संस्मरण: कुसुम वर्मा 

गी
त-संगीत और लेखन ही मेरा जीवन है । मैं लोकसाहित्य, लोकसंगीत, लोकनृत्य और लोकचित्रकला पर काम कर रही हूँ । जब मुझे पता चला कि इस बार हिन्दी भाषा एवं लोकसंस्कृति हेतु हमारी यात्रा माॅरीशस की होगी, सचमुच मेरी खुशी का ठिकाना न रहा क्योंकि माॅरीशस के बारे में खूब सुना था कि भारत से गिरमिटिए माॅरीशस गये ...या फिर कैसे कैसे ले जाये गये ....उन पर क्या बीती और फिर संघर्ष की इन्तहां को पीछे छोड़कर कैसे उन्होंने माॅरीशस की धरती को सोना बना दिया। उन्होंने अपने देश की माटी , गंगाजल और अपनी सांसों की खुशबू माॅरीशस की फ़िज़ाओं में बिखेर दी।

2 सितम्बर 2018 को जब हम सायं मॉरीशस की धरती पर उतरे वहाँ हमारी गाइड मिली पूनम । उसने बड़ी ही खूबसूरती से हिन्दी में बोलकर हमारा स्वागत किया और यूं शुरू हुआ हमारा सपनों का सफ़र। बस में बैठकर चारों तरफ की खूबसूरती मानों मुझसे गा गाकर यही कह रही थी......." ये वादियाँ ये फ़िज़ाएं बुला रही हैं तुम्हें " ..और हम गाइड पूनम की बातें सुनते कब होटल पहुंच गये पता ही नहीं चला, वादियाँ ऐसी, मौसम ऐसा मानो भारत की देवभूमि उत्तराखंड का प्रतिरूप हो।

सुबह नौ बजे काम शुरू हो जाना और शाम पांच बजते ही काम खत्म करके घर को चल देना बहुत अच्छा लगा। ज़िन्दगी में सुकून चाहिए तो माॅरीशस जाइये। विश्वपटल पर हिन्दी को मज़बूती से रखने के लिए माॅरीशस ने ग़ज़ब की पहल की है तभी तो माॅरीशस भारत के लिए ख़ास है।


परिकल्पना लखनऊ, भारतीय उच्चायोग माॅरीशस और हिन्दी प्रचारिणी सभा माॅरीशस के तत्वावधान में 2 सितम्बर से 8 सितम्बर 2018 तक माॅरीशस के लॉन्ग माउंटेन में आयोजित अन्तर्राष्ट्रीय हिन्दी उत्सव में लखनऊ की 9  और पूरे भारत से लगभग 32 विभूतियों ने शिरकत की। कार्यक्रम में माॅरीशस के भारतीय उच्चायुक्त श्री अभय ठाकुर जी ,सांसद विकास ओरी जी,  विश्व हिन्दी सचिवालय माॅरीशस के महासचिव प्रो विनोद कुमार मिश्र जी , हिन्दी प्रचारिणी सभा के अध्यक्ष श्री यन्तुदेव बुद्धू जी, मंत्री धनराज शंभू जी एवं परिकल्पना लखनऊ के श्री रवीन्द्र प्रभात जी, डॉ रामदेव धुरन्धर जी के द्वारा माॅरीशस की सरज़मीं पर मुझे "अन्तर्राष्ट्रीय हिन्दी उत्सव सम्मान" से सम्मानित करना मेरे जीवन का सबसे अनमोल लम्हा था। कार्यक्रम के पहले दिन से लेकर अन्त तक प्रोफेसर हेमराज सुन्दर जी ने हमें पूरा सहयोग दिया। माॅरीशस के माननीय सांसद श्री विकास ओरी जी ञने अपने उद्बोधन की शुरुआत जिस बेहद संवेदनशील लोकगीत से की -- दो लाइनें मुझे याद आ रही हैं ----
"फिर भी न छोड़लन भारत से आपन नाता रे भइया।
कभी न भूललेन भोजपुरिया हिन्दी रे भइया ।।"

सचमुच माॅरीशस के सभी विद्वानों तथा आम जनता से जो अपनापन मिला अद्वितीय था। अपनी माटी, अपने घर से दूर किये जाने का दुख उनके दिलों में आज भी है जिस तरह से आंखों में आंसू भर कर उन्होंने हमें गले लगाया मुझे उनकी धड़कन सुनकर ये लोकगीत याद आ गया जब बिछोह में उनकी पत्नी गाती रहीं होंगी ---
" रेलिया बैरन पिया को लिये जाये रे
जउने टिकसवा से पिया मोरे जइहैं
पनिया बरसे टिकस गल जाये रे
रेलिया बैरन पिया को लिये जाये रे
जउने सहरवा में पिया मोरे जइहैं
अगिया लागे सहर जल जाये रे
रेलिया बैरन पिया को लिये जाये रे
जउने साहबवा के पिया मोरे नौकर
गोलिया लागे साहब मर जाये रे
रेलिया बैरन पिया को लिये जाये रे
जउने सवतिया के पिया मोरे आशिक
खाये धतूरा सवत बौउराये रे
रेलिया बैरन पिया को लिये जाये रे
...................रेलिया बैरन ।

माॅरीशसवासियों के लिए---------
"दिल में हिन्दी, जुबान पे हिन्दी, 
मजबूत इरादे, पक्के वादे ।
कलम में हिन्दी,  धरा पे हिन्दी
हिन्दी ध्वज आसमां पे फहरा दें।

राष्ट्र भाषा हिन्दी वाला देश भारत है मगर यूं लगता है कि हिन्दी की धुरी माॅरीशस है जो अपने चारों ओर फिजी, त्रिनिदाद आदि को अपने में समेटे हुए है। भारत भूमि से दूर सात समंदर पार मीठी जुबां लोकभाषा भोजपुरी सुनकर उसका इतना सम्मान देखकर, महापर्व शिवरात्रि,  गंगा तालाब और ज्योतिर्लिंग के दर्शन करके  बहुत अच्छा लगा, लोकगायिका होने के नाते मेरा मनमयूर नाच उठा। शिव जी और गंगा मइया के दर्शन कर एक भोजपुरी लोकगीत आपके लिए प्रस्तुत कर रही हूँ----

"गंगाजी का देखली चनरमा का देखली
बिषधर का देखली गरदनवा में
बमभोला का देखली सपनवा में
डमरूआ का देखली त्रिशूलन का देखली
हो गौरी का देखली अंगनवा में
बमभोला का देखली सपनवा में।
कार्तिक का देखली गणपति का देखली
नन्दी का देखली अंगनवा में
बमभोला का देखली सपनवा में।

लोकगीतों के क्रम में एक भोजपुरी कजरी में विरहिन का विरह देखिए कैसे अपनी ननद से विलाप कर रही है ----------

"उमड़त आवे हो ननदी कारी रे बदरिया ।
बलमुआ नहीं आये हो छोटकी ननदी
आधी आधी रतिया के बोलेला पपीहरा अरे बोलेला पपीहरा
से हमका ना सुहावे हो छोटकी ननदी
सूनी तो होइगै हमरी सेजरिया
से निंदिया नहिं आवे हो छोटकी ननदी
केकरा से पठइबै ननदी पिया का सनेसवा
जियरवा अकुलावे हो छोटकी ननदी ।
बलमुआ नहीं आये हो छोटकी ननदी ।।

एक बेहद लोकप्रिय लोकगीत आपके लिए प्रस्तुत कर रही हूं ----

"बोलेला अंगनवा में कागा पिया परदेसवा से आ जा
पिया परदेसवा से आजा पिया परदेसवा से आ जा ।
नित मोका निंदिया सपनवा देखावै
कसकेला हियवा में जियरा जरावै
तुंही से बलम मन लागा पिया परदेसवा से आजा
घरवा दुअरवा मोका कछु नाहीं भावे
रोज रोज तनवा ननदिया सुनावे
हाय रे करमवा अभागा पिया परदेसवा से आजा
तू ही मोरा सेन्हूरा तू ही मोरी बिंदिया
तोहरे दरस का तरसे नजरिया
जोड़ दे पिरितिया के धागा
पिया परदेसवा से आजा ।"---

माॅरीशस में दूर तक जहाँ तक निगाहें जातीं सिर्फ गन्ना ही गन्ना .....तभी सब लोगों का व्यवहार इतना मीठा था । हम लौट तो आये पर अब भी हमारे दिल में माॅरीशस धड़कता है।  कभी शिवरात्रि पर भोलेनाथ जी के दर पर भजन गाने ज़रूर आऊंगी इस वादे के साथ अपनी लेखनी को विराम देती हूँ ।

-लोकगायिका एवं प्रधानाचार्या - राजकीय बालिका इन्टर काॅलेज,
विकास नगर , लखनऊ, उत्तर प्रदेश,  भारत ।

1 comments:

  1. लोकगीत की आत्मा में कुसुम की तरह महकती रहो सखी!

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