-डाॅ0 आद्याप्रसाद सिंह ‘प्रदीप’


विदेश जाने की बहुत दिनों से कामना पूर्ण होते देख मन अत्यन्त प्रसन्न था। मैने 2009 में फिजी जाने के लिए पासपोर्ट बनवा रखा था। 31.08.2018 को माॅरीशस जाने के लिए घर से भावभीनी विदाई पाकर मैं बारह बजे अपनी कार से निकल पड़ा। पौत्र सुन्दरम कार चलाकर कादीपुर लाये। कनिष्ठ पुत्र पवन कुमार सिंह का परिवार कादीपुर में रहता है। उनके कम्प्यूटर सेन्टर कीर्ति कम्प्यूटर पर पहुँचा तो ज्ञात हुआ कि पवन कुमार सिंह के आवास पर कौण्डिन्य साहित्य सेवा संस्थान की ओर से डाॅ0 सुशीलकुमार पाण्डेय ‘साहित्येन्दु’ कई साहित्यकारों के साथ मेरी विदाई करने के लिए उपस्थित हैं। वहाँ पहुँचकर देखा कि डाॅ0 पाण्डेय जी के साथ डाॅ0 देवनारायण शर्मा ‘चक्रधर’, श्री मथुरा प्रसाद सिंह ‘जटायु’, डाॅ0 करुणेश भट्ट, श्री ज्ञानेन्द्रविक्रम सिंह ‘रवि’ उपस्थित थे। श्री मथुरा प्रसाद सिंह ‘जटायु’ जी ने तिलक लगाया तथा चक्रधर जी ने मुझे शाल ओढ़ाकर, माला पहनाकर मिठाई खिलाकर विदा किया। इसी समय माॅरीशस से लौटे चक्रधर जी ने भ्रमण के अनुभवों का संक्षिप्त आवश्यक अनुभव व्यक्त कर मेरा मार्गदर्शन किया।

सभी के द्वारा सम्मान और सस्नेह विदाई पाकर मेरा मन अधीर सा हो रहा था। आँखों में अश्रु आने को होते तो मैं उन्हें येन-केन-प्रकारेण समित कर देता। सभी लोग विदाई करके विसिर्जित हुए। पवन कुमार और पुत्रवधू तेजल ने कहा कि अब शाम का भोजन लेकरके ही जाँय। भोजनोपरान्त यहाँ से विदा लेकर आगे बढ़ा। साथ में सुन्दरम, देवेश और शिवेश हमें पहुँचाने चले। पवन कुमार कार चला रहे थे। गाड़ी आने का समय नौ बजकर तीस मिनट पर था। हम नौ बजे रलवे स्टेशन पहुँच गये। हम गाड़ी आने वाले प्लेटफार्म नं0-तीन पर पहुँच गये। यहाँ पर हमारे रिश्तेदार श्री ओमप्रकाश सिंह भी मुझे विदा करने आये थे। कुछ समय के बाद डाॅ0 ओंकारनाथ द्विवेदी जी तथा श्री जगदीश पीयूष जी जिन्हें भी माॅरीशस यात्रा पर जाना था, आ गये। कुछ देर बाद नियत ट्रेन सुहेलदेव सुपरफास्ट एक्सप्रेस आ गयी। हम अपने आरक्षित ए0सी0 कोच के बर्थ पर पहुँच गये। सभी बच्चे पहुँचाकर वापस चले गये। गाड़ी गन्तव्य पर चल पड़ी। डाॅ0 रामबहादुर मिश्र लखनऊ में आये।

दिनांक: 01.09.2018 को हम दिल्ली स्थित पीयूष जी के पुत्र श्री राकेश पाण्डेय के होटल में रुके। दूसरे दिन प्रातः 4ः30 बजे टैक्सी आयी। हम प्रतीक्षारत थे। तुरन्त उस पर बैठकर एयरपोर्ट पहुँच गये। सामान जमा करने के बाद एक छोटा वाहन आया और मुझे बैठाकर सभी काउन्टर्स पर क्रियाकलाप संचालित करवाते हुए प्रतीक्षालय में पहुँचा दिया। प्रसारण से हवाई जहाज के तैयार होने की सूचना मिलते ही सभी तैयार हो गये। उक्त वाहन द्वारा मुझे पुनः हवाई जहाज तक पहुँचा दिया। मैं जाकर अपनी सीट पर बैठ गया। इस समय मैंने अपने पुत्र पवन कुमार को सूचित किया कि मैं जहाज पर बैठ चुका हूँ। चलने की सूचना मैंने उन्हें दिया। हम आसमान में कुछ ही देर में ऊँचाई पर उड़ने लगे। हवाई जहाज 850 किमी0 की गति से 1750 मीटर की ऊँचाई पर उड़ रहा था। यहाँ हमें एक बार नाश्ता मिला, दो बार काफी/चाय पिया। पुनः एक बजे भोजन किया। हम सात घण्टे पन्द्रह मिनट में माॅरीशस एयरपोर्ट पर पहुँच गये। मेरा सामान मेरी अवस्था के हिसाब से अधिक था। यहाँ सत्या सिंह नामक एक सहयात्री ने मेरा बहुत सहयोग किया। पता चला कि यह सेवानिवृत्त पुलिस अधिकारी लखनऊ की हैं। यहाँ बस में बैठकर हम लोग होटल में आये। प्रथम तल पर हमें 203 क्रमांक का कमरा मिला। कमरे में मैं डाॅ0 ओंकारनाथ द्विवेदी जी के साथ सन्नद्ध हुआ।

प्रथम दिवस में मैं प्रतिदिन की तरह प्रातः 3ः30 बजे उठा। नित्यक्रिया से निवृत्त होकर व्यायाम और प्राणायाम किया। फिर भी रात काफी लगी। कुछ देर पढ़ने का काम किया। सूजी का लड्डू घर से बनवाकर ले गया था, उसे खाकर पानी पिया, दवा खाया। कुछ देर बाहर निकलकर घूमता रहा। जब बाहर से अन्दर कमरे में आया तो द्विवेदी जी ने बताया कि यहाँ सूर्योदय देर में होगा। प्रातः की पावन वेला वायु के झकोरों के साथ पदार्पण किया। यहाँ नारियल के पेड़ फलों से लदे हुए अच्छे लगे। सामने समुद्र का सुदूर फैला वक्षस्थल मन को मुग्ध कर रहा था। अब सभी कमरों में लोग उठ चुके थे। बगल कुछ ही दूर पर एक राम सागर त्रिपाठी जी मिले। इनको मैं लगभग 20 वर्षों से जानता हूँ। इनके गाँव के परिवार वालों से विधिवत् परिचय है। आठ-नौ बजे के बीच नाश्ता करके हम भ्रमण के लिए छोटी बस से निकल पड़े।
यहाँ की सड़कें बहुत सुन्दर और समतल बनी हैं। लगता है यहाँ के सड़क बनाने वाले ईमानदारी से काम करते हैं अथवा उन्हें ऊँचे अधिकारियों को कमीशन नहीं देना पड़ता है। यहाँ के हर परिदृश्य सुन्दर और लुभावने हैं। यहाँ नीम के पेड़ देखने को नहीं मिले। हर दरवाजे पर आम्र तरु का सजा-सजाया स्वरूप मन को मुग्ध कर लेता है। इस समय यहाँ का मौसम बसंतकालीन लग रहा है। आम के पेड़ों में जहाँ एक तरफ फल लदे हैं तो दूसरी तरफ उसी पेड़ में बौर आ रहे हैं। बगल में ही बौरों में नन्हें और बड़े टिकोरे भी झूम रहे हैं। बरसात भी यहाँ रह-रहकर होती रहती है। इससे यहाँ पर कभी धूल नहीं दिखायी देती। वृक्ष और भूमि, लतायें सभी धोये बधारे से लगते हैं। बस की गति अत्यन्त तीव्र है। पहाड़ी स्थान भी है। यहाँ हम गंगा ताल नामक स्थान देखने गये। कहा जाता है कि भारत में जो पवित्रता गंगा नदी में होती है, इस गंगा ताल में वही पवित्रता देखने को मिलती है। लोगों में इस जल के प्रति गंगा जैसी आस्ािा है। लोग दूर-दूर से पैदल चलकर इसमें नहाने आते हैं। यहीं पर शंकर जी का भव्य स्थल है, इसे यहाँ ज्योतिर्लिंग की संज्ञा दी जाती है।

यहाँ सर्पाकार सड़कें भी हैं। पर्वत से नीचे उतरने या नीचे से ऊपर चढ़ने में नैनीताल, मंसूरी की यात्रा का अनुभव हो रहा था। हाँ, एक गड़बड़ी होती है, कुछ यात्री जो अस्वस्थ भाव रखते हैं, उन्हें पलटी होने की सम्भावना बढ़ जाती है। लगभग दो बजे हम लोगों ने यहाँ एक होटल में भव्य भोजन का आस्वादन किया। भोजन करने के बाद हम सरस तरल मौसम का अनुभव करते हुए सघन जंगलों से द्रुत गति से प्रस्थान कर रहे थे। यहाँ से पर्याप्त दूरी तय करते हुए हम अपने होटल में लगभग सूर्य डूबते समय पहुँच गये।

दिनांक: 04.09.2018 को हम प्रातः नित्यक्रिया से निवृत्त होकर नाश्ता करके फोर्ट देखने के लिए चल पड़े। मार्ग में गन्ने की खड़ी फसल को देखते हुए आगे बढ़ रहे थे। यहाँ जंगलों, आम्र वाटिकाओं का दृश्य बड़ा मनोरम लग रहा था। बीच-बीच में लीची और चीकू के बाग भी दिख रहे थे। आम के वृक्ष फले, लदे और बौरे दिख रहे थे। लीची की बाग में भी बौर आ गये थे। यत्र-तत्र केले की खेती भी बेमन से दिखती थी। सिंचाई के साधन टपका विधि या फव्वारा विधि से की जाती है। मार्ग में हम अनेक कलाकृतियों की दूकानों में गये। कुछ मित्रों ने उसे खरीदा भी। यहाँ गाँवों का दृश्य बड़ा लुभावना है। यहाँ छोटे-छोटे ढलुआ छतदार घर सुन्दर, साफ परिवेश, व्यर्थ में घूमने-टहलने वाले लोग नहीं हैं। चैराहों का वीभत्स भारतीय परिवेश यहाँ नहीं है। गन्ना मशीन काटती है, जेसी0बी0 मशीन ट्रकांे पर लाद देती है और ट्रकें उसे गन्तव्य तक पहुँचा देती हैं। आदमी अधिक नहीं लगते। हर दरवाजे पर नीम की जगह आम का पेड़। सिन्दूरी फल लदे और चतुर्दिक अपनी प्रभा प्रसारित कर रहे हैं। यहाँ माॅल से सामान खरीदकर नमस्ते रेस्टोरेन्ट में भोजन करने आये। यह होटल एकदम समुद्र सें सटा हुआ है।

हमें धोती-कुर्ता पहने देखकर एक वृद्ध व्यक्ति ने राम-राम करके पूछा- क्या आप भारत से आये हैं ? मैने स्वीकार कर पूछा, आप कहाँ से हैं ? उसने बताया, मैं यहीं रहता हूँ। मेरे पूर्वज भारत से आये थे। भारत में कहाँ से ? बिहार से। जिला जानते हो, कहाँ से आये हो ? उसको अपना जिला नहीं मालुम था। तब बताया कि बहुत समय पहले हमारे यहाँ से कुछ लोग यहाँ आये थे। यहाँ हम कुछ मार्केटिंग करने में लग गये। थकान दूर करने के उद्देश्य से हम चैराहे के बगल बने छायादार वृक्षों के नीचे सुरम्य बैठने योग्य स्थान पर बैठ गये। यहाँ से अनेक वेश में विभिन्न देशों से आये हुए लोग अपनी गाड़ी खोजने में व्यस्त थे। गाइड ने आकर सबको बस में बैठने को कहा। बैठा गया। हम गन्तव्य को चल दिये।

दिनांक: 05.09.2018 को पूर्व नियोजित कार्यक्रम के अनुसार समुद्र में जलक्रीड़ा कार्यक्रम है। नवयुवक पर्यटक जलक्रीड़ा के लिए एक अतिरिक्त ड्रेस साथ ले लिये थे। हम लोग मात्र एक तौलिया लेकर आये थे। समुद्र तट का फैला स्वरूप देखने से कुछ लोग डर रहे थे। एकाएक लोगों में उत्साह आया और स्टीमर बोट भर गई। स्टीमर बोट का चालक बहुत ही कुशल व सिद्ध कलाकर था। उसकी गति बहुत भयानक थी।


जल में मोड़कर तीव्र गति देने से ऐसा प्रतीत होता था कि बोट गयी, फिर दूसरी तरफ वही स्थिति। तीव्र गति में धुआँ की तरह पानी बहुत ऊँचाई तक उछलता था। इस तरह द्रुत गति से बोट को लेकर वह एक दूसरे द्वीप पर गया। वहाँ का दृश्य बड़ा ही सुरम्य था। हरे भरे जंगलों से भरा वह छोटा टापू पर्यटकों के मनोरंजन का एक भव्य स्थल है। वहाँ अनेक देशों के पर्यटक आकर अनेक क्रियाकलापों में सन्नद्ध थे। कहीं गायन-वादन का कार्यक्रम, कहीं जलपान की दूकानों में अनेक लोग दिख रहे थे। कुछ जलक्रीड़ा कर रहे थे। कुछ लोग निर्वस्त्र तटीय रेत पर पड़े थे। जो जिस प्रकार मनोरंजन करना चाहता था, कर रहा था। यहाँ हम लोगों के केन्द्रविन्दु श्री रामसागर तिवारी बनेहुए थे। वे हिन्दी, उर्दू के अनेक कवियां पर अथवा साहित्य की अनेक विधाओं पर चर्चायें किये जा रहे थे। रह रह कर इन्द्रदेव प्रसन्न हो कर वर्षा करने लगते थे। हमारी मोटरबोट वाला उस पार से पुनः आया। हम लोग उस पर सवार होकर पुनः वापस चले गये।

यहाँ से सभी साथी दोनों बसों में सवार होकर वहीं गाम्यांचल में बने होटल में भोजन करने के लिए आ गये। यहाँ के खेतों में प्याज, टमाटर, बैगन की भी खेती दिखी। यूँ तो अस्सी प्रतिशत कृषि योग्य भूमि में गन्ना ही था। आगे कहीं-कहीं जंगली लकड़ी के जंगल मिले जो बड़े सघन और ऊँचे थे। सड़क के दोनों ओर अँधेरा सा लगने लगता। कहीं- कहीं सूर्य की किरणें चाँदनी की तरह भूपट को अलंकृत करते दिखती थी। हम आज अपने भ्रमण को पूर्ण कर चार बजे ही वापस आ गये। कुछ देर विश्राम करके हम सामने समुद्र तट पर गये। यहाँ सुदूर तक फैली समुद्र की लहरें मचलती हुई अठखेलियाँ कर रही थीं। यहाँ पर हमने समुद्र में डूबते हुए सूरज को देखा। धुन्ध को बढ़ते देख हम अपने कमरे में आ गये।

दिनांक: 06.09.2018 को हम जिस होटल में रह रहे थे, उसी के सभागार में हम साहित्यिक कार्यक्रम सम्पादन में सन्नद्ध हो रहे हैं। आज माॅरीशस के कई साहित्यकार भाग लेने आ रहे हैं। कार्यक्रम की अध्यक्षता माॅरीशस के प्रख्यात साहित्यकार डाॅ0 रामदेव धुरन्धर ने किया। श्रीमती कुसुम वर्मा ने सरस्वती वन्दना किया। श्री शिवपूजन शुक्ल ने गणपति वन्दना किया। आज के परिचर्चा का विषय ‘हिन्दी के वैश्विक परिदृश्य के निर्माण में साहित्यकारों की भूमिका’ है। श्री राज हीरामनि (माॅरीशस) ने विषय परिवर्तन किया।

भारत से गये साहित्यकारों ने अपने विचारों को दिया ही, माॅरीशस के विद्वान श्री यन्तुदेव बुद्धू व श्री धनराज शम्भू ने भी अपने विचारों को प्रस्तुत किया। अन्त में डाॅ0 रामदेव ‘धुरन्धर’ ने कार्यक्रम के सापेक्ष्य अध्यक्षयीय वक्तव्य प्रस्तुत किया। यहीं इस सत्र का समापन हो गया। अगला सत्र भोजपुरी और अवधी बोलियों के प्रभाव पर चला। इसकी अध्यक्षता श्री जगदीश पीयूष (भारत) ने किया विषय प्रवर्तन डाॅ0 रमाकान्त कुशवाहा ने किया। संचालन डाॅ0 रामबहादुर मिश्र ने किया। अनेक वक्ताओं ने अपने विचार प्रस्तुत किये। अन्त में पीयूष जी ने अध्यक्षयीय वक्तव्य से सत्र का समापन किया। तत्पश्चात सभी लोगों ने होटल में पहुँचकर मध्याह्न भोजन किया। अन्त में गजल संध्या का आयोजन किया गया।

दिनांक: 07.09.2018 का कार्यक्रम हिन्दी भवन लांग माउंटेन माॅरीशस में आयोजित हुआ। सभा की अध्यक्षता वरिष्ठ साहित्यकार रामदेव ‘धुरंधर’ ने किया। मुख्य अतिथि के रूप में उच्चायुक्त अभय ठाकुर उपस्थित थे। साहित्यकारों को अन्तरराष्ट्रीय हिन्दी उत्सव सम्मान का वितरण अध्यक्ष, मुख्य अतिथि के साथ माॅरीशस के साहित्यकारों एवं सचिवालय माॅरीशस के सम्माननीय महासचिव प्रो0 विनोद कुमार मिश्र व हिन्दी प्रचारिणी सभा के प्रधानमंत्री यन्तुदेव बुद्धू आदि मंच पर उपस्थित थे।

माॅरीशस के दस हिन्दी सेवियों को परिकल्पना शीर्ष कथा सम्मान, परिकल्पना साहित्यभूषण सम्मान तथा परिकल्पना साहित्य सम्मान प्रदान किया गया। शेष भारत से आये साहित्यकारों को ‘अन्तर्राष्ट्रीय हिन्दी उत्सव सम्मान’ प्रदान किया गया। सम्मानोपरान्त यहाँ पर हिन्दी प्रचारिणी सभा की ओर से सहभोज भारतीय पाक का आयोजन किया गया। अगले सत्र में कावय पाठ का आयोजन किया गया। सायं सात बजे कार्यक्रम का समापन हुआ। सभी होटल के आवास पर प्रस्थान किये। कल हम लोगों को यहाँ से निकलना है अस्तु इसी समय से अपना सामान व्यवस्थित करने में लग गये।

आज 08.09.2018 को नास्ता-पानी करने के बाद हम बस से आगे उन दर्शनीय स्थलों को देखने निकले जो छूट गये थे। हमारी उड़ान नौ बजे के उपरान्त है। घूमने-टहलने और देखने के बाद हम एयरपोर्ट माॅरीशस पहुँचे। यहाँ श्री रवीन्द्र प्रभात जी ने बताया कि आज उड़ान निरस्त कर दी गयी है। कुछ देर बाद हम अपना सामान लेकर 18 नम्बर पर पहुँचे, वहाँ बस आयई और एयरपोर्ट की तरफ से हमें उच्चकोटि के होटल में ले गयी। यहाँ 501 नम्बर का कमरा पांचवे तल पर मिला। यहाँ भोजन करके विश्राम किये। प्रातः 5 बजे बस आय गयी और हम पुनः एयरपोर्ट के लिए प्रस्थान किये। वहाँ सामान जमा कर हम आगे सभी औपचारिकताओं को पूर्ण करके उड़ान के लिए उद्यत जहाज में जाकर अपना स्थान ग्रहण कर लिया। समय पर उड़ान भर कर चल दिया। हम दिल्ली एयरपोर्ट पर हमें लाकर लगभग पाँच बजे उतार दिया। सामान लेकर टैक्सी से रेलवे स्टेशन के लिए प्रस्थान किया। दिनांक नौ सितम्बर प्रातः आठ बजे हम सुलतानपुर रेलवे स्टेशन पर उतर गये। यहाँ पर पुत्र पवन कुमार व पौत्र सुन्दरम कार लेकर उपस्थित थे।

इस प्रकार हमारी माॅरीशस यात्रा श्री रवीन्द्र प्रभात जी के नेतृत्व में सकुशल सम्पन्न हुई। सुखद, सुभद एवं मंगलमय यात्रा व सुदूर माॅरीशस में श्री प्रभात जी की उच्चकोटि की व्यवस्था अविस्मरणीय रहेगी। आपके द्वारा इस प्रकार की मंगलमय साहित्यिक यात्रा सम्पन्न कराने के लिए आपको कोटिशः धन्यवाद तथा सुखद जीवन की मंगलकामनायें, जिससे आप भविष्य में इसी प्रकार साहित्यिक यात्राओं का भव्य आयोजन करते रहें।

-ग्राम-रानेपुर, पोस्ट-पलियागोलपुर, जनपद-सुलतानपुर (उ0प्र0)-228145
मोबाइल नं0-8795196535, email- pks228131@gmail.com

2 comments:

  1. अतिसुंदर वृतांत पढ़कर लगा पुनः मॉरीशस पँहुच गये साधुवाद आद्या प्रसाद जी को इस सुंदर संस्मरण हेतु

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  2. सुंदर संस्मरण !आपके ज्ञान की छत्रछाया में रहे यही सौभाग्य है हमारा।

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