जत पट पर अब ना केवल मध्यप्रदेश चमकेगा, बल्कि कई नई प्रतिभाओं को चमकने का अवसर भी प्रदान करेगा। फिल्म प्रोत्साहन के लिए सरकार द्वारा किये जा रहे प्रयासों को देखकर तो यही लगता है कि अब फिल्म विधाओं में रोजगार-स्वरोजगार की नई संभावनाएं जल्द ही बढ़ने जा रही हैं। मप्र में संपन्न खजुराहो फिल्म फेस्टिवल की भव्यता और आने वाले मार्च माह में आईफा अवार्ड समारोह की घोषणा ने सिनेप्रेमियों को उत्साह से भर दिया है।

घरों में टेलीविजन और हाथों में मोबाइल आया तो लगा कि जैसे फिल्मों का क्रेज घटने लगा, लेकिन ऐसे ही दौर में मध्यप्रदेश फिल्म फ्रेण्डली प्रदेश बनने जा रहा है जिसकी ना केवल अपनी फिल्म नीति होगी, बल्कि फिल्म सिटी भी होगी। इसकी शुरूआत भी आईफा अवार्ड समारोह 2020 से होने जा रही है। एक ऐेसा अवार्ड समारोह जो अब तक दुनिया के बड़े शहरों में ही होता आया है अब भोपाल और इंदौर में भी होगा।

खजुराहो अंतर्राष्ट्रीय फिल्म फेस्टिवल के सफल आयोजन ने इस आस-विश्वास को और भी बढ़ा दिया है। 17 से 23 दिसम्बर तक चले खजुराहो फिल्म फेस्टिवल का जिस शानदार तरीके से रंगारंग आगाज हुआ उतने ही भव्य तरीके से समापन भी हुआ। पन्ना जिले की सीमा से लगी पर्यटन नगरी खजुराहो में 5वें अंतर्राष्ट्रीय फिल्म फेस्टिवल में कड़कड़ाती ठण्ड में भी देश-प्रदेश से पहुंचे सिनेमा प्रेमियों की उपस्थिति ने ग्रीष्म-सी उष्मा का अहसास करा दिया।

यह फेस्टिवल इस मायने में तो उपयोगी रहा ही कि मध्यप्रदेश को अंतर्राष्ट्रीय पहचान दिलाने वाली पर्यटन नगरी में किया गया, इस मायने में भी बहुत महत्वपूर्ण रहा कि फेस्टिवल में सामाजिक मुद्दों को गंभीरता से उठाया गया। आमतौर पर जहां फिल्म फेस्टिवल फिल्मों के प्रदर्शन तक सीमित रह जाते हैं वहीं खजुराहो फिल्म फेस्टिवल में फिल्मों और शूटिंग से जुड़े मसलों पर भी मंथन किया गया। अनुभवी फिल्मकारों, कलाकारों के अनुभव जाने तो राजनेताओं को भी सुना गया।

मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री कमल नाथ ने तो यहां तक कहा कि फिल्में सिर्फ मनोरंजन का साधन ही नहीं, बल्कि यह आर्थिक समृद्धि का जरिया भी बनती हैं। निःसंदेह नई फिल्म नीति और फिल्म सिटी बनने से जहां फिल्म निर्माताओं को प्रोत्साहन मिलेगा, वहीं स्थानीय कलाकारों को भी अवसर प्राप्त होगा। चूंकि फिल्म निर्माण की तकनीक में पहले की तुलना में काफी बदलाव आया है। नई फिल्म तकनीक का प्रशिक्षण यदि युवाओं को मिले, और कौशल विकास केन्द्रों के माध्यम से उन्हें प्रशिक्षित किया जाए तो मध्यप्रदेश फिल्मों के माध्यम से आर्थिक समृद्धि और सामाजिक परिवर्तन की नई मिसाल पेश कर सकता है।

फिल्मों को लेकर जहां महानगरों में मॉल कल्चर पनपा है तो कस्बा, ब्लॉक और तहसील स्तर पर छोटी स्क्रीन के माध्यम से फिल्म प्रदर्शन के प्रयास को बल दिया जा रहा है। मध्यप्रदेश के बुंदेलखंड में इस फिल्म फेस्टिवल का होना इस लिहाज से भी उपयोगी समझा जा रहा है, क्योंकि मध्यप्रदेश का बुंदेलखंड क्षेत्र अब भी कई मायनों में पिछड़ा हुआ माना जाता है। बुंदेलखण्ड के पिछड़ेपन को दूर करने में फिल्में भी अहम भूमिका निभा सकती हैं और विकास के नक्शे पर बुंदेलखण्ड अग्रणी क्षेत्र के रूप में अंकित हो सकता है और इस बात को केवल फिल्मी कलाकार और बुंदेलखंड के लोग ही नहीं समझ रहे हैं, बल्कि राज्य की सरकार और स्वयं राज्यपाल लालजी टंडन भी महसूस कर रहे हैं। उन्होंने तो यहां तक कहा है कि खजुराहो की कला पूरे विश्व में कहीं नहीं है। इसलिए खजुराहो पर एक वृत्तचित्र बनना चाहिए ताकि दुनिया यहां कि मंदिरों में छिपी खूबसूरती को समझ सके।

फिल्म फेस्टिवल में टपरा टॉकीज का प्रयोग भी लोगों की दिलचस्पी को बढ़ाने वाला रहा। संस्कृति एवं पर्यटन विभाग और प्रयास प्रोडक्शन मुंबई द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित पाँचवें खजुराहो अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव का शुभारंभ महात्मा गांधी के 150वें जन्म वर्ष परगांधीफिल्म के प्रदर्शन से हुआ। हालांकि सात दिवसीय फिल्मोत्सव की थीम कॉमेडी पर आधारित रही। फिल्मों के प्रदर्शन के साथ-साथ स्थानीय हास्य कलाकारों ने भी अपनी कला का प्रदर्शन किया और फिल्मों को लेकर अपने गंभीर चिंतन से अवगत भी कराया।
हास्य कलाकार राजपाल यादव ने मंच पर अपने चुनिंदा संवादों को बोलकर लोगों को गुदगुदाया। उन्होंने फिल्म हंगामा के वे डायलॉग सुनाये जिसमें जनता उन्हें पीटती है और वे खीझकर स्वयं को मंदिर का घंटा बताने लगते हैं। फिल्म निर्देशक राहुल रवैल ने कहा कि यदि फिल्म निर्माता-निर्देशकों को प्रशासन से सहयोग मिले तो वे भी इतने अच्छे पर्यटन स्थल पर आकर फिल्मों की शूटिंग कर सकते हैं क्योंकि यहां फिल्मों की शूटिंग की पर्याप्त संभावनाएं हैं। फिल्म निर्देशक अनुराग बसु, श्रीराम बुंदेला फिल्मों से ही जुड़े कलाकार महिमा चौधरी, सुष्मिता मुखर्जी, रोहितांश गौड़, विकी आहूजा, सुलभ मल्होत्रा, सुनीता मिश्रा, उदय शंकर पाणी, मनोहर खुशलानी, अरविंद मिश्र, अखिल मिश्रा जैसी कई फिल्मी हस्तियों ने जहां सिनेप्रेमियों से संवाद किया वहीं फिल्म महोत्सव को सराहा भी।

खजुराहो अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव का खास आकर्षण रहीं शार्ट फिल्में। खेरमाई प्रॉडक्शन के राजेन्द्र नागदेव ने निःशक्त बच्चों की समस्याओं पर केन्द्रित लघु फिल्म को एक बार अवश्य देखने की अपील की।

जेल परिसर में बना मॉ वेष्णों का भव्य दरबार और पूजा करते जेल बंदी का दृश्य शहरवासियों के लिए भले आश्चर्यचकित करता हो, लेकिन फिल्म महोत्सव में दर्शकों के बीच आकर्षण का केन्द्र रहा। सतना सेण्ट्रल जेल पर बनी 45 मिनिट की शार्टमूवी का निर्देशन रंगकर्मी हरि चौरसिया ने किया। जेल बंदियों के जीवन में बदलाव को दर्शाती शार्ट मूवी ‘‘जेल एक दास्तान’’ समाज को आपराधिक वारदातों से दूर रहने का संदेश देती है। फिल्म के जरिए ये बताने का प्रयास किया गया है कि कैसे लोग जाने-अनजाने में किसी घटना को अंजाम दे बैठते हैं और बाद में सलाखों के पीछे पश्चाताप करते रहते हैं। फिल्म में जेल बंदियों की दिनचर्या, अधिकारियों का मोटिवेशन और अच्छे कार्य के लिए उनकी सजा कम करने जैसी घटनाओं को भी दर्शाया गया है।

एक अन्य शार्टमूवी वन्यजीवों का संसार भी फिल्म महोत्सव में चर्चा में रही। बांधवगढ़ नेशनल पार्क में फिल्माई गई इस फिल्म में समाज को पर्यावरण संरक्षण और संवर्धन के प्रति जागरूक करने का प्रयास किया गया है। 19 मिनिट की फिल्म में वन्य प्राणियों की स्थिति, जंगल, पहाड़, नदी से मानव के गहरे संबंध उजागर करते हुए यह बताने का प्रयास किया गया कि बंदूक नहीं कैमरे में कैद करो वन्यजीवों का संसार।

सामाजिक सरोकार से जुड़ी एक और फिल्म जिसने सर्वाधिक प्रसंशा बटोरी वह है पान उत्पादकों की समस्या पर केन्द्रित 20 मिनिट की शार्टमूवी, जिसमें पान उत्पादन की बारीकियों के साथ ही बरेजों की आर्थिक स्थिति का दृश्यांकन किया गया है।

इसके अलावा वीरेंद्र सजल की मां-मुझे मार दे, एसएन पटेल की- रे जोगिया, फिरोज अंसारी- थैंक यू, सुनील सोंधिया की-रिश्तों का एहसास, शुभम यादव की-परी, रन विजय पाल की-साईं की कृपा, रविंद्र चौहान की-दृष्टि, शैलेंद्र प्रताप की- एक बूंद, हारून रसीद की-अनमोल रद्य, शुभम पटेल की- यातायात जागरुकता, चार्ली चेरियन की- स्वच्छ भारत और दीपेंद्र शर्मा की- प्रयाग प्रवाह फिल्म दिखाई गई। फिल्म प्रयाग प्रवाह के माध्यम से इलाहाबाद की त्रिवेणी और यहां लगने वाले कुंभ मेले का वर्णन एवं महत्व को बताया गया। इस फिल्म में बताया कि राजा भोज की नगरी धार के 2 साहित्यकारों ने कुंभ महापर्व पर रिसर्च किया। देश के 4 कुंभों में उज्जैन पर जयतु सिंहस्थ और प्रयागराज के इंटेक ने शोध परक दस्तावेजी करण कार्य किया है। फिल्म प्रयाग प्रवाह को जम्मू अंतरराष्ट्रीय फिल्म फेस्टिवल के लिए चयनित किया गया और चित्र भारती फिल्म फेस्टिवल उज्जैन में पुरस्कृत भी किया गया है। अनमोल रत्न फिल्म में पानी का महत्व बताया गया। खास बात तो यह है कि जिसने ये फिल्म बनाई हैं उन्होंने स्वयं इस फिल्म में एक साथ 10 पात्रों के लिए अभिनय किया है। यह फिल्म जल समस्या पर आधारित है, पहले लोग पानी का महत्व नहीं समझते और उसकी जमकर बर्बादी करते हैं। बाद में धीरे-धीरे पानी की कमी होती जाती है और एक समय लोग बूंद-बूंद पानी के लिए जूझने लगते हैं। प्यास के कारण लोग मरने लगते हैं तब उन्हें एहसास होता है कि जीवन में पानी कितना महत्वपूर्ण है। इस फिल्म को इंडिया बुक ऑफ रिकार्ड में भी स्थान मिला है। अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सव में यूक्रेन के राजदूत रोसटिसलव वी जट्सपिलिन उपस्थिति भी विशेष रही। उन्होंने बताया कि वे खजुराहो फिल्म फेस्टिवल में आकर बहुत रोमांचित हैं। भारतीय सिनेमा को अपनी पसंद बताते हुए उन्होंने ये भी कहा कि भारत की सीता और गीता फिल्म मेरी सबसे मनपंसद फिल्म है। उन्होंने कहा कि खजुराहो को मंदिरों और टाइगर के नाम से  जाना जाता है। लेकिन अब यह थियेटर के नाम से भी जाना जाएगा। यह स्थल फिल्म निर्माण के लिए बेहतर है। मैं अपने  देश के फिल्मकारों को यहां आकर फिल्मों की शूटिंग करने के लिए प्रोत्साहित करूंगा।  अर्जेंटीना के भारत में तैनात राजदूत डेनियल चुबुरू ने भी कहा कि वे अपने देश के फिल्म निर्मादाओं से खजुराहो के अनुभव साझा करेंगे। उन्हें खजुराहो में फिल्मों की शूटिंग करने के लिए प्रेरित करेंगे। खजुराहो फिल्म फेस्टीवल एक सराहनीय कार्य है। यह फिल्म निर्माताओं और कलाकारों के लिए एक शानदार मंच भी है। उन्होंने कहा कि यहां आकर भारतीय संस्कृति, भारतीय फिल्मों के बारे में एक नया अनुभव मिला। मंदिर और मूर्तियों की कलाकारी लाजवाब है। आसपास का इलाका भी प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर है। वे अर्जेंटीना के फिल्मकारों को खजुराहो में फिल्मों की शूटिंग करने के लिए प्रेरित करेंगे।

समापन समारोह में रही-सही कसर राज्यपाल लालजी टंडन यह कहते हुए पूरी कर दी कि खजुराहो अपने अनोखे वास्तुशिल्प के प्रतीक मंदिरों और स्मारकों के कारण विश्वविख्यात है। इस विश्व धरोहर पर हमें गर्व है। अंतर्राष्ट्रीय फिल्म समारोह जैसे आयोजन खजुराहो की ख्याति के विस्तार में सहायक है। ऐसे समारोह भारतीय वास्तुकला और पुरा-सम्पदा को विश्व के समक्ष लाने का माध्यम भी हैं। सचमुच खजुराहो की मूर्तिकला और विभिन्न मंदिर महत्वपूर्ण धरोहर है। इनका संरक्षण होना ही चाहिए। यह प्रयास क्षेत्र के विकास में भी सहयोगी है।

वर्ष 2015 से शुरू हुआ यह महोत्सव गोवा फिल्म फेस्टिवल के स्तर का बनाने के प्रयास किये जा रहे हैं। सुखद अनुभूति देने वाले पल तब आए जब खजुराहो फिल्म महोत्सव के तीसरे दिवस मुख्यमंत्री कमलनाथ ने आईफा अवार्ड-2020 का आयोजन इंदौर और भोपाल में कराने के प्रस्ताव को स्वीकृति प्रदान की। आईफा (इंटरनेशनल इण्डियन फिल्म एकेडमी) अवार्ड-2020 का आयोजन मार्च माह में प्रदेश के भोपाल और इंदौर शहर में होगा। आईफा अवार्ड समारोह वर्ष 2000 से होता रहा है। वर्ष 2000 में पहला आयोजन लंदन में हुआ था। आईफा से फिल्म जगत की महान हस्ती अमिताभ बच्चन जुड़े हुए हैं। मध्यप्रदेश के महानगरों में इस आयोजन के होने से प्रदेश का नाम पूरे विश्व में होगा। अवार्ड समारोह का प्रसारण दुनिया के 90 देशों में किया जाएगा। मध्यप्रदेश में फिल्म और टेलीविजन के माध्यम से फिल्मों को बढ़ावा देने के साथ-साथ पूरे विश्व में मध्यप्रदेश के पर्यटन स्थलों और मध्यप्रदेश में मौजूद पर्यटन की संभावनाओं को प्रदर्शित किया जा सकेगा। इसमें स्किल डेव्हलपमेंट के तहत साउण्ड, लाइट, फिल्म फोटोग्राफी, विजुअल इफेक्ट आदि फिल्म विधाओं में ट्रेनिंग सहित अन्य रोजगार का सृजन भी होगा।

फिल्म महोत्सव में स्थानीय कलाकारों ने भी अपनी प्रस्तुति से एक अलग ही छाप छोड़ी। बुंदेलखंड के कलाकारों ने जहां बधाई नृत्य से लोगों को झूमने पर विवश कर दिया तो बुंदेलखंड के लोक नृत्यों, नौरता नृत्य और बुंदेली नृत्य नाटिका ने भी पांडाल में तालियों की गड़गड़ाहट से भरपूर प्रसंशा बटोरी। ललितपुर के राघव लोककला सोसाइटी द्वारा मयूर नृत्य पर आधारित कृष्ण लीला, शिव तांडव, राधा कृष्ण नृत्य की शानदार प्रस्तुति दी गई। रंग विदुषी वंशी कोल के नाटक का भी मंचन किया गया, इस हास्य नाटक को देख दर्शक हंस-हंस कर लोट पोट हो गए। कुल मिलाकर समूचा महोत्सव यादगार बन गया।
प्रस्तुति/संकलन: आशीष श्रीवास्तव


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