पग - पग सींचे, मित्र वही है।
तप्त - हृदय को, नेह दिखाकर -
दु:ख को भींचे, मित्र वही है।
मित्र हो सच्चा, पक्का - कच्चा -
मन को रुचे, मित्र वही है।
मित्र वही जो अपनी ओर-
हर पल खींचे, मित्र वही है।
- रवीन्द्र प्रभात
पग - पग सींचे, मित्र वही है।
तप्त - हृदय को, नेह दिखाकर -
दु:ख को भींचे, मित्र वही है।
मित्र हो सच्चा, पक्का - कच्चा -
मन को रुचे, मित्र वही है।
मित्र वही जो अपनी ओर-
हर पल खींचे, मित्र वही है।
- रवीन्द्र प्रभात
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