अनुशासन होना जीवन के हर क्षेत्र में अत्यावयश्क है. अनुशासनहीन जीवन या व्यक्ति कितना भी अच्छा या नेकदिल हो, लेकिन ये प्रवृति कभी न कभी, कहीं न कहीं आलोचना का शिकार बना ही देती है. कभी व्यक्ति को, कभी उसके परवरिश को तो कभी माहौल को. बिना अनुशासन सार्थक जीवन मुश्किल है. अनुशासन हमें जीवन के हर पड़ाव पर विभिन्न प्रकार के नियमों और कायदों के साथ चलना सिखाती है. इसलिए हर माता पिता चाहते हैं कि उनके बच्चे अनुशासित हों. 

हर माता पिता की ख्वाहिश होती है कि उनके बच्चे की हर तरफ तारीफ़ हो. हर किसी की चाहत यही है कि उनका बच्चा अनुशासित होगा तो समाज में लोग उनके बच्चे को सम्मान की दृष्टि से देखेंगे. इसलिए हर माता पिता अपने बच्चों को बचपन से ही अनुशासन सिखाते हैं. और यह माता पिता, गुरु और बड़ों की ज़िम्मेदारी भी है कि बचपन से ही उन्हें अनुशासन का महत्व, ज़रूरत और अनुशासन में रहना सिखाया जाये. 

अनुशासन का शाब्दिक अर्थ है – स्वयं पर शासन अथवा नियंत्रण. अर्थात व्यक्ति का अपने आपको समय, अवस्था, माहौल और ज़रूरत के अनुसार नियंत्रित रखकर कार्य करना. लेकिन कई बार देखा गया है कि अनजाने में मातापिता अथवा गुरु , बच्चों को अनुशासन सिखाने की बजाए उन्हें अपने शासन में रखने लगते हैं. ये बहुत ही ग़लत और मूर्खतापूर्ण स्थिति है. आपको शासन और अनुशासन के बीच के छोटे से फ़र्क को समझना ही होगा अन्यथा आपसे आपके बच्चे की दूरी बढती जाएगी, आपके बच्चे अनुशासित होने की जगह आपके शासन में एकाकी और दब्बू बनते चले जायेंगे. अगर रिश्तों में मिठास का अनुभव नहीं रहेगा, तो बच्चे कुछ भी अच्छा दिल से सीखने की जगह भयवश सिर्फ अच्छाई का दिखावा करने लगेगें. 

यदाकदा कई ऐसे उदहारण सामने आ जाते हैं जब हम सोचतें है कि, अरे मातापिता तो इतने अच्छे थे, उनका टा इतना बुरा आदमी कैसे बन गया. या उनके घर का माहौल तो काफी स्ट्रिक्ट था, उनका बच्चा फलां ग़लत काम में कैसे फँस गया. जाने अनजाने कुछ मातापिता अनुशासन की जगह बच्चों के मन में डर पैदा कर देते हैं. ये करो वो मत कर, वर्ना ऐसा होगा, वर्ना डांट पड़ेगी, सज़ा मिलेगी. यदि मार्क्स अच्छे नहीं आये तो बदनामी होगी, फलां कॉम्पीटिशन नही जीता तो लोग क्या कहेंगे इत्यादि. इस तरह की तमाम बातें एक तरह से बच्चों के मन में मात्र होड़ और दहशत ही पैदा करती है. सच तो ये है कि मार्क्स का भय नहीं, बच्चों को शिक्षा का मतलब समझाइए, कॉम्पीटिशन को जीतने की मात्र होड़ नही बल्कि जीवन के हर क्षेत्र में अग्रसर रहने के महत्व समझाइए. 

अमुक काम अगर नही करना है तो क्यूँ नही करना चाहिए ये बताएं उन्हें. अगर उनको कुछ करना सिखाना है तो उन्हें ये एहसास दिलाएं कि ये उनको आपके लिए नही करना है बल्कि ये उनके खुद के लिए कितना जरूरी और लाभदायक है ये बताएं. बच्चों को अनुशासन में रहना सिखाएं प्यार से, इसलिए कि ये उनके लिए ही ज़रूरी है. उनके मन में प्रेरणा कुछ यूँ भरें कि वो खुद अनुशासित रहकर खुश रहें. अनुशासित जीवन जीने की प्रवृति उनके मन में पैदा कर दिए जाएँ तो यकीनन कोई भी ग़लत राह नही चुनेगा, न ही मातापिता से उनकी दूरी बढ़ेगी. माता पिता, गुरु या परिजन अक्सर भूलवश बच्चों को शासन में रखने लगते हैं तो उनके मन में वितृष्णा जागती है, डर पैदा होता है. 

अबोध बच्चे फिर हर बात बड़ों से बताने में डरने लगते हैं. उनसे छुपाने लगते हैं और ग़लतियाँ होती चली जाती है. बचपन की यही छोटी छोटी ग़लतियाँ कई बार वक़्त के साथ विस्तार रूप ले लेती है और जीवन में भयानक परिणाम भी ले आती है. तब कोई उपाय नही रह जाता है उन्हें मुक्ति दिलाने का. इसलिए बचपन से ही बेहतर जीवन की सुदृढ़ नींव डालनी होगी और यही है नींव जिसे हम अनुशासन कहते हैं. बच्चों को अनुशासन में रखना नहीं चाहिए अपितु उन्हें अनुशासन में रहना सिखाया जाये. हर मातापिता और गुरु का ये कर्तव्य है कि बच्चों को प्रेम से, सौहार्द से और कोमलता से अनुशासित करें, भयभीत नहीं. 
-कीर्ति प्रकाश, मुम्बई

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