धारावाहिक उपन्यास 


- राम बाबू नीरव 

सेठ द्वारिका दास की बेटी सुमन लखनऊ की सबसे मंहगे कॉलेज की छात्रा थी. अपने हाव-भाव से वह यह दर्शाने की चेष्टा किया करती कि वह इस शहर के सबसे बड़े रईस सेठ द्वारिका दास की एकलौती बेटी है. वह काफी महंगी विदेशी गाड़ी से मॉडर्न  ड्रेस में कॉलेज आती. उसके ड्रेस देखकर शोहदे किश्म के लड़के उसके आसपास मंडराने लगते. और उस पर अश्लील  फब्तियां कसते. मगर सुमन को इसकी परवाह न थी. एक तरह से उसे इसमें आनंद की अनुभूति होती. इसके साथ ही उसकी उच्छृंखलता तथा शानो-शौकत को देखकर उसके अनेकों नकली आशिक भी बन चुके थे. उन आवारागर्द छोकड़ों के चंगुल में फंसकर वह इतनी बहक गई कि शहर के बदनाम क्लबों में भी जाने लगी. शराब और सिगरेट को उसने अपना शगल बना लिया.  संध्या की एक एक बातें अक्षरशः सत्य प्रमाणित हुई. सुमन की सहेलियों के समक्ष ग्लानि के मारे धनंजय की गर्दन झुक गयी. उसकी सहेलियों ने बताया - वह कॉलेज आती तो है, मगर एक दो क्लास करने के बाद अपने आवारा किश्म के‌ दोस्तों के साथ मटरगस्ती करने को निकल जाया करती है. धनंजय को यह भी ज्ञात हुआ कि सिविल लाइंस के पास कोई क्लब है जहां बड़े बड़े सेठों तथा नेताओं की बिगड़ी हुई औलादें  मौज-मस्ती के लिए जाते हैं. उस क्लब में संध्या भी नियमित रूप से जाया करती है. धनंजय अपनी बहन की कारस्तानियों को जानकर पागल हो गया. इस सब की जिम्मेदार उसकी मां थी. उसकी मां ने उसके साथ साथ अपनी बेटी की भी जिंदगी बर्बाद कर दी. धनंजय अपनी गाड़ी पर सवार हुआ और सिविल लाइंस की ओर‌ चल दिया. काफी मशक्कत के बाद उसे वह क्लब मिल गया. उस क्लब के मुख्य द्वार पर दो मुस्टंडे किस्म के गार्ड खड़े थे. उन दोनों ने उसे भीतर जाने से रोक दिया. उस क्लब में नियमित सदस्य ही जा सकते थे. नियम यह था कि जेंट्स अपनी गर्लफ्रेंड के साथ तथा लेडिज अपने बॉयफ्रेंड के साथ ही उस क्लब की मेंबर बन सकती थी. इसका मतलब सुमन का भी कोई बॉय फ्रेंड है. धनंजय पर तो जुनून सवार था, वह गार्डों के रोकने से रुकता कैसे.? उन गार्डों को धकिया कर वह अंदर घुस गया. भीतर का नजारा देखकर उसके होश ही उड़ गये. वहां बड़े बड़े लोगों की बिगड़ी हुई औलादें अश्लीलता की हदें पार करती हुई मस्ती मार रही थी. कर्कश पाश्चात्य संगीत की धुन पर शराब के नशे में धुत लड़के और‌ लड़कियां एक-दूसरे से लिपटे हुए थिरक रहे थे. उन में से अधिकांश लड़कियां अर्द्धनग्न थी. धनंजय उस भीड़ में सुमन को‌ तलाशने लगा. हॉल के बीचोंबीच एक बेहूदे किस्म के छोकरे के साथ चिपटी हुई सुमन उसे दिख गयी. वह लड़का बड़ी बेशर्मी से उसे चुमे जा रहा था. और सुमन मदहोश सी उसकी बांहों में झूल रही थी. अपनी बहन की इस अश्लील हरकत को देखकर धनंजय का खून खौलने लगा और आंखों से चिंगारियां निकलने लगी. भीड़ को चीरते हुए वह सुमन के निकट पहुंचा और उसे उस लड़के की गिरफ्त से मुक्त कराकर उस शोहदे किस्म के लड़के पर लात और घूसों की बौछार करता चला गया. सुमन ने जब अपने भाई धनंजय को पहचाना नशा के साथ साथ उसके होश भी उड़ गये. और वह फटी फटी आंखों से धनंजय को देखती हुई सूखे पत्ते की तरह कांपने लगी. धनंजय की इस हरकत को देखकर वहां कोहराम मच गया. तब तक दोनों गार्डों के साथ उस क्लब का संचालक वहां पहुंच गया और संचालक धनंजय पर हाथ उठाना चाह ही रहा था कि वह गला फाड़ कर  चीख पड़ा -"खबरदार मुझ पर हाथ उठाने की ग़लती मत करना. मैं पुलिस को इत्तिला करने के बाद ही यहां आया हूं कि तुम लोगों ने मेरी मासूम बहन सुमन का अपहरण कर लिया है. बस कुछ ही देर में पुलिस यहां आने ही वाली होगी." तभी बाहर से पुलिस सायरन की आवाज सुनाई पड़ी. अब तो वहां उपस्थित सारे लड़के लड़कियों पर तो जैसे शामत ही आ गयी. सभी एक दूसरे पर गिरते-पड़ते भागने लगे. संचालक और दोनों गार्ड ऐसे भागे जैसे उनके हाथों कत्ल हो गया हो. मौके का फायदा उठाकर वह लड़का धनंजय के हाथ से अपनी कलाई छुड़ाकर उस भागम भाग में गुम हो गया. सुमन धनंजय को देखकर इतनी अपसेट हो चुकी थी कि उसकी समझ में ही नहीं आया कि वह क्या करे ? धनंजय उसकी बांह पकड़कर घसीटते हुए बाहर ले आया और अपनी गाड़ी की पिछली सीट पर औंधे मुंह पटक दिया. सुमन की जब चेतना लौटी तब वह फूट फूटकर रोने लगी.  धनंजय की गाड़ी तीव्र गति से‌ दौड़ती हुई उसकी कोठी की ओर भागी जा रही थी.

                *****

मिसेज प्रभा दास अपनी विशाल कोठी के ड्राइंग हॉल में अपनी रईस सहेलियों के साथ शराब की चुस्की लेती हुई फ्लश खेल रही थी. अचानक वे सभी बुरी तरह से चौंक पड़ी. धनंजय ने सुमन को घसीटते हुए लाकर अपनी मां की गोद में पटक दिया था. प्रभा देवी एकदम  से बौखला गयी -

"यह क्या बदतमीजी है, धनंजय.?"

"चुप...." इतनी जोर से उसने अपनी मां को डपटा कि उसकी सारी मदहोशी गुम हो गई. प्रभा देवी की अल्ट्रा मॉडर्न सहेलियां भी धनंजय का विकराल रूप देखकर सहम गयी. 

"आपलोग यहां से जाइए, यह हमारा पारिवारिक मामला है." धनंजय तीखे स्वर में उन महिलाओं से बोला. प्रभा देवी को धनंजय का अपनी सहेलियों के साथ ऐसा दुर्व्यवहार बहुत ही बुरा लगा. वह आक्रोशित हो कर उस पर उबल पड़ी -

"धनंजय तुमने मेरी सहेलियों को अपमानित क्यों किया.?"

"वाह कितनी महान हो तुम मां. अपनी बेटी की इज्जत का ख्याल नहीं और अपनी इन मॉडर्न सहेलियों के अपमान पर इतना गुस्सा आ रहा है तुम्हें.?"

प्रभा देवी की सहेलियां नाक-भौंह चमकाती हुई चली गयी. जाते जाते उनमें से एक अपनी अकड़ दिखाती हुई बोली -"मिसेज प्रभा दास, अब हमलोग आपकी कोठी पर कभी नहीं आएंगी. आखिर हमारी कोई इज्जत है कि नहीं."

"अरे जाओ न आपलोग, नहीं आना यहां. आज के बाद से यहां ये सब मौज-मस्ती बंद." धनंजय के तेवर देखकर वे सभी ऐसे भाग खड़ी हुई जैसे मधुमक्खियों के झुंड ने उन पर हमला बोल दिया हो. अपनी सहेलियों की ऐसी ‌बेइज्जती प्रभा देवी से बर्दाश्त न हुई. वे गला फाड़कर चीख पड़ी -

"धनंजय तुम हद से गुजर रहे हो."

"हां मैं हद से गुजर रहा हूं." अपनी मां से भी अधिक ऊंची आवाज में चीख पड़ा धनंजय -"मगर तुम दोनों मां बेटी क्या हद के दायरे में हो.?"

"आखिर मेरी बेटी ने किया क्या है.?" तिलमिलाती हुई प्रभा देवी सुमन की ओर देखने लगी.  संगमरमरी फर्श पर बैठी हुई सुमन जार जार आंसू बहाए जा रही थी.  

"पूछो अपनी लाडली से कि यह कॉलेज जाने के बहाने क्या क्या गुल खिलाया करती है.?"

"सुमन.....यह धनंजय क्या सब बके जा रहा है.?" मगर सुमन कुछ जवाब देने की बजाए अपनी मां से लिपट कर जोर जोर से रोने लगी. अपनी बेटी की हालत देखकर प्रभा ‌देवी फिर धनंजय पर बरस पड़ी -

"देखो धनंजय, तुम बिना वजह मेरी मासूम बेटी पर.....!"

"अपनी बेटी का पक्ष मत लो मां." धनंजय की आवाज अब थोड़ी धीमी पर गयी. -"ऐसे ही बचपन से लेकर आज तक मुझे ग़लत रास्ते पर जाने से रोकने की बजाए तुमने मुझे शह दे देकर मेरी ज़िन्दगी बर्बाद कर दी. अब कम-से-कम अपनी बेटी की जिन्दगी पर तो तरह खाओ. मुझे शर्म महसूस हो रही है तुम्हें अपनी मां कहते हुए. पिताजी ठीक कहा करते थे - तुम सचमुच चाण्डालिनी हो, तुमने राजीव भैया को मरवाने की कोशिशें की."

"धनंजय, अपनी सगी मां पर ऐसा घिनौना आरोप लगाते हुए तुम्हें शर्म नहीं आती है.?" प्रभा देवी तड़प उठी.

"हु़ंह....सगी मां, क्या ऐसी होती है मां, जो अपनी ही औलाद की जिन्दगी बर्बाद कर दे ? क्या तुम नहीं जानती कि तुम्हारी बेटी बहक रही है. क्या पता, तुम्हारी यह लाडली बेटी अपनी इज्जत गंवा भी चुकी हो.?"

"नहीं भैया." सुमन धनंजय के पांव से लिपटकर करुण क्रंदन करती हुई बोली -"अभी तक आपकी बहन की इज्जत महफूज है. हां, यदि आज आपने वहां आकर मुझे न रोका होता, तो सचमुच मैं बर्बाद हो चुकी होती."

"सुन लिया न आपने मिसेज प्रभा दास.? यह सब आपके कारण हुआ है. सेठ द्वारिका दास की दौलत पाकर आप अंधी हो चुकी हो." धनंजय की बातें प्रभा देवी के सीने को चीरती चली गयी. क्या मैं इतनी निकृष्ट हूं कि आज मेरी अपनी संतान भी मुझे कोस रही है. हे भगवान्, यह कैसा अनर्थ हो गया मुझसे.

"उठो सुमन." अपनी बहन की बांह पकड़कर उठाते हुए धनंजय आग्नेय नेत्रों से प्रभा देवी को घूरने लगा. -"देखा तुमने मां, तुम्हारी झूठी शानो-शौकत ने हम दोनों भाई बहन को कहां लाकर खड़ा कर दिया.? यह तो गनीमत है कि सुमन पथभ्रष्ट नहीं हुई, यदि हो जाती, तब सेठ द्वारिका दास की इज्जत का क्या होता? इसका कुछ अंदाजा है तुम्हें. मैं मर्द हूं मेरी सारी बुराइयां छुप जाएंगी. मगर सुमन की बुराइयों को कैसे छुपा पाओगी तुम.? लोग अपने  बच्चों को अच्छा इंसान बनने की नसीहतें दिया करते हैं, मगर तुमने अपने बच्चों को व्यभिचार के दल दल में धकेल उस दिया. तुम हमें अच्छी शिक्षा देती भी कैसे, तुम तो खुद स्वार्थी और ऐयाश औरत हो."

"धनंजय...." प्रभा देवी के मुंह से घुटी हुई सी चीख निकली. उसका हृदय आहत होकर तड़पने लगा. 

"मेरी कड़बी मगर सच्ची बातें तुम्हें बुरी लग रही है न मां, जरा तुम अपने दिल पर हाथ रखकर कहो, क्या इन बातों में रत्ती भर भी झूठ है.? यदि तुमने हमें इस गलत रास्ते की जगह सदाचार के रास्ते पर चलना सिखाया होता न  तो हम दोनों भाई बहन तुम्हारे चरण धो धो कर पीते. मगर अफसोस, तुमने हमें भी अपनी तरह ही आवारा और बदचलन बना दिया. अब तुम ही बताओ हम तुम्हारे साथ कैसा व्यवहार करें?" प्रभा देवी को आभास हो गया -"यह धनंजय नहीं बल्कि इसके मुंह से गुलाब बाई की बेटी श्वेता बोल रही है. प्रभा देवी का कंठ अवरुद्ध हो गया. वह पत्थर की प्रतिमा बनी एक टक धनंजय को देखे जा रही थी. कुछ देर बाद पुनः अपने मन का भड़ास निकालते हुए बोलने लगा धनंजय -

"तुम एक भारतीय नारी हो मां. जो अपने परिवार में एक साथ कई रूपों में रहती है.  किसी की वह धर्मपत्नी है, तो किसी की ममतामयी मां. किसी की बहन हैं तो किसी की  भाभी. इन सारे रिश्ते को जो स्त्री अच्छी तरह से निभा लेती है, वही आदर्श नारी मानी जाती है. मगर तुम कोई भी रिश्ता निभा नहीं पाई. यहां तक की अपने पति को भी तुमने दब्बू बना कर रख दिया. और तो और तुमने अपने सौतेले बेटे राजीव भैया पर ज़ुल्म ढ़ा कर मां जैसे पवित्र रिश्ते को भी कलंकित करके रख दिया. यदि तुमने राजीव भैया को सीने से लगाया होता न मां तब सारी दुनिया तुम्हारी पूजा करती. क्या विमाता इतनी महान होती है? तुम एक मिसाल बन जाती मां." 

"बस....बस करो धनंजय. अब मुझे इतना जलील मत करो. सचमुच मैं दुराचारिणी हूं. मां कहलाने योग्य नहीं हूं. और तो और मैं इतनी अधम हूं कि तुम लोगों से माफी मांगने लायक भी न रही." प्रभा देवी फर्श पर बैठकर पाश्चाताप करती हुई आंसू बहाने लगी.


"चुप हो जा मां." धनंजय उसके सामने बैठकर आंसू पोंछते हुए भाव-विह्वल स्वर में बोला -"तुम्हारी आत्मा तुम्हें धिक्कार रही है, यही तुम्हारी आत्मशुद्धि है." 

प्रभा देवी ने धनंजय और सुमन को अपनी बांहों में समेट लिया. धनंजय को ऐसा लगा जैसे संसार की सबसे दुर्लभ वस्तु उसे मिल गयी हो.

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क्रमशः..........!

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