धारावाहिक पौराणिक उपन्यास (प्रथम खंड)

-----------------------------------

मिथिला नरेश सीरध्वज जनक

*****


सूर्यदेव विवस्वान के पुत्र थे मनु और मनु के पुत्र हुए इक्ष्वाकु. इक्ष्वाकु के एक सौ पुत्र हुए और ये सभी सूर्यवंशी* कहलाए. इक्ष्वाकु के इन्हीं पुत्रों ने आर्यावर्त में कई राज्यों और साम्राज्यों की स्थापना की. उनमें से सर्वाधिक विख्यात विकुक्षी, निमि तथा दण्डक हुए.

इक्ष्वाकु के दूसरे पुत्र निमि ने आर्यावर्त के पश्चिमोत्तर दिशा में एक राज्य की स्थापना की, जो उत्तर में हिमालय, दक्षिण में गंगा नदी, पूरब में महानंदा (कोशी) नदी तथा पश्चिम में गंडकी नदी तक फैला हुआ था. राजा निमि ने अपने राज्य में सुख एवं शान्ति के लिए एक महायज्ञ करवाने का संकल्प लिया. इस यज्ञ में ऋत्विक (प्रधान पुरोहित) के रूप में उन्होंने देवताओं के ऋत्विक महर्षि वशिष्ठ को आमंत्रित किया. महर्षि वशिष्ठ ने उनके आमंत्रण स्वीकार भी कर लिया, परंतु जब राजा निमि के यज्ञ की सारी तैयारियां पूरी हो गयी और अतिथिगण यज्ञ की शोभा बढ़ाने हेतु आ गये साथ ही ऋषि-मुनियों का भी आगमन हो गया, तब महर्षि वशिष्ठ ने राजा निमि को संवाद भेजवाया -"राजन् मैं देवराज इन्द्र का यज्ञ करवाने में व्यस्त हो गए गया हूं अतः आपका यज्ञ इस यज्ञ को पूर्ण करवाने के बाद ही सम्पन्न करवाऊंगा." इस सम्वाद को सुनकर राजा निमि स्तब्ध रह गये. उनके समक्ष धर्मसंकट उत्पन्न हो गया. वे यज्ञ को किसी भी परिस्थिति में टाला जा नहीं सकते थे. उन्होंने अपने सभासदों तथा ऋषि-मुनियों से परामर्श किया. सबों ने एकमत से राय दी -"राजन्, आपके राज्य में ही एक तेजस्वी ऋषि का आश्रम है, जो न सिर्फ प्रकांड विद्वान हैं, बल्कि चारों वेदों के ज्ञाता भी हैं. उनका नाम है गौतम ऋषि. उन्हें ही इस यज्ञ का ऋत्विक के रूप में आमंत्रित करें." राजा निमि को सभासदों तथा ऋषि-मुनियों का यह सुझाव पसंद आ गया. तत्काल ही गौतम ऋषि को बुलाने हेतु दूत भेज दिया गया.

महाराज निमि के यज्ञ के ऋत्विक गौतम ऋषि बने. फिर जैसे ही यज्ञ आरंभ हुआ कि आकाश मार्ग से महर्षि वशिष्ठ वहां आ गये. ऋत्विक के आसन पर गौतम ऋषि को बैठे देख वे आग-बबूला हो गये. उन्होंने अपने कमंडल से अभिमंत्रित जल लेकर महाराज निमि के ऊपर छिड़कते हुए श्राप दिया -"दुष्ट राजा निमि, तूने मेरे मना करने के बाद भी यज्ञ का अनुष्ठान किया और मेरे बदले गौतम ऋषि को होता पद पर आसीन करवाया. यह मेरा घोर अपमान है. मैं तुम्हें श्राप देता हूं, जा तेरा क्षय हो ." राजा निमि को श्राप देकर महर्षि वशिष्ठ तत्क्षण उसी मार्ग से वापस देवलोक चले गये, जिस मार्ग से आए थे. महर्षि के जाते ही राजा निमि के शरीर का क्षय होने लगा. इस अनहोनी को देखकर राजमहल में कोहराम मच गया. रनिवास में शोक की लहर दौड़ गयी. 

वहां उपस्थित ऋषि-मुनियों ने राजा निमि के शरीर की रक्षा हेतु वैदिक मंत्रोच्चार द्वारा रक्षा-कवच का निर्माण किया. जिससे उनका जीवन अनश्वर अर्थात बिना शरीर का हो गया. परंतु उनकी आशा फलीभूत न होने पायी. तब वैदिक रीति से राजा को विदेह (देह रहित) बनाया गया. विदेह होने के बाद वे सभी प्राणियों के नेत्रों में बस गये. तत्पश्चात सभी  ऋषिगण उन्हें एक बड़े कराह में  रखकर मथनी से मथने लगे. तब उनके अदृश्य देह से एक बालक का जन्म हुआ. जिसका नाम मथनी से उत्पन्न होने के कारण मिथिल पड़ा. तथा विदेह (देह रहित) हो जाने के कारण राजा निमि को लोग विदेह के नाम से भी जानने लगे. चूंकि इस राज्य की विधिवत स्थापना विदेह राजा निमि के पुत्र मिथिल ने की थी इसलिए इस राज्य का नाम मिथिला पड़ा. साथ ही राजा निमि के दुसरे नाम विदेह के नाम से भी यह राज्य प्रसिद्ध हो गया. युवा होने पर राजा मिथिल ने अपने राज्य का विस्तार करके इसे साम्राज्य बनाया. इस राज्य की राजधानी जनकपुर में स्थापित की गयी, जो वर्तमान में जनकपुर धाम के नाम से विख्यात है. चूंकि राजा मिथिल का जन्म राजा  निमि के देह से हुआ था, इसलिए उनके जन्मदाता को विदेह तथा जनक (जन्म देनेवाला) की उपाधि से विभूषित किया गया. बाद में इस वंश के सभी राजाओं ने विदेह तथा जनक अपनी उपाधि बना ली और अपने नाम के आगे विदेह तथा पीछे जनक लगाने लगे. इस राजवंश में अनेकों प्रतापी राजाओं ने जन्म लिया. जिनमें से एक जगत जननी मां जानकी के पिता विदेहराज सीरध्वज जनक* भी थे. 


*मिथिला के राजाओं की वंशावली*

*राजा निमि (विदेह) : विदेह राजवंश के संस्थापक *राजा मिथिल जनक : मिथिला राज्य के निर्माता. *उदावसु जनक. *नन्दी वर्द्धन जनक. *सुकेतु जनक. *देवरात जनक. *वृहद्रथ जनक. *महावीर जनक. *सुधृति जनक. *धृष्टकेतु जनक. *हर्यश्व जनक. *मरु जनक. *प्रत्वंतक जनक. *कीर्तिरथ जनक. *देवमीह जनक. *निवुध जनक.

*महीद्रक जनक. *कीर्तिरात जनक. *महारोमा जनक. *ह्रस्वरोमा जनक. *सीरध्वज जनक : इनके अनुज : कुशध्वज जनक.

*राजा सीरध्वज जनक*

विदेह (मिथिला) राजवंश की बाइसवीं पीढ़ी में राजा सीरध्वज जनक का जन्म हुआ था. इनके पिता का नाम राजा ह्रस्वरोमा जनक तथा माता का नाम कैकसी* था. महाराज ह्रस्वरोमा के ध्वज पर हल के अग्रभाग जिसे "सीत" कहा जाता है का चित्र था. इसलिए राजा ने अपने प्रथम पुत्र का नाम सीरध्वज जनक तथा दूसरे पुत्र का नाम कुशध्वज जनक रखा था. राजा सीरध्वज जनक न्यायप्रिय, धर्म-परायण तथा प्रजापालक राजा थे.  वे अपनी विद्वत्ता, दार्शनिकता तथा आत्मज्ञान के लिए प्रसिद्ध हुए. उनके दरबार में बड़े बड़े ऋषि-मुनि और ज्ञानी आते-जाते रहते थे और सत्संग हुआ करता था. राजा जनक के दरबार में महान तत्वज्ञानी और दार्शनिक महर्षि याज्ञवल्क्य* भी आया करते थे महाराजा और राजा जनक उनके साथ शास्त्रार्थ किया करते थे.  इसके साथ ही वे‌ अपनी प्रजा के कल्याण तथा राज्य की खुशहाली के लिए सदैव प्रयत्नशील रहा करते थे. यही कारण था कि उनकी प्रजा सुखी-सम्पन्न, समृद्ध तथा खुशहाल थी. सीरध्वज जनक जी ऐसे आदर्श राजा थे, जिन्होंने वैराग्य और गृहस्थ जीवन के बीच एक अद्भुत तारतम्य स्थापित किया. वे राजसी ठाट-बाट से जीना रहते हुए भी सांसारिक मोह-माया से ऊपर उठ चुके थे. वे कमल के पत्ते पर पड़े पानी की बूंद के समान थे, जो पानी में रहकर भी पानी के प्रभाव से मुक्त ‌रहती है. वे एक साथ महान योगी, तत्वज्ञानी, ब्रह्मज्ञानी, धर्मनिष्ठ और न्यायप्रिय शासक थे. उन्होंने यह सिद्ध कर दिया ‌कि कैसे कोई व्यक्ति संसार में रहते हुए भी आत्मज्ञान प्राप्त कर सकता है और अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए भी मोक्ष की ओर अग्रसर हो सकता है. हर तरह से सम्पन्न रहते हुए भी उन्हें एक दु:ख सताया करता था. और वह दुःख था उनका अबतक नि:संतान होना.

उनकी धर्मपत्नी का नाम था सुनयना. रानी सुनयना काफी धैर्यवान, धर्मपरायण, पतिव्रता, ममतामयी तथा अपनी प्रजा के प्रति उदार थी. वे राजा जनक के सुख-दु:ख की सहभागी थे. वे जानती थी कि उनके पति नि:संतान होने के कारण भीतर ही भीतर काफी दुखी हैं. दुखी तो वे भी थी, परंतु  वे अपनी वेदना प्रकट न होने देती, कहीं कहीं उनके पति का दु:ख और न बढ़ जाए. 

                 ∆∆∆∆∆

क्रमशः.............!

-------------------------------------

*आर्यों ने भारत वर्ष में आकर दो शक्तिशाली राजवंशों की स्थापना की. एक था सूर्यवंश, जिसके संस्थापक सूर्य विस्ववान के पुत्र को इक्ष्वाकु थे. दूसरा था चन्द्रवंश, जिसके संस्थापक थे चन्द्र (सोमदेव) के पौत्र और बुध के पुत्र पुरुरवा. जहां सूर्यवंश में भगवान श्रीराम और उनकी भार्या देवी सीता का जन्म सूर्यवंश में हुआ था. वहीं चन्द्रवंश में ययाति, पुरु और यदु जैसे प्रतापी राजाओं का जन्म हुआ था. द्वापर युग में भगवान श्री कृष्ण, पाण्डव तथा कौरवों ने भी चन्द्रवंश में ही जन्म लिया था. श्रीकृष्ण यदुवंशी थे और पांडव कुरू वंशी.

*राजा सीरध्वज जनक को लोग मात्र जनक के नाम से ही जानते हैं. मैंने भी कहीं कहीं सिर्फ जनक नाम का ही उल्लेख किया है.

*चूंकि मेरी यह कथा महाराज सीरध्वज जनक की धर्म पुत्री मां सीता पर ही केन्द्रित है अतः विदेह राजाओं की इस सूची में मैंने राजा सीरध्वज जनक तक का ही नाम दिया है. इस वंश के वंशजों ने महाभारत (त्रेतायुग) काल तक मिथिला राज्य पर शासन करते रहे थे. उन राजाओं की सूची मेरी पुस्तक "अतीत की परछाइयां" में दी गयी है.

*लंकापति रावण की मां का भी नाम कैकसी था.

*माना जाता है कि महर्षि याज्ञवल्क्य का आश्रम वर्तमान बिहार राज्य के मधुबनी जिलांतर्गत विस्फी प्रखंड के जानीपुर नामक ग्राम में था, जिसे अभी जानीपुर जगबन के नाम से जाना जाता है. 

               ******

Next
This is the most recent post.
Previous
Older Post

0 comments:

Post a Comment

 
Top