धारावाहिक उपन्यास
- राम बाबू नीरव
शान्ति और माधव को साथ लेकर संध्या राजीव के कॉटेज में आ गयी. स्वयं शारदा देवी ही उन तीनों को यहां तक छोड़ने आई थी. शान्ति अपने पति माधव के साथ एक दूसरे कमरे में चली गयी वहीं शारदा देवी संध्या के साथ आईसीयू में पहुंची. उस समय वहां नर्स उपस्थित नहीं थी. उन्होंने बड़ी सूक्ष्मता से राजीव का निरीक्षण किया, परंतु उन्हें राजीव में कुछ खास परिवर्तन होता हुआ नजर नहीं आया. वे मन ही मन संध्या के आत्मविश्वास का उपहास उड़ाती हुई अपने बंगले की ओर लौट गई. शारदा देवी के जाने के बाद संध्या राजीव के बिछावन पर चढ़ गयी और उसके कान में फुसफुसाती हुई बोली -"राजीव बाबू, अब मैं आ गयी हूं आपकी सेवा के लिए. आपकी सेवा करने का मैंने व्रत लिया है, इसलिए आपको ठीक करके ही दम लूंगी." संध्या को लगा कि उसकी बातें सुनकर राजीव ने क्षणभर के लिए अपनी पलकें झपकी है. संध्या के ललाट की सलवटें मिट गयी और ओठों पर मुस्कान थिरकने लगी. अपनी आंखें बंद करके वह इष्ट देव से प्रार्थना करती हुई बोली -"हे प्रभु राजीव बाबू को ठीक कर देना, ताकि मेरी लाज रह जाए." आईसीयू से निकल कर वह बगल वाले कमरे में चली गयी. शान्ति अपने पति माधव के साथ इस कमरे की साफ-सफाई में लगी थी. कमरे में गोदरेज की एक आलमीरा रखी हुई थी. सेठ द्वारिका दास ने दस लाख रुपए का थैला और इस आलमीरा की चाभी अपने पी ए के हाथों भिजवा दी थी. संध्या ने आलमीरा खोलकर अपने कपड़े तथा रुपयों का थैला आलमीरा रखने के बाद उसे अच्छी तरह से बंद कर दिया और चाभी शान्ति को थमाती हुई बोली -"शान्ति यह चाभी तुम अपने पास रखो, जब भी मुझे रुपयों की ज़रूरत होगी तुम से मांग लूंगी."
"क्या.....?" शान्ति हैरत से उसे घूरने लगी.
"तुम इतनी हैरान क्यों हो रही हो?"
"हे मेरे रामजी, यह लड़की तो एकदम से पगलाइए गई है. सुनते हैं जी, जरा इसको समझाइये न, इ हमको रुपिया-पैसा के मामले में काहे फंसा रही है.?" शान्ति अपने पति माधव की ओर कातर दृष्टि से देखने लगी.
"अजीब औरत हो तुम?" संध्या तुनक पड़ी.
"हां हम तो अजीबे हैं, मगर इ रुपिया पैसा से हमको दूर ही रखो तो अच्छा है." शान्ति ने अपना फैसला सुना दिया.
"मगर....!"
"देखो संध्या बहन."
माधव संध्या के समक्ष आकर बोल पड़ा -"हमलोग गरीब आदमी हैं. कोई नागा-खाता हो गया तो सेठ जी को क्या जबाब देंगे. इन बड़े लोगों को आप नहीं जानती, इनका मिजाज कब गिरगिट की तरह बदल जाए कोई नहीं जानता."
"इतने डरपोक हैं आपलोग तो मैं ही चाभी अपने पास रखती हूं." संध्या चाभी लेकर अपनी टेंट में खोंस ली. फिर वह माधव की ओर देखती हुई पूछ बैठा-"माधव भैया यहां आस-पास कोई नाई मिलेगा.?"
"नाई.... मगर किस लिए.?"
"मेरी हजामत बनाने के लिए." इतना कहकर संध्या हंस पड़ी.
"क्या....?" माधव बुरी तरह से चौंक पड़ा. शान्ति भी संध्या को घूरने लगी.
"माधव भैया,आप दोनों मियां बीवी घोंचू हैं." संध्या हंसती हुई बोली -"राजीव बाबू की हालत देख रहे हैं, उनके बाल लम्बे लम्बे हैं, दाढ़ी भी बढ़ी हुई है, मगर यहां किसी को होश ही नहीं है कि उनकी हजामत बनबाई जाए."
"मैं समझ गया संध्या बहन, अभी एक नाई को लेकर आता हूं." माधव तेजी से बाहर की ओर भागता चला गया. और संध्या शान्ति को लेकर पुनः आईसीयू में आ गयी.
जो नर्स राजीव की देखभाल कर रही थी, उसका नाम सुधा था. वह थोड़ा नकचढ़ी थी और अभिमानी भी. उसे इस बात का गुमान था कि राजीव की देखभाल उससे बेहतर कोई कर ही नहीं सकती. इसलिए मन ही मन वह संध्या से ईर्ष्या भाव रखने लगी थी. उस समय वह बेड के पास बैठी हुई एक टक राजीव को निहारे जा रही थी. जैसे ही संध्या के साथ शांति वहां पहुंची कि वह चौंक पड़ी.
"सिस्टर, ट्राइसाइकिल कहां है?" आते के साथ संध्या ने पूछा.
"क्यों....?" सुधा बुरी तरह से चौंक पड़ी.
"क्योंकि राजीव बाबू को उस पर बैठाना है."
"क्या.....?"
"तुम इतना आश्चर्यचकित क्यों हो रही हो.?"
"राजीव बाबू ट्राइसाइकिल पर बैठने की हालत में नहीं हैं."
"इनकी हजामत बनबानी है."
"क्या....?" एक और झटका लगा सुधा को. वह एकदम से उछल पड़ी.
"हां.....!"
"राजीव बाबू के शरीर पर मांस है ही नहीं, सिर्फ हड्डियों का ढ़ांचा और चमड़ी है और तुम कह रही हो कि.....!"
"मैं जितना कह रही हूं, तुम सिर्फ उतना ही करो." संध्या नर्स के रवैए से क्षुब्द होकर तुनक पड़ी.
"मैं बिना सर से पूछे हुए कुछ भी नहीं कर सकती हूं." सुधा अपना मोबाइल निकाल कर डा० के० एन० गुप्ता का नंबर डायल करने लगी.
"हेलो सर....!"
"हां बोलो सुधा क्या बात है?"
"यह लड़की तो.....!" इससे पहले कि सुधा संध्या की शिकायत करती, उसने सुधा के हाथ से मोबाइल छीन लिया और खुद बात करने लगी.-"नमस्ते अंकल, मैं संध्या बोल रही हूं."
हां संध्या बेटी, बोलो क्या बात है?" डा० गुप्ता ने मृदुल स्वर में पूछा.
"सर मैं राजीव की हजामत बनवाना चाह रही हूं, मगर आपकी ये नर्स रोक रही है. बढ़े हुए बाल और बढ़ी हुई दाढ़ी की वजह से राजीव का चेहरा कितना भयानक लग रहा है.?"
"हां, सो तो है, मगर उसकी हजामत और शेविंग करवाते समय पूरी सावधानी बरतना."
"आप बिल्कुल बेफिक्र रहिए अंकल राजीव बाबू के चेहरे पर मैं खरोंच तक न आने दूंगी." संध्या उत्फुल्लित भाव से बोली.
"ठीक है बेटी, मोबाइल सुधा को दो." संध्या ने मोबाइल सुधा को थमा दिया.
"हां सर....?"
"संध्या जैसा कह रही है तुम वैसा ही करो."
"मगर सर....!" नर्स ने प्रतिवाद करना चाहा. मगर डा० गुप्ता ने उसे कसकर डपट दिया-
"शटअप, यह मत भूलो कि इस लड़की ने राजीव की चेतना को झकझोर कर वह कारनामा कर दिखाया है, जो बड़े बड़े डाक्टर नहीं कर सके.
"ओ के सर." संध्या से हार तो गई सुधा, परंतु उसका अहंकार नहीं टूटा. वह संध्या को ऐसे घूरने लगी कि जैसे संध्या उसकी सौतन हो. संध्या के ओठों पर हल्की सी मनमोहक मुस्कान थिरकने लगी थी.
***
माधव एक कुशल नाई को लेकर आ गया. संध्या के कहने पर सबों ने मिलकर लुंज-पुंज हो चुके राजीव को बिछावन से उठाकर ट्राइसाइकिल पर बैठा दिया. संध्या पीछे जाकर उसके सर को सावधानी से पकड़ लिया. और नाई से बोली -"देखो भैया, इनकी हजामत और शेविंग इस तरह से करना कि इन्हें रत्तीभर भी तकलीफ़ न होने पाए और न ही एक भी खरोंच आने पाए."
"आप इत्मीनान रखिए मैम इनको कुछ भी नहीं होगा." नाई पूरी सावधानी से राजीव के बाल काटने लगा. सुधा चकित भाव से संध्या के प्रत्येक गतिविधियों को देखती जा रही थी.
राजीव के बाल कट जाने और शेविंग हो जाने के बाद तो उसका स्वरूप ही बदल गया.
"बंडरफुल, कितने अच्छे लग रहे हैं राजीव बाबू अब." संध्या हर्ष से ताली पीटती हुई किसी मासूम बच्ची की तरह उछलने लगी. उसके इस उल्लास को देखकर शान्ति, माधव, और नाई के साथ साथ इस बार सुधा भी आश्चर्यचकित रह गई. संध्या तुरंत बगलवाली कोठरी में गयी और गोदरेज से पांच सौ का नोट लाकर नाई को थमाती हुई बोली -
"भैया, यह लो अपना मेहनताना."
"मगर मैडम मेरे पास तो छूटे नहीं हैं."
"सब रख लो भैया, और प्रत्येक दिन आकर इनकी शेविंग कर जाना."
"ठीक है मैम."
नाई मन ही मन खुश होते हुए वहां से चला गया.
नाई के जाने के बाद संध्या माधव से बोली -"माधव भैया अब राजीव बाबू को स्नान कराना है."
"ठीक है संध्या बहन, मैं नहला देता हूं." माधव ट्राइसाइकिल को ठेलते हुए बाथ रूम में ले गया और कुछ ही देर में उसे स्नान कराकर बाहर ले आया. संध्या ने राजीव को अपने हाथों से वस्त्र पहनाए. अब राजीव एकदम से स्मार्ट नजर आने लगा था. संध्या अपने दोनों हाथों की अंगुलियां राजीव के माथे से लगाने के बाद अपने माथे से लगाती हुई बोली -"राजीव बाबू, मैं आपकी बलाएं ले रही हूं, कहीं आपको किसी की नजर न लग जाए." राजीव की पुतलियों में हल्की सी चमक उभर आयी, जिसे कोई देख नहीं पाया. मगर संध्या ने देख लिया. अब तो खुशी के मारे उसका दिल बांसों उछलने लगा. तभी उसके सामने शान्ति आ गई. वह शान्ति की दोनों बांहें पकड़ कर उसे नचाने लगी.
"हे मेरे रामजी यह क्या कर रही है तू, छोड़ मुझे चक्कर आ जाएगा." शान्ति खुद छुड़ाती हुई बोली.
"राजीव बाबू ने फिर अपनी पलकें झपकाईं है, वे ठीक हो जाएंगे शान्ति."
"ठीक है, मैं भी खुश हूं, अब तो छोड़ो मुझे." संध्या ने शान्ति को मुक्त कर दिया. शान्ति वहां से भाग गयी और संध्या हंस पड़ी.
∆∆∆∆∆
क्रमशः........!
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