-डॉ सत्यवान सौरभ
कलाई पर बँधा रेशमी धागा,
कभी था जीवन का वादा,
हर आँधी में साथ निभाने का,
हर दर्द में सहारा बनने का।
अब वह धागा कैमरे में मुस्कुराता है,
सोशल मीडिया पर सजकर जाता है,
पर बहनों के आँसू कौन पोंछे?
भाइयों की थकन कौन बाँटे?
रक्षा का अर्थ अब बदल गया है,
दिल की डोर कहीं हल्की हो गई है,
ना केवल भाई, बहन भी ढाल बने,
दोनों एक-दूसरे के ख्याल बने।
ना लाइक्स में, ना तस्वीर में,
ना केवल एक दिन की तक़रीर में,
राखी का वादे दिल में हो गहरे,
जो साल के हर मौसम में ठहरे।
रेशमी धागा याद दिलाए,
सुरक्षा, सम्मान, स्नेह निभाए,
कलाई से बढ़कर मन में बँधे,
और उम्रभर धड़कनों में गूँथे।
ना केवल कलाई पर, दिल में बँधे,
ना केवल तस्वीर में, जीवन में गूँथे,
ना केवल वादा, निभाने की रीत,
हर मौसम में रहे स्नेह, प्यार, प्रीत।
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