कविता 


() राम सिंह यादव 


सहसा वो बालक उठता है
और भरी सभा में पिता के गले लग जाता है
मानों शिकायत कर रहा हो
ये सब लोग मुझे चिढाते हैं
कोई पप्पू कहता है कोई विधर्मी कहता है।
कभी माँ पर तंज कसते हैं तो कभी पूर्वजों का अपमान करते हैं।

क्या इनमें से हिंदुत्व कोई जानता है?
या इनमें से भारत को कोई पहचानता है?

अरे हिंदुत्व तो कुछ भी नही है
सनातन भारतीयता के सामने।
जब भी कोई अपनी माँ के पैरों को चूमता या माथे पर लगाता है
मेरा अर्धनारीश्वर भारत हृदय में हिलोरें मारने लगता है।

जब भी कोई बुर्का, टोपी, दाढ़ी और चोटी की मुखालफत करता है
वसुधैव कुटुम्बकम गीता का एक एक श्लोक गूंजने लगता है।

जब नमाज छोड़ जकी कुएं में गिरी गाय को बचाने कूद पड़ता है
मुझे लगता है भारत की अर्थव्यवस्था को जिंदा बचाने को पीढ़ी तैयार है।

वो आमिर खान भी  है ना,
पी.के. में धर्मों की बुराई करने वाला,,,,
कहीं महाराष्ट्र में पानी बचाने के लिए खुदाई करने निकला हुआ है।
मां गँगा का भगीरथ बनने को उतावला,,,
उफ्फ्फ ये कैसा हिन्दू है।

स्वात घाटी में फिर से अपने पूर्वज बुद्ध की मूर्ति को बनाते और नमन करते
ये पाकिस्तानी
उफ्फ ये कैसे सनातनी हैं।
सुर की साधना में खोए ये सूफ़ी झेलम से कावेरी तक
शिव के सामवेद की झंकार में विलीन होते जाते हैं।

पीपल और बरगद के पेड़ लगा कर विश्व कीर्तिमान बनाने वाला पाकिस्तान
बरबस ही आयुर्वेद को भविष्य के लिए संजो रहा है।

आह ये मेरे महान वैज्ञानिक और विश्व के अग्रज पूर्वज।
हे भारत तुझे नमन है।

लेकिन आज के
ये हिन्दू तो वो हैं जो बंगाल अकाल के कारण थे,
सदियों से मानवता को उंच नीच में बांटे थे।
ये मुसलमान तो वो हैं जो बंदा बैरागी जैसे कितने शीश,
न जाने कितनी माँओं का शील विदीर्ण किये थे।

मेरे सनातन भारत को छिन्न करने वालों से
मानवता को बचा लो हे पिता।

तुम तुलना कैसे कर सकते हो?
बचपन से दादी और पिता को खोने वाला
वो बालक
सर में पल्लू रखी माँ के वचनों को निभाने
कभी धूप में निकल पड़ता है,,
कभी गावों में धूल फांकता है,,,
सहज मुस्कुराता इंसानियत का पाठ पढ़ा देता है।

पता है, तुम महात्मा हो,
तुम्हारे अंक में समाना स्वयं में सम्मान है।
पिता के हृदय को हठात आलिंगन करने का रोमांच
देखो तो जरा,,,,
जाओ और गले लग जाओ......
फिर देखो वो सामने वाला बुज़ुर्ग
कृतज्ञ और वात्सल्य से भरा सब कुछ उड़ेल देगा तुम्हारे लिए।

हे पिता बहुत विशालता है तुम्हारे भीतर,,,
भारत को सीरिया, अमेरिका, चीन, अफगान या पाकिस्तान बनने से बचाते तुम्हारे कदम
भारत के गौरव को शनेः शनेः स्थापित करते
कभी खुद  से लड़ते - कभी घिरे लोगो से लड़ते।

तुम्हे पता है?
“प्रजापालक” --- पिता होता है।
तुम्हारे एक निर्णय पर हम सनातनी पलते हैं।
क्या आश्चर्य की आज वो हठी बालक गले लग गया।
क्या तुम उसका उपहास उड़ा सकते हो?

नहीं-नहीं-------
तुम ब्राह्मण नहीं हो, तुम चर्मकार नहीं हो..
तुम आर्य नहीं हो, तुम अनार्य नहीं हो...
तुम हिन्दू नहीं हो, तुम मुसलमान नहीं हो,
तुम कुछ भी नहीं हो सिवाय हम डेढ़ अरब मानवों
और स्वछन्द पलते हर जीव - हर पौधे के पिता के ।

इन मूर्ख हिंदुओं और मुसलमानों को समझाओ
इतिहास के वो काले अक्षर दिखाओ
एक महान देशभक्त, संयमी, चरित्र और पवित्रता का बिम्ब।
आर्यों की सर्वश्रेष्ठ नस्ल स्थापित करने की ललक में इतिहास बदल बैठा
हिटलर ने तब नही सोंचा था
की भविष्य उसको इतना घृणित और पापी कहेगा।

लेकिन कभी राजनीति से हटकर देखना,
तुमको सुकून मिलेगा
जब तुम देखोगे
खून से लथपथ सड़क में पड़े इस्कॉन के पुजारी
और उनको अस्पताल पहुँचाता वो मसीहा
जिसके घर का शुद्धिकरण कराया था कभी तुम्हारे धार्मिकों ने।

कभी आगरा एक्सप्रेसवे से गुजरते हुए
यूपी के गाँव जाकर किसी बूढ़ी माँ की पेंशन,
किसी मंदिर के पुजारी की तनख्वाह,
या श्रवण चारधाम यात्रा पता करना।
तुम्हें महसूस होगा ये कथित ओरंगजेब  बहुत परिपक्व है।

कभी तुम अंध धार्मिकों के कश्मीर में रहते उमर को देखना और सुनना
जो देशद्रोहियों के बीच भारतीयता का स्तम्भ बना बैठा है।

बस जरा ऐसे ही सोंचना
ये शिवभक्त बच्चा तुम्हारे गले क्यों लगा।
तारीख़ में नई किस्म की राजनीति लिखता ये लड़का अमर हो गया।
और तुम्हारा वो वात्सल्य पूर्ण सिर को सहलाता हाथ
सबकी नजरों से दूर हृदय की गहराई को अंकन कर गया।

कभी जरा ऐसे ही सोंचना
गरम खून से उबलते भीड़ के हिस्से से दूर,,,
ये नौजवान लड़के
कभी जुबान से बहके हैं?
तुम्हारे सम्मान में बिना ‘जी’ लगाए बोले हैं?

बिकी मीडिया और इंटरनेट के दुष्चक्र से निष्कलंक
ये भारतीय संस्कार के स्वाभिमानी प्रतिबिम्ब
झंझावातों को संयम से झेलते
धैर्य के साथ भारत को भविष्य की ओर ले जा रहे हैं।
बिना किसी शिकायत के चुपचाप
तुम्हारे कदमों को सहेजते अपने कदम बढ़ा रहे हैं।

ये भावी पीढ़ी भविष्य तो बचा लेगी
पर तुम वर्तमान बचा लो।

हे पिता,,,
देखो जरा,  ये बादलों से झरता अमृत -- कचरे के रूप में बहा जा रहा है....
तुम अब तालाबों, झीलों, नहरों, नदियों की सुधि भी ले लो।
गौरव भरे राष्ट्रों के मुकुट बिन पानी सूखे रेगिस्तान में,,
रुधिर से सूखे कंठ तृप्त करते कट कट गिरे हैं........
कंक्रीटों से पटे कन्नौज, पाटलिपुत्र, हस्तिनापुर, गंधार, बुन्देल, आगरा के वीरान मकबरे,,,,,
आज दिल्ली, मुम्बई, कोलकाता और चेन्नई को क़ब्रगाह में तब्दील होते देख रहे हैं।


आस है कि तुम शायद अब राजनीतिज्ञ न रहो
बस नए विश्व के पालक बन जाओ।।।।।।।।।।
हिन्दू मुस्लिम चिल्लाते लोगो की परवाह किये बिना,,
पानी बचाकर.....
खाना और रोजगार देकर.....
सीमित जनसंख्या नीति बनाकर......
सब इंसानों को एक छत्र कानून के नीचे लाकर.....
पर्यावरण और नैतिक अर्थव्यवस्था को संस्कारों में भरकर....
नफरत भरे दिलों को इन्सान बनाकर.....
सनातन भारत को पुनः जगाओ,,,
नए विश्व के पालक बन जाओ।
सबको एक नजर से देखने वाले पिता बन जाओ।

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