हिन्दी दिवस पर विशेष 


- रामबाबू नीरव 

मात्र हिन्दी साहित्य ही नहीं, बल्कि भारतीय इतिहास, कला और संस्कृति को भी समृद्ध करने में मुस्लिम सूफी (संत) कवियों की महत्वपूर्ण भूमिका रही है. इन सूफी  कवियों ने अपनी कृतियों के द्वारा मात्र धार्मिक सद्भाव और प्रेम का ही संदेश नहीं दिया, बल्कि अपनी अनुपम कृतियों द्वारा हिन्दी साहित्य भंडार को लबालब भर भी दिया है. इन कवियों का अधिकांश जोर प्रेम पर था. उन कवियों की दृष्टि में प्रेम ही वह सार्वभौम शक्ति है जिसके माध्यम से ईश्वर तक पहुंचा जा सकता है, अथवा ईश्वर को प्राप्त किया जा सकता है. इसलिए इन कवियों ने अपनी कृतियों में प्रेम (शृंगार रस) को ही सर्वोच्च स्थान दिया.

   हिन्दी अथवा हिन्दवी साहित्य का उद्भव काल  अवधि अथवा ब्रज भाषा के रूप में तेरहवीं शताब्दी को माना जा सकता है. इसी काल में भारत भूमि पर एक ऐसे सूफी कवि का जन्म हुआ था, जिसने न सिर्फ साहित्य के क्षेत्र में बल्कि भारतीय शास्त्रीय संगीत के श्रेत्र में भी एक चमत्कार कर दिखाया था. उस सूफी कवि का नाम था अमीर खुसरो. उस अज़ीम शायर को लोग "तूतीय हिन्द" यानि भारत का तोता के नाम से भी पुकारा करते थे. ये विख्यात सूफी निजामुद्दीन औलिया के शागिर्द थे. इन्हें हिन्दी (प्राचीन हिन्दी) का जनक माना जाता है. तब हिन्दी का

स्वरूप आज के जैसा परिष्कृत नहीं था. (बाद में हिन्दी साहित्य के पुरोधा भारतेन्दु हरिश्चन्द्र ने खड़ी बोली का आविष्कार कर हिन्दी को नया स्वरूप प्रदान किया). उन दिनों अबधी और ब्रजभाषा में तथा मिथिला और बज्जिका क्षेत्र में मैथिली और बज्जिका भाषा में साहित्य  सृजन हो रहे थे. ये सभी भाषाएं हिन्दी के ही रूप हैं. मुस्लिम सूफी कवियों के साथ साथ अन्य हिन्दू कवियों ने भी ब्रजभाषा और अवधी में ही ऐसे ऐसे ग्रंथों की रचना की जो हिन्दी साहित्य के साथ साथ हिन्दू संस्कृति की भी बहुमूल्य निधि बन गई. गोस्वामी तुलसीदास जी ने भी रामचरित मानस की रचना अबधी भाषा में ही की है.

यहां बात हो रही है अमीर खुसरो की. उन्होंने ऐसी सहज, सरल और सुबोध भाषा में साहित्य सृजन किया जो आम बोलचाल की भाषा थी. या यों कहें की जनसाधारण की भाषा थी. इसके साथ ही उन्होंने काव्य में ‌नयी नयी विधाओं का आविष्कार भी किया. काव्य की उन्हीं विधाओं में से एक है "कह मुकरी." यह अनोखी विधा चार पंक्तियों वाली एक पहेली शैली है, जिसमें दो सखियां आपस में पहेली बुझाती है, दूसरी सखि बताती है साजन परंतु पहली सखी अपनी कही हुई बात से मुकर जाती है और प्रतिउत्तर में दूसरा ही कुछ बताती है. इसलिए इस विधा का नाम कह मुकरी पड़ा. बाद में भारतेंदु हरिश्चंद्र ने भी इस विधा को अपनाया और अनेकों मुकरियां लिखी. आधुनिक कवि तो जानते भी नहीं कि कह मुकरी क्या है.? खुसरो की कुछ मुकरियां देखें -

"खा गया, पी गया दे गया बुत्ता,

ए सखि साजन, ना सखि कुत्ता."

"लिपट लिपट के वाकी सोई

छाती से छाती लगा के रोई

दांत से दांत लगा के ताड़ा

ए सखि साजन, ना सखि जाड़ा."

जब खुसरो भक्ति सागर में डुबकी लगाते हैं, तब ईश्वर के साथ किस तरह की प्रीत जोड़ लेते हैं, जरा देखिए -

"छाप तिलक छीन लिन्हीं रे मो से नैना मिलाके.

प्रेमवटी का मदवा पिलाके 

मतवारी कर दीन्हीं रे

 मो से नैना मिलाके.

खुसरो निजाम पे 

बलि बलि जइए

मोहे सुहागन कर दीन्ही रे मो से नैना मिला के."

कुछ विद्वानों का मानना है कि दोहा विधा के जनक भी अमीर खुसरो ही थे. बाद में इस विधा को संत कबीर, संत रै दास, बिहारी लाल, रहीम खानखाना तथा ध्रुव दास जैसे संत कवियों ने आगे बढ़ाया. दोहा अर्द्धसत्य मात्रिक छंद है, जिसमें दो पंक्तियों में ही पूरी बात कह दी जाती है. अमीर खुसरो के कुछ दोहे देखें -

"खुसरो दरिया प्रेम का उल्टी वाकी धार, 

जो उतरा हो डूब गया जो डूबा सो पार."

"खुसरो रैन सुहाग की जाएगी पी के संग,

तन मेरो, मन पियो को दोऊ भयो एक रंग." 

अमीर खुसरो मात्र कवि ही नहीं थे, बल्कि सिद्धहस्त संगीत साधक भी थे. उन्होंने भारतीय शास्त्रीय संगीत को एक नई दिशा दी. माना जाता है कि सितार और तबला का आविष्कार अमीर खुसरो ने ही किया था. इसके साथ ही उन्हें कई रागों का जनक भी माना जाता है. वे लोक भाषा में रचित अपने गीतों को स्वयं ही संगीतवद्ध किया करते थे राग के साथ गाया करते थे. फारसी के साथ हिन्दी का मिश्रण करके उन्होंने एक नई शैली विकसित की. जरा इस गीत को देखिए -

"जिहाल-ए-मिस्कीं मकुन तग़ाफ़ुल (फारसी)

दुराए नैना बनाए बतिया (ब्रज/हिन्दी)

इस गीत का पहला मिसरा फारसी में है और दूसरा मिसरा ब्रज यानी हिन्दी में. इसी गीत को फ़िल्म दुनिया के सुप्रसिद्ध गीतकार गुलजार साहब ने कुछ तरह से परिमार्जित किया -

"जिहाले-ए-मिस्कीं मुकुन बरंजिश बेहाल-ए-हिजरा बेचारा दिल है.

सुनाई देती है जिसकी धड़कन तुम्हारा दिल या हमारा दिल है."

इस गीत को फ़िल्म गुलामी के लिए अनिता राज और मिथुन चक्रवर्ती पर फिल्माया गया था.

                        ***

भक्ति काव्य धारा को आगे बढ़ाने में अमीर खुसरो के बाद मल्लिका मुहम्मद जायसी का नाम आता है. भक्ति काल के मूर्धन्य कवियों में से एक जायसी भी थे. भक्ति काल की परंपरा को आगे बढ़ाने में इनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही है. पद्मावत, अखावट और आखिरी कलाम इनकी महत्वपूर्ण कृतियां हैं. इनका पद्मावत महाकाव्य विश्वविख्यात कृतियों में से एक है. मूल रूप से यह एक प्रेम कथा है. जिसमें जायसी ने राजा रत्न सेन और रानी पद्मावती के लौकिक प्रेम को अलौकिक प्रेम से जोड़ा है, जो ईश्वर तक पहुंचने का मार्ग है. जायसी ने ही सर्वप्रथम साहित्य में प्रेम को स्थान दिया. जो धीरे-धीरे परवान चढ़ने लगा. इनके बाद के साहित्य में प्रेम (शृंगार रस) की अनुपम धारा प्रवाहित होने लगी. जायसी के बाद रसखान ने इस अलौकिक प्रेम को अपनी काव्यकृतियों में चित्रित किया. इसलिए ही इन्हें रस का खान कहा जाता है. वैसे इनका मूल नाम सैयद इब्राहिम था. इन्होंने स्वामी विट्ठल दास से दीक्षा लेने के बाद कृष्ण भक्ति में डूबकर "प्रेम वाटिका" और "सुजान रसखान" जैसी अमर कृतियों की रचना की. इनकी रचनाओं में भक्ति रस के साथ साथ‌ श्रृंगार रस की भी प्रधानता देखी जा सकती है. राधा-कृष्ण के सात्विक प्रेम के माध्यम से ये ईश्वर को प्राप्त करने का प्रयत्न करते हैं. अपनी भक्ति तथा सात्विक प्रेम को इन्होंने अपनी कृति "कान्हावत" में बड़े ही रोचक और मनोहारी भाव से व्यक्त किया है.

अब हम आते हैं रीति काल में. इस काल में भी अनेकों मुस्लिम सूफी कवि हुए हैं, लेकिन उसमें सबसे चर्चित कवि हैं आलम शेख. इन्हें लोग शेख उल आलम के नाम से भी जानते हैं. विद्वानों का मानना है कि शेख आलम पहले हिन्दू धर्मावलंबी थे और इनका नाम पं० लालमणि त्रिपाठी था. ये आरंभ में मुगल बादशाह औरंगजेब के पुत्र मुअज्जम शाह के आश्रित थे. इनके बारे में एक बड़ी ही रोचक कथा विख्यात है. इनके पड़ोस में एक रंगरेज से का रहा करता था. उस रंगरेज से की एक बेटी थी, जिसका नाम था शेख. वह बड़ी खुबसूरत थी. साथ ही वह यदा-कदा कवित्त (कविता लेखन) भी कर लिया करती थी. लोग उसे शेख रंगरेजिन के नाम से पुकारा करते थे. एक दिन त्रिपाठी जी ने उसे अपना एक चादर रंगने के लिए दिया. उस समय चादर के एक  वरिष्ठ खूंट में एक पर्ची बंधी हुई थी. शेख  रंगरेजिन उस पर्ची को खोलकर पढ़ने लगी. उस पर्ची पर एक मिसरे की कवित्त लिखी थी -

"कनक छरी सी कामिनी काहे को कटि छीन." शेख रंगरेजिन ने दूसरा मिसरा इस प्रकार लिखा - "कटि कंचन को कुचन मध्य धरि दीन." और चादर के खूंट में बांध दिया. त्रिपाठी जी अपनी चादर ले गये और खूंट से बंधी हुई पर्ची को निकाल कर पढ़ने लगे. अब पूरा छंद इस प्रकार से था -

"कनक छरी सी कामिनी काहे को कटि छीन,

कटि कंचन को कुचन मध्य धरि दीन."

अब तो पंडित जी निहाल हो गये. उन्होंने रंगरेज से उनकी बेटी का हाथ मांगा. रंगरेज इस शर्त पर अपनी बेटी त्रिपाठी जी को देने पर राजी हुए कि उन्हें इस्लाम धर्म कबूल करना होगा. शेख रंगरेजिन के प्रेम में पागल हो चुके पं० लालमणि त्रिपाठी ने तत्क्षण ही इस्लाम धर्म कबूल करके शेख रंगरेजिन को अपनी बेगम बना लिया. और अपना नाम शेख आलम रख लिया. कुछ विद्वानों का मानना है कि शेख आलम अपनी पत्नी शेख रंगरेजिन के साथ मिलकर रचनाएं किया करते थे. मगर अधिकांश विद्वान इसे नकार देते हैं. अब सच्चाई चाहे जो भी हो मगर आलम शेख ने हिन्दी साहित्य को बहुमूल्य कृतियां दी है, इससे  इंकार नहीं किया जा सकता.

उनकी प्रमुख रचनाएं हैं - माधवानल कामकंदला, रागमाला, श्याम सनेही, आलम के कवित्त, शेख साईं (इसे शेख रंगरेजिन की कृति माना जाता है.) तथा सुदामा चरित. कुछ विद्वान माधवानल कामकंदला को एक दूसरे आलम शेख की रचना मानते हैं जो इस आलम शेख से बहुत पूर्व यानी बादशाह अकबर के समय में हो चुके थे. परंतु अधिकांश विद्वान इस तर्क़ को नकार देते हैं. 

ऐसे मुस्लिम सूफी कवि अनगिनत हैं जिन्होंने राधा कृष्ण के प्रेम सागर में डूबकर अनेकों ग्रंथों की रचना की.

सिर्फ इतना ही नहीं मुगल बादशाह अकबर ने अपने एक दरबारी मुल्ला अब्दुल कादिर बदायुनी से बाल्मीकि रामायण का फारसी में अनुवाद करवाकर हिन्दी मुस्लिम एकता को अक्षुण्ण बनाए रखने की पुरजोर कोशिश की. अब्दुल कादिर संस्कृत और अवधी (हिन्दी ) के साथ  साथ फारसी और अरबी के भी  प्रकांड विद्वान थे. इसी तरह मुगल बादशाह शाहजहां के बड़े पुत्र और औरंगजेब के बड़े भाई दारा शिकोह ने भी खुद  रामायण का फारसी में अनुवाद किया था. दारा शिकोह भी संस्कृत और फारसी का उद्भट विद्वान था.  इस तरह हम देखते हैं कि मुस्लिम सूफी कवियों ने बिना किसी भेदभाव के हिन्दी साहित्य के साथ साथ भारतीय संस्कृति को भी शिखर तक पहुंचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. हमें उन सूफियों की तपस्या और त्याग को नजर अंदाज नहीं करना चाहिए.

                *****

0 comments:

Post a Comment

 
Top