वैज्ञानिक मान्यता है कि पृथ्वी की चलायमान “प्लेट्स” के कारण समुद्रतल से ज्वालामुखी-विस्फोट के फलस्वरूप सैकड़ो द्वीप बने आज से लगभग 80 लाख वर्ष पहले ऐसी ही एक घटना से यह द्वीप अस्तित्व में आया मॉरीशस मास्कारेने द्वीप समूह का एक हिस्सा है। इस द्वीपसमूह की शृंखला उन अंतःसमुद्री ज्वालामुखीय विस्फोटों के कारण बनी है जो अब सक्रिय नहीं हैं। यह ज्वालामुखीय विस्फोट अफ्रीकी प्लेट के रीयूनियन तप्तबिन्दु के ऊपर सरकने के कारण हुए थे।
यह द्वीप एक केंद्रीय पठार के चारों ओर बना है, जिसकी उच्चतम चोटी पितोन डे ला पेतित रिवियेरे नोयेरे 828 मीटर (2717 फुट) उंची है और इसके दक्षिण मे स्थित है। पठार के आसपास, मूल गर्त पहाड़ों से अलग दिखाई पड़ता है। यह अफ्रीका महाद्वीप के समुद्री तट से दक्षिण पूर्व में लगभग 900 कि0मी0 की दूरी पर हिन्द महासागर में और मेडागास्कर के पूर्व में स्थित एक स्वतंत्र द्वीप है वर्तमान मारीशस गणराज्य (Republic of Mauritius) में मारीशस द्वीप के अतिरिक्त जो अन्य द्वीप शामिल है वे सेंट बेंडन, राडी गंज और अगालेगा हैं।
माँरीशस से मात्र 176 कि0मी0 पश्चिम में स्थित रेनिओ द्वीप (REUNION) में आज भी ज्वालामुखी फूटता है। मारीशस का कुल क्षेत्रफल 2040 कि0मी0 है और आबादी मात्र 13 लाख के आस-पास है। आबादी के बारे आश्चर्यजनक और अनुकरणीय बात यह है कि माँरीशस की आबादी प्राय: स्थिर है। इससे सारी विश्व को सबक लेना चाहिए। भौगोलिक दृष्टि से माँरीशस भारत के गोवा तट से यह लगभग 4500 कि0मी0 दूर दक्षिण-पश्चिम में अवस्थित है। मारिशस का प्रमाणिक इतिहास 10वी शताब्दी के अभिलेखों से मिलना प्रारम्भ होता है।
अभिलेखीय आधार पर ऐसा माना जाता है कि 1507 ई0 में सबसे पहले इस निर्जन द्वीप में पुर्तगाली नाविकों का प्रवेश हुआ और उन्होंने यहाँ अपना एक अड्डा बनाया। लेकिन वे यहाँ रहे नहीं। संभवतः यह स्थान उन्हें भाया नहीं। अतः वे इसे छोड़कर चले गए। संयोग से हालैंडवासी डच जो अपने तीन पोत लेकर मसाला द्वीप (Spice Island) की यात्रा पर निकले थे वे समुद्री चक्रवात में फंस गए और अपना रास्ता भूल बैठे। वे भटकर इस द्वीप में आ गये। उन्होंने इस द्वीप का नाम अपने नासाओ के युवराज मारिस के नाम एवं सम्मान में मारीशस रखा। इन लोगो ने 1638 ई0 में यहाँ अपने स्थाई उपनिवेश स्थापित किये।
यहाँ समुद्री चक्रवात आते रहते थे। यहाँ की उष्णकटिबंधीय जलवायु डचों के अनुकूल नही थी और तूफान से बस्तियां उजड़ जाती थे अतः डचों ने कुछ दशक तक यहाँ रहकर इसे छोड़ दिया। मारीशस के निकटवर्ती द्वीप द्वीप रियूनियन (जो अब मारीशस गणराज्य में है) पर उस समय फ्रांसीसियों का अधिकार था प उन्होंने द्वीप को निर्जन पाकर 1715 ई0 में इस पर अधिकार कर लिया और सका नाम बदलकर ‘आईल द फ्रांस’ (Isle the France) रख दिया प उन्होंने यहाँ की अर्थ व्यवस्था सुदृढ़ की और चीनी का वृहत उद्योग स्थापित किया। यह आर्थिक परिवर्तन गवर्नर (राज्यपाल) फ्रेंकायेश माहे दे लेबाडानाईस के द्वारा शुरू किया गया था। उस समय फ्रांस का ब्रिटेन से संघर्ष चल रहा था और कई सैनिक झडपें हो चुकी थी। इधर समुद्र में गैरकानूनी घोषित जलदस्यु ‘‘कोर्सेर्स‘‘ का बोलबाला था।
अभिलेखीय आधार पर ऐसा माना जाता है कि 1507 ई0 में सबसे पहले इस निर्जन द्वीप में पुर्तगाली नाविकों का प्रवेश हुआ और उन्होंने यहाँ अपना एक अड्डा बनाया। लेकिन वे यहाँ रहे नहीं। संभवतः यह स्थान उन्हें भाया नहीं। अतः वे इसे छोड़कर चले गए। संयोग से हालैंडवासी डच जो अपने तीन पोत लेकर मसाला द्वीप (Spice Island) की यात्रा पर निकले थे वे समुद्री चक्रवात में फंस गए और अपना रास्ता भूल बैठे। वे भटकर इस द्वीप में आ गये। उन्होंने इस द्वीप का नाम अपने नासाओ के युवराज मारिस के नाम एवं सम्मान में मारीशस रखा। इन लोगो ने 1638 ई0 में यहाँ अपने स्थाई उपनिवेश स्थापित किये।
यहाँ समुद्री चक्रवात आते रहते थे। यहाँ की उष्णकटिबंधीय जलवायु डचों के अनुकूल नही थी और तूफान से बस्तियां उजड़ जाती थे अतः डचों ने कुछ दशक तक यहाँ रहकर इसे छोड़ दिया। मारीशस के निकटवर्ती द्वीप द्वीप रियूनियन (जो अब मारीशस गणराज्य में है) पर उस समय फ्रांसीसियों का अधिकार था प उन्होंने द्वीप को निर्जन पाकर 1715 ई0 में इस पर अधिकार कर लिया और सका नाम बदलकर ‘आईल द फ्रांस’ (Isle the France) रख दिया प उन्होंने यहाँ की अर्थ व्यवस्था सुदृढ़ की और चीनी का वृहत उद्योग स्थापित किया। यह आर्थिक परिवर्तन गवर्नर (राज्यपाल) फ्रेंकायेश माहे दे लेबाडानाईस के द्वारा शुरू किया गया था। उस समय फ्रांस का ब्रिटेन से संघर्ष चल रहा था और कई सैनिक झडपें हो चुकी थी। इधर समुद्र में गैरकानूनी घोषित जलदस्यु ‘‘कोर्सेर्स‘‘ का बोलबाला था।
ब्रिटेन के विरोध में फ्रांस ने इन जल्दस्युओ को न केवल अभय प्रदान किया अपितु उन्हें शरण भी दी दी प् ये जलदस्यु ब्रिटिश जहाजो को जिन पर मूल्यवान व्यापार का माल लदा होता था उन्हें भारत और ब्रिटेन के मध्य होने वाली यात्राओं के दौरान लूट लेते थे । किन्तु सन् 1803-1815 के दौरान नेपोलियन से हुए युद्धों मे अंग्रेज इस द्वीप का नियंत्रण पाने मे सफल हो गये। फ्रांसीसियों ने 3 दिसम्बर 1810 को कुछ शर्तों के साथ औपचारिक समर्पण कर दिया। प्रमुख शर्त यह थी कि द्वीप पर फ्रांसीसी भाषा का प्रयोग जारी रहेगा और आपराधिक मामलों में नागरिकों पर फ्रांस का कानून लागू होगा।
अंग्रेजों ने इस द्वीप का नाम बदलकर फिर से मॉरीशस कर दिया ।
सन् 1965 ई0 में ब्रिटेन (यूनाइटेड किंगडम) ने छागोस द्वीपसमूह को सामरिक महत्व के कारण मॉरीशस से अलग कर दिया। उन्होने ऐसा ब्रिटिश हिन्द महासागर क्षेत्र स्थापित करने के लिये किया ताकि वे इन द्वीपों का प्रयोग संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ रक्षा सहयोग के विभिन्न प्रयोजनों के लिए कर सकें। हालाँकि मॉरीशस की तत्कालीन सरकार उनके इस कदम से सहमत थी पर बाद की सरकारों ने उनके इस कदम को अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत अवैध करार दिया और इन द्वीप समूहों पर अपना अधिकार भी जताया। मजे की बात यह है कि उनके इस दावे को संयुक्त राष्ट्र द्वारा भी मान्यता मिल गयी है और यह भी भारत-चीन सीमा विवाद की तरह एक महत्वपूर्ण मुद्दा बन गया है।
मॉरीशस ने 1968 ई0 में स्वाधीनता प्राप्त की और कामनवेल्थ देशों की श्रेणी में 1992 मे एक डेमोक्रटिक रिपब्लिक बना। सम्प्रति, मॉरीशस एक स्थाई लोकतंत्र है जहाँ नियमित रूप से स्वतंत्र चुनाव होते हैं और मानवाधिकारों के मामले मे भी देश की छवि अच्छी है। आजादी के बाद से मारीशस एक निम्न आय वाली, कृषि उत्पाद आधारित अर्थव्यवस्था से विकसित होकर एक विविधतापूर्ण मध्यम आय वाली अर्थव्यवस्था मे परिवर्तित हो गया है। यहाँ प्रतिवर्ष काफी विदेशी निवेश होता है तथा गन्ना बागान, टूरिज्म और कपडा व्यवसाय यहाँ की आय का बड़ा स्त्रोत है। यह देश अफ्रीका महाद्वीप में सबसे अधिक प्रति व्यक्ति आय (Per Capita Income) वाले देशों मे से एक है।
मॉरीशस स्वादिष्ट व्यंजनों के लिया विख्यात है जो भारतीय, चाइनीज, क्रेयोल और यूरोपियन खानों के योग से बनता है। यहाँ रम का उत्पादन व्यापक स्तर पर होता है। कहा जाता है किपियरे चार्ल्स फ्रेंकोयेज हरेल नाम का कोई व्यक्ति था जिसने 1850 में मॉरीशस में रम के स्थानीय आसवन का प्रस्ताव किया था।
मॉरीशस का स्थानीय लोक संगीत सेंगा है। मूलतः यह अफ्रीकन संगीत है। इसमें पारंपरिक वाद्ययंत्रों का प्रयोग करते है जिनमे ‘रेवानो’ प्रमुख है। इसे बकरी की खाल से बनाया जाता है। आमतौर पर सेगा करुण गीत है जिनमे गुलामी के दिनों के अत्याचार की पीड़ा का वर्णन होता है। इन गीतों मे आजकल के दौर मे अश्वेतों की सामाजिक समस्याओं को भी उठाया जाता है । आमतौर पर पुरुष वाद्य बजाते हैं और महिलायें नृत्य करती हैं। तटीय क्षेत्र के होटलों में ये शो नियमित रूप से आयोजित किये जाते है।
मॉरीशस का राष्ट्रीय प्रतीक एक अप्राप्य पक्षी ‘डोडो’ है। यह पक्षी कभी इस देश में बहुतायत से पाया जाता था। यह देखने में बहुत सुन्दर था किन्तु यह चतुर नहीं था। इसीलिये इसे ‘डोडो’ कहा गया जिसका शाब्दिक अर्थ है- मूर्ख। इस पक्षी का मांस बहुत स्वादिष्ट था और यही इसके सर्वनाश का कारण बना। जंगली सूअरों ने भी इनके घोसले उजाड़े। 1681 ई0 तक यह प्रजाति विलुप्त हो चुकी थी। कंकाल संग्रहालयों मे संरक्षित हैं।
मॉरीशस के दर्शनीय स्थलों में पोर्ट लूइस (Port Louis) और वहां स्थित बोटोनिकल गार्डन (Pamplemousses Garden and SSR Botanical Garden), ब्लैक रीवर गार्गेज नेशनल पार्क (Black River Gorges National Park), आइल अक्स सर्फेस आईलैंड (Île auÛ Cerfs Island), ग्रैंड बेसिन (Grand Bassin),चामेरल पार्क्स एंड फाल्स (Chamarel park & 7 colored earth & Chamarel falls) आइल आक्स ऐग्रेटिस (Ile auÛ Aigrettes) यूरेका केरोल हाउस (UEREKA CREOLE HOUSE) नाट्री डैम आक्जलरी ट्राईस (NOTRY DAME AUXILIATRICE) ब्लू पेनी म्यूजियम (BLUE PENNY MUSEUM) अप्रवासी घाट (APRAVASEE GHAT) एवं माँरीशस का डोमेन लेस पैलेस (DOMAINE LESS PAILLES IN MAURITIUS) आदि प्रमुख हैं।
मॉरीशस को नन्हा भारत, मिनी इंडिया या छोटा हिन्दुस्तान कहते है।
इसके कई कारण है। प्रथम तो य ह कि भारत की भांति कभी यह भी अंग्रेजों का उपनिवेश था। भारत की भांति यह स्वतंत्र हुआ। भारत की तरह यह भी कामन- वेल्थ देश समूह का एक सदस्य है। भारत की ही भांति मारीशस का संविधान अंग्रेजों के संविधान से अनुप्राणित है।
भारत की ही तर्ज पर वहां भी डेमोक्रटिक रिपब्लिक है। मारीशस में भी सरकारी काम काज की भाषा अंग्रेजी है पर भारत की भांति वहां की जनप्रिय भाषा हिन्दी है। भारत की भाँति ही यह भी हिन्दू बहुल देश है और उनके रीति-रिवाज भी भारत जैसे हैं। होली, दीवाली, दशहरा और रामलीला वहां भी लोग धूम-धाम से मानते हैं। यहाँ तक की उनकी पूजा पद्धति भी भारत से मिलती है। हिन्दी भाषी को वहां अपार सम्मान मिलता है।
मारीशस में भारतीय को सब कुछ अपना सा लगेगा भाषा, खानपान, धार्मिक रीति-रिवाज और यहां तक कि संस्कार भी बिलकुल भारतीय हैं। मंदिरों में बजते घंटे, रहने के तौर-तरीके और पारंपरिक भारतीय वेशभूषा देखकर लगता है कि मारीशस सचमुच में मिनी इंडिया है। यहां घरों और मंदिरों में विधि-विधान के साथ पूजा-पाठ होता है। पंडित-पुरोहित विविध संस्कारों को अत्यंत शुद्धता के साथ संपन्न कराते हैं। भारतीय मूल के लोग अपने तीज-त्योहारों के मामले में आज भी सभी परंपराओं का निर्वाह करते हैं।
दक्षिण भारतीय समुदाय के लोग यहां मकर संक्रांति के अवसर पर पड़ने वाले ‘पोंगल’ को उत्साह्पूर्वक मनाते हैं। यहाँ उन सभी रीति-रिवाजों का वैसा ही निर्वाह होता है जैसा भारत में किया जाता है।
लगभग दो सौ वर्ष पूर्व जब भारतीय यहां पहुंचे, तो उन्होंने इसे ‘मारीच देश’ कहा। रामायण की अनुगूंज आज भी यहां भारतीयों की आस्था का प्राकट्य कराती है। मानस की चैपाइयां यहां कष्ट में फंसे लोगों के लिए उसी प्रकार संजीवनी बूटी का काम करती हैं जैसे कि भारत में। भारतीय उत्पाद्य के साथ ही टेलीविजन पर भारतीय धार्मिक कार्यक्रमों का एक बड़ा दर्शक वर्ग मॉरीशस में है। यहां भारतीय विषयों पर न सिर्फ गांव और गलियों के नाम रखे गए हैं, अपितु सिनेमाघरों, दुकानों, बसों तक के नाम नालंदा, सूर्यवंशी, बनारस, सम्राट अशोक तथा अजंता आदि रखे जाते हैं। भारतीय सांस्कृतिक संदर्भो में यहां डाक टिकट भी जब-तब निकलते रहे हैं। घरों की बनावट में भी भारतीय वास्तुकला का पूरा ध्यान रखा जाता है।
कहते है कि प्रसिद्द कथाकार मार्क ट्वेन जब मारीशस गए तो वहाँ भारतीयता का बोलबाल देखकर उनसे रहा नहीं गया। उन्होंने टिप्पणी करते हुए कहा-भगवान ने पहले मॉरीशस बनाया होगा, फिर उसकी नकल पर स्वर्ग का निर्माण किया होगा, पर इस बंजर भूमि को स्वर्ग बनाने वाले उन महान भारतीयों को कभी भुलाया नहीं जा सकता जिन्होंने खुद की आहुति देकर अपने मूल्यों को बचाए रखा।
हनुमान जी मॉरीशस में हिन्दुओं के आदर्श हैं। आज भी मारीशस मे हर हिन्दू के आंगन में एक चबूतरे पर उनकी मूर्ति लहराती लाल पताका के साथ दिखती है।
भारतीय संस्कृति का प्रतिबिंब उनकी समूची जीवन शैली में भास्वर दिखता है। चाहे कोई रस्म या संस्कार हो, चाहे गर्भाधान, पुंसवन, सीमन्तोन्नयन, जातकर्म, नामकरण, निष्क्रमण, अन्नप्राशन, चूड़ाकरण, कर्णवेध, उपनयन, केशान्त, समावर्तन एवं विवाह सभी जगह भारतीय रीति-रिवाजों और परंपराओं का पूरी तन्मयता से पालन किया जाता है। ललना गीत, सोहर, विवाह-गीत और नृत्य सभी कुछ भारतीय रंग में होता है। हाईटेक होती संस्कृति के बीच शादी-विवाह के रंग-ढंग भले ही कुछ बदल गए हों, पर प्रीतिभोज आज भी केले के पत्तों पर पूड़ी व साग-सब्जी के साथ ही होता है। माटी कोड़ाई, इमली घोटाई, कंगना खिलाई, तिलक, हल्दी से लेकर अग्नि के भांवर आदि रस्मों का निर्वाह भारतीय संस्कृति और पद्धति के अनुरूप ही होता है।
गांवों में बिरहा और हरपरौरी जैसे लोक-गीत सुनने को मिलते हैं। मॉरीशस की युवा पीढ़ी फ्रेंच और अंग्रेजी गाने सुनती तो है, पर उनकी प्राथमिकताएं हिंदी, भोजपुरी गीत और उर्दू की गजलें हैं, जिन्हें वे अनुराग सहित गुनगुनाते हैं।
इस प्रकार हम देखते है कि अंग्रेज जिन भारतीयों को बंधक बनकर ले गये और जिन्हें उस समय ‘गिरमिटिया’ कहा जाता है, उन्होंने भारत से हजारों मील दूर एक छोटे से टापू नुमा देश में भारतीयता को न केवल जीवित रखा है अपितु उसका नित संवर्धन भी हो रहा है, जिसके दम पर मारीशस नन्हा भारत कहा जाता है।
-ई एस-1/436, सीतापुर रोड योजना कालोनी, अलीगंज सेक्टर-ए, लखनऊ (उ.प्र.)।
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