- ललित गर्ग
अपनी अदाकारी से न केवल देश बल्कि दुनिया के दर्शकों के दिलों पर राज करने वाले बाॅलीवुड एवं हॉलीवुड के फिल्म अभिनेता इरफान खान का 54 साल की उम्र में मुंबई के कोकिलाबेन अस्पताल में बुधवार को निधन हो गया। इरफान काफी लंबे वक्त से कैंसर जैसी असाध्य बीमारी से पीड़ित थे और इसकी जानकारी 2018 में ही उन्होंने सार्वजनिक की थी, लेकिन दो साल बाद ये जिंदगी से जारी इस जंग को हार गए। असमय में असंख्य प्रशंसकों के दिलों पर राज करने वाले इरफान की मौत एक विराट संभावना की अकाल मौत है और भारतीय सिनेमा की बड़ी क्षति है। वे भारतीय सिनेमा के एक ऐसे कलाकार थे, जिनकी तुलना अन्य किसी कलाकार से नहीं की जा सकती है। अभिनय एवं सिनेमा का कोई भी ऐसा क्षेत्र नहीं है, जिसका ज्ञान और अनुभव उन्हें नहीं रहा हो। सिनेमा उनमें बसता था और वे खुद सिनेमा को जीते थे, यही कारण है कि वे एक मिसाल बन गए। उनका स्वाभाविक एवं संजीदा अभिनय उन्हें बरसों जिंदा रखेगा।

दिग्गज अभिनेताओं में शुमार इरफान खान के कैरियर की शुरूआत टेलीविजन सीरियल्स से हुई थी। अपने शुरूआती दिनों में वे चाणक्य, भारत एक खोज, चंद्रकांता जैसे धारावाहिकों में दिखाई दिए। उनके फिल्मी कैरियर की शुरूआत फिल्म ‘सलाम बाम्बे’ से एक छोटे से रोल के साथ हुई। इसके बाद उन्होंने कई फिल्मों में छोटे बड़े रोल किए लेकिन असली पहचान उन्हें ‘मकबूल’, ‘रोग’, ‘लाइफ इन ए मेट्रो’, ‘पान सिंह तोमर’, ‘द लंच बाक्स’ जैसी फिल्मों से मिली। वे बाॅलीवुड की 30 से ज्यादा फिल्मों मे अभिनय कर चुके हैं। इरफान हॉलीवुड में भी भारतीयता का प्रतिनिधित्व करने वाला एक जाना पहचाना नाम हैं। वह ए माइटी हार्ट, स्लमडॉग मिलियनेयर और द अमेजिंग स्पाइडर मैन फिल्मों में भी काम कर चुके हैं। 2011 में भारत सरकार द्वारा उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया। 60वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार 2012 में इरफान खान को फिल्म पान सिंह तोमर में अभिनय के लिए श्रेष्ठ अभिनेता पुरस्कार दिया गया। ‘हासिल’ फिल्म के लिये उन्हे वर्ष 2004 का फिल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ खलनायक पुरस्कार सहित तीन फिल्मफेयर पुरस्कार भी प्राप्त हुए। अन्य अनेक पुरस्कारों से उन्हें सम्मानित होने का अवसर प्राप्त हुआ, लेकिन वे इन पुरस्कार से बहुत उपर थे। वे हिन्दी और भारतीय सिनेमा के वैसे पहले व्यक्ति थे, जिन्होंने उसे एक विश्वमंच प्रदान किया। नायक तो सिनेमा के क्षेत्र में बहुतेरे हुए, पर इरफान जैसे नायक सदियों में कोई एक ही होता है। वास्तव में वे एक हरफनमौला सिने व्यक्तित्व थे। उनके अभिनय का हर पक्ष इतना सधा हुआ होता था कि हर दर्शक उससे मुग्ध हो जाता था।


इरफान खान का जन्म 4 नवंबर 1966 का जन्म मध्य प्रदेश के ग्वालियर शहर में हुआ था। वे स्थानीय अखबार दैनिक भास्कर और स्वदेश में सन् 1982-1989 तक कार्टून बनाते रहे। दिल्ली की श्रीधरणी आर्ट गैलरी में अपनी प्रदर्शनी के दौरान वे नवभारत टाइम्स लखनऊ के लिये चुन लिये गए। 1994 में दिल्ली आकर इकाॅनोमिक टाइम्स, फाइनेन्शिअल एक्सप्रेस, एशियन ऐज में स्टाफ कार्टूनिस्ट रहे। 2000 में जी न्यूज में वरिष्ठ कार्टूनिस्ट के पद पर काम करते हुए अपना टाॅक शो शख्शियत होस्ट किया, 2003 में एनडीटीवी के शो गुस्ताखी माफ की स्क्रिप्ट लिखी और सहारा समय पर इतनी-सी बात होस्ट किया। अब तक उनके 3 संकलन प्रकाशित हो चुके थे। एनसीईआरटी के पाठ्यक्रम की पुस्तकों में इरफान सहित देश के विभिन्न अन्य कार्टूनिस्टों के संपादकीय कार्टूनों को भी शामिल किया गया था। जापान फाउन्डेशन ने ‘एशियाई कार्टून प्रदर्शनी’ के अपने वार्षिक कार्यक्रम के तहत, 2005 में नौवीं प्रदर्शनी के लिए प्रत्येक एशियाई देश से एक कार्टूनिस्ट के चयन हेतु भारत की ओर से इरफान का चयन किया।



बॉलीवुड से हॉलीवुड तक अपने अभिनय की छाप छोड़ने वाले सदाबहार अभिनेता इरफान खान को आज पूरी दुनिया जानती हैं। ऑलराउंडर अभिनेता इरफान ने अपने अभिनय के दम पर हर वर्ग के दर्शकों को प्रभावित किया है। इरफान का अपना एक अलग अंदाज है, वो एक ऐसे कलाकार हैं कि अपने जबरदस्त अभिनय से किसी भी किरदार में जान डाल देते हैं। हॉलीवुड अभिनेता टॉम हैंक्स ने कहा कि इरफान की तो आंखें भी एक्टिंग करती हैं। वे अपनी अभिनय साधना एवं कौशल के बल पर जहां एक ओर कलात्मक ऊँचाइयों के चरमोत्कर्ष तक पहुँचे वहीं दूसरी ओर लोकप्रियता के उच्चतम शिखर तक भी। वे हिन्दी सिनेमा में अपने ढंग का अलग व्यक्तित्व बन गये, जिसका कोई मुकाबला नहीं। उनकी अभिनय शैली जहां सहज प्रतीत होती है, वहीं वह विलक्षण एवं चैंकाने वाली भी थी, क्योंकि वे सब कुछ अपनी पकड़ में रखते थे-आवाज भी, भाव भी, अदाएं भी और संवाद भी। उनमें दिखावा एवं बड़बोलापन नहीं था। बल्कि उनमें एक सधे हुए एवं पूर्ण अभिनेता के सारे गुण विद्यमान थे। उनकी फिल्में देखते हुए प्रतीत होता है कि वे बिना अभिनय के सशक्त अभिनय करते हैं। मैंने देखा कि अनेक दृश्यों में, जहां उन्हें कुछ भी बोलना नहीं था, वे गजब का असर पैदा कर गये। मैंने समझ लिया कि इस कलाकार ने अभिनय की जड़ को पकड़ लिया है।


इरफान के पिता टायर का व्यापार करते थे। पठान परिवार के होने के बावजूद इरफान बचपन से ही शाकाहारी हैं, उन्हें किसी भी तरह का नशा नहीं था। उनके पिता उन्हें हमेशा यह कहकर चिढ़ाते थे कि पठान परिवार में ब्राह्मण पैदा हो गया। उन्होंने वर्ष 1984 में दिल्ली के राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय (एनएसडी) में अभिनय का प्रशिक्षण लिया। उन्हें स्कॉलरशिप भी मिली। इरफान खान का शुरुआती दौर संघर्ष से भरा था। जब उनका एनएसडी में प्रवेश हुआ, उन्हीं दिनों उनके पिता की मृत्यु हो गई। घर के आय का स्रोत ही समाप्त हो गया। उन्हें घर से पैसे मिलना बंद हो गया। उनके पास बस एनएसडी से मिलने वाली फेलोशिप का ही सहारा था। इसी समय उनकी सहपाठी लेखिका सुतपा सिकदर ने उनका भरपूर साथ दिया, उन्हीं से 23 फरवरी, 1995 को उनका विवाह हुआ। उनके दो बेटे भी हैं-नाम बाबिल और अयान। अभिनय में प्रशिक्षित होने के बाद इरफान ने मुंबई का रूख किया। मुंबई आने के बाद वे धारावाहिकों में व्यस्त हो गए। लोकप्रिय धारावाहिकों में इरफान खान के बेहतरीन अभिनय ने फिल्म निर्माता-निर्देशकों का ध्यान अपनी ओर खींचा। मीरा नायर की सम्मानित फिल्म सलाम बांबे में उन्हें मेहमान भूमिका निभाने का अवसर मिला। सलाम बांबे के बाद इरफान खान लगातार ऑफबीट फिल्मों में अभिनय करते रहें। एक डॉक्टर की मौत, कमला की मौत और प्रथा जैसी समांतर फिल्मों में अभिनय के बाद इरफान ने मुख्य धारा की फिल्मों की ओर रूख किया। हासिल में रणविजय सिंह की नकारात्मक भूमिका में इरफान खान ने अपनी अभिनय-क्षमता का लोहा मनवाया। देखते-ही-देखते वे मुख्य धारा के निर्माता-निर्देशकों की भी पसंद बन गए।


इरफान खान मौजूदा दौर के उन अभिनेताओं में हैं, जो स्वयं को फिल्मों में नायक की भूमिका के दायरे तक सीमित नहीं करते। वे यदि लाइफ इन ए मेट्रो, आजा नचले, क्रेजी 4 और सनडे जैसी फिल्मों में महत्वपूर्ण चरित्र भूमिकाएं निभाते हैं, तो मकबूल, रोग और बिल्लू में केंद्रीय भूमिका भी निभाते हैं। गंभीर अभिनेता की छवि वाले इरफान समय-समय पर हास्य-रस से भरपूर भूमिकाओं में भी दर्शकों के लिए उपस्थित होते रहे हैं। इरफान नाम ही काफी है। इनकी एक्टिंग का जादू सिर्फ हिंदुस्तान में ही नहीं पूरी दुनिया के लोगों पर छाया हुआ है। उनका कहना है कि दर्शकों की सराहना किसी भी कलाकार के लिए मायने रखती है और इससे उनका उत्साहवर्धन होता है। उनकी हॉलीवुड फिल्म ‘इनफर्नो’ को भी दर्शकों ने खूब सराहा है। इरफान ने एक बयान में कहा, “यह मायने नहीं रखता कि आपने कितनी फिल्में की हैं। दर्शकों की सराहना से हर कलाकार खुश होता है। जब इरफान की फिल्म ‘इनफर्नो’ भारत और अमेरिका में रिलीज हुई तो इस फिल्म के लिए उनकी काफी प्रशंसा हुई। इरफान का कहना है यह उनके लिए पुरस्कार जैसा है। उनका सपना है कि वह ध्यान चंद जैसे विख्यात खिलाड़ी की जीवनी पर आधारित एक फिल्म करे। हालांकि यह सपना उनका अधूरा रह गया। पान सिंह तोमर फिल्म में जान फूंकने वाले इरफान को उनके फैंस शानदार अभिनय और उनके जुझारूपन के लिए प्यार करते हैं। कोरोना महामारी के कारण लाॅकडाउन की स्थिति में इरफान खान संभवतः अन्तिम फिल्म अंग्रेजी मीडियम की सिनेमाघरों में रिलीज न होकर डिज्नी हाॅटस्टार पर हुई है, लेकिन छोटे पर्दे पर इसने सफलता के नये कीर्तिमान स्थापित किये हैं। यह सफलता उस महान् कलाकार के प्रति श्रद्धांजलि है।

3 comments:

  1. इरफान का जाना ना सिर्फ सिने जगत का एक अच्छे इंसान का जुदा होना भी आज सचमुच अखर गया । उनके जीवन के बारे में ज्यादा तो नहीं पता था कि आपने इस आलेख के माध्यम से जो श्रद्धांजलि समर्पित की है उसे पढ़कर बहुत कुछ जान सका संघर्षशील जीवन रहा था उनका शायद यही वजह थी कि उनके अभिनय में धार वह निखार था

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  2. इरफ़ान खान का जाना बहुत दुखद है. इरफ़ान के निजी जीवन की जानकारी आपके आलेख से मिली, धन्यवाद. इरफ़ान अभिनय गज़ब का था. उनको हार्दिक श्रधांजलि.

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  3. इसी अनिश्चितता का नाम ज़िन्दगी है. यही हमें आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है. किसी का जाना दुःख देता है मगर यही अनिश्चय उसी दुःख पर सुख की इमारत खड़ी करता है.

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