बाराबंकी। स्थानीय गांधी सभागार में दानिशवरों और उर्दू शायरी से लगाव रखने वालों का जमावड़ा लगा. ख़ास मौक़ा था, शायर व लेखक डा फ़िदा हुसैन की ग़ज़ल संग्रह सदा-ए-वक़्त के विमोचन का। जिसमे सभी ने इस ग़ज़ल संग्रह में बेबाकी से की गई शायरी पर अपनी राय रखी।
सोशल एक्टिविस्ट डा राजेश मल्ल द्वारा संचालित लोकार्पण एवं संवाद कार्यक्रम में बोलते हुए कार्यक्रम अध्यक्ष डा श्याम बिहारी वर्मा ने कहा कि काव्य संग्रह में ग़ज़ल की नज़ाकत, समाज की फ़िक्र, आम आदमी के दर्द और जज़्बे को जिस शिद्दत से फ़िदा हुसैन साहब ने महसूस किया है वो सराहनीय है।
डॉ अनिल अविश्रान्त ने कहा कि है ऐसे वक्त में आपने अपनी ग़ज़लों के ज़रिए सिस्टम के ख़िलाफ़ बोलने का साहस किया है जब बड़े बड़े क़लमकार हिम्मत नहीं दिखा पा रहे हैं। उन्होंने कहा कि उर्दू कविता का उद्देश्य भले ही इश्क हकीकी को पाना हो किन्तु हालत ए हाज़रा को बख़ूबी बयान करना भी इसकी ख़ूबी रही है।फ़िदा हुसैन साहब ने इस काम को बड़े सलीक़े से अंजाम दिया है।
कार्यक्रम के केंद्र बिंदु डॉ फिदा हुसैन ने नई पीढ़ी को संबोधित करते हुए कहा कि मैं शायरी लिखना चाहता था तो पहले मैंने लिखने पढ़ने का सलीक़ा सीखा। शायर सगीर नूरी से ग्रामर सीखी। उन्होंने कहा शायरी एक माध्यम है अपना चिंतन प्रस्तुत करने का। गजल का मतलब है महबूब से बातें करना। लेकिन सवाल ये है कि महबूब है कौन? वो प्रियतमा भी हो सकती है, और चारों और फैले समस्याएं भी हो सकती है?फर्क सिर्फ नज़रिए का है। मैंने सिस्टम के ख़िलाफ़ आम आदमी के दर्द को अपनी ग़ज़लों का मौज़ू बना कर पेश किया है। मुझे उम्मीद है ये ग़ज़ल संग्रह लोगों की सोच बदलने में भी कारगर साबित होगा।
शायर सगीर नूरी ने मकाला पढ़ते हुए कहा कि इस ग़ज़ल संग्रह में फ़िदा हुसैन साहब ने हदबंदियों को तोड़कर भवनाओं और अपने चिंतन को आवाज दे देने का काम किया है। उन्होंने कहा कि कविता या शायरी सुनने में अच्छी लगे ये कोई माप दंड नहीं है यदि छपी हुई शायरी पढ़ने में अच्छी लगे तो फिर शायर का कमाल है क्योंकि पढ़ते समय रचनाकार का बयाँ करने का अंदाज़ और अदाकारी उपस्थित नहीं होती है।
डॉ श्याम सुन्दर दीक्षित ने कहा कि
शायरी में सवाल उठाना जरूरी है, किन्तु समाधान देना भी उतना भी ज़रूरी होता है।
अयोध्या से आए डॉ अनवर हुसैन साहब ने कहा कि उर्दू के बजाय नागरी में लिखा है ये डॉ फिदा की समझ है। आज के दौर में ये ज़रूरी है जिससे बात आम लोगों तक पहुँच सके।
मशहूर शायर राम प्रकाश बेखुद ने कहा डॉ फिदा हुसैन ने अपने संग्रह में नब्ज़ भी टटोली है और इलाज भी किया है। यह संग्रह मार्गदर्शन करने का कम भी करेगा।
नवीन लखनऊ ने कहा अच्छी शायरी करने के लिए इंसान का अच्छा होना भी जरूरी होता है। ये सारी खूबिया फ़िदा हुसैन साहब में मौजूद हैं।
मशहूर नाज़िम वासिक फारूक़ी मकाला पेश करते हुए कहा कि आपकी किताब में वो सब है जो एक फिक्रमंद शायर की किताब में होना चाहिए।
संग्रह विमोचन कार्यक्रम में बाबूलाल वर्मा, प्रदीप सारंग, मूषा खां अशांत, डॉ कुमार पुष्पेंद्र, डॉ विनय दास, परवेज अहमद, सहित अनेक साहित्यकार उपस्थित रहे।
(प्रदीप सारंग की रिपोर्ट)
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