राजा रघुवंशी की हत्या एक नवविवाहित पत्नी सोनम द्वारा प्रेमी के साथ मिलकर हनीमून के दौरान की गई क्रूर साजिश थी। यह घटना केवल एक व्यक्ति की मौत नहीं, बल्कि रिश्तों, भरोसे और सामाजिक मूल्यों की गिरावट का प्रमाण है। सोशल मीडिया पर वायरल हुए पोस्टों ने संवेदना के स्थान पर स्त्री-द्वेष को बढ़ावा दिया। इस घटना ने यह उजागर किया कि पुरुष भी रिश्तों में शिकार हो सकते हैं, पर हर महिला को दोषी ठहराना भी खतरनाक है। ज़रूरत है भावनात्मक शिक्षा, विवेकपूर्ण विवाह निर्णय और सोशल मीडिया पर अनुशासन की।

✍️ प्रियंका सौरभ

“शादी हुई 11 मई को, 20 को हनीमून, 23 को हत्या, 2 जून को शव, 9 जून को गिरफ्तारी”
यह आंकड़ों की श्रृंखला नहीं, बल्कि एक नवविवाहित पति की मौत और एक स्त्री के प्रेम, छल और अपराध के बीच बहते खून की कहानी है। यह किसी फिल्म की स्क्रिप्ट नहीं, बल्कि हमारे समाज में हो रही मानसिक गिरावट और रिश्तों की ट्रैजेडी का आईना है। लेकिन इस बार घटना की तरह, उसका "सोशल मीडिया ट्रायल" उससे भी ज़्यादा वीभत्स निकला।

 हनीमून का अंतिम पड़ाव: एक खाई, एक शव

राजा रघुवंशी और सोनम रघुवंशी — नामों में प्रेमी-युगल सा अहसास, पर कहानी में विष घुला हुआ था।
11 मई को विवाह हुआ, 20 मई को दोनों मेघालय गए, 23 को पति लापता, और 2 जून को गहरी खाई में उसका शव बरामद।
9 जून को पत्नी सोनम और उसके तीन साथियों की गिरफ्तारी ने यह स्पष्ट कर दिया कि यह सिर्फ एक “दुर्घटना” नहीं, बल्कि एक “पूर्व-नियोजित हत्या” थी।

इस मामले में जितनी क्रूरता हत्या में थी, उससे कहीं अधिक निर्ममता समाज की प्रतिक्रियाओं में देखने को मिली।
“फूहड़ औरत”, “सभी औरतें धोखेबाज़ होती हैं”, “शादी से डर लगने लगा है”, जैसी टिप्पणियाँ, वायरल पोस्टों के जरिए पूरे स्त्री समाज को कटघरे में खड़ा कर रही हैं।

 सवाल: अपराध किसका है? महिला का या स्त्रीत्व का?

क्या सोनम की करतूत से हर औरत दोषी है?
क्या राजा की मौत सिर्फ़ एक प्रेमी के छल की कहानी है या एक समाज की विफलता भी?

रिश्तों की हत्या में केवल खंजर नहीं होता — झूठ, लालच, डर, दिखावा और दोहरे संबंध भी हत्यारे होते हैं। लेकिन जब किसी महिला द्वारा अपराध होता है, तो उसे सिर्फ "एक आरोपी" नहीं, बल्कि "पूरे लिंग की प्रतिनिधि" मान लिया जाता है।

सवाल यह है कि यदि कोई पुरुष अपनी पत्नी को मार दे, तब समाज “पुरुषों को दोष मत दो” कहता है, लेकिन जब एक महिला पति को मारती है, तब “सब औरतें ऐसी ही होती हैं” कह कर स्त्रीत्व को कलंकित किया जाता है।

वायरल पोस्ट्स और ‘इंस्टा-न्याय’

सोशल मीडिया पर एक स्क्रीनशॉट वायरल हो रहा है जिसमें घटना की टाइमलाइन दी गई है, और अंत में स्त्रियों को सावधान करने की बात कही गई है। इस पोस्ट को हजारों लाइक्स, शेयर और व्यूज़ मिल रहे हैं।
लेकिन सोचिए, क्या यह न्याय की लड़ाई है या वायरल ट्रेंड की भूख?

जिस समाज में लोग किसी की मौत पर भी व्यूज़ और फॉलोअर्स के लिए स्टोरी बनाते हों, वहां संवेदनाएं पोस्ट की कैप्शन में दफ्न हो चुकी हैं। "इंस्टा पर इंसाफ" का ट्रेंड धीरे-धीरे कानून, विवेक और मर्यादा को कुचल रहा है।

 पुरुष पीड़ा भी असली है, पर स्त्रीद्वेष नहीं

यह घटना हमें यह भी बताती है कि पुरुष भी रिश्तों में शिकार हो सकते हैं।
हर बार महिलाएं ही पीड़िता नहीं होतीं — कई बार वे शोषक भी हो सकती हैं।
लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि हम हर महिला को शक की निगाह से देखें, हर प्रेम को झूठा मानें या शादी को व्यापार कह दें।

पुरुषों के प्रति हो रही हिंसा, धोखा या हत्या पर चर्चा होनी चाहिए —
लेकिन बिना स्त्रीविरोध की जहरीली भाषा के।

 रिश्तों का रेडिकल पुनर्मूल्यांकन ज़रूरी है

इस घटना ने हमें फिर से सोचने पर मजबूर किया है कि: क्या विवाह सिर्फ दिखावा बन कर रह गया है? क्या भावनात्मक निष्ठा अब इंस्टाग्राम स्टेटस पर टिकी है? क्या हम इतने खोखले हो गए हैं कि प्यार अब हत्या का मुखौटा बन जाए? शादी अब “सेरेमनी” ज़्यादा, और “समझदारी” कम बनती जा रही है।
लोग सात फेरे ले तो लेते हैं, पर सात दिन भी भरोसा निभा नहीं पाते।

- समाज की दिशा बदलनी होगी

इस घटना को एक "मेम" या "हॉट न्यूज़" बना देना आसान है।
लेकिन इससे हमें इन गहरी बातों पर ध्यान देना होगा। स्कूलों में ‘इमोशनल लिटरेसी’ को भी स्थान मिलना चाहिए। शादी से पहले पारिवारिक जांच से ज़्यादा, चरित्र और मानसिकता की जांच होनी चाहिए। अपराधी स्त्री हो या पुरुष, उसकी जाति, लिंग, धर्म से ऊपर उठकर न्याय होना चाहिए। संवेदनशील मामलों में अफवाहें न फैलाएं। पोस्ट से अधिक पोस्टमार्टम सच बोलता है।

राजा की मौत, सोनम की गिरफ्तारी और हमारी आत्मा की शंका

राजा रघुवंशी अब इस दुनिया में नहीं हैं। उनकी मौत एक त्रासदी है — लेकिन उससे भी बड़ी त्रासदी है हमारी प्रतिक्रिया।
क्या हम उस हत्या से दुखी हैं, या उस पर रील बनाने को उत्साहित? सोनम ने अपराध किया — इसका कानूनी रास्ता तय है। लेकिन उसका नाम लेकर हर महिला को “फूहड़”, “धोखेबाज” और “हत्या की मशीन” बताना,
हमें समाज के तौर पर शर्मिंदा करता है।
"राजा गया हनीमून पर, लौटा शव बन के,
इश्क़ का व्यापार बना, छल की अग्नि तन के।"

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यदि हम आज भी नहीं चेते,
तो अगला राजा कोई और होगा
और अगली सोनम... सोशल मीडिया की हीरोइन।

अब सवाल यह नहीं कि शादी कैसे करें,
सवाल यह है कि –
"क्या हम इंसान रह गए हैं,
या केवल लाइक्स के भूखे डिजिटल गिद्ध?"

--- प्रियंका सौरभ 


रिसर्च स्कॉलर इन पोलिटिकल साइंस,
कवयित्री, स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार,
उब्बा भवन, आर्यनगर, हिसार (हरियाणा)-127045

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