मत रो माँ, अब मत रो,

तेरी बेटी की आवाज़ हम सब हैं,

न्याय की राह पर चल पड़े,

अब जाग उठा हर जन-जन है…।


गूँजे धरती, गगन गवाह,

अन्याय के विरुद्ध उठे निगाह।

"भाग गई होगी" कहना भूल,

अब टूट चुका हर झूठा फूल।


मनीषा तेरी कसम हमें,

लड़ेगे जब तक साँस है।

न्याय की ज्वाला जलती रहे,

हर दिल में अब विश्वास है।


मोमबत्तियों का यह सागर,

बन जाए अग्नि का दरिया,

क़ातिलों को सज़ा मिले,

नारी फिर हो न दु:खिया।


मत रो माँ, अब मत रो,

तेरी बेटी की आवाज़ हम सब हैं,

न्याय की राह पर चल पड़े,

अब जाग उठा हर जन-जन है…।


- डॉ. प्रियंका सौरभ

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