- रामबाबू नीरव 


सुबह के छः बज चुके थे. नर्सिंग होम में चहल-पहल शुरू हो चुकी थी. रीतेश को अभी तक होश नहीं आया था. अभय भी अभी तक उसके पांवताने सर टिका कर खर्राटे ले रहा था. तभी रात को जो नर्स ड्यूटी पर तैनात थी, वही कॉफी का ट्रे लिए हुई अंदर दाखिल हुई. अभय को खर्राटे भरते देख कुछ पल के लिए वह ठिठक गयी, फिर साहस बटोर कर बेड के करीब आयी और उसे जगाती हुई बोली -

"सर, उठिए मैं आपके लिए कॉफी लेकर आयी हूं. " अभय ने कुनमुनाते हुए अपनी ऑंखें खोल दी. और वह संभल कर बैठते हुए नर्स की ओर उनिंदी ऑंखों से देखने लगा. तभी नर्स की नजर अभय के ओठों पर पड़ गयी और अनायास ही उसके मुंह से निकल पड़ा -"सर आपके ओंठ तो लाल हैं."

"क्या.....?" अभय बुरी तरह से चौंक पड़ा और उसके साथ-साथ नर्स भी स्तब्ध रह गयी. नर्स मन ही मन सोचने  लगी -" अभय बाबू के ओठों पर जो‌ लाली है वह लिपिस्टिक की है. इसका मतलब रात में जो औरतें यहां आती थी उनमें से किसी एक ने इनका चुम्बन लिया होगा."

"मेरे ओठों पर लाली कहां से आयी. ?" अभय ने अचरज से नर्स को घूरते हुए पूछा. उसके मन में शंका उत्पन्न हो गयी -" कहीं इस नर्स ने ही तो....?" उसके मन की शंका से बेखबर नर्स लड़खड़ाते स्वर में बोली 

-"सर अभी दो घंटा पूर्व यहां चार औरतें आयी थी. "

"चार औरतें यहां आयी थी.....कौन हो सकती है वे चारों." ओठों ही ओठों में बुदबुदाने लगा अभय. 

"जी हां सर, उन औरतों में से एक ने बताया था कि हमलोग अभय बाबू  और रीतेश बाबू की रिश्तेदार हैं और पटना से आयीं हैं."

"पटना से आयीं थी.... मेरे रिश्तेदार....?" अभय का सर चकरा कर रह गया. फिर वह नर्स की ओर देखते हुए बोला -"सिस्टर, तुम कॉफी टेबल पर रख दो और यहीं रूको, मैं पांच मिनट में बाथरूम से आता हूं." वह तेजी से अटैच्ड बाथरूम में घुस गया. उसने जैसे ही आइना में अपना चेहरा देखा कि बुरी तरह से चौंक पड़ा. उसके ओठों पर लिपस्टिक की जो‌ लाली थी, वैसी लिपस्टिक तो कंचन लगाती है. इसका मतलब आईसीयू में आने वाली हुस्नबानो, कंचन, शहनाज़ और मीनाक्षी ही रही होगी. और कंचन ने ही उसका चुम्बन लिया होगा. इसका मतलब कंचन उसे चाहती है. इस एहसास से उसका रोम रोम पुलक उठा. यदि सचमुच कंचन उससे प्रेम करती है तो वह दादाजी से कहकर उसे राज खानदान की बहू बना लेगा. अपना चेहरा साफ करके वह बाहर आ गया. नर्स उसकी ओर लाल रंग की एक डायरी और एक लिफाफा बढ़ाती हुई बोली -"सर यह डायरी और लिफाफा बेड पर पड़ा हुआ था." अभय ने डायरी और लिफाफा को लपक लिया. उसके चेहरे पर अनेकों तरह के भाव आने और जाने लगे. नर्स एकटक उसके चेहरे को निहारे जा रही थी. उसकी समझ में कुछ भी न आ रहा था कि आखिर माजरा क्या है.....वे चारों औरतें थीं कौन ?" उधर विकल भाव से अभय लिफाफा को उलट-पुलट कर देखने लगा. लिफाफा पर बहुत सुन्दर लिखावट में उसका और रीतेश का नाम लिखा हुआ था. तभी डायरी में से एक तस्वीर नीचे गिर पड़ी. इस ओर न तो अभय का ध्यान गया और न ही अनुपमा का. 

"सर कॉफी ठंडी हो रही है."

"ऐसा करो सिस्टर, यदि तुम्हें कष्ट न हो तो इस कॉफी को दुबारा गर्म करके....!"

"ओके सर, अभी गर्म करके ले आती हूं." नर्स कॉफी का ट्रे लेकर बाहर निकल गयी. असल में अभय उस पत्र को एकांत में पढ़ना चाहता था, जो उस लिफाफा में बंद था. नर्स के जाते ही उसने लिफाफा में से पत्र निकाला और मन ही मन पढ़ने लगा. 

"प्रिय अभय और रीतेश,

शुभाशीष. 

मैं ऐसी अभागिन औरत हूं, जो सरेआम न तो तुम्हें और न ही रीतेश को अपना बेटा कहकर पुकार सकती हूं. जबकि सच यही है कि तुम मेरे पुत्र हो और रीतेश है मेरा भतीजा यानी मेरे देवता स्वरूप बड़े भईया पं० जनार्दन झा जी का एकलौता पुत्र. तुम सोचोगे कि मैं  तुम मेरे पुत्र कैसे हो तो तुम्हारे इस प्रश्न का उत्तर यह है कि सौतेला पुत्र भी तो पुत्र ही होता है न! हां अभय मैं तुम्हारी सौतेली मां हूं. तुम्हारे पिता एम. पी. किशन राज की दूसरी पत्नी और देवी स्वरूपा तुम्हारी मॉं की सौतन हूं मैं. देवता समान सेठ धनराज जी की बहू हूं मैं. मैं नहीं जानती थी कि यह राजनगर एमपी किशन राज जी का पुश्तैनी शहर है. यदि मैं यह जानती तो भूले से भी इस शहर में कदम न रखती. तुमने  कहा था कि मैं जब भी आपको ‌देखता हूं तब मेरे दिल में अजीब सी बेचैनी होने लगती है. यह बिल्कुल सच है.... सिर्फ तुम्हारे दिल में ही नहीं बल्कि मेरे दिल में भी बेचैनी हुआ करती थी. लहू अपने लहू को किसी न किसी हाल में पुकार ही लेता है

अभय. जब तुमने कहा था कि आप हमारे राज पैलेस में चल कर रहिए, मेरे दादाजी आपको मेरी मॉं का दर्जा देंगे, तब मेरा कलेजा चाक चाक हो गया था. और जब तुमने यह बताया कि तुम्हारी मॉं अब इस दुनिया में नहीं रही तब उसी क्षण मेरी इच्छा हुई थी कि तुम्हें अपनी बाहों में समेट लूं और मॉं की इतनी ममता तुम्हें दूं कि तुम्हारी आत्मा तृप्त हो जाए. मगर नौटंकी के स्टेज पर नाचने गाने वाली दो कौड़ी की यह बाजारू औरत ऐसी हिमाकत कैसे कर सकती थी. रीतेश ने मुझे डायन कहा था, नागिन कहा था, सचमुच मैं डायन हूं, नागिन हूं. मैंने सब को डंस लिया. मैं खा गयी.... अपने उस भैय्या को खा गयी, जिन्होंने मुझे मॉं और बाप दोनों का प्यार दिया. खैर, मेरे साथ भगवान के साथ साथ इंसानों ने घोरतम अन्याय किया है. इस का खुलासा मैं अपनी डायरी में कर चुकी हूं जो इस पत्र के साथ है. मैं  एक और रहस्य बताना चाहती हूं, मालुम नहीं उसे सुनकर तुम्हें खुशी होगी याकि दु:ख होगा. तुम्हारी एक बहन भी है. सौतेली ही सही मगर, बहन तो है. वह भी राज खानदान की ही विभूषणा है.  लेकिन  उस मासूम को अभी तक यह नहीं पता कि उसे जन्म देने वाली मॉं नौटंकी की एक बाई जी है. मेरी बेटी यानि तुम्हारी बहन का नाम है अमृता राज." अभय के धैर्य  का बांध टूट गया और उसकी ऑंखों से ऑंसुओं की धारा प्रवाहित होने लगी. उसी समय नर्स कॉफी लेकर आ गयी. और अभय को सिसकियां ले लेकर रोते देखकर स्तब्ध रह गयी.

"सर कॉफी....!" धीमे स्वर में बोली वह.

"टेबल पर रख दो और तुम जाओ, मुझे अकेला छोड़ दो." नर्स कॉफी का प्याला टेबल पर रख कर चली गयी. अपने ऑंसू पोंछकर अभय पुनः पत्र पढ़ने लगा -

"मैं तुमसे एक विनती करती हूं अभय, किसी भी तरह से भी मेरी बेटी को उसके बाप का नाम ‌दिलवा दो. उसे तुम्हारी धन-दौलत कुछ भी नहीं चाहिए. मैं उसे इस लायक बना रही हूं कि अपनी मंजिल वह खुद तलाश लेगी. अभी वह पटना मेडिकल कॉलेज में प्रथम वर्ष की छात्रा है. उसे पालने वाली मां का नाम है शैव्या और पिता का नाम है बालेश्वर. वे दोनों हाजीपुर (वैशाली) के निकट एक गांव है चेचर, वहीं रहते हैं. मेरी बेटी का बचपन भी वहीं बीता है. मैं कभी कभार अपने  सेवक जगन्नाथ, जिसे प्यार से मैं जग्गू कहकर पुकारा करती हूं के साथ पटना जाकर दूर से ही देख लिया करती हूं. जग्गू ही उसके सम्पर्क में रहता है. चूंकि जग्गू मुझे दीदी कहता है, इसलिए वह मेरी बेटी का मामा बन चुका है. उसे यही विश्वास दिलाया गया है कि उसकी पढ़ाई का सारा खर्च उसका जग्गू मामा ही कर रहा है. मगर मैं जानती हूं कि उसके मन में कहीं न कहीं एक संशय बना हुआ है कि उसके साथ कुछ न कुछ धोखा हो रहा है.

एक बात मैं तुम्हें और बता देना चाहती हूं. यदि तुम कंचन से प्रेम करते हो तो उसे अभी से ही भूल जाओ. क्योंकि तुम्हारे पापा एमपी किशन राज किसी भी हालत में नौटंकी की एक नर्तकी को राज खानदान की बहू के रूप में स्वीकार नहीं करेंगे और मैं जीते जी कंचन को किसी अमीरजादे की रखैल न बनने दूंगी. क्योंकि कंचन को मैं अपनी छोटी बहन मान चुकी हूं. हमलोग इस शहर को छोड़कर कर जा रहे हैं, कहां जाएंगे हमलोग कुछ नहीं मालूम. हमें ढ़ूंढने का प्रयास भी मत करना. अंतिम बार फिर तुम से आग्रह करती हूं कि मेरी बेटी को राज खानदान की बेटी का हक़ अवश्य दिलवा देना, बस यही मेरी तुमसे पहली और आखिरी आरज़ू है. अमृता यदि तुमलोग मिलना चाहो तो सबसे पहले उसके पाद्य पिता और माता से मिलना होगा. जग्गू से भी तुम लोगों की मुलाकात चेचर में ही हो जाएगी.

तुम दोनों सदा खुश रहो. 

तुम्हारी मॉं और रीतेश की बुआ.  -

 हुस्नबानो उर्फ माया"

पत्र पढ़ने  के बाद अभय के‌ दिल में जो तूफान मचलने लगा वह धमने का नाम ही न ले रहा था. तभी उसकी नज़र नीचे गिरी तस्वीर पर पड़ गयी. जैसे ही उसने तस्वीर को उठाया  कि उस पर नजर पड़ते ही वह स्तब्ध रह गया. तस्वीर एक बाईस वर्षीय युवती की थी. उसकी शक्लों सूरत बिल्कुल अभय जैसी ही थी. ऐसा लग रहा था जैसे अभय ने ही लड़की का रूप धारण कर लिया हो.

"आह......! मैं कहां हूं." रीतेश की कराह सुनकर अभय चौंक पड़ा और उसकी ओर चकित भाव से देखने लगा. 

"तुम दयाल नर्सिंग होम में हो."

"वह नागिन कहां गयी.?" इधर उधर नजर दौड़ाते हुए रीतेश ने पूछा. 

"वह इस शहर को छोड़ कर चली गयी."

"अच्छा हुआ जो वह चली गयी. अगर नहीं जाती तो मैं उसे जिंदा न छोड़ता." रीतेश की ऑंखों में नफरत का सैलाब उमड़ने लगा. 

"कौन थी वह.?" अभय ने क्रुद्ध नजरों से उसकी ओर देखते हुए पूछा.

"कैसे बताऊं, शर्म से मरा जा रहा हूं. वह मेरी बुआ थी." रीतेश आत्मग्लानि से घुलने  लगा. 

"वह तुम्हारी बुआ थी, तब तो तुम्हें इतनी ग्लानि हो रही है, और जब यह जानोगे तब तो तुम्हारे होश ही उड़ जाएंगे." अभय की बातें सुनकर रीतेश बुरी तरह से चौंक पड़ा - उसकी माया बुआ के साथ अभय का भी कोई सम्बन्ध है, इसकी तो उसने कल्पना भी न की थी. -"कौन है वह तुम्हारी.?

"मेरी मॉं है."

"क्या.......?" ऐसा लगा रीतेश को जैसे पूरा आईसीयू नाचने लगा हो.

"हॉं रीतेश. भले ही सौतेली ही सही, मगर वह मां तो थी मेरी. और यह देखो, यह मेरी बहन है." अभय ने अमृता की तस्वीर उसकी ओर बढ़ा दिया. तस्वीर लेकर रीतेश गौर से देखने लगा. एकदम से अभय के प्रतिरूप को देखकर वह भी स्तब्ध रह गया. 

"यह सब क्या है, मेरी तो कुछ समझ नहीं आ रहा है. यदि यह लड़की सचमुच मेरी माया बुआ की बेटी है तब तो यह मेरी भी बहन हुई."

"हां, तुम्हारी भी बहन है यह."

"ओह....!" रीतेश मुंह ढांप कर रोने लगा. इसी समय रग्घू के साथ दयाल नर्सिंग होम की हेड नर्स सह रीतेश की मंगेतर अनुपमा आईसीयू में दाखिल हुई.

              ∆∆∆∆∆∆

क्रमशः........!

0 comments:

Post a Comment

 
Top