विगत वर्ष मुझे परिकल्पना के सौजन्य से ऐसे देश में जाने का मौका मिला जहां की नब्बे प्रतिशत आबादी मुसलमान है लेकिन वहां रामायण की गहरी छाप देखने को मिली, नाम है इंडोनेशिया। नब्बे प्रतिशत निवासी मुसलमान होने के बावजूद उनकी सभ्यता और संस्कृति पर रामायण की गहरी छाप है। इस सम्बंध में फादर कामिल बुल्के नें लिखा है कि, 'पैंतीस वर्ष पहले मेरे एक मित्र ने जावा के किसी गाँव में एक मुस्लिम शिक्षक को रामायण पढ़ते देखकर पूछा था कि आप रामायण क्यों पढ़ते है तो उन्हें उत्तर मिला था कि, 'मैं और अच्छा मनुष्य बनने के लिए रामायण पढ़ता हूँ। साल 1973 में यहाँ सरकार ने अंतरराष्ट्रीय रामायण सम्मलेन का आयोजन भी किया था। यह अपने आप में काफी अनूठा आयोजन था, क्योंकि घोषित रूप से कोई मुस्लिम राष्ट्र पहली बार किसी अन्य धर्म के धर्मग्रन्थ के सम्मान में इस तरह का कोई आयोजन कर रहा था। इंडोनेशिया में आज भी रामायण का इतना गहरा प्रभाव है कि देश के कई इलाकों में रामायण के अवशेष और पत्थरों तक की नक्काशी पर रामकथा के चित्र आसानी से मिल जाते हैं।

इंडोनेशिया देश में रामायण का एक ऐसा संस्करण या हम कहे एक ऐसा रूप प्रचलित है जो शायद हमारे ऋषि वाल्मीकि जितना ही सुंदर और मधुर है जिसे 'काकविन रामायण' कहा जाता है। 'काकविन रामायण' का अर्थ है  वह रामायण जो इंडोनेशिया, बाली और सुमात्रा देशों की प्राचीन भाषा जावनी और संस्कृत भाषा के मिश्रण के माध्यम से काव्य के रूप में प्रस्तुत किया जाता है। यह रामायण ऋषि वाल्मीकि जी की रामायण से नहीं बल्कि सातवीं शताब्दी में लिखी गई ओवी भट्टी की कविता भट्टीकाव्य से प्रेरित है, जिसमे रावण के वध का वर्णन किया गया है। इस रामायण का पहला भाग तो सामान्य रामायण के अनुरूप है, लेकिन इसके दूसरे भाग को बहुत से भारतीय विद्वानों द्वारा समझा नहीं जा सका है। इंडोनेशिया में रामायण को पुस्तक द्वारा कम पढ़ा जाता है, इसके अतिरिक्त रामायण को थियेटर में नाटक, कविताएं, भजन एवं गाने, विभिन्न प्रकार के नाच और कठपुतली के द्वारा जन-जन तक पहुंचाया एवं दिखाया जाता है। वायंग कठपुतली शो इंडोनेशिया का सबसे पुराना कठपुतली खेल शो है जिसमें रामायण की कहानियां होती है।रामकथा पर आधारित जावा की प्राचीनतम कृति 'रामायण काकावीन' है। यह नौवीं शताब्दी की रचना है। परंपरानुसार इसके रचनाकार योगीश्वर हैं और यहाँ की एक प्राचीन रचना 'उत्तरकांड' भी  है जिसकी रचना गद्य में हुई है। 'चरित रामायण' अथवा कवि जानकी में रामायण के प्रथम छह खण्डों की कथा के साथ साथ व्याकरण के उदाहरण भी दिये गये हैं। बाली द्वीप के संस्कृत साहित्य में अनुष्ठभ छंद में पचास श्लोकों की संक्षिप्त रामकथा है। रामकथा पर आधारित परवर्ती रचनाओं में 'सेरतकांड', 'रामकेलिंग' और 'सेरी राम' का नाम उल्लेखनीय है। इनके अतिरिक्त ग्यारहवीं शताब्दी की रचना 'सुमनसांतक' में इंदुमती का जन्म, अज का विवाह और दशरथ की जन्मकथा का वर्णन हुआ है। चौदहवीं शताब्दी की रचना अर्जुन विजय की कथावस्तु का आधार अर्जुन सहस्त्रवाहु द्वारा रावण की पराजय है।

वैसे रामायण काकावीन की रचना कावी भाषा में हुई है। यह जावा की प्राचीन शास्रीय भाषा है। काकावीन का अर्थ महाकाव्य है। कावी भाषा में कई महाकाव्यों का सृजन हुआ है,उनमें रामायण काकावीन का स्थान सर्वोपरि है। रामायण का कावीन छब्बीस अध्यायों में विभक्त एक विशाल ग्रंथ है, जिसमें महाराज दशरथ को विश्वरंजन की संज्ञा से विभूषित किया गया है और उन्हें शैव मतावलंबी कहा गया है। इस रचना का आरंभ राम जन्म से होता है। विश्वामित्र के साथ राम और लक्ष्मण के प्रस्थान के समय अष्टनेम ॠषि उनकी मंगल कामना करते हैं और दशरथ के राज प्रसाद में हिंदेशिया का वाद्य यंत्र गामलान बजने लगता है।केकक और योग्यकर्ता नाम के नृत्य के द्वारा भी रामायण की कहानियों को दर्शकों तक पहुंचाया जाता है। इस रामायण में मां सीता का नाम बदलकर सिंटा कर दिया है, बाकी सभी किरदार और व्यक्तियों के नाम समान है। हालांकि एक महत्वपूर्ण अंतर यह है कि जैसे भारतीय रामायण मां सीता को एक कोमल, सुंदर, और धैर्यवान महिला के रूप में चित्रित करती है वहीं काकाविन रामायण उन्हें बोल्ड, मजबूत के रूप में चित्रित करती है, और प्रभु राम की प्रतीक्षा करने के बजाय रावण की लंका में असुरों से लड़ती हुई दिखाई देती है।

इसकी कथा में अयोध्या के राजा दशरथ के चार पुत्र थे।  राम , भरत , लक्ष्मण और शत्रुघ्न । एक दिन विश्वामित्र नाम के एक तपस्वी ने अनुरोध किया कि दशरथ उनके आश्रम पर एक राक्षस के हमले को रोकने में उनकी मदद करें। फिर राम और लक्ष्मण चले गए। आश्रम में, राम और लक्ष्मण ने राक्षसों का विनाश किया और मिथिला देश की ओर चले गए जहां एक स्वयंबर का आयोजन किया जा रहा था। स्वयंबर के आगंतुक को राजा की बेटी सिंता से विवाह कराया जाना था। प्रतिभागियों को उस धनुष को खींचने के लिए कहा गया था जो सिंता के जन्म के समय उसके साथ था। राम को छोड़कर एक भी सफल नहीं हुआ, फिर उन्होंने शादी कर ली और अयोध्या लौट आए। अयोध्या में राम राजा बनने को तैयार थे, क्योंकि वे सबसे बड़े पुत्र थे। हालाँकि, राजा दशरथ की एक और पत्नी कैकेयी ने राजा की शपथ लेते हुए अपने पुत्र भरत को राजा बनाने के लिए कहा। निराश होकर राजा दशरथ ने उन्हें राजपाट दे दिया। राम, सिंता और लक्ष्मण को महल छोड़ने के लिए मजबूर किया गया, और, गहन शोक में, राजा दशरथ की मृत्यु हो गई। नये राजा भरत ने राम की खोज की। उन्हें लगा कि वह राजा बनने के लायक नहीं हैं और उन्होंने राम से अयोध्या लौटने के लिए कहा। हालाँकि, राम ने इनकार कर दिया और अपने अधिकार के प्रतीक के रूप में भरत को अपनी पादुकाएँ दे दीं। भरत राम की पादुकाएँ लेकर महल में लौट आये। राम अपने दोनों साथियों के साथ जंगल में रहने चले गये। उनके प्रवास के दौरान, शूर्पणखा नामक एक राक्षसी ने लक्ष्मण को देखा और उससे प्यार करने लगी और एक सुंदर महिला का रूप धारण कर लिया। लक्ष्मण को उसमें कोई दिलचस्पी नहीं थी और जब उसने हिंसक होने की धमकी दी तो उसने उसकी नाक भी काट दी। वह क्रोधित हो गई और उसने यह बात अपने भाई लंका के राक्षस राजा रावण को बताई। सुपर्णखा ने रावण को सिंता की सुंदरता के बारे में बताया और इस तरह उसे सिंता का अपहरण करने के लिए राजी किया। सिंता ने एक सुंदर हिरण देखा और राम से उसे पकड़ने के लिए कहा। राम ने सिंता की रक्षा का दायित्व लक्ष्मण को सौंपा। राम लंबे समय के लिए चले गए थे, और सिंता ने चिंतित होकर लक्ष्मण को उसे छोड़ने और राम की तलाश में जाने के लिए मना लिया। रावण ने उस क्षण का लाभ उठाते हुए सिंता का अपहरण कर लिया और उसे लंका ले गया। तब राम और लक्ष्मण ने उसे वापस लाने की कोशिश की। अपने प्रयास में उन्हें शिव के अवतार हनुमान से मदद मिली। अंत में रावण मारा गया। राम और सिंता फिर अयोध्या लौट आए जहाँ राम का राज्याभिषेक किया गया था। रामायण काकावीन में परशुराम का आगमन विवाह के बाद अयोध्या लौटने के समय वन प्रदेश में होता है। उनका शरीर ताल वृक्ष के समान लंबा है। वे धनुर्धभंग की चर्चा किये बिना उन्हें अपने धनुष की प्रत्यंचा चढ़ाने के लिए ललकारते हैं, किंतु राम के प्रभाव से वे परास्त होकर लौट जाते हैं। इस महाकाव्य में श्री राम के अतिरिक्त उनके अनेय किसी भाई के विवाह की चर्चा नहीं हुई है। अयोध्याकांड की घटनाओं की गति इस रचना में बहुत तीव्र है। राम राज्यभिषेक की तैयारी, कैकेयी कोप, राम वनवास, राजा दशरथ की मृत्यु और भरत के अयोध्या आगमन की घटनाएँ यहाँ पलक झपकते ही समाप्त हो जाती हैं। भारत और इंडोनेशिया की रामायण में थोड़ा अंतर है। भारत में राम की नगरी जहाँ अयोध्या है, वहीं इंडोनेशिया में यह योग्या के नाम से स्थित है तथा यहाँ राम कथा को ककनिन, या 'काकावीन रामायण' नाम से जाना जाता है। भारतीय प्राचीन सांस्कृतिक रामायण के रचियता आदिकवि ऋषि वाल्मिकी हैं, तो वहीं इंडोनेशिया में इसके रचयिता कवि योगेश्वर हैं। इंडोनेशिया की रामायण छब्बीस अध्यायों का एक विशाल ग्रंथ है। इस रामायण में प्राचीन लोकप्रिय चरित्र दशरथ को विश्वरंजन कहा गया है, जबकि उसमें उन्हें एक शैव भी माना गया है, यानी की वे शिव के अराधक हैं। इंडोनेशिया की रामायण में नौसेना के अध्यक्ष को लक्ष्मण कहा जाता है, जबकि सीता को सिंता कहते हैं। हनुमान तो इंडोनेशिया के सर्वाधिक लोकप्रिय पात्र हैं। हनुमान की लोकप्रियता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि आज भी हर साल इस मुस्लिम आबादी वाले देश के आजादी के जश्न के दिन यानी की सत्ताईस दिसंबर को बड़ी तादाद में राजधानी जकार्ता की सड़कों पर युवा हनुमान का वेश धारण कर सरकारी परेड में शामिल होते हैं तथा  हनुमान को इंडोनेशिया में ‘अनोमान’ कहा जाता है। 

- डॉ सत्या सिंह

0 comments:

Post a Comment

 
Top