संस्मरण

-डा0 रमाकान्त कुशवाहा ‘कुशाग्र’

डाॅ0 रामदेव धुरंधर जी के साथ एक दिन गुजारने का अवसर उस समय मिला, जब धुरंधर जी को देवरिया (उ0प्र0) में स्थित नागरी प्रचारिणी सभा देवरिया के सभागार में ‘विश्व हिन्दी दिवस 10 जनवरी के दिन इस नागरी प्रचारिणी सभा द्वारा’ विश्व नागरी रत्न 2018 दिया जा रहा था। चूॅकि मैं नागरी प्रचारिणी सभा देवरिया का एक सदस्य होने के नाते उपस्थित था। देवरिया की नागरी प्रचारिणी सभा, प्रतिवर्ष विश्व नागरी रत्न, नागरी भूषण, नागरी रत्न व नागरी श्री का सम्मान चयनित लोगों को देती है। विश्व नागरी रत्न, विश्व के किसी साहित्यकार को दिया जाता है। इसी रूप में हिन्दी की उच्चकोटि की सेवा हेतु धुरंधर जी को चयनित किया गया था। डाॅ0 नीरन की अध्यक्षता में यह सम्मान धुरंधर जी को दिया गया। सम्मान समारोह सम्पन्न होने के बाद मैं धुरंधर जी से मिला, परिचय हुआ, उन्होंने अपना विजिटिंग कार्ड मुझे दे दिया। मैंने पूछा-‘आप के पूर्वज कहाॅ के थे तो उन्होंने कहा- मुझे पता नहीं, किन्तु अनुमान है, बिहार राज्य के किसी क्षेत्र के थे।’ तब तक धुरंधर जी के पास भीड़ एकत्रित हो गयी तो मैं उनको नमस्कार कर दूर खड़ा हो गया। तभी इस सम्मान समारोह के संयोजक सौरभ श्रीवास्तव की नजर मेरे पर पड़ी और मेरे पास आ गये, बोले.........

सर, नमस्कार, चलिए हमारे घर....।
मैं समझ गया कि लगता है धुरंधर जी भोजन हेतु इनके घर जाने वाले हैं। तभी उनका मित्र आया मेरा नमस्कार करते हुए सौरभ से कहा डाॅ0 साहब को मैं अपने गाड़ी से लेकर आ रहा हूॅ आप चलें।
ठीक है, सौरभ ने कहा-आ रहे हैं न ......
अवश्य! जब भैया जी है तो ..........
मैं चल रहा हूॅ आप डाॅ0 साहब को लेकर आइये, यह कहते हुए नागरी प्रचारिणी सभा की ओर बढे........।
आइये सर! गाड़ी में बैठिए..........।
मैं गाड़ी में बैठ गया। चूॅकि स्वयं ड्राइव कर रहे थे तो मैं उनकी बगल की सीट पर बैठ गया। फोर ह्वीलर वेन आगे बढ़ी.......।
आपको तो गतवर्ष सम्मानित कर दिया नागरी श्री सम्मान से ......।
हाॅ गतवर्ष हमें सम्मानित किये थे।

विदित हो कि नागरी प्रचारिणी सभा देवरिया ‘नागरी श्री’ सम्मान देवरिया जनपद के ही किसी विशेष व्यक्ति को देती है, जिसका किसी क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान होता है। चूॅकि मेरी पहली पुस्तक ‘बुद्ध के वंशज’ को उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान ने इतिहास लेखन के क्षेत्र में ‘आचार्य नरेन्द्रदेव सम्मान-2014’ से सम्मानित किया था। यह सम्मान तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री अखिलेश यादव द्वारा मुझे दिया गया था। इसी आधार पर नागरी प्रचारिणी सभा देवरिया ने मुझे ‘नागरी श्री 2016’ सम्मान से गतवर्ष सम्मानित किया था। इसी पर चर्चा चल रही थी कि ‘मारूती वैन’ सौरभ श्रीवास्तव के घर के सामने रूकी। हम लोग घर में प्रवेश किये, देखा कि सौरभ श्रीवास्तव के खूबसूरत ड्राइंग रूम में धुरंधर जी नागरी प्रचारिणी सभा देवरिया के अध्यक्ष सुधारक जी तथा सचिव दीक्षित जी के साथ विराजमान हैं। सामने मिठाइयाॅ रखी हुयी हैं, हम दोनों के सामने भी मिठाई आ गयी। मिठाई ली गयी तभी सौरभ श्रीवास्तव सभी को अपना पूजाघर दिखाने को कहे, सभी लोग गये, किन्तु मैं नहीं गया, क्योंकि गतवर्ष अपने सम्मान के समय उस पूजा घर को देखने का अवसर मिल चुका था। कुछ समय बाद पूजा घर की प्रशंसा करते हुए बाहर निकले। पूजा घर विशेष है, देवी-देवताओं हेतु कहीं का सेन्ट, कहीं की अगरबत्ती आदि और विशेष चीजे विद्यमान रहती हैं। सभी ड्राइंग रूम में बैठे। अन्दर से पकौड़ी की प्लेटें आयीं, दीक्षित जी ने मेरी तरफ संकेत करते हुए कहा-ये हैं डाॅ0 कुशाग्र! साहित्य सेवा में विदेश यात्रा करते रहते हैं। इनको उ0प्र0 हिन्दी संस्थान ने ‘आचार्य नरेन्द्रदेव सम्मान’ से सम्मानित किया है। धुरंधर जी की नजर मेरे तरफ पड़ी तो मैंने कहा-सर! मेरी प्रथम कृति ‘बुद्ध के वंशज’ पर उ0प्र0 के तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री अखिलेश यादव जी ने इतिहास लेखन के क्षेत्र में इस सम्मान से सम्मानित किया था।

तब तक सौरभ गुप्ता ने हमारी तीनो पुस्तक ‘बुद्ध के वंशज’, ‘खत्तिय जातियां’ तथा ‘बुद्ध और सम्राट अशोक’ सामने लाकर रख दी- यह है डाॅ0 कुशाग्र की कृतियां। धुरंधर जी की एक झलक उन पुस्तकों पर पड़ी, तभी दीक्षित जी ने कहा डाॅ0 कुशाग्र जी अभी न्यूजीलैण्ड गये थे, इन्होंने बुद्ध पर अधिक काम किया है।

हाॅ सर! मेरा पुरातत्व पर अधिक काम है। बुद्ध से संबंधित स्थलों की खोज, उसे संरक्षित कराना, उत्खनन करवाना व पर्यटन की दृष्टि से विकास करवाने में मेरी उर्जा लगी रहती है। मैं उनके पास जाकर बैठा, अपनी पुस्तकों के विषय में बताना शुरू किया। तभी मोबाइल से अनेक फोटो खीचे जाने लगे। हम लोग कैमरे में कैद होने लगे। धुरंधर जी ने बताया मैं छोटे-छोटे गद्य लिखकर नया प्रयोग कर रहा हूॅ। इस पर मेरी पुस्तक भी आयी है।
मैं उस पुस्तक को देखना चाहा तो उन्होने कहा मेरी कुछ पुस्तके नागरी प्रचारिणी सभा के लाइबेरियन के पास हैं।
लाइबेरियन के पास! ठीक है मैं वहाॅ जाकर ले लूॅगा।
चाय आयी। हम लोग चाय पीने लगे, अनेक विषयों पर आपस में चर्चाये होती रहीं। शाम हुयी तो सभी बाहर आये। मैं जिस गाड़ी से गया था उसी से नागरी प्रचारिणी सभा वापस आ गया। धुरंधर जी की पुस्तक लाइबेरियन मिश्रा जी से चाहा तो उन्होंने बताया धुरंधर जी उन पुस्तकों को थोड़ा समय पहले मंगा लिए हैं। मैं वहाॅ से घर चला गया।
(लेखक डॉ रमाकांत कुशवाहा एक प्रखर पुततत्ववेत्ता, रंगकर्मी और साहित्यकार हैं)

0 comments:

Post a Comment

 
Top