साक्षात्कार 
 (आज हम जिनसे आपकी मुलाकात करवाने जा रहें है, उन्हें हिन्दी चिट्ठाकारिता की जीवित किवदंती कहा जाता है। कवि, गजलकार, कथाकार, व्यंग्यकार और उपन्यासकार के साथ-साथ हिन्दी के मुख्य ब्लॉग विश्लेषक की हैसियत से हिन्दी में ब्लॉग आलोचना का सूत्रपात करने वाले रवीन्द्र प्रभात पत्रकार होने के साथ ही, हिन्दी भाषा के जानकार भी है। अपने ब्लॉग परिकल्पना में, यह शख्स हिन्दी के अजब-गजब चिट्ठों से और उसके बेहतरीन पोस्टों से हमें परिचित कराते रहते है। डॉ सियाराम के साथ स्वागत करें रवीन्द्र प्रभात का, इस साक्षात्कार में। जानिए कैसे वे पाठकों को चिट्ठों के सुहाने सफ़र पर ले जाते है अपने ब्लॉग द्वारा।)

प्रश्न: आपने ब्लॉगिंग की शुरुआत कब और क्यूँ की? 
उत्तर: ब्लॉगविधा के बारे में मुझे मेरे मित्र बसंत आर्य से 2005 में पता चला। उस समय याहू के द्वारा जियोसिटीज़ पर ब्लॉग बनाने की सुविधा थी। मैं पहले जियोसिटीज़ पर आया और बाद में ब्लॉगस्पॉट पर। जब अंतर्जाल पर भ्रमण करना शुरू किया तो उससमय नारद नाम का एक मंच मुझे नेट पर खूब सक्रिय नज़र आया। इसके सदस्य बहुत से विषयों पर आपस में साझेदारी और सम्वाद करते थे। मुझे ब्लॉग में काफ़ी सम्भावना नज़र आई थी सो 2006 में ब्लॉगस्पॉट पर परिकल्पना नाम से अपना ब्लॉग आखिरकार बना ही लिया। वैसे मेरी सर्वाधिक सक्रियता ब्लॉग पर जून 2007 से है।

प्रश्न: आप किन विषयों पर अक्सर ब्लॉग लिखते है? 
 उत्तर: मूलतः मैं चिट्ठों का सफ़र यानी चिट्ठों की व्युत्पत्ति और विवेचना पर ही लिखता हूँ। चिट्ठों का परीक्षण करता हूँ, उसकी कमियों को उजागर करता हूँ और पाठकों को बेहतरीन ब्लॉग की समीक्षा के साथ बताता हूँ कि अमुक ब्लॉग क्यों पढ़ा जाये? यह एक बड़ी परियोजना है। जब तक यह पूरी नहीं हो जाती, कुछ और लिखना सम्भव नहीं। फिर भी मैने अपने ब्लॉग पर पुस्तक समीक्षा का स्तम्भ लम्बे समय तक नियमित चलाया। फिलहाल एक साल से यह अनियमित है। इसके अलावा कविता वगैरह अगर लिखी जाती है तो उसे भी अपने पाठकों से साझा कर लेता हूँ। हिन्दी चिट्ठों के विश्लेषण के अलावा भाषा सम्बन्धी विषयों पर भी बीच बीच में लिखता रहता हूँ।
प्रश्न: क्या आप कोई पोस्ट लिखते वक़्त उलझ जाते है? ऐसे में आप क्या करते है? 
उत्तर: ऐसा अक्सर होता है। जब किसी चिट्ठे यानी ब्लॉग का तार्किक विवेचन नहीं हो पाता है तब उलझन होती है। ऐसे में उससे जुड़े तमाम सन्दर्भों को एक जगह रख कर वह फाइल बन्द कर दूसरे ब्लॉग पर काम शुरू कर देता हूँ। मैं एक साथ कई ब्लॉग पर काम करता हूँ। ब्लॉग तथा ब्लॉगरों का आपस में अन्तर्सम्बन्ध भी होता है सो पहले कभी जिस ब्लॉग पर अटका था, किसी अन्य ब्लॉग पर काम करते हुए पुराने ब्लॉग की उलझन अचानक सुलझ जाती है। यह सब बड़ा रोमांचक होता है।

प्रश्न: हमें अपने ब्लॉग विश्लेषण के बारे में कुछ बताये। आपकी अगली पेशकश भविष्य में किस विषय पर होगी? 
उत्तर: चिट्ठों की उत्पत्ति, विवेचना और विश्लेषण का मेरा काम शुरू-शुरू में सामान्य चिट्ठा प्रेमी के लिए था, क्योंकि यह विश्लेषण मज़ाक-मज़ाक में पहले पद्यात्मक शुरू हुयी। धीरे-धीरे यह लोगों के लिए कौतूहल का विषय बनता गया। लोग इसे गंभीरता से लेने लगे। इस विश्लेषण की आलोचना-समालोचना होने लगी। मेरे लिए यह कार्य चुनौतीपूर्ण बनता चला गया। सबसे बड़ी बात तो यह है कि इस विषय पर भाषाविज्ञान के विद्यार्थियों को ध्यान में रख कर कभी कोई किताब नहीं लिखी गयी। परिकल्पना वार्षिक ब्लॉग विश्लेषण के ज़रिए मैंने जो भी तथ्य सामने रखे यथा चिट्ठों का मूल क्या है और विकासक्रम में इनमें क्या क्या बदलाव आए, यह जानना लोगों के लिए बेहद दिलचस्प होता चला गया। संस्कृतियाँ और भाषा को समृद्ध करने में इस यायावरी का बड़ा महत्व है। परिकल्पना ब्लॉग विश्लेषण जब शुरू हुआ तब से पाठकों का आग्रह था कि यह किताब के रूप में आए। हिन्दी के कुछ अच्छे प्रकाशकों ने इस काम में दिलचस्पी ली और आखिरकार हिन्दी साहित्य निकेतन ने 2011 में इसके पहले पड़ाव को "हिन्दी ब्लॉगिंग का इतिहास" नाम से प्रकाशित किया। इस पुस्तक का महत्व ब्लॉग-संदर्भ कोश की तरह है। पुस्तक के अंत में अब तक खोजे गए सभी चिट्ठों की सूची इसे एक व्यवस्थित कोश का रूप देती है।

अभी तो एक उपन्यास "लखनौवा" पूरा करने की दिशा में अग्रसर हूँ। इसके बाद सोशल मीडिया का समग्र विश्लेषण करने की योजना है। कार्य काफी दुरूह दिखाता है लेकिन जहां चुनौती है वहीं सृजन के नए-नए आयाम विकसित होते हैं।

प्रश्न: अजब-गजब चिट्ठों की तलाश दरअसल सृजन की तलाश जैसी ही है – यह आपने अपने ब्लॉग पर कहा है। आपका चिट्ठों की तलाश का यह यात्रा कब और कैसे शुरू हुयी? और इस तलाश में आप कितने सफल हुए है?
उत्तर: बचपन से सृजन के लिए नए-नए शब्दों को तलाशने, तराशने, उसकी विवेचना करने और उसके महत्व को दोस्तों के समक्ष परोसने की मुझे धुन सवार रहती थी। ज़िद की हद तक मैं रोज़ इनके पीछे भागता था। यानी शब्दों के साथ खेलना चाहे वह शब्द किसी भी भाषा के हो मुझे अच्छा लगता है। यह शौक जुनून की हद तक जारी रहा। नए-नए शब्दों के साथ तुकबंदी करना और दोस्तों को सुनाना धीरे-धीरे मेरे कवि-कर्म में परिवर्तित होता चला गया। सही मायनों में यह काम मेरे लिए सृजन की तलाश जैसी ही थी। सच तो यह है कि शौक जब जुनून की हद को पार कर जाता है तो हमेशा के लिए सृजन के सागर में समा जाता है। प्रारंभिक दिनों में गजल से साहित्यिक यात्रा की शुरुआत हुयी, फिर कविता की ओर मुड़ा। आगे चलकर जब अंतर्जाल की दुनिया में प्रवेश किया तो यह शौक नए-नए चिट्ठों को तलाशने, तराशने, उसकी विवेचना करने और विश्लेषण करने में परिवर्तित हुआ। इस बीच ब्लॉग लेखन और साहित्यिक गतिविधियां दोनों मैंने एक साथ जारी रखा, किसी को भी हाशिये पर नहीं धकेला। इसी का परिणाम है कि इस दौरान मेरी हिन्दी ब्लॉगिंग पर दो महत्वपूर्ण पुस्तकों के साथ साथ तीन उपन्यास भी प्रकाशित हुये।

हिन्दी प्रेमियों ने जिस तरह से इस पहल का स्वागत किया है उसके बारे में इतना कहना ही पर्याप्त है कि ब्लॉग-विवेचना जैसे नीरस विषय के इस ब्लाग पर हर रोज़ हज़ारों चिट्ठा प्रेमी सैर करते हैं। अभी तक इस पर करीब बीस हजार लोग अपनी प्रतिक्रियाएँ दर्ज करा चुके हैं। दुनियाभर में रहनेवाले हिन्दी ब्लॉगरों में एक दूसरे ब्लॉगर से जुड़ने की ललक मौजूद है, इसका प्रमाण इस ब्लॉग के विदेश में निवास करनेवाले भारतीय पाठकों की तादाद से मिलता है।

प्रश्न: आप अपने प्रारंभिक जीवन के बारे में कुछ बताएं। 
उत्तर: स्कूली जीवन में ही अक्सर हम तय करते हैं कि क्या बनना है। मेरे लिए दो ही चीज़ें खास थीं। या तो पत्रकार बनना है या प्राध्यापक। वैसे स्वभाव और गुण देखते हुए तो मेरी दिली ख्वाहिश थी मैं फिल्मों में अभिनेता बनूं पर संसाधन की कमी और हालात को देखते हुए इसे सिर्फ़ सपना ही समझा। बचपन से अब तक शरारती हूँ। पहले बातें करना खूब अच्छा लगता था, अब चुप रहना सुहाता है। मेरी पढ़ाई बिहार के सीतामढ़ी जिले के परिहार प्रखण्ड और फिर ज़िला मुख्यालय में हुई। यह क़रीब बीस हज़ार की आबादी वाला कस्बा है। पहली क्लास से इंटर तक की पढ़ाई यहीँ रह कर पूरी किया। स्नातक मुजफ्फरपुर से और परास्नातक इलाहाबाद से किया। वैसे बचपन में मुझे साहित्यकार बनने की कोई इच्छा नहीं थी, किन्तु एक घटना ने मुझे साहित्य की दुनिया में आने को विवश किया। बचपन में दोस्तों के बीच शेरो-शायरी के साथ-साथ तुकबंदी करने का शौक था । इंटर की परीक्षा के दौरान हिन्दी विषय की पूरी तैयारी नहीं थी, उत्तीर्ण होना अनिवार्य था। इसलिए मरता क्या नहीं करता। सोचा क्यों न अपनी तुकवंदी के हुनर को आजमा लिया जाए। फिर क्या था आँखें बंद कर ईश्वर को याद किया और राष्ट्रकवि दिनकर, पन्त आदि कवियों की याद आधी-अधूरी कविताओं में अपनी तुकवंदी मिलाते हुए सारे प्रश्नों के उत्तर दे दिए। जब परिणाम आया तो अन्य सारे विषयों से ज्यादा अंक हिन्दी में प्राप्त हुए थे। फिर क्या था, हिन्दी के प्रति अनुराग बढ़ता गया और धीरे-धीरे यह अनुराग कवि-कर्म में परिवर्तित होता चला गया।

प्रश्न: आपने अपने एक साक्षात्कार में कहा है कि हिन्दी पुस्तक संसार में पाठकों का जैसा स्थाई अकाल है। इस परिस्थिति को बदलने के लिए, आपके हिसाब से क्या कदम लेने चाहिए और उसे कैसे लागू करना उचित होगा?
उत्तर: बीते साठ वर्षों से किताबों की दुनिया में इस समस्या को महसूस किया जाता रहा है। हिन्दी में पाठकों का अकाल नहीं है, किताबों के खरीदारों का अकाल है। जो भी पाठक हैं, उनमें से ज्यादातर तो मुफ्त में किताब पढना चाहते हैं। बौद्धिक सम्पदा और बौद्धिक परिष्कार के लिए हम लोग पैसे खर्च करना नहीं चाहते। मोटे तौर पर तो परिष्कृत मनोरंजन के लिए भी हम कोई भुगतान नहीं करना चाहते। हिन्दी रंगमंच इसीलिए कमज़ोर हुआ क्योंकि लोग टिकट लेकर नाटक नहीं देखते। इसी तरह किताबें भी मुफ्त में मिलें तो वे पढ़ लेंगे। यहाँ सवाल मानसिकता का है। रीबॉक का जूता खरीदने के लिए दो हजार रुपए जेब से निकलते हैं। यह जूता दो साल में फैंक दिया जाता है, फिर दूसरा खरीदा जाता है। इसके विपरीत 2000 रु की पुस्तके तो दूर की बात 500 रुपए की किताबें भी जीवन भर साथ निभाने वाली होती हैं। इन तथ्यों के मद्देनज़र किताबों के महँगे होने की बातें बेबुनियाद हैं। हिन्दी किताबें ज्यादा संख्या में लोगों तक पहुँचे इसके पीछे प्रकाशक भी दोषी हैं। वे अच्छे प्रकाशनों का प्रचार नहीं करते। बहुत सी चीज़ें एक दूसरे में गड्डमड्ड हैं। जब इन्टरनेट, टीवी जैसी चीज़ें नहीं थीं, लोग तब भी कम पढ़ते थे। अब इन मनोरंजन माध्यमों की भीड़ में किताबों के लिए कितने लोग वक्त निकाल पाते हैं?

प्रश्न: कई प्रसिद्ध समाचार पोर्टल और ब्लॉग के नामों के साथ आपका ब्लॉग जुड़ा है। कई साथी ब्लोगर्स ने भी आपके ब्लॉग और ब्लॉग विश्लेषण की प्रशंसा की है। इस साहचर्य से आपके ब्लॉग को किस तरह बढ़ावा मिला है? 
 उत्तर: मैने ऊपर कहा है कि ब्लॉग विश्लेषण का स्वागत इस तरह हुआ, जैसे लोगों को उसकी तलाश थी। अब जो भी सबसे पहले चल पड़े। संयोग से यह सेहरा परिकल्पना के सिर बंधना लिखा था। मेरा सौभाग्य है कि "हिन्दी ब्लॉगिंग का इतिहास" और "हिन्दी ब्लॉगिंग: अभिव्यक्ति की नयी क्रान्ति" पुस्तक को ब्लॉग-पत्रकारिता की दुनिया के कई बड़े नामों ने जाना, समझा, परखा और उसके बारे में लिखा। इन दोनों कृति को डॉ राम दरस मिश्र, प्रभाकर श्रोत्रिय, अशोक चक्रधर, डॉ गिरिराज शरण अग्रवाल जैसे साहित्यकारों ने सराहा और हिन्दी जगत में एक नयी पहल की प्रस्तावना को महसूस किया। ब्लॉग और पुस्तक के बारे में उदयप्रकाश, अरविन्द मिश्र, अविनाश वाचस्पति, दिनेशराय द्विवेदी, समीर लाल, अनूप शुक्ल, ज्ञानदत्त पाण्डे, अनिता कुमार, जाकिरअली रजनीश जैसे कई पत्रकार-ब्लॉगर साथियों ने लिखा। बहुत से और भी खास नाम हैं…इसकी वजह से आज परिकल्पना के ब्लॉग विश्लेषण को एक खास जगह मिल पायी। इन सबके लिए दिल में खूब सारा सम्मान है।

प्रश्न: ब्लॉग विश्लेषण में आपने अब तक 20,000 से ज्यादा हिन्दी ब्लॉग की जानकारी और उसकी विशेषताएँ अन्य ब्लॉगरों से साझा की है। हमारे पाठकों को बताएं की हिन्दी में ब्लॉग विश्लेषण शुरू करने का उद्देश्य क्या था?
उत्तर: भारतियों के बारे में आमतौर पर यह कहा जाता है कि उनमें मिलनसारिता कम होती है। अगर इसे सही भी माना जाए तो मैं यह कहना चाहूँगा कि औसत भारतीय जब किसी से जुड़ता है तो सिर्फ़ संवाद के स्तर पर नहीं बल्कि उससे रिश्तेदारी भी कायम करता है। मोहल्ले-पड़ोस में चाचा, बुआ और मामा जब तक नहीं बनते, मेल-जोल का आनंद अधूरा रहता है। तो वर्चुअल दुनिया में भी इस भारतीयता की मुझे कमी लगी। ब्लॉगरों का एक बड़ा समूह बनता जा रहा था। ऐसे में लोग यह जानना चाहते थे कि कौन से ब्लॉग पर प्रभावी लिखा जा रहा है, कौन सा ब्लॉग किस विषय पर केन्द्रित है। आदि-आदि। इन्हीं सवालों को लेकर मुझे लगा कि अगर वार्षिक ब्लॉग विश्लेषण जैसा काम शुरू किया जाए तो शायद बेहतर ही होगा। लोगों ने इस पहल का भरपूर स्वागत किया। इस ब्लॉग को कई लोगों ने तो सिर्फ़ ब्लॉग विश्लेषण की वजह से ही पहचाना और उसके बाद उनकी दिलचस्पी ब्लॉग को परखने और समझने में भी शुरू हुई। यह विश्लेषण बीते एक साल से बन्द है। जल्दी ही यह फिर शुरू होगा। 

प्रश्न: अपने साहित्यिक जीवन के बारे में कुछ बताएं? 
उत्तर: विभिन्न प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में नियमित प्रकाशन के साथ-साथ पहली बार वर्ष 1991 में मेरा गजल संग्रह 'हमसफर' आया। 1995 में दूसरी पुस्तक 'समकालीन नेपाली साहित्य' जो मेरे द्वारा संपादित थी प्रकाशित हुयी। वर्ष 1999 में मेरा दूसरा गजल संग्रह 'रोना रमज़ानी चाचा' नाम से आया। इसी दौरान मैंने अनियतकालीन 'उर्विजा' और 'फागुनाहट' का संपादन किया। हिंदी मासिक 'संवाद' तथा 'साहित्यांजलि' का विशेष संपादन भी किया। फिर 'ड्वाकरा' की टेली डक्यूमेंटरी फ़िल्म 'नया विहान' का पटकथा लेखन किया। इसी बीच लगभग दो दर्ज़न सहयोगी संकालनों में रचनाएँ संकालित हुयी। वर्ष 2002 में काव्य संग्रह 'स्मृति शेष' कथ्यरूप प्रकाशन इलाहाबाद द्वारा प्रकाशित हुआ। वर्ष 2011 में मेरा पहला उपन्यास 'प्रेम न हाट बिकाय', वर्ष 2012 में दूसरा उपन्यास 'ताकि बचा रहे लोकतन्त्र' और वर्ष 2013 में तीसरा उपन्यास 'धरती पकड़ निर्दलीय' आया। इसी बीच हिन्दी ब्लॉगिंग पर केन्द्रित मेरी दो पुस्तके यथा 'हिन्दी ब्लॉगिंग का इतिहास' और 'हिन्दी ब्लॉगिंग: अभिव्यक्ति की नयी क्रान्ति' प्रकाशित हुयी। मैंने लगभग सभी साहित्यिक विधाओं में लेखन किया है परंतु व्यंग्य, कविता और ग़ज़ल लेखन में मेरी प्रमुख उपलब्धियाँ रही हैं। मेरी रचनाएँ भारत तथा विदेश से प्रकाशित लगभग सभी प्रमुख हिन्दी पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं तथा कविताएँ चर्चित काव्य संकलनों में संकलित की गई हैं। और क्या कहूँ यात्रा अभी जारी है।

प्रश्न: जबसे सोशल मीडिया के अन्य माध्यम जैसे फेसबूक, ट्विटर आदि का वर्चस्व समाज में बढ़ा है। ब्लॉगिंग के प्रति लोगों का रुझान कुछ कम हुआ है। इस संबंध में आपका क्या दृष्टिकोण है? 
उत्तर: देखिये फेसबूक और ट्विटर को आप स्मार्ट और सुरक्षित तरीके से आइडिया के लिए इस्तेमाल नहीं कर सकते हैं, जबकि ब्लॉगिंग के माध्यम से कर सकते हैं। क्योंकि ब्लॉग डाक्युमेंटेशन का एक बड़ा माध्यम है। भारत या दुनिया में कहीं और, युवा लोग जिस तरीके से सोशल मीडिया का इस्तेमाल करते हैं, उसमें फेसबूक ज्यादा लोकप्रिय है। हालांकि गूगल प्लस का आना भी कम दिलचस्प नहीं है। मैं मानता हूँ कि इधर ब्लॉगिंग के प्रति लोगों का रुझान कुछ कम हुआ है। लेकिन यह भी सही है कि ब्लॉगिंग का अपना एक अलग आनंद है जो अन्य माध्यमों में नहीं दिखाई देता। ब्लॉगिंग डाक्युमेंटेशन का एक बड़ा माध्यम है, जबकि फेसबूक या ट्विटर आदि सोशल नेटवर्क पर प्रयोगकर्ताओं द्वारा अधिक व्यक्तिगत जानकारी और मौज मस्ती को ज्यादा तरजीह दी जाती है। ब्लॉग एकप्रकार की ऑन लाइन डायरी है जो आपके चिंतन को एक नया आयाम देने में समर्थ है। जबकि फेसबूक सामाजिक संबंधों को बनाने अथवा उनको परिलक्षित करने पर सर्वाधिक केन्द्रित होता है। दोनों अलग चीज है और दोनों की आवश्यकता और महत्व भी अलग-अलग है। 

प्रश्न: यह प्रश्न बार-बार लोगों के जेहन में आता है, कि ब्लॉग और वेबसाइट में आखिरकार बुनियादी अंतर क्या है? इस संबंध में हम आपका दृष्टिकोण जानना चाहेंगे। 
उत्तर: देखिये ब्लॉग एक ऐसी ऑनलाइन जगह है जहाँ आप अपने विचारों को लेखों और चित्रों के माध्यम से इन्टरनेट पर प्रकाशित कर सकते हैं। ब्लॉग पर आप किसी भी प्रकार के लेख लिख सकते हैं जो आपके जीवन से जुड़ा हो भी सकता हैं या नहीं भी। ब्लॉग में पोस्ट लिखें जाते हैं जो तारीख, दिन और समय के अनुसार प्रकाशित किये जाते हैं। जबकि एक वेबसाइट कई कारणों से बनाया जा सकता है जैसे- प्रोडक्ट को बेचने के लिए, अपने फोलोवर्स के लिए, सोशल या ई कॉमर्स की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए। वेबसाइट में होमपेज के बाद अन्य सर्विस पेज होते हैं जो सभी एस्टेटिक होते हैं। 

प्रश्न: आपका हिंदी ब्लॉगिंग के लिए क्या दृष्टिकोण है? अपने ब्लॉग के ज़रिये, आप हिंदी ब्लॉगर्स के लिए क्या कहना चाहेंगे? 
 उत्तर: निजी तौर पर मेरे लिए ब्लॉगिंग केवल डाक्युमेंटेशन का माध्यम ही नहीं, प्रतिभा को धार देने का एक मुकम्मल मंच भी है। हालांकि यहाँ हिन्दी का सृजनधर्मी समाज ब्लॉगिंग की मूल प्रकृति से परे जाकर अपनी खूबियों से ज्यादा खामियों के साथ मौजूद है। इसे साहित्य और पत्रकारिता का कलेवर देने का प्रयास किया जा रहा है। जबकि सच्चाई यह है कि प्रिन्ट मीडिया में सृजनधर्मियों के लिए कम होते अवसरों का लाभ ब्लॉगविधा को मिलना था, पर हम उसका लाभ नहीं ले पाए। लोगों की निजी प्रतिभा उजागर होनी चाहिए थी, लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। इस विषय पर हिन्दी ब्लॉगर्स को चिंतन-मनन करने की नितांत आवश्यकता है।

प्रश्न: आपने ब्लॉग पर अनेकानेक शोधपरक कार्य किए हैं, लेकिन आम लोगों के लिए ब्लॉग बनाने के फायदे क्या हैं इस पर प्रकाश डालें। 
उत्तर: बड़े काम की चीज है ब्लॉग। आप अपने विचारों को ब्लॉग के माध्यम से दुनिया के सामने रख सकते हैं। आप अपना एक ऑनलाइन नेटवर्क बना सकते हैं। अपने ब्लॉग को आगे बढ़ने के साथ-साथ ऑनलाइन कि दुनिया में आपको बहुत सारे लोगों से बहुत कुछ सीखने का मौका मिलेगा। आप को एक लेखक का दर्ज़ा मिलेगा जो एक सम्मान की बात है। ब्लॉग पर आपके पोस्ट लोगों तक पहुँचना आसान है और उनके विचार भी आपके पास कमेंट के माध्यम से झट से पहुँच सकते हैं। अपने क्षेत्र में आप एक विशेषज्ञ के रूप में स्थापित हो सकते हैं। आप ब्लॉग पर कई प्रकार के सामान बेच सकते हैं जैसे – इबूक या फिर सर्विसेज। अपने ईमेल सब्सक्रिप्शन आप्शन कि मदद से आप ढेर सारे ईमेल सब्सक्राइबर भी पा सकते हैं। एस ई ओ के बारे में भी अपना ज्ञान बढ़ सकता है जो की बहुत जरूरी है। एक ब्लॉगर बनने से पैसे कमाने की बात बाद में आती है पहले तो इससे आपका लिखने का तरीका सुधरता है। अगर आपका पहले से ही व्यवसाय है तो ज्यादा से ज्यादा ग्राहक पा सकते हैं। आप ब्लॉग के माध्यम से अपना ऑनलाइन व्यापार शुरू कर सकते हैं। यहाँ तक कि किसी भी प्रकार के जॉब कि जरूरत नहीं है क्योंकि ब्लॉगिंग नौकरी से कई ज्यादा बेहतर है। और भी बहुत सारे फायदे हैं ब्लॉग के।

आपका बहुत-बहुत धन्यवाद। 
धन्यवाद आपका भी।

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