पुस्तक समीक्षा

() डॉ. राम बहादुर मिश्र

दुनिया के बड़े-बड़े सवाल चुप्पी में से उपजे हैं और दुनिया के बड़े-बड़े प्रश्नों के उत्तर वाणी नहींकर्म से दिए गए हैं। सीता का पृथ्वी प्रवेश सीता के द्वारा पूछा गया विकट प्रश्न भी है और इस प्रश्न का उत्तर भी कि वे निष्पाप थीं या नहीं। सीता बार-बार एक प्रेम से भरे पर कमजोर पति की खातिर अग्निपरीक्षाएं देने की तैयार नहीं थीं। कौन जाने सीता क्या कहना चाहती थीं?  बिना पल भर विलम्ब किए सीता का पृथ्वी प्रवेश कितने सवाल खड़े कर गया हैजिनमें से सबसे बड़ा सवाल यकीनन राम से है कि क्या पति होने के नाते उनका कोई कर्तव्य नहीं था? 



·         पुस्तक का नाम : धरतीपुत्री सीता (उपन्यास)

·         लेखक: रवीन्द्र प्रभात

·         प्रकाशक : नोशन प्रेस मीडिया प्राइवेट लिमिटेड, ओल्ड नं. 38, न्यू नं. 6, मैकनिकोल्श रोड, चेटपेट, चेन्नई-600031,तमिलनाडू, भारत

·         पेपरबैक : 268 पेज

·         ISBN-10 : 1637452748

·         ISBN-13 : 978-1637452745


(पुस्तक सभी ऑनलाईन स्टोर्स पर उपलब्ध है)

इस पुस्तक में अनेक विवादों को बड़े ही सहज ढंग से प्रस्तुत किया गया है। जैसे आज के पुरुष प्रधान समाज में राम की सर्वत्र चर्चा होती है, सीता की नहींआज का प्रगतिशील समाज राम को इसलिए दोष देता है कि उन्होंने गर्भवती सीता का परित्याग किया,  उसे वन में निर्वासित किया। उनका यह भी मानना है, कि सदियों से धरतीपुत्री सीता जैसी स्त्रियाँ, सत्ता के हाथों की गुड़िया रही है और राम सरीखे मर्यादा पुरुषोत्तम सत्ता तक पहुँचने के साधन। इतिहास में सीता के जन्म को लेकर भी अनेकानेक भ्रांतियाँ है। कहते हैं, सीता पृथ्वी से निकलीं। लेकिन वहीं इन सबसे अलग हटकर इस पुस्तक में यह भी तर्क दिया गया है, कि क्या बच्चे पृथ्वी से जन्म लेते हैं? जिस धनुष को दस-दस हजार राजा नहीं उठा सके, सीता उसी को उठाकर प्रतिदिन सफाई करती थी, क्या यह तथ्य विचित्र प्रतीत नहीं होता? उसी प्रकार सीता पृथ्वी में समाहित हो गई। सर्वत्र रामराज्य स्थापित हो गया। यह कहाँ तक सत्य है?  सीता और राम के बारे में क्या सोचती है आज की पीढ़ी?  इन्हीं सब बातों की पड़ताल करता यह उपन्यास दिखाई देता है।

इस पुस्तक में नायिका के रूप में जिस सीता की चर्चा की गयी है वह बिल्कुल नए किस्म की सीता है। उसी प्रकार जैसे वाल्मीकि की रामायण की सीता अलग थी और तुलसी की रामायण (रामचरित मानस) की सीता अलग। सीता के बारे में कई ऐसी बाते हैं जिनका उल्लेख बाबा तुलसीदास द्वारा लिखी गई रामचरित मानस में तो है लेकिन बाल्मीकि रामायण में नहीं है। रवीन्द्र प्रभात की यह धरतीपुत्री सीता पौराणिक परिवेश की गाथाओं से कुछ अलग हटकर है। उनकी सीता फेमिनिस्ट है, मगर टेक्स्टबुक वाली नहीं। वाल्मीकि रामायण और तुलसीदास की रामचरित मानस की सीता को हम राजा जनक की बेटी, हिंदुओं के आराध्य राम की पत्नी और लव-कुश की मां के रूप में ही ज्यादा जानते हैं। या फिर राम के साथ वनवास काटने और उनकी अग्नि परीक्षा के बाद धरती में समा जाने की घटनाओं के संदर्भों में ही सीता को याद किया जाता है। लेकिन रवीन्द्र प्रभात की इस पुस्तक में सीता के जन्म से लेकर, उनके बचपन, शिक्षा-दीक्षा,  राम के साथ विवाह और फिर रावण द्वारा हरण किए जाने तक की कथा का बहुत ही विस्तृत और रोचक वर्णन है।  

पौराणिक काल में ऐसी कई महिलाएं हुई हैं जिन्हें हम आदर्श और उत्तम चरित्र की महिलाएं मानते हैं, लेकिन उनमें से सर्वोत्तम हैं सीता। कुछ लोग सीता के जन्म की तुलना आज के टेस्ट ट्यूब बेबी से भी करते हैं। पुस्तक की शुरुआत में ही पुस्तक की नायिका पूछती है, कि क्या सचमुच सीता इतिहास की पहली टेस्ट ट्यूब बेबी थी और इन तथ्यों को अपने तर्क की कसौटी पर सच सिद्ध करने की कोशिश भी करती है। रवीन्द्र प्रभात ने पूरे उपन्यास में सीता के किरदार को बहुत ही सजीव, बांधने वाले और विस्तृत रूप से वर्णन किया हैं। इन दिनों पुराकथाओं को नए पन में गूंथकर दिखाने का जो ट्रेंड चल पड़ा है, यह किताब उसी का ट्रेंड का एक हिस्सा है।

देवी-देवताओं की कथाओं पर आधारित अनेकानेक कथाएं लिखी जाती रही हैं, आने वाले समय में भी लिखी जाती रहेंगी। कुछ दशक पहले राम की कथाओं के नए नए संस्करण सामने आये थे, फिर शिव-कथाओं का दौर आया। आजकल सीता की कथाओं का दौर चल रहा है। नारी पात्रों में सीता ही सर्वाधिक, विनयशीला, लज्जाशीला, संयमशीला, सहिष्णु और पातिव्रत की दीप्ति से दैदीप्यमान नारी हैं। समूचा रामकाव्य उसके तप, त्याग एवं बलिदान के मंगल कुंकुम से जगमगाता है। वहीं दूसरी तरफ एक ऐसी कन्या की भी चर्चा है, जिसे इतिहास की पहली परखनली शिशु कहा गया, तो वहीं यह भी माना गया कि एक गोद ली हुई कन्या रघुकुल की महारानी बनती हैं। हर किसी ने सीता को भिन्न भिन्न रूप में प्रस्तुत किया है, किन्तु धरतीपुत्री सीता एक अलग ही सोच के साथ लिखी गयी आत्मकथात्मक गाथा है। धार्मिक पात्रों को एक नए, सजीव और विश्वसनीय रूप में देखने, जानने और पढ़ने की इच्छा रखने वालों के लिए और देशकाल के हिसाब से मूल्यों की परख रखने वालों के लिए यह एक बेहतरीन औपन्यासिक कृति है। लोक-भाषा अवधी के संवर्धन में विगत चार दशकों से संलग्न होने के बावजूद मैंने सीता पर ऐसी वृहद प्रस्तुति नहीं देखी। इसके लिए लेखक बधाई के पात्र हैं।

-संपादक: अवध ज्योति (त्रैमासिक पत्रिका), 

नरौलीबीजापुरहैदरगढ़जनपद-बाराबंकी (उ. प्र.)


0 comments:

Post a Comment

 
Top