‌धारावाहिक पौराणिक उपन्यास 

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 सुमाली पुत्री कैकसी

-रामबाबू नीरव

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प्राचीन काल में

सुमाली असुरों (राक्षसों) के एक समूह का नायक हुआ करता था. वह हेति और प्रहेति नामक राक्षसों के वंश में उत्पन्न हुआ जो था. हेति और प्रहेति राक्षसों के आदि पुरुष थे. हेति और प्रहेति के बाद की पीढ़ी के वंशज लंका पर राज किया करते थे. सुमाली के पूर्वजों ने देवासुर संग्राम में असुरों के राजा हिरण्यकश्यप का साथ दिया था.  हिरण्यकश्यप के छोटे भाई का नाम हिरण्याक्ष था. ये दोनों भाई प्रतिभाशाली और पराक्रमी थे. परंतु स्वभाव से ये दोनों दुष्ट थे. कश्यप ऋषि के पुत्र होने के नाते ये सभी असुर (दैत्य, दानव और राक्षस) देवताओं के दयार्द्र भाई थे. जहां अदीति के गर्म से उत्पन्न आदित्यों (देवताओं) ने अपने साम्राज्य का विस्तार जम्बूद्वीप (एशिया महादेश) के भरतखण्ड (आर्यावर्त/भारत) में किया वहीं दीति के गर्भ से उत्पन्न दैत्यों (असुरों) ने अपने साम्राज्य का विस्तार कश्यप सागर के तट पर किया, जिसे आजकल खाड़ी देश या अरब अमीरात कहा जाता है. असुरों के प्रथम राजा के रूप में हिरण्यकश्यप ने अपने नाम पर हिरण्य नगरी की स्थापना की. हिरण्यकश्यप के सौभाग्य से उसे वहां अतुल स्वर्ण भंडार मिल गया. उस स्वर्ण भंडार को पाकर हिरण्यकश्यप तथा उसके भाई हिरण्याक्ष की मत मारी गई. दयार्द्र भाई होने के नाते उस स्वर्ण भंडार पर देवताओं का भी अधिकार बनता था. वैसे देवगण असुरों से छोटे भी थे, इसलिए बड़े भाई का यह धर्म था कि अपने छोटे भाई को भी हिस्सा दे. परंतु असुरों के राजा हिरण्यकश्यप ने उस स्वर्ण में से रत्ती भर भी स्वर्ण देवताओं ‌को देना स्वीकार नहीं किया. इस बात को लेकर देवताओं तथा असुरों के बीच विग्रह हो गया. वह  स्वर्ण भंडार ही प्रथम देवासुर संग्राम का कारण बना. उस देवासुर संग्राम में असुर देवताओं पर भारी पड़ रहे थे. इसलिए देवताओं ने छल-कपट का सहारा लेना आरंभ कर दिया. 

असुर राज हिरण्यकश्यप का एक पुत्र था, जिसका नाम था प्रह्लाद. प्रह्लाद देवताओं के नायक भगवान विष्णु का परम भक्त था. देवताओं ने भगवान विष्णु को अपना दूत बनाकर हिरण्य नगरी भेजा. भगवान विष्णु ने हिरण्यकश्यप तथा हिरण्याक्ष को समझाने का काफी प्रयास किया परंतु वे दोनों भाई टस से मस तक न हुए. प्रह्लाद ने भी अपने पिता और चाचा को काफी समझाया, परंतु व्यर्थ. वे दोनों भाई इतने दुष्ट प्रवृत्ति के थे कि अपने ही पुत्र प्रह्लाद को भी शत्रु मान बैठे और उसे तरह तरह की यातनाएं देने लगे. अब हिरण्यकश्यप को यह आशंका हो गयी कि कहीं देवगण जबर्दस्ती स्वर्ण भंडार छीन न ले. इसलिए हिरण्यकश्यप ने उस स्वर्ण भंडार का अधिकांश भाग गुप्तरूप से समुद्री मार्ग द्वारा अपने अधीनस्थ लंका के असुर राजा के यहां भेजवा दिया. लंका के तत्कालीन असुर (राक्षस) राजा सुमाली के पूर्वज यानी हेति और प्रहेति के वंशज थे. 

उधर देवताओं और असुरों के बीच का विवाद महासंग्राम का रूप ले चुका था. इस महासंग्राम में देवताओं की हार होती देख भगवान विष्णु ने नरसिंह का रूप धारण कर हिरण्यकश्यप को मार डाला. दूसरी ओर एक संग्राम में हिरण्याक्ष भी मारा गया. अपने अधिनायक के मारे जाने पर सारे असुर घबरा गये और यत्र-तत्र आश्रय लेने लगे. प्रह्लाद ने देवताओं के बढ़ते हुए प्रभुत्व को देखकर उनसे संधि कर ली. भगवान विष्णु ने प्रह्लाद को असुरों का नायक घोषित करते हुए उसे हिरण्य नगरी का राजा बना दिया. प्रह्लाद को भी उस स्वर्ण भंडार की जानकारी नहीं थी, जिसे उसके पिता ने गुप्त रूप से लंका में छुपा दिया था. जिस स्वर्ण भंडार के लिए इतना रक्तपात हुआ वह न तो असुरों को मिला और‌ न ही देवताओं  को. भगवान विष्णु को भी निराशा हुई और पाश्चाताप भी कि व्यर्थ ही इतना रक्तपात हुआ.

अब देवताओं ने आर्य भूमि से असुरों (दैत्य, दानव और राक्षसों) को खदेरना आरंभ कर दिया. देवताओं के भय से लंका पर राज करने वाले असुर (राक्षस) लंका छोड़कर आंध्रालय* में जाकर छुप गये. अफरातफरी में वे सभी लंका में छुपाए गये स्वर्ण भंडार यहीं भूल गये. 

लंका से पलायन करने वाले उन्हीं राक्षसों के वंश में सुमाली का जन्म हुआ था. सुमाली के पिता ने उसे बताया था कि लंका में उसके पूर्वजों का अतुल स्वर्ण भंडार छुपा है जिस पर हम राक्षसों का अधिकार है. सुमाली ने अपने पिता के समक्ष संकल्प लिया था कि चाहे जैसे भी हो वह राक्षसों की लंका और उस स्वर्ण भंडार को प्राप्त करके रहेगा. इसी संकल्प के साथ वह आंध्रालय से निकल कर भटकते हुए आर्यावर्त में आ गया. सुमाली का दो भाई और था, माली और माल्यवान. सुमाली की दो संतानें थी, एक पुत्र और एक पुत्री. पुत्र का नाम था प्रहस्त तथा पुत्री का कैकसी. वहीं माली की एक पुत्री थी - राका और माल्यवान की पुत्री थी पुष्पोत्कटा.

 राक्षस कुल में उत्पन्न हुई कैकसी काफी सुंदर और चंचला थी. उसकी सुन्दरता और सुगठित देहयष्टि किसी देवकन्या के अनुपम सौंदर्य से किसी तरह कम न थी. उसकी  दोनों चचेरी बहनें राका और पुष्पोत्कटा भी अपनी बहन कैकसी के अनुरूप ही थी. 

राक्षसों की नगरी लंका को पुनः प्राप्त करने हेतु सुमाली ने एक कुचक्र रचा. सर्वप्रथम उसने अपने भाइयों के साथ मिलकर एक पहाड़ी पर अपना आशियाना बनाया. उस पहाड़ी के नीचे ही पुलत्स्य ऋषि के पुत्र विश्रवा ऋषि का आश्रम था. ये वही विऋवा ऋषि थे जिनके पुत्र यक्षपति कुबेर अब लंका के अधिपति बन चुके थे. 

एक दिन सुमाली अपनी पुत्री को लेकर पर्वत के उस छोर पर आया जहां  से नीचे की उपत्यका में स्थित विश्रवा ऋषि का आश्रम स्पष्ट दिखाई दे रहा था. उस आश्रम की ओर इशारा करते हुए सुमाली ने अपनी पुत्री कैकसी से कहा -

"पुत्री, तुम उस आश्रम को देख रही हो.?"

"हां पिताजी देख रही हूं, परंतु आप इस आश्रम के बारे में..!" कैकसी चकित भाव से अपने पिता की ओर देखने लगी.

"मेरी पूरी बात सुनो पुत्री. यह आश्रम आर्यावर्त के महा तेजस्वी ऋषि पुलत्स्य के पुत्र विश्रवा ऋषि का है. विश्रवा ऋषि भी अपने पिता की तरह ही तेजस्वी और विद्वान हैं. तुम्हें विश्रवा ऋषि के औरस से एक ऐसे तेजस्वी और शक्तिशाली पुत्र को जन्म देना है जिसके जैसा विद्वान और शक्तिशाली तीनों लोकों में कोई न हो. तुम्हारा वही पुत्र हम राक्षसों का उद्धारक और लंका का अधिपति बनेगा.!"

"लंका का अधिपति ? मैं कुछ समझी नहीं पिताश्री?" कैकसी चकित भाव से अपने पिता की ओर देखने लगी.

"मैं तुम्हें एक रहस्य की बात बताता हूं पुत्री. इस आर्यावर्त के दक्षिणी छोर पर समुद्र में एक द्वीप है. जो अन्य द्वीपों से बड़ा है. उस द्वीप का नाम है लंका. पहले उस द्वीप के अधिपति मेरे पूर्वज हुआ करते थे. वहां हमारे पूर्वजों का अतुल स्वर्ण भंडार छुपा हुआ है. हम राक्षसों को अपना वह द्वीप और स्वर्ण भंडार वापस लेना है. वर्तमान में वहां का राजा विश्रवा ऋषि का ही पुत्र और देवताओं का धनपति कुबेर है. तुम्हें देवताओं से भी अधिक शक्तिशाली पुत्र को जन्म देना होगा पुत्री."

"आपकी आज्ञा सर- आंखों पर पिताश्री " कैकसी अपने पिता के चरणों में झुक गयी -"मुझे आशीर्वाद प्रदान कीजिए कि मैं आपके स्वप्न को साकार कर सकूं."

"सौभाग्यवती भवऽ पुत्री साथ ही तुम्हें अपने कार्य की सिद्धि में सफलता प्राप्त हो."

जिस समय कैकसी विश्वास ऋषि के आश्रम में जाने की तैयारी कर रही थी, उसी समय उसकी दोनों चचेरी बहनें भी आ गयी. जब उसकी बहनों को ज्ञात हुआ कि उनकी बड़ी बहन कैकेई पुत्र प्राप्ति हेतु किसी ऋषि के पास जा रही है तब वे दोनों भी उसके साथ विश्रवा ऋषि के आश्रम की ओर चल दी.

                      *****

ईश स्तुति में लीन ऋषि विश्रवा की आंखें पायल की झंकार सुनकर खुल गयी. उन्होंने देखा उनके समक्ष दोनों कर जोड़े हुई तीन अनिंद्य सुन्दर युवतियां खड़ी हैं. उन युवतियों को देखकर ऋषि बुरी तरह से चौंक पड़े. 

"तुमलोग कौन हो और इस तरह किसी अभ्यागत की तरह मेरे समक्ष आने का क्या प्रयोजन है?" 

"हम तीनों राक्षस कन्याएं हैं ऋषिवर. मेरा नाम कैकसी है और ये दोनों मेरी चचेरी बहनें राका और पुष्पोत्कटा है. मेरे पिताश्री का नाम सुमाली है तथा इन दोनों के पिता का नाम था माली और माल्यवान है. उस पहाड़ी पर हमारा आवास है. हमलोग आपके औरस से ऐसे शक्तिशाली पुत्रों को जन्म देना चाहती है़ंं* जिनके जैसा बाहुबली और विद्वान तीनों लोकों में एक भी न हो."

"तथास्तुऽ....!" विश्रवा ऋषि ने अपनी स्वीकृति प्रदान कर दी.

"आप धन्य हैं ऋषिवर."  वे तीनों राक्षस कन्याएं उनकी चरण वंदना कर वापस पहाड़ी की ओर चली गयी. फिर अगले दिन ब्रह्म मुहूर्त में ही वे तीनों ऋषि विश्रवा के आश्रम में उपस्थित थी.

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*उपरोक्त कथा निम्नलिखित पुराणों में वर्णित है - ब्रह्मवैवर्त पुराण, पद्मपुराण, कुर्म पुराण, बाल्मीकि रामायण, आनंद रामायण, दशावतार चरित, रावण संहिता  तथा आचार्य चतुरसेन रचित वयंरक्षाम:.

*सुमाली रावण का नाना था.

*आचार्य चतुरसेन के अनुसार उस काल का आंध्रालय वर्तमान समय का आस्ट्रेलिय है.

*उस काल की प्रथा थी कि कोई भी स्त्री संतान प्राप्ति के लिए किसी भी तेजस्वी पुरुष से शारीरिक संबंध बनाने की याचना कर सकती थी. यह प्रथा त्रेतायुग यानी महाभारत काल तक प्रचलित थी.

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