भक्तिकाल के मुस्लिम कवि 


(दूसरी किश्त) 

-रामबाबू नीरव

  गतांक से आगे :-

एक दूसरी कथा के अनुसार जागीरदार का पुत्र सैयद इब्राहिम अपने जवानी के दिनों में पूरे नवाबी (रईसी) ठाठ बाट से रहा करता था. हर समय उसके कमर में तलवार लटकी रहा करती थी. एकबार उसे किसी हिन्दू सेठ की घमंडी पुत्री से प्रेम हो गया. उसका नाम था राधा. वह अतिशय सुन्दर थी, परंतु सैयद इब्राहिम का यह प्रेम एकतरफा था. यानि सेठ की बेटी राधा उससे प्रेम नहीं करती थी. एक दिन राधा उसकी दीवानगी पर विफर पड़ी और उस घमंडी लड़की ने उसे दुत्कार कर अपने घर से भगा दिया. इससे इब्राहिम का हृदय टूटकर चकनाचूर हो गया और वह विक्षिप्तता की स्थिति में पहुँच गया. इब्राहिम की हालत को देखकर किसी संत ने, जो भगवान ‌श्रीकृष्ण का परम भक्त था, उसे उपदेश देते हुए कहा -

"जितनी प्रीति तुम उस घमंडी युवती से करते हो, यदि उतनी ही प्रीति तुम्हेँ भगवान श्रीकृष्ण से रही होती, तो तुम्हारा इहलोक सफल हो गया होता." संत की बातें इब्राहिम के कलेजे को चूभ गयी. दर्द से तड़पते उसने पूछा -

"तो आप ही कोई उपाय बताईये, जिससे मुझे राहत मिल सके."

"तुम गोवर्धन जाकर भगवान श्रीनाथ के मंदिर में माथा टेको, वे ही तुम्हारा कल्याण करेंगे." सैयद इब्राहिम तत्क्षण ही गृहत्याग कर गोवर्धन के लिए प्रस्थान कर गये.

एक और तीसरी अत्यंत ही दिलचस्प कहानी है. सतरहवीं शताब्दी में एक  वैष्णव संत हुए थे- श्री हरि राय. उन्होंने एक पुस्तक लिखी "भव प्रकाश" इस पुस्तक में सैयद इब्राहिम का कृष्ण भक्त  रसखान बनने की बड़ी विचित्र कथा का वर्णन है. उस कथा के मुताबिक़ सोयद इब्राहिम खान पहले दिल्ली में रहता था. वहाँ उसे एक हिन्दू व्यापारी के पुत्र से प्रेम हो गया. वह उस खुबसूरत लड़के के प्रेम में इतना पागल हो गया कि रात दिन उसके साथ ही रहा करता था और उसका जूठा खाना तक छीन कर खा जाया करता था. उसके इस इस्लाम विरोधी क्रिया कलापों से उसके विरादरी के लोगों के साथ साथ मौलाना/मुल्ला खफ़ा हो गये और उसे काफिर (नास्तिक) तक करार दे दिया गया. इब्राहिम के घरवाले भी उसके इस क्रियाकलापों से खफा थे. लेकिन इब्राहिम को इन सारी बातों की कोई परवाह न थी. उसका तर्क था - "मैं जैसा हूँ, बस ऐसा ही हूँ", यानि उसकी नजरों

में प्रेम करना गुनाह नहीं था, प्रेम किसी से भी हो सकता है. फिर एक दिन उसने दो वैष्ण (कृष्ण भक्तों) संतों को आपस में अपने ही बारे में बतियाते सुना -

"किसी भी भक्त को अपने भगवान से वैसा ही प्रेम होना चाहिए, जैसा की इब्राहिम को उस सेठ के बेटे के साथ है. इब्राहिम बिना किसी धार्मिक भेदभाव के उस लड़के के साथ रहता है और बदनामी की चिंता किये बिना उसका जूठन भी खा जाता है." उस संत की बात सुनकर इब्राहिम को गुस्सा आ गया और उसने म्यान से अपनी तलवार खींच कर उसके ऊपर तान दी. असल में वह उस संत की इन बातों में छुपे गुढ़ तथ्य को समझ ही नहीं पाया था. दूसरा संत उसके सामने आकर बोला -"क्रोध मत करो इब्राहिम, इनके कहने का आशय वह नहीं था, जो तुम समझ  रहे हो. ये तो तुम्हारे अद्भुत प्रेम की तुलना ईश्वर की भक्ति से कर रहे हैं. यदि ऐसा ही प्रेम हर कोई भगवान श्रीकृष्ण से करने लग जाये तो उसका मानव  योनि में जन्म लेना सार्थक हो जाएगा." इन बातों को सुनकर सैयद इब्राहिम की ऑंखों पर पड़ी हुई अज्ञानता की पट्टी खुल गयी और वह उन संतों की सलाह पर गोवर्धन स्थित श्रीनाथ के मंदिर की ओर प्रस्थान कर गया. रास्ते में  एक जगह श्रीमद्भागवत कथा समारोह हो रहा था, वह वहाँ रूक गया और पूर्ण भक्ति भाव से भागवत कथा सुनने लगा. श्रीकृष्ण की बाललीला तथा गोपियों के साथ रचाये जाने वाले रासलीला के प्रसंग ने इब्राहिम के मनो मस्तिष्क को झकझोर कर रख दिया. वह मन ही‌ मन सोचने लगा -"क्या वह गोपियों की तरह भगवान से प्रीत नहीं कर सकता?" वह जल्द से जल्द गोवर्धन पहुँच कर भगवान श्रीनाथ के श्रीचरणों में माथा टेकने को व्याकुल हो गया. कई दिनों की कठिन  यात्रा के पश्चात भूखे प्यासे वह गोवर्धन पहुँचा. उसकी हालत चिंता जनक हो चुकी थी. चूंकि इब्राहिम ने पठानों की वेशभूषा पहन रखी थी, इसलिए श्रीनाथ मंदिर के द्वारपालों ने उसे म्लेच्छ जानकर आपको मंदिर के अंदर घुसने नहीं दिया. इब्राहिम अंदर जाने के लिए जोर जबरदस्ती करने लगा, इस पर क्रोधित होकर एक द्वारपाल ने उसे धक्का दे दिया. इब्राहिम लुढ़कता हुआ नीचे आ गया. वह लहुलुहान हो चुका था, फिर भी उसे इसकी चिंता न थी. वह तो अपने आराध्य भगवान श्रीकृष्ण (श्रीनाथ) के दर्शन की अभिलाषा में भुख प्यास, दुख-दर्द सब भूल चुका था. जैसे तैसे वह एक पेड़ के नीचे जाकर बैठ गया. एक दिन इब्राहिम ने स्वप्न में अपने आराध्य भगवान श्रीकृष्ण को देखा, वे उन्हें आज्ञा देते हुए कह रहे थे -"तुम बृंदावन चले जाओ, वहाँ तुम्हें मेरे भक्त गोस्वामी विट्ठलनाथ मिलेंगे, वे ही तुम्हें.... मुझ तक पहुँचने का मार्ग बताएंगे." इब्राहिम वहाँ से बृंदावन के लिए प्रस्थान कर गया. अनेकों विघ्न बाधाओं से लड़ते हुए वह आखिर वल्लभ संप्रदाय के संचालक तथा अष्टछाप कवियों के संस्थापक विट्ठलनाथ के आश्रम में पहुँचा. इब्राहिम को देखते ही विट्ठलनाथ ने कहा -"आओ, आओ खान वल्लभ संप्रदाय में तुम्हारा स्वागत है." ऐसा प्रतीत हुआ जैसे भगवान श्रीकृष्ण ने विट्ठलनाथ को भी दर्शन देकर सैयद इब्राहिम के आने की सूचना दे दी हो. इब्राहिम रोते हुए विट्ठलनाथ के चरणों में  गिर पड़ा. उन्होंने उसे उठाकर अपने गले से लगा लिया. उसी दिन विट्ठलनाथ ने इब्राहिम को वल्लभ वैष्णव सम्प्रदाय की दीक्षा दी और उसे वल्लभ सम्प्रदाय का सदस्य बना लिया. इस तरह सैयद इब्राहिम बन गये संत रसखान. प्रथम कहानी को छोड़कर बाद की दोनो कहानियाँ लगभग एक ही पृष्ठभूमि पर रची गयी है. अंतर सिर्फ यह है कि एक कहानी में उनकी प्रेमिका के रूप में किसी राधा नाम की घमंडी युवती का जिक्र है, वहीं दूसरी में किसी खुबसूरत लड़के का.

         वल्लभ संप्रदाय में दीक्षित होने के बाद रसखान अपने गुरु विट्ठलनाथ के साथ गोवर्धन स्थित श्रीनाथ मंदिर आये और अपने प्रभु श्रीनाथ जी का दर्शन पाकर धन्य धन्य हो गये. फिर बृंदावन में रहकर ही उन्होंने भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति के साथ साथ अनेकों ग्रंथों की रचना की. जो श्रीकृष्ण भक्तों के पवित्र ग्रंथ बन गये.

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क्रमश:.............! 

(अगले अंक में पढें रसखान तथा रहिम द्वारा श्रीकृष्ण तथा तुलसी द्वारा श्रीराम के बाल लीलाओं का चित्रण.एवं रसखान की प्रेमरस की कविताएँ.)

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