भक्तिकाल के मुस्लिम
(दूसरी किश्त)
- रामबाबू नीरव
कवि आलम शेख तथा बादशाह औरंगजेब के द्वितीय पुत्र मुआज्जम (कहीं कहीं मुअज्ज़म) को लेकर कई तरह की भ्रांतियां भी हैं. इस तरह की भ्रांतियां इसलिए हो जाती है, क्योंकि मुआज्जम का दूसरा नाम शाह आलम अथवा आलम शाह भी था. कई विद्वानों का मानना है कि आलम शेख कुतुबुद्दीन मुहम्मद आलम का आश्रित था. यानि मुआज्जम हिन्दुस्तान का बादशाह रहा होगा तभी आलम शेख उनके आश्रित रहे होंगे, जबकि हकीकत यह है कि आलम शेख का इंतकाल वर्ष 1703 में ही हो चुका था और औरंगजेब के इंतकाल के बाद शाह आलम (मुआज्जम) अपने दो भाइयों आजम शाह और कामबख्श तथा दो भतीजा बीदरबख्त और बालाजाह को मारकर 1707 ई० में लाहौर में खुद को हिन्दुस्तान का बादशाह घोषित किया था. फिर बादशाह बनने के बाद उसने खुद को बहादुर शाह घोषित किया. मुगल साम्राज्य के अंतिम बादशाह का नाम भी बहादुर शाह था, जिन्हें हम महान क्रांतिकारी तथा शायर बहादुर शाह ज़फ़र के नाम से जानते हैं. हो सकता है, जब मुआज्जम किसी प्रान्त का शासक रहा हो तब आलम शेख उसके आश्रित अथवा मातहत रहे हों. वैसे आलम शेख मुआज्जम से उम्र में भी लगभग 16 या 17 वर्ष बड़े थे.
अब आते हैं आलम शेख पर. इनके बारे में तरह तरह की किंवदंतियाँ प्रचलित है. अधिकांश लोगों का मानना है कि कवि आलम ने अपनी पत्नी शेख रंगरेजिन के नाम पर ही अपने नाम के बाद शेख लगाने लगे थे. वहीं अधिकांश विद्वान इसे बिलकुल ही मनगढंत मानते हुए इसे सिरे से खारिज कर रहे हैं. वे लोग तो शेख रंगरेजिन की कहानी को भी सिरे से खारिज करते हुए कहते हैं कि किसी महिला का नाम "शेख" हो ही नहीं सकता, क्योंकि मुसलमानों में "शेख" एक जाति विशेष का उपनाम (सरनेम) हुआ करता है जैसे कि शेख मुजीबुर रहमान, शेख मुखतार आदि. इन लोगों के कथनानुसार कवि आलम की जितनी भी कृतियाँ हैं सभी उनकी अपनी है, न कि किसी काल्पनिक शेख रंगरेजिन की. लेकिन शेख रंगरेजिन के अस्तित्व को मानने वालों के तर्क को भी नकारा नहीं जा सकता. अब असलियत चाहे जो भी हो, यह शोध का विषय है. आईए आलम की कृतियों को भी एक झलक देख लें-
आलम शेख की मुख्य रूप से तीन कृतियों का उल्लेख मिलता है. "माधवानल कामकंदला", "श्याम सनेही" तथा "आलम के कवित्त". इसके अतिरिक्त "सुदामा चरित" को भी इनकी ही कृति माना जाता है, परंतु कुछ विद्वान इसे संदिग्ध मानते हैं. यानि इनकी कृति नहीं मानते.
"माधवानल कामकंदला" में कवि ने माधवानल (नायक) तथा कामकंदला (नायिका) के प्रेमाख्यान को सूफियाना शैली में चित्रित किया है. कामकंदला एक सिद्धहस्त गायिका के साथ साथ कुशल नृत्यांगना भी थी. उसके नृत्य-गान के चित्रण में कवि ने अपनी संगीत प्रतिभा का भी परिचय दिया है. इससे सिद्ध होता है कि वे संगीतज्ञ भी रहे होंगे. माना जाता है कि "माधवानल कामकंदला" का ही अंश "रागमाला" नाम से सिक्खों के पवित्र ग्रंथ "गुरुग्रंथ साहिब" में संग्रहित किया गया है. वहीं उनकी पुस्तक "श्याम सनेही" में श्रीकृष्ण और रूक्मिणी के विवाह की कथा का वर्णन है. इस ग्रंथ की रचना रामचरितमानस की तरह दोहा और चौपाई शैली में की गयी है. "आलम के कवित्त" शेख आलम के रीति शैली में लिखे गये स्फुट पदों का संग्रह है. इस ग्रंथ को "शेख साईं" के नाम से भी जाना जाता है. वहीं "सुदामा चरित" अपने नाम से ही स्पष्ट है कि इसमें श्रीकृष्ण के बाल मित्र सुदामा की कहानी होगी.
आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने हिन्दी साहित्य के इतिहास में इनके बारे में लिखा है -
"आलम प्रेमोन्मद कवि थे. ये अपनी तरंग के अनुसार रचनाएँ किया करते थे. इसलिए ही इनकी रचनाओं में हृदय तत्व की प्रधानता है. " प्रेम की पीड़" या "इश्क़ के दर्द" को इनकी रचनाओं की एक एक पंक्ति में अनुभव किया जा सकता है. शृंगार रस की ऐसी उन्मादनी उक्तियाँ उनकी रचनाओं में मिलते हैं कि सुनने वाले लीन हो जाया करते हैं. ऐसी तन्मयता सच्ची उमंग में ही संभव है. प्रेम की तन्मयता की दृष्टि से आलम की गणना रसखान और घनानंद की श्रेणी में होनी चाहिए.
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क्रमशः........!
(अगले अंक में पढ़ें अवधी भाषा में रचित महाकाव्य "पद्मावत" के रचयिता महान सूफी कवि मल्लिक मुहम्मद जायसी की कहानी)
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