कहा गया है, कि वसंत ऋतुराज है तो पावस ऋतुओं की रानी। पावस की बूंदे धरती पर पड़ते हीं हमारे तन मन फुहारों से सिंचित हो खिल उठते हैं, ताप भाग खड़ा होता है। झुलसे उपवन में बहार आ जाती है। घनघोर घटाओं से अम्बर घिर जाता है। नदी, तालाब, ताल तलैया लबालब हो जाते हैं, कृषक प्रफुल्लित हो उठते हैं, ठंडी बयारें, वर्षा का जल नया संदेशा, नई चेतना लेकर आते हैं। बदरवा की गर्जन और दामिनी की आतिशबाजी से आकाश में धमा - चौकड़ी मच जाती है तथा मेघ समारोह के नज़ारे प्रतिबिंबित होने लगते है।धरती की गोद से नव अंकुर फूटने लगते हैं और धरती की हरियाली चूनर लहरा उठती है। पावस ऋतु के आगमन पर परिकल्पना समूह के तत्वावधान में आयोजित ऑनलाइन पावस महोत्सव के अन्तर्गत आयोजित विषय आधारित काव्य प्रतियोगिता में देश के विभिन्न भागों से 20 कवियों और कवयित्रियों ने जब वर्षा की साहित्यिक बूंदों की फुहारों से माहौल को अभिसिंचित किया तो ऐसा लगा जैसे पूरी कायनात प्रकंपित हो गई।
यह आयोजन हुआ 21 जून 2020 को परिकल्पना के व्हाटसएप पटल पर। उधर सुबह 10 बजकर 20 मिनट पर पूर्ण सूर्य ग्रहण का नज़ारा था और इधर कवियों की मंडली। उधर सूर्य ग्रहण का मोक्ष था दोपहर 1 बजकर 49 मिनट पर और इधर कवि सम्मेलन का समापन। इस दौरान परिकल्पना पर पावस महोत्सव मनाया गया। गीत, ग़ज़ल, मुक्तक, छंद, दोहे और हाइकु आदि की काव्य सरिताएं बहती रही। आसमां में सूर्य ग्रहण का अद्भुत दृश्य और परिकल्पना के पटल पर कवि सम्मेलन की अनुपम छटा।
कार्यक्रम की शुरुआत प्रख्यात लोकगायिका एवं कवयित्री श्रीमती कुसुम वर्मा की सुमधुर आवाज़ में मां सरस्वती की वंदना से हुआ और समापन वरिष्ठ साहित्यकार और हाइकु सर्जक डॉ मिथिलेश दीक्षित के अध्यक्षीय उद्वोधन से।
इस शानदार कवि सम्मेलन ने मंत्रमुग्ध कर दिया। इतना समय जाने कैसे निकल गया पता ही नहीं चला। सूर्य ग्रहण से बाहर उजाला कब कम हो गया और पंछी चहकने लगे, कुत्ते भौंकने लगे इस यकायक भरी दुपहरी में शाम हो गई। यह सब इस छपा छप करते रंगारंग समारोह के बीच कमरे में बैठे हुए हर कोई अनुभव करता रहा।
यह भी सुखद संयोग ही रहा, कि कोरोना काल में घर में रहते हुए यह भव्य आयोजन रहा। काव्य प्रेमियों का समय सूर्य ग्रहण काल के काल भी काव्य के द्वारा माँ वाणी की आराधना में बिता।
इस मनमोहक कवि सम्मेलन की अध्यक्षता की वरिष्ठ साहित्य व हाईकु शिल्पी डॉ मिथिलेश दीक्षित ने और संचालन किया परिकल्पना समूह के संस्थापक डॉ रवीन्द्र प्रभात ने।
इस कवि सम्मेलन में प्रतिभाग करने वाले कवियों में प्रमुख थे
राय बरेली, उत्तर प्रदेश की डॉ चम्पा श्रीवास्तव, लखनऊ की कवयित्री और लोक गायिका श्री मती कुसुम वर्मा, कवि एवं रंगकर्मी श्री राजीव प्रकाश और शाहदरा, दिल्ली की कवयित्री एवं हाईकुकार डॉ सुकेश शर्मा।
इसी प्रकार श्रीमती सुनीता गुप्ता, कवयित्री, कानपुर, उत्तर प्रदेश,श्री गौरीशंकर वैश्य "विनम्र", कवि, साहित्यकार लखनऊ, उत्तर प्रदेश,श्री सुरेन्द्र कुमार शर्मा, कवि, गीतकार, जयपुर, राजस्थान, डॉ. अरुण कुमार शास्त्री,उर्फ़ अरुण अतृप्त यानी अबोध बालक,गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश,डॉ. सुभाषिनी शर्मा, हाईकुकार, गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश, डॉ. सत्या सिंह,कवयित्री एवं हाईकुकार,लखनऊ, उत्तर प्रदेश,डॉ. बालकृष्ण पांडेय, कवि एवं एडवोकेट,प्रयागराज, उत्तर प्रदेश, डॉ क्षमा सिसोदिया, राष्ट्रीय कवयित्री एवं लघुकथाकार, उज्जैन, मध्य प्रदेश, सुश्री मंजूषा श्रीवास्तव "मृदुल" कवयित्री,लखनऊ, उत्तर प्रदेश,श्री योगेन्द्र नारायण चतुर्वेदी,कवि एवं गीतकार,कादीपुर, शिवपुर, वाराणसी,श्री दीनानाथ द्विवेदी "रंग", कवि एवं गीतकार, वाराणसी, उत्तर प्रदेश,डॉ. अलका चौधरी,कवयित्री,आगरा, उत्तर प्रदेश, श्री शिव पूजन शुक्ल, कवि गीतकार, भजन गायक ,जमथा, गोण्डा, उत्तर प्रदेश एवं श्री राजा भैया गुप्ता "राजाभ", कवि एवं गीतकार,लखनऊ, उत्तर प्रदेश।