- डॉ. अंगद सिंह निशीथ
दशकों पूर्व सामाजिक विषयों पर आधारित एक फिल्म प्रदर्शित हुई थी जिसमें नायक और नायिका (मेरी याददाश्त के अनुसार) प्रख्यात अभिनेता धर्मेन्द्र और नूतन ने सराहनीय अभिनय किया था. इस फिल्म के अनुसार नायिका विवाह के पश्चात् भी अपने माता पिता के निर्देशानुसार मायके में ही रहती है और अपनी नवविवाहिता पत्नी के आग्रह पर नायक अपने स्वाभिमान को तिलांजलि देकर ससुराल में रहने को विवश हो जाता है.
फिल्म के अनुसार जब भी नवविवाहित नायक किसी कार्य के लिए अपनी पत्नी को बुलाना चाहता है तो उसकी सास (नायिका की माँ) स्वयं दौड़ी चली आती है जो नायक को अच्छा नहीं लगता किन्तु वह अपनी सास के इस प्रकार के व्यवहार को स्वीकार करने को विवश रहता है .
फिल्म के एक दृश्य के अनुसार संयोगवश होली के दिन नायक द्वारा अपनी पत्नी को रंग और गुलाल लगाते समय रंग उसकी नयी साड़ी पर विखर जाता है और अपनी माँ की उपस्थिति के कारण नायिका के मुंह से बरबस निकल पड़ता है – तुमने तो मेरी नयी और महँगी साड़ी ही ख़राब कर दी. इस घटना के पश्चात् स्वाभाविक रूप से रंगों भरा होली का त्यौहार बदरंग हो जाता है. इस घटना से आहत नायक तत्काल ही कहीं बाहर चला जाता है.
फिल्म आगे बढ़ती है और एक लम्बे अंतराल के पश्चात् नायक एक आत्मनिर्भर युवक के रूप में अपनी ससुराल लौटता है और सर्वप्रथम अपनी धर्मपत्नी को एक महँगी साड़ी तोहफे के रूप में देता है और सीधे आग्रह भी करता है कि वह उसे शीघ्र आने वाली होली के दिन ही पहने.
होली के दिन का वह दृश्य बहुत ही भावुक लगता है जिसमे नायक अपनी पत्नी को केवल अबीर या गुलाल नहीं लगाता बल्कि वह सीधे एक रंगभरी लम्बी पिचकारी से रंग फेंक कर उसे रंगों से सराबोर कर देता है. नायिका के निःशब्द होने के बावजूद उसके चेहरे की मुस्कान और प्रेम प्रदर्शित करने वाली भावभंगिमा बहुत कुछ कह जाती है. यह दृश्य वास्तव में बहुत ही मर्मस्पर्शी होता है जो उनकी अबतक की शुष्क जिंदगी को विभिन्न रंगों से भर देता है और उन दोनों के प्रायः हर मामलों में दखल देने वाली नायिका की माँ वहां से चुपचाप घर के किसी कोने में बैठकर आत्मचिंतन को बाध्य हो जाती है. और फिर तो नायक और नायिका अपनी नयी जिंदगी में स्वयं निर्णय लेने को आजाद होते ही अन्यत्र चले जाते है.
निःसंदेह इस फिल्म के माध्यम से फिल्म निर्माता और निर्देशक शायद यही सन्देश देना चाहते हैं थे कि किन्ही भी नवविवाहित युवाओं के जीवन में उनके - माता पिता या सास - ससुर का जितना ही कम या शून्य हस्तक्षेप (कुछ विशेष अवसरों को छोड़कर) होगा बच्चों की जीवन की गाड़ी उतनी ही सुगमता से आगे बढती रहेगी.
पिछले कुछ दिनों में जीवन की नयी शुरुआत करने वाले युवाओं के जीवन में विभिन्न कारणों से दुर्भाग्यपूर्ण घटनाओं की बाढ़ सी आ गयी है जिससे समाज में नफ़रत और अविश्वास की स्थिति बढ़ती जा रही है. आये दिन किसी के भी मन को दुखाने या दिल को दहला देने वाली खबरों से अख़बार और न्यूज़ चैनल भरे पड़े रहते हैं जिसमे नवविवाहित युवाओं में किसी की रहस्यमई कष्टदायी मृत्यु हो जाती है और विवेचनाओं के पश्चात यही ज्ञात होता है कि पति या पत्नी ने ही अपने प्रेमी या प्रेमिका के दोस्तों के साथ मिलकर उक्त घटना को अंजाम दिया था. अनेक घटनाओं में तो हत्या का तौर तरीका इतना वीभत्स होता है कि मृतक की शरीर के टुकडे अलग अलग बरामद हुए. ऐसी दुर्भाग्यपूर्ण घटनाओं से सामाजिक अस्थिरता और समाज में अनावश्यक भय, अविश्वास और आक्रोश बढ़ता जा रहा है जिससे कोई भी पक्ष अछूता नहीं जान पड़ता.
निःसंदेह ऐसी अविश्वसनीय घटनाओं के पीछे नवविवाहित युवाओं की व्यक्तिगत एवं स्वार्थपूर्ण महत्वाकांक्षाओं के साथ ही उनकी अलग की पारिवारिक पृष्ठभूमि, सगे सम्बन्धियों का प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष अनावश्यक हस्तक्षेप और कभी कभी किसी विशेष स्वार्थ या लालच के कारण बच्चों की इच्छा के विरुद्ध विवाह किया जाना भी महवपूर्ण कारक (फैक्टर) हैं जो किसी भी समाज में उथल पुथल मचाने के लिए पर्याप्त हैं.
प्रायः युवाओं की अति महत्वाकांक्षाओं के कारण ही आधुनिक या वर्तमान समय में देर से विवाह होना, पुनः उनके इगो (अहंकार) का टकराना, एक दूसरे को इग्नोर करना (तिरस्कृत करना), कुछ विशिष्ट व्यवहार वाले मित्रों या तथा-कथित शुभचिंतकों और कभी कभी माता – पिता की तरफ से भी गलती के बावजूद अपने बच्चों को अनावश्यक प्रोत्साहन देते हुए उनकी निजी जिंदगी में सीधे हस्तक्षेप करना ऐसे विन्दु हैं जिसके फलस्वरूप बच्चों या युवाओं की जिंदगी में धीरे धीरे प्यार के स्थान पर अप्रत्यक्ष रूप से विष घुलने लगता है. ऐसी सामान्य दिखने वाली घटनाओं का परिणाम कभी इतना भयावह होता है कि इसकी परिणति एक दुसरे से अलगाव तक हो जा रही है. बहुत ही कम ऐसे सौभाग्यशाली नवदम्पति या युवा होते हैं जिन्हें ऐसी विषम स्थिति में उनके माता – पिता, सास – ससुर या सगे सम्बन्धियों या शुभचिंतकों का आशीर्वाद एवं उचित मार्गदर्शन प्राप्त होता है जिससे उनके जीवन में अँधेरे की जगह प्रकाश हो जाता है
उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार ऐसी घटनाओं के लिए सुरसा के मुह की तरह फैलता जा रहा सोशल मीडिया के द्वारा परोसा जाने वाला अधकचरा ज्ञान (जैसे फेसबुक, इन्स्ताग्राम, लिंक्डइन, व्हात्सप्प आदि प्लेटफार्मो का दुरूपयोग जैसे किसी के भी साथ ब्लैकमेलिंग करना), विवाहपूर्व विभिन्न स्तरीय सम्बन्ध जैसे लिव इन रिलेशन आदि ऐसे कारण है जो युवाओं को ही नहीं दिशाहीन बनाकर बर्बाद कर रहे हैं बल्कि कभी कभी बड़े बुजुर्ग भी इनकी चपेट में आ जाते हैं और अपने आत्मसम्मान को ध्यान मे रखकर अपनी जीवनलीला तक समाप्त करने को बाध्य हो जाते हैं. विभिन्न टीवी चैनलों द्वारा प्रस्तुत किये जाने वाले अनेक धारावाहिकों में भी पारिवारिक जीवन को नकारात्मक तरीके से प्रस्तुत करने की अंधी प्रतियोगिताएं भी सम्बन्धों में खटास पैदा करने की स्थिति बना रही हैं. ऐसी स्थिति में सगे सम्बन्धियों की सकारात्मक भूमिका किसी के भी जीवन में संजीवनी का कार्य करती है.
जो भी हो युवाओं, विशेष रूप से नवदम्पतियों के साथ उनके शुभचिंतकों के लिए भी अनुभवी एवं बुजुर्गों द्वारा दी गयी इस सलाह पर ध्यान देना चाहिए कि दही ज़माने के पूर्व पूर्व दूध में सही तरीके से जामन डालकर एक निश्चित अवधि के लिए प्रतीक्षा करनी ही पड़ती है अन्यथा जैसे दूध के फट जाने से वह बेकार हो जाता है उसी प्रकार सम्बंधित युवाओं या किसी की भी जिंदगी में ऐसी नकारात्मक स्थिति हो जाती है जिसकी परिणति बहुत ही भयावह हो सकती है.(अवकाशप्राप्त प्रोफेसर एवं पत्रकार)
ईमेल : angadsinghamethi@gmail.com
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