बौद्ध की रामायण किसी भी ग्रंथ को नहीं कहा जाता है, असल में जो वाल्मीकि रामायण है वो बौद्ध त्रिपिटक के जातक (दशरथ जातक) कथाओं को आधार बनाकर लिखा हुआ महाकाव्य मात्र हैं। हिंदू धर्म में  सतयुग में उत्पन्न हुए राजा हरिश्चंद्र की सत्यता और दान वीरता का अक्सर जिक्र आता हैं। इन्ही राजा हरिश्चंद्र की कथा को महावेस्सन्तर जातक में संकलित किया गया है या बुद्ध के मुह से कहलवाया गया है, जिसके अंतर्गत दान परिमिता का महत्त्व बताया गया है। कट्ठहारी जातक में शकुंतला का प्रकरण ज्यों का त्यों दिया गया है सुत्तभस्त जातक का विस्तृत वर्णन किया गया है। वही दसरथ जातक में राजा दसरथ, तथा राम को बोधिसत्व राम के रूप में लिखा गया है, इसमें लक्खन कुमार और सीता का भी वर्णन मिलता है। अंतर सिर्फ इतना ही है कि हिंदू वांडमय में सीता राम की पत्नी बताई गयी है जबकि बौद्ध धर्म शक्यो में बहनो से विवाह करने की प्रथा के चलते सीता को राम की बहन के रूप में लिखा गया है, क्यों की स्वयं बुद्ध ने भी अपनी फुफेरी बहन यशोदरा से विवाह किया था। अतः इस युक्ति को सही ठहराने हेतु दसरथ जातक में सीता को राम की बहिन फिर पत्नी बताया गया है। मिथिला के राजा जनक (महाजनक जातक) और चित्रकूट पर्वत (चुल्लहंस जातक)में उल्लेख मिलता है कि दसरथ जातक में राजा दसरथ को वाराणसी का राजा कहा गया और उनकी सोलह हजार रानियाँ थी ऐसा लिखा गया है। उनकी पटरानी से राम पडित और लक्खन कुमार दो पुत्र और सीता देवी एक पुत्री उत्पन्न हुई थी। पहली पटरानी के मरने के बाद सोलह हजार रानियों में से एक नयी पटरानी नियुक्त की गई। उससे भरत नाम का एक और पुत्र उत्पन्न हुआ। बाकि संपूर्ण कथा रामायण की कहानी की तरह चलती है। इसमें रावण वध  के बारे में लिखा गया है कि रावण का वध राम ने नही अपितु लक्खन नें किया था और अंत समय में उनका शरीर रोग ग्रस्त हो गया था। राम पण्डित बोधिसत्व थे और अपने पिता की आज्ञा मानकर वनवास चले गए थे। उनके साथ ही उनके छोटे भाई लक्खन कुमार और सीता देवी भी गई थी। वनवास से लौटने के बाद राम के राजा बनने पर सीता की शादी राम से कर दी गई। ध्यान देने वाली बात यह भी है कि जिस प्रकार बौद्ध धर्म में राम को बोधिसत्व कहा गया है उसी तरह जैन धर्म में उनको और उनसे सम्बंधित लोगो को जैन। जबकि बौद्ध और जैन दोनों समकालीन थे। निश्चय ही राम का अस्तित्व उनसे पहले रहा होगा जिसे उन्होने अपने मत के अनुसार पृथक कर के अपने मत में आत्म सात किया था। यद्यपि दोनों ही सम्प्रदायो में राम कथा है, यह बात अलग है कि अब इन सम्प्रदायो ने राम को आत्मसात करने के लिए अपने अपने ढंग से बौद्ध और जैन बना दिया। किन्तु इससे इस  बात की भी पुष्टि हो जाती है कि राम बौधों में भी आदर्श व्यक्तित्व है। महाजनक जातक, दसरथ जातक, सामजातक और चुल्लहंस जातक, में चित्रकूट पर्वत का वर्णन है, इन सब से यह प्रमाणित होता है कि इतिहास में शकुंतला, भरत, हरिश्चंद्र, दसरथ, जनक, राम, लक्षण, सीता, भरत जैसे चरित्र काल्पनिक नही है और न ही मिथ्या हैं। साम जातक में पितृ भक्त श्रमण कुमार का उलेख किया गया है। वही श्रीकृष्ण को बौद्धों के बोधिसत्व के रूप में दर्शाया गया है। श्रीकृष्ण की संपूर्ण कथा कन्ह जातक में, घत जातक और श्रीकृष्ण के द्वारा दिया गया ज्ञान महानारद कश्यप जातक में लिखा गया है। इतना ही नही महाभारत में उल्लेखित, युधिष्टिर् यक्ष संवाद को देव धम्म जातक, और सुत्त निपात में ज्यो का त्यों लिखा गया है। राजा ध्रुतराष्ट्र की जानकारी सिरकालकन्नी जातक ,चुल्लहंस जातक और महासंस जातक में लिखी गई है। महाभारत के मुख्य पात्र युधिष्ठिर और विदुर तथा उनकी राजधानी इंद्रप्रस्थ की जानकारी दस जातक, सम्भव जातक और जुए का संपूर्ण विवरण और विदुर का संपूर्ण चरित्र-चित्रण विधुर नामक जातक में लिखा गया है।  इसके अतिरिक्त धनंजय, विदुर, संजय के बारे में जानकारी सम्भव जातक से प्राप्त होती है। अर्जुन के बारे में भुरिदत्त जातक  और कुणाल जातक  एवं भीम के बारे में कुणाल जातक में पूरी कहानी लिखी गई है।भगवान विश्वकर्मा का वर्णन ययोधर जातक और ह्रुषी ह्रंग की पूरी जानकारी अलम्बुस जातक और नलिनिका जातक में लिखी गई है।

एक इतिहासकार होपकिन्स के अनुसार, ”रामायण की रचना कब हुई, इसके बारे में निश्चित रूप से कहना कठिन है। लेकिन सुस्थापित कथन यह है की राम वाली घटना पाण्डवों वाली घटना से अधिक पुरानी है, और रामायण के मुख्य नायक श्रीराम और नायिका सीता है। इसी को बौद्ध धर्म में दसरथ जातक के रूप में लिखा गया है। इनके बावजूद जातक कथाएं बौद्ध धर्म में अपना बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान रखती है।  इनकी कुल संख्या पाँच सौ सैंतालीस है। यह कथाएं बुद्ध के समय में प्रचलित थी और इन्हें बुद्ध ने ही कहा है ऐसा बौद्ध ग्रंथो में कहा गया है। जातक कथाएं बुद्ध के युग में प्रचलित थीं, जिसमे बुद्ध पूर्व जन्मों के बोधिसत्वों के बारे में बताते है। इन जातक कथाओ में सिर्फ राम का ही नही बल्कि महाभारत के पात्रो का भी उलेख है।

परन्तु एक सबसे बड़ा प्रश्न अक्सर सर उठा कर खड़ा हो जाता है कि, क्या वास्तव में रामायण में गौतम बुद्ध का जिक्र है और अगर ऐसा है तो क्या रामायण गौतम बुद्ध के बाद लिखी गई थी। चलिए हम देखते हैं रामायण में कहाँ कहाँ पर बुद्ध शब्द का प्रयोग हुआ है, और किस परिपेक्ष्य में हुआ है। रामायण के अयोध्या काण्ड सर्ग एक सौ दस  श्लोक चौंतीस में एक यह श्लोक आया है, जिसको लेकर रामायण को बुद्ध के बाद का बताया जाता है। 

यथा हि चोरः स तथा ही बुद्धस्तथागतं नास्तीक मंत्र विद्धि तस्माद्धि यः शक्यतमः प्रजानाम् स नास्तीके नाभि मुखो बुद्धः स्यातम् –

( जिसका अर्थ है कि “जैसे चोर दंडनीय होता है, उसी प्रकार बुद्धिमान ज्ञानी तथागत अर्थात सब कुछ जान कर भी नास्तिकता को बढ़वा देने वाले भी दण्डनीय है। इस कोटि के नास्तिक को यदि दंड दिलाया जा सके तो उसे चोर के समान दंड दिलाया जाय। परन्तु जो पकड़ के या वश के बाहर हो तो उस नास्तिक से आस्तिक जन कभी वार्तालाप ना करे!” (श्लोक 34, सर्ग 110 , वाल्मीकि रामायण, अयोध्या कांड)” 

इस श्लोक से पूर्व तैंतीस नम्बर श्लोक आता है और इसमें बुद्ध शब्द का फिर से उपयोग किया गया है जैसे,-

"अहं निन्दामि तत् कर्म कृतम् पितुः त्वाम् आगृह्णात् यः विषमस्थ बुद्धिम् चरन्तं अनय एवं विधया बुद्धया सुनास्तिकम् अपेतं धर्म पथात्।"

– श्लोक 33, सर्ग 110 

(अर्थात, जबालि को भगवान श्रीराम उसके नास्तिक विचारों के कारण विषमस्थ बुद्धिम् एवं अनय बुद्धया शब्दों से परिभाषित करते हुए देखे जा सकते है। यहाँ विषमस्थ बुद्धिम्  का अर्थ है "वेद मार्ग से भ्रष्ट नास्तिक बुद्धि" एवं अनय बुद्धया का अर्थ है "(अ-नय) माने कुत्सित बुद्धि।)" मतलब, “हे जबालि ! मै अपने पिता के इस कार्य की निन्दा करता हूँ कि उन्होंने तुम्हारे जैसे वेदमार्ग से भ्रष्ट बुद्धि वाले धर्मच्युत नास्तिक को अपने यहाँ रखा।” )(श्लोक 33)

वही आगे का श्लोक-34, जिसमे भगवान राम ठीक इसी प्रसंग को आगे बढाते कहते हैं कि जाबालि के समान वेदमार्ग से भ्रष्ट बुद्धि वाले धर्मच्युत नास्तिक को सभा में रखना तो दूर की बात, राजा को ऐसे व्यक्ति को एक चोर के समान दण्ड देना चाहिये। अगर दण्ड न दे सके तो ऐसे नास्तिक बुद्धि के व्यक्ति से सम्बन्ध विच्छेद कर लेना चाहिए। 

अगर दोनो श्लोकों का क्रम से अध्ययन किया जाय तो पूरा प्रकरण स्वतः स्पष्ट हो जाएगा। फिर भी कुछ बुद्धिजीवी लोग ऐसे भी होंगे जिनका कहना यही होगा कि रामायण में जो 'बुद्धस्थगत' शब्द आया है, वह नास्तिक रूप में आया और बुद्ध नास्तिक थे। अतः यह श्लोक सिद्धार्थ गौतम बुद्ध पर लिखा गया है, जबकि बुद्ध नास्तिक थे यह आज तक किसी बौद्ध साहित्य से सिद्ध नही हो पाया है। 

यह आज भी मनन और खोज का विषय है कि, 'बुद्धस्थगत' शब्द का वास्तव में अर्थ क्या है ? क्या यह शब्द व्यक्ति विशेष के तौर पर लिखा गया है ! अगर ऐसा होता तो यह बुद्ध शब्द सिर्फ सिद्धार्थ गौतम बुद्ध के साथ जुड़ा होता। जबकि स्पष्ट है कि सिद्धार्थ को यह बुद्ध की संज्ञा बोधि प्राप्ति के बाद मिली थी। साथ ही सिद्धार्थ गौतम, बुद्ध से पूर्व के भी अनेक बोधिसत्वों को बोधि के बाद बुद्ध की संज्ञा दी गई थी। यह शब्द व्यक्ति बोधक नही, गुण बोधक है। ठीक इसी रूप में तथागत शब्द भी है, इसका भी अर्थ “जैसे आया वैसे ही चला गया” या फिर “जैसा बोलना वैसा ही अमल करना”, यह तथागत शब्द के अर्थ हैं, इसलिए यह दोनो ही शब्द व्यक्ति विशेष के लिए नही है। और प्रस्तुत श्लोक चौंतीस में भी राम जबाली को उसकी विषमस्थ बुद्धि, बुद्धस्थगत अर्थात “वेद विरुद्ध नास्तिक बुद्धि” और “जैसा जानता है, वैसा ही ज्ञान और विचार प्रदर्शित करता है”, के लिए फटकारते है। वैसे भी कहा जाता है कि बुद्ध तो कुल अट्ठाइस हुए हैं तो यह रामयण का श्लोक तैंतीस और चौंतीस किस बुद्ध के लिए है ?  और रामायण किस बुद्ध के बाद की रचना है। 

वैसे देखा जाय तो श्लोक चौंतीस में बुद्धस्तथागतं में विसर्ग सन्धि है। जिसका विच्छेद करने पर बुद्धः + तथागतः एवं इसके बाद शब्द आया है नास्तिकमत्र! जिसमें दो शब्द हैं नास्तिकम् + अत्र, इसके बाद आया है “विद्धिसंधि”। इसका अन्वय हुआ – विद्धि नास्तिकम अत्र तथागतम्।

अर्थात् नास्तिक को केवल मात्र जो बुद्धिजीवी है उसके समान मानना चाहिए। इसके पहले की पंक्ति का अन्वय हुआ– “यथा हि तथा हि सः बुद्धाः चोर” अर्थात “केवल मात्र जो बुद्धिजीवी है, उसको चोर के समान मानना चाहिए और दण्डित करना चहिए”।

अगर इनकी माने तो रामायण में बुद्धस्थगत शब्द आने से रामायण बुद्ध के बाद की रचना है? फिर इस बात से भी इन्हें मुँह नही फेरना चाहिये की बौद्ध ग्रथो विशेषतः दशरथ जातक आदि में भी राम, सीता, लक्षण,भारत, शत्रुघ्न, राजा दसरथ आदि का जिक्र है। इसमे बुद्ध के कथन से स्पष्ट किया गया की “मैं ही पूर्व जन्म में राम था और देवदत्त रावण”!  

उपरोक्त जातक प्रकरणों के बाद अगर गंभीरता से मनन किया जाय तो यही प्रतीत होता है कि, रामयण बुद्ध से पूर्व की रचना है। क्यो की बौद्ध ग्रथो में तो रामयण के सभी पात्र मिलते है। अतः यह ज्यादा पुष्ट प्रमाण है की रामयण बुद्ध से पूर्व की घटना है, बुद्ध राम के बाद पैदा हुए। और जातक तो स्वयं बुद्ध वाणी है। इतना ही नही भगवान राम का उल्लेख तो बुद्ध के समकालीन चल रहे जैन धर्म में भी है, जिसमे राम को जैनियो का तीर्थंकर बताया गया है। और पद्मपुराण में राम कथा लिखी गई है। 

रामायण और महाभारत के प्रमाणिक होने का सबसे बड़ा तथ्य है आठ सौ ई. पूर्व एक ग्रीक लेखक हमर द्वारा ग्रीक भाषा में लिखा गया ग्रन्थ 'ओदिसी' (ओदिसी प्राचीन यूनानी भाषा , होमरकृत दो प्रख्यात यूनानी महाकाव्यों में से एक है। इलियड में होमर ने ट्रोजन युद्ध तथा उसके बाद की घटनाओं का वर्णन किया है जबकि ओदिसी में ट्राय के पतन के बाद ईथाका के राजा ओदिसियस की, जिसे यूलिसीज़ नाम से भी जाना जाता है, उस रोमांचक यात्रा का वर्णन है जिसमें वह अनेक कठिनाइयों का सामना करते हुए, दस वर्ष बाद अपने घर पहुँचता है। ओडेसी ई.पू.आठवीं शताब्दी में लिखी गयी है। यह कहाँ लिखी गई इस संबंध में माना जाता है कि यह इस समय के यूनान अधिकृत में सागर तट आयोनिया में लिखी गई जो अब टर्की का भाग है।) और 'इलियड' ( इलियड ग्रीक सभ्यता की पहली और सबसे बड़ी साहित्यिक उपलब्धि है। दुनिया के साहित्य में प्रतिद्वंद्वी के बिना एक महाकाव्य कविता, और पश्चिमी संस्कृति की आधारशिला है।) यह प्रमाण सबसे पुख्ता प्रमाण है राम के ऐहतिहासिक पुरुष होने की जिन्हें बाद में बौद्धों और जैन धर्मावलंबियो ने आत्म सात कर लिया।

--सत्या सिंह 

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