हाइकु गंगा का पटल कल दिनांक 5 मई को बहुत ही गुलज़ार रहा। या यूं कहें कि 19 रचनाकारों की सारगर्भित लगभग 96 हाइगा की मोहक प्रस्तुति के बल पर अत्यंत शानदार रहा। एक के बाद एक 17वर्ण दौड़ते हुए आए और 5-7-5 के क्रम में सज गए जब सबका मेल हुआ तो भावों और बिंबों का मंच सज गया। चुटकी भर शब्दों ने मिलकर रचा हाइगा और 19 रचनाकारों ने मुट्ठी बांधकर कदम - दर - कदम चलते हुए बेटियों की समस्त मनोवृत्तियों को, उसके स्वभाव को, उसकी प्रकृति को और उसकी व्यथा को अपने अपने ढंग से उजागर किया। जिस तरह एक छोटी सी गोली दर्द को छूमंतर कर होठों पर हंसी लेे आती है, ठीक उसी प्रकार   पटल पर मोतियों की मानिंद बिखरी हुई अनुभूतियां पल भर में नई नई भावनाओं से सराबोर कर गई। इसका श्रेय जाता है आदरणीया डॉ मिथिलेश दीक्षित जी को जिन्होंने इस पटल पर सुंदर व भावनात्मक मोतियों की माला पिरोने में अपार सफलता पाई। आदरणीया डॉ मिथिलेश जी चूंकि स्वयं में एक शाश्वत सृजन धर्मी हैं, उनके चारों हाइगा गहरे विमर्श को जन्म देने में पूरी तरह समर्थ दिखे। विशेषकर उनके दो  हाइगा क्रमश: "मां की डायरी काटा कुटी कर दूं/ जल्दी भर दूं।" और -"यादों का गांव/ रुनझुन पायल/कोमल पांव" एकबारगी मुझे आंदोलित कर गया।

देवनागरी परिधान में सजे संवरे कुछ हाइगा भावों के जगमगाते हाइकु गंगा की देहरी को प्रकाशमान कर गए। जैसे सुभाषिनी शर्मा जी की पंक्तियां "बेटी जो हंसे/खिल उठे ज्यों फूल/ घर आंगन", कल्पना दुबे जी की पंक्तियां "बेटी के पांव/रुनझुन पायल/जीवन गीत" सुकेश शर्मा जी की पंक्तियां अमृत घोले/ठिठकी चांदनी सी/उसकी हंसी" वर्षा अग्रवाल जी की पंक्तियां "गयी मसान/कर्तव्य परायण/पुत्र समान" डॉ शैलेश गुप्त वीर जी की पंक्तियां "पिता मगन/शिखर पर बेटी/छूती गगन"सरस दरवारी जी की पंक्तियां "बाजे पैंजन/घर आंगन रीझे/फैला हुलास" कल्पना दुबे जी की पंक्तियां "कोख अपनी/निर्णय पराया क्यों/पूछती बेटी" निवेदिता श्री जी की पंक्तियां "छूती आकाश/भरे स्वप्न में रंग/बेटी है खास" डॉ आनंद प्रकाश शाक्य जी की पंक्तियां "है अनुपम/चढ़ रही चोटियां/मेरी बेटियां" डॉ मधु चतुर्वेदी जी की पंक्तियां "प्यार के तार/जीवन का आधार/सुखद भार" अंजु निगम जी की पंक्तियां "स्वप्न बेटी का/उडे नभ विशाल/उसे दे पंख" पुष्पा सिंघी जी की पंक्तियां "कैंडल मार्च/करोगे कबतक/पूछती बेटी" सत्या सिंह जी की पंक्तियां "बाहों में झूले/मां पापा की दुलारी/आसमां छूले" लवलेश दत्त जी की पंक्तियां "तूमसे हीं तो/है त्याग की कहानी/बिटिया रानी" मीनू खरे जी की पंक्तियां "बेटी हंसी तो/सहिजन के फूल/साथ में हंसे" डॉ सुरंगमा यादव जी की पंक्तियां "उजली भोर/बेटी युग का दौर/जागा संसार।" और डॉ सुषमा सिंह जी की पंक्तियां " पिता औे पुत्री/गहरी होती मैत्री/ राह बताते हाइकु गंगा के तट पर ऐसे जगमगाते रहे जैसे दीपावली के दिए जगमगा उठे हों।

वहीं आदरणीया इंदिरा किसलय जी की पंक्तियां "बेटी है जहां/ पृथ्वी पर मंगल/सौभाग्य वहां" मुझे बेहद सुंदर और सारगर्भित लगी। मेरा सौभाग्य था कि मुझे भी इस कार्यशाला में शिरकत का सुअवसर प्राप्त हुआ। एक हाइगा जो सबसे ज्यादा पसंद किए गए वह था बेटी के बोल/सबसे अनमोल/ जैसे भूगोल आदि।

इसमें कोई संदेह नहीं कि हाइकु गंगा के इस कार्यशाला में काव्य और काव्य के कोमल भावों की अभिव्यक्ति हुई है। कहना न होगा कि हाइकु के क्षेत्र में बहुत से रचनाकारों ने बेटियों पर शिद्दत से  रुपायित किया है, किन्तु कल की प्रस्तुति कई मायनों में अत्यंत महत्वपूर्ण रही है। एक साथ 19 रचनाकार और 96 रचनाओं की अभिव्यक्ति और सभी रचनाएं एक से बढ़कर एक, जिसमें बेटियों के उद्गार, बेटियों की अभिव्यक्ति, बेटियों की भावनाएं, बेटियों के आगे बढ़ने की आकंठ व्याकुलता, बेटियों के कर्तव्यपथ की जिजीविषा, टूटते मिथक और टूटती वर्जनाएं एक साथ समाहित दिखीं।

- रवीन्द्र प्रभात

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