१. मध्यवर्ग की स्त्रियां
वो निम्नवर्ग की औरतों सी
बीड़ीयों के धुऐं नही उड़ाती
और ना ही उनके जैसे
मर्दो सी भारी भरकम गालियां बकती,
दक्षिणी सूडान की औरतों की तरह
जो पानी की किल्लत के लिए परेशान हैं
एक गैलन बोतल के बदले
किसी के भी साथ सोने को तैयार हो जाती,
वो अपनी जरूरते
इस ढंग से पूरी नहीं करती,
वो उच्चवर्ग की औरतों सी
किसी क्लब में बैठ
सिगरेट के कश नहीं भरती
ना ही लेती है रैड वाईन की चुस्कियां
उनके लिऐ दैहिक स्वतंत्रता ही अंतिम लक्ष्य नहीं
और ना ही वो जानती है किसी
जिगोलो शब्द की सर्विसेज
मध्यवर्ग की औरतों बंधी रहती है
नैतिकता के कच्चे धागो से
उनकी हर कहानी किसी राजकुमारी की
राजकुमार से शादी पर ही खत्म हो जाती है,
और इससे आगे के चुल्हे चौंके के
सुखी जीवन से वो खुद ही बंध जाती
मध्यवर्ग की औरतें अपनी
अपनी बच्चियों को वो सब
आजादी से
करते देखना चाहती जो वो
खुद ना कर सकी कभी पर साथ ही
वो उन्हे हूबहू अरने जैसा बना देना चाहती
बंधी हुई
किसी राजकुमार की कहानी से
राजकुमारी सी
मध्यवर्ग की औरते
किसी द्वंद सी होती है,
जिसमें आजाद होने की ख्वाहिशे भी है,
और बंधनो में रहने की आदत भी......
२. अधूरे साथ
प्रेमी और प्रेमिकाऐं अक्सर
त्यागपत्र दे देते है
अपने प्रेमी और प्रेमिका के पद से
और यदा-कदा
पति और पत्नियां भी
इस्तीफा दे देते है
पति या पत्नी की अपनी हैसियत से
हर दूसरे मोहल्ले में मिल जाते है
भाई और बहन
जिन्होने कब का त्यागपत्र दे दिया है
भाई और बहन होने के पद से
और बेटे-बेटिया तो हर दूसरे घर मे
लालायित है मानो
कब पदमुक्त हो आजाद हो जाऐ
और कहीं कहीं पर हताश निराश
माँ-बाप भी किसी मजबूरी वश
दे देते है त्यागपत्र
माँ होने और बाप कहलाने से,
और सबसे मजबूत माने जाने वाला रिश्ता
दोस्ती भी जब दरकता है
तो एक पल में मुंह पर फेक देता है
अपना इस्तीफा मानो जैसे जेब में ही रखा हो,
हमारे तमाम अधूरेपन जब तब देते रहते है
त्यागपत्र
और बस कभी-कभार याद आते है
जैसे किसी पुरानी नौकरी को
कोई याद करता हो
कभी किसी पल
पर ना जाने क्यों
हमारे अधुरे ख्वाब
खाली नहीं करते कभी
ख्वाब बने रहने की पोस्ट को
ना ही कंबख्त त्यागपत्र दे
पीछा छोड़ते है
प्रेमी-प्रेमिकाओ, पति-पत्नियों, भाई-बहनो
या फिर बेटे-बेटियो और माँ-बाप की तरह
वे चले चलते है हमारे साथ ही
बिना थके बिना रूके ही
अपना अधूरा साथ लिऐ
जब तक चलती रहती है हमारी सांस....
-हरदीप सबरवाल.
वो निम्नवर्ग की औरतों सी
बीड़ीयों के धुऐं नही उड़ाती
और ना ही उनके जैसे
मर्दो सी भारी भरकम गालियां बकती,
दक्षिणी सूडान की औरतों की तरह
जो पानी की किल्लत के लिए परेशान हैं
एक गैलन बोतल के बदले
किसी के भी साथ सोने को तैयार हो जाती,
वो अपनी जरूरते
इस ढंग से पूरी नहीं करती,
वो उच्चवर्ग की औरतों सी
किसी क्लब में बैठ
सिगरेट के कश नहीं भरती
ना ही लेती है रैड वाईन की चुस्कियां
उनके लिऐ दैहिक स्वतंत्रता ही अंतिम लक्ष्य नहीं
और ना ही वो जानती है किसी
मध्यवर्ग की औरतों बंधी रहती है
नैतिकता के कच्चे धागो से
उनकी हर कहानी किसी राजकुमारी की
राजकुमार से शादी पर ही खत्म हो जाती है,
और इससे आगे के चुल्हे चौंके के
सुखी जीवन से वो खुद ही बंध जाती
मध्यवर्ग की औरतें अपनी
अपनी बच्चियों को वो सब
आजादी से
करते देखना चाहती जो वो
खुद ना कर सकी कभी पर साथ ही
वो उन्हे हूबहू अरने जैसा बना देना चाहती
बंधी हुई
किसी राजकुमार की कहानी से
राजकुमारी सी
मध्यवर्ग की औरते
किसी द्वंद सी होती है,
जिसमें आजाद होने की ख्वाहिशे भी है,
और बंधनो में रहने की आदत भी......
२. अधूरे साथ
त्यागपत्र दे देते है
अपने प्रेमी और प्रेमिका के पद से
और यदा-कदा
पति और पत्नियां भी
इस्तीफा दे देते है
पति या पत्नी की अपनी हैसियत से
हर दूसरे मोहल्ले में मिल जाते है
भाई और बहन
जिन्होने कब का त्यागपत्र दे दिया है
भाई और बहन होने के पद से
और बेटे-बेटिया तो हर दूसरे घर मे
लालायित है मानो
कब पदमुक्त हो आजाद हो जाऐ
और कहीं कहीं पर हताश निराश
माँ-बाप भी किसी मजबूरी वश
दे देते है त्यागपत्र
माँ होने और बाप कहलाने से,
और सबसे मजबूत माने जाने वाला रिश्ता
दोस्ती भी जब दरकता है
तो एक पल में मुंह पर फेक देता है
अपना इस्तीफा मानो जैसे जेब में ही रखा हो,
हमारे तमाम अधूरेपन जब तब देते रहते है
त्यागपत्र
और बस कभी-कभार याद आते है
जैसे किसी पुरानी नौकरी को
कोई याद करता हो
कभी किसी पल
पर ना जाने क्यों
हमारे अधुरे ख्वाब
खाली नहीं करते कभी
ख्वाब बने रहने की पोस्ट को
ना ही कंबख्त त्यागपत्र दे
पीछा छोड़ते है
प्रेमी-प्रेमिकाओ, पति-पत्नियों, भाई-बहनो
या फिर बेटे-बेटियो और माँ-बाप की तरह
वे चले चलते है हमारे साथ ही
बिना थके बिना रूके ही
अपना अधूरा साथ लिऐ
जब तक चलती रहती है हमारी सांस....
-हरदीप सबरवाल.
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