सबसे बड़ा सवाल यह है इस हादसे का दोषी कौन है? यह लड़की जो अपने पैरों पर खड़ी होकर, अपना घर परिवार चला रही थी। जिंदगी में कुछ करना, कुछ बनना चाह रही थी। अपने सपनों को पंख लगाना चाह रही थी। उसे उम्रदराज सनकी प्रेमी की जगह अपने एक हम उम्र दोस्त के साथ घर बसाना चाह रही थी। या फिर इस हादसे का दोषी वह अधेड़ उम्र का शख्स जो उस लड़की के एक तरफे प्यार में पागल था। शादी - शुदा और बाल -बच्चे होते हुए भी अपने से आधी उम्र की लड़की से विवाह रचाना चाह रहा था और इनकार करने पर उसकी जान लेने पर आमादा हो गया। या फिर उस हमलावर शख्स की पत्नी को दोषी माना जाए जो ये जानते हुए भी अपने पति की गलतियों को नजअंदाज करती रही कि उसका पति अपनी बेटी की उम्र की लड़की से विवाह रचाना चाह रहा है। वह भी खुलेआम, जिसकी जानकारी उस शख्स की बीबी से लेकर उसकी जवान बेटी और बेटों को भी थी....।

मैने पीछे मुड़कर देखा तो दूसरी बेड पर केतकी लेटी थी और लेटी - लेटी यह बात मुझसे कह रही थी। "अरे केतकी तुम?" मेरा इतना कहना था कि केतकी झेंप गई। "हां सुदेश, तबीयत कुछ ठीक नहीं थी इसलिए अस्पताल में एडमिट हो गई। " केतकी के लड़खड़ाते स्वर से मुझे यह आभास हो गया, कि वह मुझसे कुछ छुपा रही है। बहुत दिन बाद मिले थे हम दोनों। खूब बातें की। उसने मुझसे अपनी मम्मी और छोटे भाई से मेरा परिचय कॉलेज के दिनों के एक दोस्त के रूप में कराई। मैने बहुत पूछने की कोशिश की उसके बारे में, लेकिन बार-बार केतकी ने इस विषय को टाल दिया।

वहां से उठकर जाने के बाद मैं सीधे केतकी के डॉक्टर से मिला, तो मैं उसकी केस हिस्ट्री सुनकर अवाक रह गया। डॉक्टर ने बताया कि केतकी पिछले तीन साल से ब्रेन कैंसर से पीड़ित है और अब यह अंतिम स्टेज में है। केतकी अब चंद दिनों की मेहमान है। मैं पलभर के लिए नर्वस हो गया था डॉक्टर की जुबान से यह बात सुनकर, पास में खड़ा मेरा सहायक समर्थ ने यदि मुझे नहीं संभाला होता तो मैं शायद लड़खड़ाकर वहीं गिर पड़ता। अब मुझे समझने में देर न लगी कि आखिर केतकी ने मेरे प्रस्ताव को क्यों ठुकराया था। केवल उसने मेरे व्यक्तिगत प्रस्ताव को ठुकराया ही नहीं था, अपितु उसने मेरी तरफ देखने से भी अपने आप को रोका था। अब मेरे मन में केतकी के लिए सम्मान भाव जाग गया था। एक बार तो मैने सोचा कि केतकी से जाकर खूब झगरूंगा मैं, कि उसने इतनी बड़ी बात मुझसे क्यों छुपाई? मैं भागकर केतकी के पास गया और उससे लिपटकर रोने लगा। केतकी तुमने मेरे प्रणय निवेदन को क्यों ठुकराया?   क्या तुम्हें मुझपर विश्वास नहीं था, कि तुम्हारी बीमारी का बारे में जानकर मै  तुमसे शादी नहीं करूंगा। अरे, एकबार सच कहकर मेरी परीक्षा ले ली होती। उसने मुझे चुप कराते हुए कहा - "देखो सुदेश जज्बाती मत बनो। हम पहले भी अच्छे दोस्त थे, आज भी हैं और कल भी रहेंगे, लेकिन शादी करके मैं तुम पर बोझ नहीं बनना चाह रही थी।" मैं कुछ बोलूं, कि मेरे कंधे पर अपना हाथ रखती हुई केतकी की मां ने कहा - "बेटा, केतकी ने तुम्हारे बारे में हम लोगों को सबकुछ बता चुकी है। उसने तो तुम्हे एकबार ठुकराकर तुम्हें तुम्हारे बेहतर भविष्य के लिए आजाद कर दिया, मगर केतकी रात -दिन तुम्हारी याद में जलती रही। मेरे घर परिवार में सभी को पता है तुम्हारे बारे में। केतकी हमेशा कहती है कि तुम उसके पहले और आखिरी दोस्त हो।"

केतकी मुझे देखकर लगातार मुस्कुराए जा रही थी। उसे इस बात का कोई गम नहीं था कि वह कुछ ही पलो की मेहमान है। वह मुझे चुप कराती हुई बोली - "सुदेश तुम मुझसे वाकई बहुत प्रेम करते हो तो मेरी आखिरी इच्छा पूरी कर दो।" मैने पूछा बोलो, तुम जो कहो मैं जरूर पूरा करूंगा। उसने कहा "मुझे आइस्क्रीम खाने की इच्छा है वह भी तुम्हारे हाथों से। " मैं भागकर अस्पताल के बाहर गया और कई  आइस्क्रीम के डब्बों के साथ जैसे ही आया, केतकी ने कहा -"इतना सारा लाने की क्या जरूरत थी? एक डब्बा खोलो, बाकी अपनों को बांट दो।"

एक डब्बा खोलकर मैने जैसे ही आइस्क्रीम उसके मुँह में डाला। वह तेजी से खांसने लगी। मैने उसे पकड़कर बैठाने की कोशिश करने लगा, मगर वह बैठ नहीं पाई और बोली -"मुझे इसी दिन का इंतजार था।" बस इतना कहकर वह मेरी बाहों में सिमट गई और फिर कभी नहीं उठी।

- यूजी 5, टॉवर 4, ताज हाउसिंग अपार्टमेंट, नियर गांधी चौक, अंसारी रोड, रजापुर खुर्द, मोहन गार्डेन, उत्तम नगर (नई दिल्ली) - 110059

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