"नृत्य, गीत और संगीत के प्रेमी मित्रों. " माइक पर अमित खन्ना
की लरजती हुई आवाज गूंजने लगी -"इंतजार की घड़ियां समाप्त हुई. दिल थामकर कर बैठिए, अब आ रही हैं हमारे थियेटर की ज़ीनत, मलिका-ए-हुस्न और कल्पना थियेटर की सबसे बेहतरीन अदाकारा मोहतरमा हुस्नबानो...
इनकी आवाज में एक दर्द भरी कशिश है. जो आपके दिलो-दिमाग को झकझोर कर रख देगी. मोहतरमा हुस्नबानो के मैने यह शेर अर्ज़ किया है -
वो नाराज़ हैं हमसे के हम कुछ कहते नहीं
कहां से लाएं वो लफ़्ज़ जो हमको मिलते नहीं.
दर्द की जुबान होती तो बता देते शायद
वो ज़ख्म कैसे दिखाएं जो दिखते नहीं." तो दोस्तों मोहतरमा हुस्नबानो के लिए हो जाए, जोरदार ताली." और इसके साथ ही जोरदार तालियों की गड़गड़ाहट से पूरा पंडाल गूंज उठा. फिर मंच पर गहरा अंधकार छाता चला गया. दर्शकों के दिल की धड़कन बढ़ गयी. जीतन बाबू बड़ी बेचैनी से पहलू बदलने लगे. उनका और उनके दोस्तों का दिल हुस्नबानो का दीदार पाने के लिए मचलने लगा. मंच पर पूर्व की तरह प्रकाश का एक गोला नृत्य करता हुआ नजर आया. प्रकाश का वह गोला जहां जाकर स्थिर हुआ वहां धरती के अंदर से प्रस्फुटित होने लगी कमल के फूल की एक विशाल कली और किसी चमत्कार की तरह कई नर्तकियां मंच पर आकर नृत्य करने लगी. ऐसा प्रतीत हुआ जैसे वे सभी आकाश से अवतरित हुई हों. उधर कमल की कली की पंखुड़ियां जैसे जैसे खुलती जा रही थी, वैसे-वैसे दर्शकों के दिल की धड़कनें भी तेज होती जा रही थी. ठीक उसी समय अभय अपने तीनों दोस्तों के साथ आकर अपनी अपनी सीट बैठ गया. कहीं कंचन यह समझ न जाए कि उसने फिर शराब पी है, इसलिए उसने सिर्फ एक पैग ही लिया था. अभय ने जब जमीन के नीचे से निकल रहे कमल की कली को देखा तब अन्य दर्शकों की तरह वह भी चमत्कृत रह गया. जब वह कली खिल कर फूल बन गयी तब उसमें से निकली हुस्नबानो.... ठीक देवलोक की अप्सरा मेनका की तरह. मंच पर थिरक रही सारी नर्तकियों ने उसे घेर लिया. नगाड़े पर कस कर एक थाप पड़ी और शास्त्रीय संगीत की लहरी पूरे पंडाल में गूंजने लगी. इसके साथ ही गूंज उठी हुस्नबानो के पायल की झंकार. दर्शकों के मुंह से से हर्ष भरी सिसकारी निकल पड़ी. जीतन बाबू और उनके मित्रों को तो ऐसा लगा जैसे उनका कलेजा उछल कर मुंह मे आ गया हो. गजगामिनी की तरह चलती हुई हुस्नबानो स्टेज के बीचोंबीच आकर खड़ी हो गयी. उसके एक हाथ में गुलाब की दो कलियां थी. उसमें से एक कली उसने वीआईपी गैलरी की ओर उछाल दी और दूसरी प्रथम श्रेणी की ओर. अनजाने ही गुलाब की पहली कली वीआईपी गैलरी में सबसे आगे बैठे जीतन बाबू की गोद में जाकर गिरी और दूसरी प्रथम श्रेणी में सबसे अगली कतार में बैठे मुकुल नाम के एक किशोर की गोद में. ये दोनों निहाल हो गये. जहां जीतन बाबू ने इसे हुस्नबानो की ओर से भी मुहब्बत का इजहार समझा, वहीं मुकुल ने मुहब्बत का नायाब तोहफा. ये दोनों हुस्नबानो के दीवाने हो गये और जब मनमोहक चितवन से जीतन बाबू की ओर देखती हुई मुस्कुरा दी हुस्नबानो तब तो पागल ही हो गये जीतन बाबू. उन्होंने कसकर अपना दिल थाम लिया, कहीं उछल कर बाहर न आ जाए. कमोवेश ऐसी ही हालत उस किशोर मुकुल की भी हो चुकी थी.
इधर अभय की नजर जैसे ही हुस्नबानो पर पड़ी कि वह बुरी तरह से चौंक पड़ा, उसे ऐसा महसूस हुआ कि वह हुस्नबानो को पहले भी देख चुका है, मगर कब और कहां, इसका स्मरण उसे नहीं है. फिर अचानक उसके दिलो-दिमाग में सनसनाहट सी होने लगी और वह निढाल सा कुर्सी पर पसर कर लंम्बी-लम्बी सांसें लेने लगा. उसकी बेचैनी से बेखबर उसके तीनों दोस्त हुस्नबानो की बेपनाह खुबसूरती और दिलकश अदाओं में खो चुके थे. मंच पर शास्त्रीय संगीत की धुन पर आरंभ हो चुका था हुस्नबानो तथा अन्य नर्तकियों का सामुहिक नृत्य. नि:संदेह हुस्नबानो थियेटर की अन्य नर्तकियों यहां तक कि कंचन लता से भी सिर्फ श्रेष्ठ ही नहीं सर्वश्रेष्ठ नृत्यांगना थी. तालियों की गड़गड़ाहट और वाह ! वाह !! की करतल ध्वनि से पूरा पंडाल गूंज उठा. जीतन बाबू मन ही मन हुस्नबानो को अपने दिल की रानी मान बैठे और ऐसी ऐसी भोंडी हरकतें करने लगे कि वर्मा जी की इच्छा हुई - इस नाखलुस इंसान को उठाकर बाहर फेंक दूं. उधर मुकुल का भी हाल-बेहाल था . वह भी अपनी सीट पर दोस्तों के साथ दीवानगी की हद पार करते हुए नाच रहा था. अभय को पता ही न चला कि कंचन चुपचाप आकर उसके बगल में बैठ चुकी है. जीतन बाबू की घिनौनी हरकतें देखकर वह अंदर ही अंदर उबलने लगा. जब जीतन बाबू की हरकतें चरम सीमा को पार करने लगी तब उसके मुंह से क्रोधित स्वर निकल ही पड़ा -"साले बूढ़े, मैं अभी आकर तुम्हारे मुंह में जो नकली दांत है उसे निकाल देता हूं."
"अभय .....!" कंचन की मीठी आवाज सुनकर वह चौंक पड़ा और उसकी ओर देखने लगा -"यह थियेटर है, दर्शक दीर्घा में बैठे हुए लोग कुछ भी करने को स्वतंत्र हैं. आखिर वे पैसा खर्च करके मनोरंजन के लिए ही तो यहां आते हैं. हां स्टेज पर चढ़ने की इजाजत किसी को भी नहीं है, चाहे वह लाट साहब ही क्यों न हो?"
"मगर वह बूढ़ा कैसी-कैसी घिनौनी हरकतें कर रहा है?" अभय तीखे स्वर में बोला.
"करने दो.....मेरा या तुम्हारा क्या जाता है? उन लोगों की अपनी छवि खराब हो रही है." कंचन की बातें सुनकर दंग रह गया अभय. एकबार फिर वह सोचने को मजबूर हो गया. -"नि:संदेह कंचन अद्भुत है. एक साधारण नर्तकी होकर ऐसी विदूषी....? आश्चर्य है."
"बॉस.... एकबार हुक्म देकर देखो अभी मैं उस बूढ़े की हड्डी पसली तोड़ देता हूं." शेखर शेखी बघारते हुए बोला.
"तुम चुप रहो....." अभय ने उसे कसकर डपट दिया. उसके इस अंदाज को देखकर कंचन समझ गयी. "इसका क्रोध अभी शांत नहीं हुआ है." वह उसे शांत करने की नीयत से पुनः बोली -
"अभय, हजारों की इस भीड़ में हर मन-मिजाज के लोग हैं. कोई हमारी अदाकारी की कद्र करता है तो कोई हमारी खुबसूरती की तारीफ. हमारा पेशा ऐसा है कि हम किसी को रोक नहीं सकते. यहां आकर लोग कम-से-कम अपने दैनिक जीवन के तनाव से मुक्त तो हो जाते हैं. बस समझ लो यही हमारी उपलब्धि है. तुमसे मेरी विनती है कि तुम सिर्फ हम कलाकारों की अदाकारी देखो. दर्शक हम पर फब्तियां कसते हैं अथवा छिंटाकशी करते हैं, इन सारी बातों पर ध्यान मत दो." अभय एकटक कंचन को निहारता रह गया. उधर स्टेज पर हुस्नबानो दर्दभरा नगमा पेश कर रही थी -
"आऽऽऽ आऽऽऽ आऽऽऽ आऽऽऽ" हुस्नबानो की दर्द भरी आवाज को सुनकर गीतों के प्रेमी दर्शकों का दिल कशक उठा .
"बेदर्दी बालमा तुझ को मेरा मन याद करता है,
बरसता है जो ऑंखों से वो सावन याद करता है,....!
बेदर्दी बालमा तुझको मेरा मन याद करता है.....!" हुस्नबानो के इस दर्द भरे गीत को सुनकर अनायास ही अभय की ऑंखों से ऑंसू बहने लगे. जब कंचन को उसकी सिसकियां सुनाई दी तब वह बुरी तरह से चौंक पड़ी और अभय की ओर देखती हुई बोली "क्या हुआ.?"
"मुझे नहीं पता कि मुझे क्या हुआ है?" हुस्नबानो की ओर इशारा करते हुए अभय अपने दिल के दर्द का हाल बयां कर करने लगा -"मैंने जब से इनको देखा है तब से ही मेरे दिल में अजीब अजीब तरह के भाव उठ रहे हैं और साथ ही साथ बेचैनी सी महसूस हो रही है."
"अजीब बात है." कंचन के मुंह से निकल पड़ा.
"हां, कुछ अजीब सा तो है."
"कहो तो तुम्हारे लिए एक कॉफी और ले आऊं."
"नहीं नहीं इसकी जरूरत नहीं है." अभय ने अपनी ऑंखें बंद कर ली. उसकी बेचैनी को देखकर कंचन के दिल में भी दर्द का सैलाब मचलने लगा.
उधर हुस्नबानो के दर्द भरे इस गीत को सुनकर जीतन बाबू उस पर इतने मेहरबान हुए कि उन्होंने उस पर पांच हजार न्यौछावर कर दिया. जीतन बाबू को पांच हजार न्यौछावर करते देख प्रथम श्रेणी का वह किशोर मुकुल भी पीछे न रहा और उसने भी अपनी महबूबा यानी हुस्नबानो पर दस हजार लूटा दिया. मुकुल को दस हजार की गड्डी देते देख हुस्नबानो के साथ साथ कंचन भी चौंक पड़ी. हालांकि कंचन उस लड़के को देख नहीं पा रही थी, मगर खन्ना की उद्घोषणा को सुनकर वह इतना अंदाजा तो लगा ही चुकी थी कि वह लड़का अभी काफी छोटा होगा.
"अरी हुसन बानो, हमरे दिल की रनिया, एकठो अउर सुना दो." अपनी छाती मसलते हुए जीतन बाबू चिल्ला पड़े.
उनकी ओर देखकर मुस्कुराती हुई हुस्नबानो बोली - "शुक्रिया मेरी फ़नकारी के कद्रदान, आपकी फरमाइश पर मैं पेश कर रही हूं अपना यह दूसरा नगमा."
फिर फिजाओं में गूंजने लगा शहनाई फिल्म का सुमधुर संगीत और इसके साथ हुस्नबानो की दर्द भरी आवाज उभरी -"टूट गया ऽऽऽ....टूट गया ऽऽऽ.....
दिल का खिलौना हाय टूट गया..... दिल का खिलौना हाय टूट गया.......!
कोई लूटेरा आके लूट गया ऽऽऽ
दिल का खिलौना हाय टूट गया.....!" जैसे ही हुस्नबानो का यह गीत समाप्त हुआ कि नेपथ्य से हेमंत दा की आवाज उभरी.-
"काशी देखी मथुरा देखी देखें तीरथ सारे....!" गीत के इस सुर को सुनते ही हुस्नबानो ने झट से अपने सर पर आंचल डालकर घूंघट निकाल लिया. और स्वयंमेव उसके पांव थिरकने लगे. तभी मंच पर एक हाथ में करताल और दूसरे में इकतारा लिए हुए गेरूआ वस्त्र धारी साधु का अवतरण हुआ. अभय ने अपनी आंखें खोल दी और दूसरी चकित भाव से उस साधु को निहारते हुए कंचन से पूछ बैठा -"ये कौन हैं ?"
"इन्हें नहीं फहचानते तुम?" मुस्कुराने लगी कंचन.
"नहीं....."
"ये त्रिपाठी जी हैं, हमारे नृत्य निर्देशक."
"ओह......!"
मंच पर त्रिपाठी जी गा रहे थे और उनके गीत के ताल पर मनमोहक नृत्य प्रस्तुत कर रही थी हुस्नबानो -
"तेरे द्वार खड़ा एक जोगी,
तेरे द्वार खड़ा एक जोगी......!
ना मांगे ये सोना चांदी, मांगे दर्शन देवी, तेरे द्वार खड़ा एक जोगी.......!" त्रिपाठी जी और हुस्नबानो के इस गीत सह नृत्य ने भी धूम मचा दी. दर्शक इस शास्त्रीय नृत्य गीत और संगीत की धारा के साथ प्रवाहित होकर आनंदित होते रहे. नृत्य गीत के समाप्त होते ही उद्घोषक अमित खन्ना की लरजती हुई आवाज पुनः गूंजने लगी-
"दोस्तों, हमारे आज के शो के नृत्य, गीत और संगीत का कार्यक्रम अब यहीं समाप्त होता है. और अब आरंभ हो रहा है आजका ड्रामा - सत्यवादी राजा हरिश्चन्द्र. सत्यवादी और महादानी महादानी राजा हरिश्चन्द्र की भूमिका में आ रहे हैं हमारे थियेटर कम्पनी के मालिक श्री मोहन कुमार मेहता जी, महारानी शैव्या की भूमिका में आप देखेंगे हमारे थियेटर की ज़ीनत मोहतरमा हुस्नबानो जी को, वहीं महर्षि विश्वामित्र जी के रूप नज्रर आएंगे श्री एस एन त्रिपाठी और राजकुमार रोहिताश्व बनकर आ रही हैं हमारी कम्पनी की शोख, चुलबुली और मासूम अदाकारा बेबी गुलनाज. इससे पहले कि हमारा आज का ड्रामा आरंभ हो मै कल के ड्रामे की घोषणा कर देना मैं जरूरी समझता हूं. कल आप लोग दे़खेंगे थियेटर की दुनिया का सदाबहार ड्रामा लैला-मजनूं. तो दोस्तों जोरदार तालियों के साथ आज के हमारे कलाकारों का इस्तेकवाल कीजिए."
पंडाल में तालियों की गड़गड़ाहट गूंज उठी और मंच पर नजर आने लगा हजारों साल पहले की अयोध्या के राजमहल का दृश्य. अपने राजसी शयनकक्ष में अयोध्या पति महाराज हरिश्चन्द्र और महारानी शैव्या चिरनिंद्रा में सोये हुए हैं, तभी अचानक महाराज हरिश्चन्द्र की ऑंखें खुल जाती है और वे काफी उद्विग्न होकर कक्ष में चहलकदमी करने लग जाते हैं. महारानी शैव्या भी उठकर व्याकुल भाव से अपने पति को देखने लग जाती हैं.........!" दर्शकों का दिल कशक उठता है. सचमुच मोहन बाबू और हुस्नबानो ने कमाल कर दिया. त्रिपाठी जी और बेबी गुलनाज ने भी अपनी अपनी सीट प्रतिभा की छाप छोड़ दी. सबसे मार्मिक था श्मशानघाट का दृश्य .शायद ही ऐसा दर्शक रहा होगा, जिसकी ऑंखों से ऑंसू न बहें हों. अभय का तो रोते रोते बुरा हाल हो चुका था. कंचन उसे चुप कराने में परेशान हो गयी. कार्यक्रम के समाप्ति की घोषणा स्वयं मोहन बाबू ने दर्शकों का आभार व्यक्त करते हुए किया.
रात्रि के तीन बज चुके थे ठंड भी काफी बढ़ चुकी थी. कंचन से विदा लेकर अभय अपने दोस्तों के साथ पिछे वाले गेट से बाहर निकल गया.
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क्रमशः.........!
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