हर चीज़ बिकाऊ है यहाँ,
इंसाफ से लेकर इंसान तक।
सपनों की भी कीमत लगी,
अरमान से लेकर जान तक।
सच्चाई अब नीलाम हुई,
झूठ चढ़ा है सम्मान तक।
ईमान गिरवी रख आए हम,
दौलत के उस दरबान तक।
कलम बिकी तो ख़बर बिकी,
अब बिकते हैं ऐलान तक।
न्याय की आँखों पर पट्टी नहीं,
अब नोटों का है सामान तक।
धर्म बिका, विचार बिका,
बिकने लगा ईमान तक।
रिश्तों में भी सौदा होने लगा,
माँ से लेकर मेहमान तक।
भीड़ तो है मगर इंसान कहाँ,
खो गए सब पहचान तक।
हर चेहरा नकली, हर बात झूठी,
बिक चुका यहाँ सम्मान तक।
अब तो खुदा भी बेचने लगे,
मंदिर से लेकर मसान तक।
हर चीज़ बिकाऊ है यहाँ,
इंसाफ से लेकर इंसान तक।
- डॉo सत्यवान सौरभ


0 comments:
Post a Comment