मई, जून की गर्मी से कुछ दिन बचने के लिए नैनीताल का प्रोग्राम बना लिया। सारी तैयारी करके

चल दिए। हल्द्वानी पहुंचते ही राहत सी महसूस होने लगी थी। पर काठगोदाम आते ही दिल्ली की

गर्मी बिल्कुल धुल गई थी। ठंडी हवा के झोंके गालों को थपथपाने लगे थे और गर्मी की वजह से

कसकर बँधे बाल खुलकर लहराने को मचलने लगे थे।

जगह-जगह भुट्टों की सोंधी गंध रुकने का संकेत कर रही थी। प्रकृति का अनुपम सौंदर्य चारों तरफ

बिखरा पड़ा था। जिसे कैमरे में कैद करने के लिए मैं और प्रभात जगह-जगह रुकते हुए आगे बढ़ रहे

थे।

नैनीताल पहुंचते ही स्वर्ग जैसी अनुभूति होने लगी थी। हम जाकर शांत, निश्चल नौकाएं सजी झील के

किनारे बैठ गए… जहां चारों तरफ पर्वत सर उठाए खड़े थे। उन पर काले बादल अठखेलियाँ करते से

प्रतीत हो रहे थे। चारों तरफ भव्य होटल अपनी ओर आकर्षित कर रहे थे। स्नो व्यू जाने के लिए

ट्राली की अनोखी सुविधा उपलब्ध थी। झील के किनारे नैना देवी का भव्य मंदिर है और भी देवी

देवताओं के वहां विशाल मंदिर हैं, जो आने जाने वाले सैलानियों को आशीर्वाद देते रहते हैं।

मैं भी मंदिर में मां से सफल यात्रा का आशीर्वाद लेने गई, तो वहां दुर्गा ताई का स्वर सुनाई पड़ा जो

ऊंची आवाज में देवी का पाठ कर रही थीं। मैं वहीं ठिठक कर, ताई के पाठ समाप्त होने का इंतजार

करने लगी और सोचने लगी.. ताई यहां कैसे पहुंची.. धीरज भैया तो बरेली ट्रांसफर होकर जयपुर से

आए थे.. मैं विचारों में उलझी थी कि ताई पूजा समाप्त कर प्रसाद बांट रही थीं।

- ‘ नमस्ते ताई ’ मैंने आगे बढ़कर कहा

- ‘ खुश रहो ’ के आशीर्वाद की बाद बोलीं-

- ‘ तुम सुनंदा हो ना… कैलाश नाथ की बेटी..?’

- ‘ हां ताई, आपने पहचान लिया! मैं तो सोच रही थी कि ताई भूल गई होंगी…’

- ‘ नहीं बेटा, प्यार के संबंध कभी नहीं भूलते, कैलाश नाथ अच्छे पड़ोसी थे, फिर तू भी तो हर समय

आया करती थी बेटा , मम्मी पापा ठीक है? तू यहां किसके साथ आई है?’

- ‘ ताई आपके दामाद प्रभात जी हैं, मैंने प्रभात का परिचय ताई से करते हुए कहा ‘

ताई ने प्रभात जी को ढ़ेरों आशीर्वाद देकर घर चलने का सस्नेह अनुरोध किया और कहा- ‘बेटा अब

तो हम यहीं के होकर हो रह गए हैं क्योंकि धीरज ने यही मकान बनवा लिया है और तुम्हारी भाभी

ने भी अपना काम जमा लिया है।‘


ताई, भाभी का नाम इतना प्यार से ले रही थीं.. जिसे सुनकर मैं दंग थी। भाभी ऐसा क्या काम करने

लगी जिसने ताई की विचारधारा ही मोड़ दी। मेरे मन में जानने की उत्सुकता जागृत हुई और मैंने

कहा- ‘ ताई, भाभी तो शिक्षित नहीं थी, फिर क्या काम जमा लिया है?’

- ‘अरे बेटा, अब तो भगवती ने पढ़ाई करके बी ए पास कर लिया है, बैंकों के सारे काम स्वयं ही

देखती है।‘

- ‘क्या घर में ही कुछ जमा लिया है..? भाभी के कितने बच्चे हैं?’ मैंने उत्सुकतावश पूछा। ताई हंसकर

बोलीं- ‘अरे सुनंदा बेटा, बस वही पांच पांडवनी है, जो जयपुर में थी। धीरज मुझे बिना बताए ही नसबंदी

करा आया था। जब मुझे पता चला तो मैं बहुत नाराज हुई थी कि बिना बेटे के लड़कियों को कौन

अपनाएगा.. एक बेटा तो जरूरी है, तो धीरज ने मुझे समझाया था कि लड़के की लालसा में पांच देवियां

तो आ गई मां, आगे भी क्या पता… बेटा भाग्य में है या नहीं। तुम देखना मां, यही प्यारी प्यारी

बेटियां, बेटे जैसे कर्तव्य निभाएंगी, अगर हम इन्हें सही परिवेश देंगे और पढ़ाई पर समुचित ध्यान

देंगे। मां, जिसकी जो रुचि होगी, उसे वैसा ही प्रोत्साहन देंगे, तुम बिल्कुल चिंता ना करो.. इन्हें मुंह से

मांगने आएंगे बस तुम्हारा आशीर्वाद चाहिए।‘

‘बेटा, वही बात उन दोनों ने मिलकर सच कर दिखाई है। अब तू सारी बात यहीं कर लेगी या घर भी

चलेगी.. सब तुझे और प्रभात जी को देखकर बहुत खुश होंगे। घर चलकर स्वयं सब देख लेना। अपनी

काया पलट भाभी से और भतीजियों से भी मिल लेना। अब वह मुझे बेटे से कम नहीं लगती है।‘

।सुंदर सूट और बेड कवर सब हाथ के बने थे। प्राचीन कला को नया टच देकर निखारा गया था। हर

वस्तु विशेष में कुछ ना कुछ नया जरूर था। खपत अधिक होने के कारण वह औरों से भी मदद लेती

थीं। इस तरह उनका काम खूब चल रहा था।

– ‘ गर्मी के तीन महीने तो दम लेने की फुर्सत नहीं मिलती है। बच्चियों भी व्यस्त हो जाती है। दीदी

इस काम में मेरा समय भी बहुत अच्छा निकल जाता है। और चार पैसों का सहारा भी हो जाता है।

अकेले आपके भाई ही कहां तक खटते रहें। मैं भी कुछ काम करके उनकी मदद करूं, गृहस्थी चलाने

में.. तभी जीवन सार्थक हो पाएगा और स्वयं अपने में भी आत्मबल बढ़ेगा।‘

- ‘हां भाभी तुम यह सब करके और बेसहारा नारियों का जो सहारा बन रही हो, वह इस काम का एक

और सफल पक्ष है, जो तुम्हारे साथ सीख कर कल स्वतंत्रता से अपना बुटीक चलाकर स्वयं को

आत्मनिर्भर बना सकती हैं। अब हमारी भतीजियों से मिलवाओ.. उनसे मिलने की बहुत इच्छा है।‘ मैंने

कहा-

- ‘ दीदी यह बड़ी श्वेता है जो पंतनगर से वेटरनरी डॉक्टरी कर रही है, यह दूसरी पल्लवी है मुरादाबाद

दरोगा की ट्रेनिंग ले रही है और दीदी तीसरी आपकी भतीजी लखनऊ से चार साल का इंजीनियरिंग का

कोर्स कर रही है, चौथी अभी इंटर में है जो सिविल सर्विसेज में जाना चाहती है, पांचवी कन्या टीचर

बनना चाहती है।

परिचय के बाद सब ने एक स्वर में कहा – ‘ बुआजी ये हमारे ख्याली पुलाव नहीं है, हम सब कड़ी

मेहनत और लगन से अपने-अपने निर्धारित लक्ष्य पर पहुंचने में लगे हैं, फिर मम्मी पापा का पूरा

सहयोग हमारे साथ है। दादी मां का आशीर्वाद और अनुभव भी हमें राह दिखाता है।‘

मैं देख रही थी और सुन भी रही थी.. मंदिर से घर तक की यात्रा में कहीं ठहराव आया तो बस यही


कि अब रास्ते बदल रहे हैं। अब देवियां मंदिरों में ही नहीं, चौखटों के अंदर भी है। मैंने मन ही मन

समय को प्रणाम किया और अपनी यात्रा को सफल समझा।

लेखिका - बृज गोयल

मवाना रोड, मेरठ

मोबाइल नंबर -9412708345

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