ये ध्वज सुखदायी 

मेरी जान, मेरा प्राण

इसकी ओर मुझे खींचे

इसकी आन, इसकी शान


दूर कभी नहीं 

मेरे पास रहता है ये

देखूँ मैं कहीं 

मेरे साथ चलता है ये

देखूँ इसे

पाऊँ नहीं 

कोई डगर वीरां सुनसान


हाथ में जब धरूँ 

मेरा शौर्य नभ चूमें 

इसकी छाँव में मुझे 

सुख-चैन सब मिले

ऐसा लगे

जैसे कि हो 

ये माँ मैं इक सन्तान


जाँबाज़ हो कोई 

उसके साथ रहता है ये

शहीद हो कोई 

उसकी लाज रखता है ये

देखा इसे 

हर जगह

इससे नहीं कोई अनजान 


- राहुल उपाध्याय 

0 comments:

Post a Comment

 
Top