- रवीन्द्र प्रभात
आज मैं समीक्षा की एक महत्वपूर्ण पुस्तक "समीक्षा के सोपान" और उसके लेखक डॉ विनय दास की चर्चा करने जा रहा हूं ।  डॉ विनय दास उन गिने चुने समीक्षकों मे है, जिनकी समीक्षाओं मे मौलिकता के साथ बेबाकी भी रहती है, जो शायद आज के समीक्षको मे विरल हो चला है।

डॉक्टर श्यामसुन्दर दास ने ठीक ही कहा है कि "यदि हम साहित्य को जीवन की व्याख्या मानें तो आलोचना को उस व्याख्या की व्याख्या मानना पड़ेगा।" अर्थात् आलोचना का कर्तव्य साहित्यक कृति की विश्लेषण परक व्याख्या से है। क्योंकि साहित्यकार जीवन और अनभुव के जिन तत्वों के संश्लेषण से साहित्य रचना करता है, आलोचना उन्हीं तत्वों का विश्लेषण करती है। 

आलोचक, साहित्यकार डॉ विनय दास की नई पुस्तक "समीक्षा के सोपान" की बात की जाए तो यह स्पष्ट होता है कि समीक्षक ने अपनी पुस्तक में एक ओर जहां समीक्षा को रचनात्मक साहित्य से जोड़ा है वहीं दूसरी तरफ समकालीन साहित्य से। साथ ही कुछ कलजयी लेखकों के जीवन वृत्त को समेटने का बेहद जरूरी काम भी उन्होंने किया है वहीं तेजी से बढ़ते अभिव्यक्ति के नए मध्यम जैसे ब्लॉग और सोशल मीडिया से संबधित पुस्तकों की समीक्षा से भी जोड़ा है, जो इस पुस्तक की स्तरियता को एक नया सोपान देता है।

इस पुस्तक में 28 लेख संकलित हैं, इन लेखों में जहां एक ओर शिवमूर्ति, संजीव, शकील सिद्दीकी, लक्ष्मीकांत वर्मा, मुद्राराक्षस आदि के व्यक्तित्व व कृतित्त्व की पड़ताल की गई है वहीं दूसरी ओर मानुष पुराण, एकांतवासी शत्रुघ्न, माकड़ किस्सा, प्रेम न हाट बिकाय, शोषण के अभ्यारण्य आदि पुस्तकों की समीक्षा भी। वहीं तीसरी ओर 'उपन्यास की दशा- दिशा'  एवं 'वामपंथी आलोचना की ढहती दीवार' की पड़ताल भी गई है। साथ ही इक्कीसवीं सदी में अभिव्यक्ति की नई क्रांति- 'सोशल मीडिया और उसकी चर्चित विधा -'ब्लॉगिंग' पर विस्तार से लिखा गया है। 

कहा गया है कि किसी भी आलोचक अथवा समीक्षक के लिए सबसे अहम उसका आलोचनात्मक विवेक होता है | इस गुण के बिना आलोचक साहित्य की आत्मा में प्रवेश ही नहीं कर सकता है। क्योंकि किसी भी साहित्य के आलोचना के विकास की दो प्रमुख शर्त्तें हैं-पहली कि आलोचना रचनात्मक साहित्य से जुड़ती हो और दूसरी कि वह समकालीन साहित्य से जुडती हो | हिंदी आलोचना अपने प्रस्थान बिंदु से ही इन दोनों कसौटियों पर खरी उतरती रही है | जबकि डॉ विनय दास ने अपनी पुस्तक में समीक्षा के इन दोनों आयामों से आगे बढ़कर कलजयी रचनाकारों के बारे में एक महत्वपूर्ण विमर्श के साथ साथ इक्कीसवीं शताब्दी में अभिव्यक्ति की नई क्रांति को भी स्थान दिया है, जो इस पुस्तक की गरिमा को बढ़ाता है।

समीक्षा के क्षेत्र में अपने सशक्त कदम आगे बढ़ाने वाले डॉ.विनय दास को उनकी सद्य प्रकाशित कृति के लिए बहुत बहुत बधाई और इस आशा व विश्वास के साथ अनंत शुभकामनाएं कि यह पुस्तक आने वाली नई पीढ़ी को एक दृष्टि देने में सफल होगी।

पुस्तक - समीक्षा के सोपान

लेखक - डॉ विनय दास 

प्रकाशक - उद्योग नगर प्रकाशन गाजियाबाद 

मोबाइल - 9818249902 

मूल्य - 300 रुपए

                                                      - रवीन्द्र प्रभात 

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