धारावाहिक उपन्यास 


- राम बाबू नीरव 

संध्या के बहुत आग्रह करने के पश्चात नर्स सोने चली गयी. रात आधी से अधिक बीत चुकी थी. कमरे में हल्की रोशनी थी. संध्या राजीव के वेड के पास ही एक आराम कुर्सी पर झूल रही थी. झूलते झूलते उसकी आंखें लग गयी. अभी कुछ ही पल हुए थे संध्या को सोये हुए कि एक "धप्" की आवाज सुनकर उसकी आंखें फौरन खुल गयी. अभी वह कुछ समझने की कोशिश कर ही रही थी कि एक नकाबपोश उसके सामने आकर खड़ा हो गया. वह हैरत से उस नकाबपोश को घूरने लगी. फिर एक झटके में उस नकाबपोश ने उसे धर दबोचा और अपनी आगोश में भींच लिया. संध्या का पूरा शरीर चरमराने लगा. एक पल के लिए तो उसे ऐसा लगा जैसे वह चेतना शून्य होती जा रही हो, मगर शीघ्र ही वह संभल गयी और हलक फाड़कर चीख पड़ी. -"राजीव बाबू." मगर राजीव के शरीर में कोई हरकत नहीं हुई. वह अपनी आंखें घूमाकर संध्या की ओर देखने ‌लगा जैसे समझने की चेष्टा कर रहा हो कि आखिर संध्या के साथ हो क्या रहा है.? जैसे ही उसे अनुभूति हुई कि संध्या के साथ कोई जबरदस्ती कर रहा है, वैसे ही उसके शरीर का खून खौलने लगा. चेहरे पर तनाव आ गया तथा आंखों में चिंगारी सी दहकने लगी. उसकी चेतना जागृत हो कर उसमें शक्ति का संचार कर रही थी. फिर वह पूरी ताकत बटोर कर बिछावन पर से उठने की चेष्टा करने लगा, मगर सफल न हो सका. उधर संध्या पूरी ताकत से उस शैतान का प्रतिरोध करती हुई स्वयं को उसकी गिरफ्त से मुक्त करने की पूरी कोशिश करने लगी. हालांकि वह नकाबपोश काफी बलिष्ठ था, फिर भी संध्या उसकी गिरफ्त से मुक्त हो ही गई और राजीव की ओर पलटकर उस शैतान से खुद को तंबचाने की गुहार करने लगी और-"राजीव बाबू मुझे इस राक्षस से बचाइए, नहीं तो यह मेरी इज्जत लूट लेगा." मगर संध्या राजीव कशमशा कर रह गया और वह राक्षस पुनः अपने बलिष्ठ हाथों From उसे पकड़ कर घसीटने लगा. 

"भगवान के लिए मुझे छोड़ दो." संध्या रोती हुई उससे विनती करने ‌लगी. मगर उस शैतान पर उसकी विनती का क्या असर होता? वह दरिंदा उसे घसीटते हुए कमरे के बीचोबीच ले आया और उसकी छाती पर बैठकर उसके कपड़े फाड़ने लगा. 

"राजीव बाबू ऽऽऽ" संध्या की हृदयविदारक चीख उस निस्तब्ध रात्रि के सन्नाटे को भंग करती हुई पूरी फिजाओं में गूंज उठी. उसके इस आर्तनाद ने राजीव पर जादू का सा असर किया. महीनों से शिथिल पड़े उसके शरीर में कसाव आ गया और वह उत्तेजित होकर कांपने लगा फिर पूरी ताकत लगा कर उछल पड़ा. मगर वह बिछावन पर से लुढ़क कर फर्श पर आ गया. फिर किसी चमत्कार की तरह वह खड़ा हो कर जैसे-तैसे उन दोनों के करीब आकर गया. फिर नकाबपोश पर अपने कमजोर हाथों का प्रहार करते हुए अपनी घुटी हुई आवाज में उसे गालियां देने लगा ष-"सा...ला....कु..त्.... ता, हरा..मी... छोड़.... मेरी, सन् धया को." उसकी आवाज आवाज सुनकर तथा प्रतिरोध देखकर उस नकाबपोश ने संध्या को छोड़ दिया और खिड़की की ओर दौड़ पड़ा. और पलक झपकते ही खिड़की से बाहर कूद गया. उसे भागते देख राजीव पकड़ने के लिए लपका, मगर लड़खड़ा कर गिर पड़ा. उत्तेजना में वह उसे गालियां बकते जा रहा था -"साला....कुत्.....ता....हरा....मी, मैं तुम को मार... डालूंगा." तक तक

 संध्या उछल कर खड़ी हो चुकी थी और विस्फारित नेत्रों से उसकी ओर देखने लगी. उसका सर्वांग रोमांचित हो उठा और मन-मयूर नाचने लगा. उसके मुंह से खुशी से लवरेज स्वर निकला -"मैं जीत गयी, मेरी तपस्या सफल हो गयी. सचमुच ईश्वर हैं. उनकी ही कृपा से तो मुझे यह सफलता मिली है." फिर वह राजीव की उत्तेजना को शांत करती हुई बोली -"राजीव बाबू शान्त हो जाइए. वह कमीना भाग चुका है."

"मैं....उस..हरा ....मी... को.... जि...न्... दा...न...हीं छो....ड़ूंगा, मेरी सन् ध् या को जो.... छुएगा उसको....मार.... डा.... लूंगा."

"अब कोई नहीं छुएगा मुझे, चलिए आप आराम कीजिए." संध्या उसे बिस्तर पर लिटा दी. वह बिस्तर पर से उतर ही रही थी कि राजीव ने अपने कमजोर हाथ से उसकी कलाई थाम ली और विनती करते हुए बोला -"हम.... को छोड़... कर... कहीं.... मत जाना...!" इतना कहते कहते वह रो पड़ा और उसकी की आंखों से आंसुओं की धारा बहने लगी.

"नहीं जाऊंगी, कहीं नहीं जाऊंगी. आप सो जाइए." संध्या उसके आंसू पोंछती हुई थपकियां देने लगी. 

               *****

दीपक के साथ जैसे ही शारदा देवी कॉटेज के अंदर दाखिल हुई कि वहां का नजारा देखकर उन दोनों के होश उड़ गये. राजीव की सुरक्षा पर तैनात दोनों गार्ड बरामदे पर अचेतावस्था में पड़े थे. दीपक ने झुक कर देखा. उनकी सांसें चल‌ रही थी.

"बुआ जी, लगता है, इन दोनों को कोई नशीली दवा देकर बेहोश किया गया है." राजीव की बात सुनकर हैरान रह गयी शायद देवी -"क्या.....?" -"किसने और क्यों बेहोश किया इन दोनों को ?" तभी उन्हें राजीव का ख्याल आया और वे तेजी से आईसीयू की ओर भाग खड़ी हुई. दीपक भी उनके पीछे-पीछ दौड़ पड़ा. जैसे ही वे‌ दोनों आईसीयू में दाखिल हुए कि उनके पांव के नीचे से जमीन खिसक गयी. राजीव अपने वेड पर नहीं था और वहां न तो नर्स थी, न ही संध्या. निश्चित रूप से किसी ने राजीव का अपहरण कर लिया है. 

"संध्या, शान्ति, माधव कहां हो तुम लोग." वे गला फाड़कर चीख पड़ी. उनकी चीख सुनकर नर्स के साथ साथ शान्ति और माधव भी घबराया हुआ सा वहां आ धमका और राजीव के बिस्तर को खाली देखकर उन सभी के भी होश उड़ गये.

"कहां है राजीव.?"  

कड़कती हुई आवाज में शारदा देवी ने नर्स से पूछा. नर्स सूखे पत्ते की तरह कांपती हुई बोली -"राजीव के साथ संध्या तो इसी कमरे में थी."

"इसका मतलब संध्या ने ही.....!" मगर शारदा देवी की आवाज उनके मुंह में ही रह गयी. द्वार पर राजीव को सहारा दिये हुई खड़ी थी संध्या. 

"मैं यहां हूं बुआ जी." सभी की आंखें आश्चर्य से फटी की फटी रह गयी. राजीव अपने पांव पर खड़ा था और संध्या उसकी बांह पकड़े हुई थी. संध्या पर नजर पड़ते ही दीपक की नजरें झुक गयी. वहीं संध्या के ओठों पर मृदुल मुस्कान थिरकने लगी. 

"क्या राजीव चल सकता है.?" शारदा देवी ने हर्षित स्वर में पूछा.

"ये सिर्फ चल ही नहीं सकते हैं बुआ जी, बल्कि बोल भी सकते हैं." 

"अच्छा....!" 

"राजीव बाबू, बुआ जी को नमस्ते कीजिए."

"नमस्ते.... बुआ जी!" किसी आज्ञाकारी बालक की तरह संध्या की आज्ञा का पालन करते हुए राजीव ने अपने दोनों हाथ जोड़ कर शारदा देवी का अभिवादन किया. शारदा देवी मुग्ध हो गयी और राजीव को अपनी आगोश में भींच कर उसे आशीर्वाद देने लगी.-

"युग युग जियो मेरे लाल." शान्ति भी उछलती हुई बोली -"हे मेरे रामजी, इस लड़की ने तो सचमुच चमत्कार कर दिया."

तभी दोनों गार्ड भी अंदर आ गये. और यहां का नजारा देखकर अचंभित रह गये.

"तुम दोनों बेहोश कैसे हो गये थे." शारदा देवी ने पूछा.

"लगता है संध्या मैडम ने हमें जो चाय दी थी, उसमें कुछ मिला हुआ था, चाय को पीते ही हमें चक्कर आया और हम बेहोश हो गये. उनमें से एक ने कहा.

"ओह, तो यह सब संध्या की चालाकी थी." ओठों ही ओठों में बुदबुदाने लगी शारदा देवी.

"क्षमा कीजिएगा बुआ जी यदि ऐसा न करती तो.....!"

"बेटी, तुम्हें मैं किन शब्दों में धन्यवाद दूं. शब्द नहीं हैं मेरे पास." 

"बुआ जी इतने लोगों के सामने मुझे क्यों शर्मिंदा कर रही हैं." फिर वह नर्स की ओर मुड़ कर बोली -

"सिस्टर राजीव बाबू को संभालो " अब वह दीपक से मुखातिब थी -

"दीपक बाबू आप जरा मेरे साथ आइए." वह दरवाजे की ओर मुड़ गयी. दीपक यंत्र चलित सा उसके पीछे-पीछे चल पड़ा.

              *****

संध्या दीपक को लिए हुई अपने शयनकक्ष में आ गयी.

"मिस्टर दीपक." दीपक की कृतज्ञता व्यक्त करती हुई वह बोल पड़ी- "आपके बहुमूल्य सहयोग के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद.!"

"धन्यवाद किसलिए संध्या जी. जिस तरह से आप अपना मानव धर्म निभा रही हैं, उसी तरह से मैंने भी निभाया. बल्कि सच तो यह है कि मैं उस घटना को‌ लेकर शर्मिंदा हूं. आपने मुझसे वैसा घृणित काम करवा लिया."

"डोन्ट माइंड, किसी की जिन्दगी बचाने के लिए कुछ न कुछ त्याग करना ही होता है."

संध्या मुक्त भाव से हंस पड़ी. उसकी धवल पंत पंक्तियां चमकने लगी. दीपक इस अद्भुत लड़की को चकित भाव से देखता का देखता रह गया.

               ****

डा० के. एन. गुप्ता ने राजीव को पूर्ण रूप से स्वास्थ्य घोषित कर दिया और इसका सारा श्रेय संध्या को मिला. संध्या पूरे फार्महाउस में देवी की तरह पूंजी जाने लगी. सभी के मन में उसके प्रति श्रद्धा थी. जो भी उसे देखता, चाहे बच्चा हो, बूढ़ा हो, नौजवान हो या औरत सभी उसे हाथ जोड़कर नमस्कार करते. उन लोगों से ऐसा निश्छल प्रेम और सम्मान पाकर संध्या स्वयं को धन्य समझने लगती. क्या ऐसा प्रेम अथवा सम्मान धन दौलत से खरीदा जा सकता है ? शारदा देवी के मन में भी उसके प्रति असीम अनुराग उत्पन्न हो चुका था. दीपक भी स्वयं को धन्य समझने लगा कि संध्या जैसी अद्भुत युवती का सामीप्य उसे प्राप्त हुआ है. 

सेठ द्वारिका दास जी की खुशी का तो जैसे कोई ठिकाना ही न था. उनकी समझ में नहीं आ रहा था कि संध्या कोेे इसके त्याग, तपस्या और निर्मल सेवा के लिए क्या उपहार दिया जाए. यह लड़की इतनी स्वाभिमानी है कि धन-दौलत तो‌ लेगी नहीं, फिर भी निशानी के रूप में कुछ न कुछ तो देना ही होगी. एक दिन वे‌ संध्या के लिए सोने का एक कंगन, जिस पर हीरों की नक्काशी की गयी थी, लेकर आये. मगर संध्या ने उसे लेने से साफ साफ इंकार कर दिया. जब सेठ द्वारिका दास मासूम बच्चे की तरह रोने लगे तब संध्या मजबूर हो गयी और अनमने भाव से उसने वह कंगन ले लिया. 

सेठ द्वारिका दास ने खुशी के इस मौके पर राजीव की सेवा में प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से लगे अपने सभी नौकरो‌ं को भी कुछ न कुछ उपहार देकर खुश कर दिया. 

डा० गुप्ता ने एक दिन एकांत में राजीव को वे सारी बातें बता दी थी, जो सब उसके कोमा में रहने दौरान घटी थी. खासकर संध्या की सेवा और उसके त्याग तपस्या की कहानी. कैसे संध्या उसके मुंह से बहने वाले लार को अपने आंचल से साफ किया करती थी, अपनी गोद में उसे सुलाकर उसे चम्मच से भोजन कराया करती थी. संध्या की इस पवित्र सेवा-भाव को जानकर राजीव के मन में उसके प्रति सिर्फ प्रेम ही नहीं बल्कि श्रद्धा भाव भी उत्पन्न हो गया. चूंकि राजीव अब पूर्णतः स्वस्थ्य और तंदुरुस्त हो चुका था, इसलिए डा० गुप्ता के कहने पर उसे बंगले में ले आया और गया. बंगले के दूसरे तल्ले पर संध्या के बेडरूम के बगल वाले बेडरूम में उसे रखा गया. यहां लाने के बाद उसकी सुरक्षा व्यवस्था और बढ़ा दी गयी.

                  ****

दीपक के दिलो-दिमाग में संध्या इस कदर छा चुकी थी कि वह सोते जागते उसे अपनी प्रेयसी के रूप में देखने लगा था. कई बार उसने संध्या को अपने मन की बात बताने की चेष्टा की मगर सफल नहीं हो पाया. बचपन से ही वह थोड़ा संकोची स्वभाव का रहा है, इसलिए संध्या के समक्ष अपने प्रेम को व्यक्त करने का साहस जुटा पाने में वह स्वयं को असमर्थ पा रहा था. बुआ जी के समक्ष भी अपने दिल की बात रखने की उसने अनेकों बार कोशिश की मगर सफल नहीं हो पाया. फिर एकाएक उसका ध्यान शान्ति की ओर गया और वह खुशी से उछल पड़ा -"हां शान्ति यदि चाहे तो संध्या तक उसके दिल की बात पहुंचा सकती है." अब वह शान्ति से बात करने का मौका ढ़ूंढने लगा.


सेठ द्वारिका दास्तान अब भी राजीव की सुरक्षा को लेकर चिंतित थे. उन्हें इस बात की पूरी आशंका थी कि जिस दिन उनकी पत्नी प्रभा दास को राजीव की सच्चाई ज्ञात होगी, उसे अपने रास्ते से हटाने का षड्यंत्र रचने लगेगी. इसलिए उन्होंने मन ही मन राजीव को अपने मुंबई वाले शो रूम का मालिक बनाने का निश्चय कर लिया.

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क्रमशः..........!

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