(जनक नंदनी मां सीता की सम्पूर्ण कथा)
(भूमिका)
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वैसे तो हमारी भारतीय सभ्यता और संस्कृति में अनेकों आदर्श नारियां हो चुकी हैं, जिनका आदर्श चरित्र समस्त स्त्रियों के लिए प्रेरणादायक और अनुकरणीय रही हैं. परंतु उन सभी नागरियों में जगत जननी मां जानकी का व्यक्तित्व, और आदर्श चरित्र अद्भुत और अलौकिक है. इनके इस चारित्रिक विशेषताओं ने इन्हें न सिर्फ भारतीय उप महाद्वीप की गरिमा को उच्चतम शिखर तक पहुंचाया है बल्कि विश्व पटल पर भी भारतीय नारी को श्रेष्ठ नारी के रूप स्थापित किया है. भले ही मां सीता का प्रार्दुभाव धरती मां की कोख से हुआ था, परंतु वे कहलाती हैं मिथिला की बेटी ही. यह हमारे मिथिला और बज्जिका क्षेत्र के लिए गौरव की बात है कि जनकनंदिनी जानकी का प्रार्दुभाव हमारे सीतामढ़ी जिला के पुनौरा धाम में हुआ. सदियों से मां सीता की जन्म भूमि की अनदेखी की गयी. अयोध्या में भगवान श्री राम (रामलला) का भव्य मंदिर बन गया परंतु मां सीता की जन्मस्थली की ओर किसी का ध्यान नहीं गया. हम सीतामढ़ी वासियों के साहसिक संघर्ष, शौर्य,आत्म विश्वास और मां सीता की महती कृपा का ही परिणाम हैं कि अयोध्या के श्री रामलला के मंदिर के तर्ज पर मां सीता के भव्य मंदिर का शिलान्यास होने जा रहा. इस भव्य आयोजन में जिन राजनेताओं, मां सीता के श्रद्धालु भक्तजनों, साधु-संतों तथा आम नागरिकों की महत्वपूर्ण भूमिका रही है वे साधुवाद के पात्र हैं. जब से मैंने सुना कि मां सीता का मंदिर पुनौरा धाम में बनने जा रहा है, तब से मेरे मन में एक पवित्र भाव उत्पन्न हुआ कि क्यों न मैं मां सीता के आदर्श चरित्र पर केन्द्रित एक ऐसी कथा का सृजन करूं जो सहज, सरल और सुबोध भाषा शैली में लिखी गयी हो. वैसे महर्षि बाल्मीकि और गोस्वामी तुलसीदास जी के समक्ष मेरी क्या बिसात, फिर भी मां सीता की महती कृपा और मेरी धर्मपत्नी सुचित्रा की प्रेरणा आखिर मुझे मां सीता के दिव्य चरित्र पर कलम चलाने को बाध्य कर ही दिया. और आज आठ अगस्त 2025 को उनके भव्य मंदिर के पावन शिलान्यास के अवसर पर मैंने उनकी सम्पूर्ण जीवन गाथा लिखने का श्रीगणेश कर रहा हूं. इस पुस्तक में मैंने बाल्मीकि रामायण, रामचरित मानस, ब्रह्मवैवर्त पुराण, विष्णु पुराण, अद्भुत रामायण, रावण संहिता के साथ साथ आचार्य चतुरसेन लिखित वयंरक्षाम: की सहायता ली है.
बाल्मीकि रामायण तथा ब्रह्मवैवर्त पुराण में मां सीता के पूर्व जन्म की कथा का उल्लेख किया गया है, जो रामचरित मानस में नहीं है. इस कथा के अनुसार पूर्व जन्म में मां सीता ब्रह्मर्षि कुशध्वज जी की पुत्री थी, जिनका नाम था वेदवती. वे भगवान विष्णु को पति रूप में प्राप्त करने हेतु एक पर्वत पर तपस्या कर रही थी, परंतु दुष्ट रावण ने न सिर्फ उनकी तपस्या भंग कर दी बल्कि उनकी पवित्रता को भी भ्रष्ट करने की चेष्टा की. इससे कुपित होकर उन्होंने रावण को श्राप दिया कि अगले जन्म में वे फिर जन्म लेंगी और दुष्ट रावण के साथ साथ समस्त राक्षस वंश के सर्वनाश का कारण बनेंगी. इतना कहकर वेदवती आत्मदाह कर लेती है. वही वेदवती सीता के रूप में हल जोतते समय मिथिला के राजा सीरध्वज जनक को मिलती है और रावण के विनाश का कारण बनती है. वहीं अद्भुत रामायण में
मां सीता को रावण की बेटी के रूप में भी दर्शाया गया है, जिसे रावण जन्म लेते ही समुद्र में फिकवा देता है. वही बालिका मिथिला के पुनौरा धाम में राजा जनक जी को मिलती है. मैंने अपनी इस कृति में सभी रामायणों तथा अन्य ग्रंथों की कथाओं में तारतम्य स्थापित करते हुए एक मौलिक कथा का सृजन करने की चेष्टा की है. यह कथा मुख्य रूप से मां सीता को ही केन्द्र में रख कर लिखा गया है. मां सीता के साथ साथ मैंने उनकी तीनों बहनों उर्मिला, मांडवी और श्रुतकीर्ति के आदर्श को भी उभारने का प्रयास किया है. उर्मिला का त्याग भी अद्भुत है. जो स्त्री चौदह वर्षों तक वियोग की अग्नि में जलती हुई अपने पति के आगमन की प्रतीक्षा कर रही हो, उसकी आन्तरिक वेदना का अनुमान सहज ही लगाया जा सकता है. मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के चारित्रिक विशेषताओं को बताने की मैं यहां आवश्यकता नहीं समझता. उसी तरह रावण की दुष्टता को भी दर्शाना आवश्यक नहीं है. जैसे जैसे मेरी यह कथा आगे बढ़ती जाएगी वैसे वैसे सभी पात्रों का चरित्र मूर्त रूप लेता जाएगा. वैसे मेरे इस पौराणिक आख्यान का मूल कथानक वही है जो उपरोक्त धार्मिक ग्रंथों में वर्णित है. हां, उस मूल कथा को मैंने अपनी भाषा शैली में लिखने की धृष्टता अवश्य की है ताकि पाठकों को पढ़ने और समझने में असुविधा न हो इसके अतिरिक्त कथा रोचक भी लगे. मैंने इस बात का भी ध्यान रखा है कि मां सीता तथा प्रभु श्रीराम के प्रति हमारी धार्मिक आस्था भी खंडित न हो. मैंने मुख्य रूप से इस कथा को स्त्रियों के पठन-पाठन की दृष्टिकोण से लिखने का प्रयत्न किया है ताकि आधुनिक महिलाएं और युवतियां मां सीता के धवल चरित्र से प्रेरणा लेकर उनके सद्गुणों को आत्मसात कर सकें. यदि कुछ प्रतिशत महिलाएं भी ऐसा करती हैं तो मैं समझूंगा मेरा भगीरथ प्रयास सफल हो गया.
इस धार्मिक आस्था की पुस्तक को लिखने में मुझे अपने अनगिनत मित्रों का बहुमूल्य सुझाव और मार्गदर्शन मिला है जिनमें प्रमुख हैं श्री शिवशंकर सिंह, श्री भगवती चरण भारती, डॉ० दशरथ प्रजापति, श्री दिनेश चन्द्र द्विवेदी, सीता संवाद के निदेशक श्री आग्नेय, श्री सुरेश वर्मा, श्री ऋषिकेश, श्री विमल कुमार परिमल, श्री रामशंकर शास्त्री, डा० विनोद कुमार सिन्हा, मेरे परमप्रिय मित्र श्री बाबूलाल दास. श्री आसिफ करीम, डॉ० अर्पणा कुमारी, डॉ० पंकज वासनिक, नीरव साहित्य परिषद के अध्यक्ष प्रिंसिपल उदय सिंह करूणाकर, उपाध्यक्ष स्वतंत्र शांडिल्य, सचिव संजय चौधरी, कोषाध्यक्ष राहुल चौधरी, आशीष रंजन प्रणव, प्रकाश मोहन मिश्र, गौतम कुमार वात्स्यायन, कृष्ण कुमार मिश्र आदि का मैं आभारी हूं
-रामबाबू नीरव
मो० 9801779842




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