ब्रह्मानन्द राजपूत 
टीबी (क्षय रोग) एक घातक संक्रामक रोग है जो कि माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरक्लोसिस जीवाणु की वजह से होती है। टीबी (क्षय रोग) आम तौर पर ज्यादातर फेफड़ों पर हमला करता है, लेकिन यह फेफड़ों के अलावा शरीर के अन्य भागों को भी प्रभावित कर सकता हैं। यह रोग हवा के माध्यम से फैलता है। जब क्षय रोग से ग्रसित व्यक्ति खांसता, छींकता या बोलता है तो उसके साथ संक्रामक ड्रॉपलेट न्यूक्लिआई उत्पन्न होता है जो कि हवा के माध्यम से किसी अन्य व्यक्ति को संक्रमित कर सकता है। ये ड्रॉपलेट न्यूक्लिआई कई घंटों तक वातावरण में सक्रिय रहते हैं। जब एक स्वस्थ्य व्यक्ति हवा में घुले हुए इन माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरक्लोसिस ड्रॉपलेट न्यूक्लिआई के संपर्क में आता है तो वह इससे संक्रमित हो सकता है। 

क्षय रोग सुप्त और सक्रिय अवस्था में होता है। सुप्त अवस्था में संक्रमण तो होता है लेकिन टीबी का जीवाणु निष्क्रिय अवस्था में रहता है और कोई लक्षण दिखाई नहीं देते हैं। अगर सुप्त टीबी का मरीज अपना इलाज नहीं कराता है तो सुप्त टीबी सक्रिय टीबी में बदल सकती है। लेकिन सुप्त टीबी ज्यादा संक्रामक और घातक नहीं है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के एक अनुमान के अनुसार विश्व में 2 अरब से ज्यादा लोगों को लेटेंट (सुप्त) टीबी संक्रमण है। सक्रिय टीबी की बात की जाए तो इस अवस्था में टीबी का जीवाणु शरीर में सक्रिय अवस्था में रहता है, यह स्थिति व्यक्ति को बीमार बनाती है। सक्रिय टीबी का मरीज दूसरे स्वस्थ्य व्यक्तियों को भी संक्रमित कर सकता है, इसलिए सक्रिय टीबी के मरीज को अपने मुँह पर मास्क या कपडा लगाकर बात करनी चाहिए और मुँह पर हाथ रखकर खाँसना और छींकना चाहिए। 

टीबी (क्षय रोग) के लक्षण 
 1) लगातार तीन हप्तों से खांसी का आना और आगे भी जारी रहना।
 2) खांसी के साथ खून का आना। 
 3) छाती में दर्द और सांस का फूलना। 
 4) वजन का कम होना और ज्यादा थकान महसूस होना। 
 5) शाम को बुखार का आना और ठण्ड लगना। 
6) रात में पसीना आना। 

टीबी (क्षय रोग) के प्रकार 
 1) पल्मोनरी टीबी (फुफ्फुसीय यक्ष्मा) - अगर टीबी का जीवाणु फेफड़ों को संक्रमित करता है तो वह पल्मोनरी टीबी (फुफ्फुसीय यक्ष्मा) कहलाता है। टीबी का बैक्टीरिया 90 प्रतिशत से ज्यादा मामलों में फेंफड़ों को प्रभावित करता है। लक्षणों की बात की जाए तो आमतौर पर सीने में दर्द और लंबे समय तक खांसी व बलगम होना शामिल हो सकते हैं। कभी-कभी पल्मोनरी टीबी से संक्रमित लोगों की खांसी के साथ थोड़ी मात्रा में खून भी आ जाता है। लगभग 25 प्रतिशत ज्यादा मामलों में किसी भी तरह के लक्षण नहीं दिखाई देते हैं। बहुत कम मामलों में, संक्रमण फुफ्फुसीय धमनी तक पहुंच सकता है। जिसके कारण भारी रक्तस्राव हो सकता है। टीबी एक पुरानी बीमारी है और फेफड़ों के ऊपरी भागों में व्यापक घाव पैदा कर सकती है। फेंफड़ों के ऊपरी में होने वाली टीबी को कैविटरी टीबी कहा जाता है। फेफड़ों के ऊपरी भागों में निचले भागों की अपेक्षा तपेदिक संक्रमण प्रभाव की संभावना अधिक होती है। इसके अलावा टीबी का जीवाणु कंठनली को प्रभावित कर लेरींक्स टीबी करता है। 

2) एक्स्ट्रा पल्मोनरी टीबी (इतर फुफ्फुसीय यक्ष्मा) - अगर टीबी का जीवाणु फेंफड़ों की जगह शरीर के अन्य अंगों को प्रभावित करता है तो इस प्रकार की टीबी एक्स्ट्रा पल्मोनरी टीबी (इतर फुफ्फुसीय यक्ष्मा) कहलाती है। एक्स्ट्रा पल्मोनरी टीबी पल्मोनरी टीबी के साथ भी हो सकती है। अधिकतर मामलों में संक्रमण फेंफड़ों से बाहर भी फैल जाता है और शरीर के दूसरे अंगों को प्रभावित करता है। जिसके कारण फेंफड़ों के अलावा अन्य प्रकार के टीबी हो जाते हैं। फेंफड़ों के अलावा दूसरे अंगों में होने वाली टीबी को सामूहिक रूप से एक्स्ट्रा पल्मोनरी टीबी (इतर फुफ्फुसीय यक्ष्मा) के रूप में चिह्नित किया जाता है। एक्स्ट्रा पल्मोनरी टीबी (इतर फुफ्फुसीय यक्ष्मा) अधिकतर कमजोर प्रतिरोधक क्षमता वाले लोगों और छोटे बच्चों में अधिक आम होता है। 

एचआईवी से पीड़ित लोगों में, एक्स्ट्रा पल्मोनरी टीबी (इतर फुफ्फुसीय यक्ष्मा) 50 प्रतिशत से अधिक मामलों में पाया जाता है। एक्स्ट्रा पल्मोनरी टीबी (इतर फुफ्फुसीय यक्ष्मा) को अंगों के हिसाब से नाम दिया गया है। अगर टीबी का जीवाणु केंद्रीय तंत्रिका तंत्र को प्रभावित करता है तो वह मैनिंजाइटिस टीबी कहलाती है। लिम्फ नोड (लसिका प्रणाली, गर्दन की गंडमाला में) में होने वाली टीबी को लिम्फ नोड टीबी कहा जाता है। पेराकार्डिटिस तपेदिक में ह्रदय के आसपास की झिल्ली (पेरीकार्डियम) प्रभावित होती है। पेराकार्डिटिस तपेदिक में पेरीकार्डियम झिल्ली और ह्रदय के बीच की जगह में फ्लूइड (तरल पदार्थ) भर जाता है। हड्डियों व जोड़ों को प्रभावित करने वाली टीबी हड्डी व् जोड़ों की टीबी कहलाती है। जनन मूत्रीय प्रणाली को प्रभावित करने वाली टीबी जेनिटोयूरिनरी टीबी (मूत्रजननांगी तपेदिक) कहलाती है। इसके अलावा भी माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरक्लोसिस शरीर के कई अंगों को प्रभावित कर विभिन्न प्रकार की एक्स्ट्रा पल्मोनरी टीबी (इतर फुफ्फुसीय यक्ष्मा) करता है।

ड्रग रेजिस्टेंस टीबी के प्रकार 

1) मल्टी ड्रग रेजिस्टेंस टीबी- इस प्रकार की ड्रग रेजिस्टेंस टीबी में फस्र्ट लाइन ड्रग्स का टीबी के जीवाणु (माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरक्लोसिस) पर कोई असर नहीं होता है। अगर टीबी का मरीज नियमित रूप से टीबी की दवाई नहीं लेता है या मरीज द्वारा जब गलत तरीके से टीबी की दवा ली जाती है या मरीज को गलत तरीके से दवा दी जाती है और या फिर टीबी का रोगी बीच में ही टीबी के कोर्स को छोड़ देता है (टीबी के मामले में अगर एक दिन भी दवा खानी छूट जाती है तब भी खतरा होता है) तो रोगी को मल्टी ड्रग रेजिस्टेंस टीबी हो सकती है। इसलिए टीबी के रोगी को डॉक्टर के दिशा निर्देश में नियमित टीबी की दवाओं का सेवन करना चाहिए। मल्टी ड्रग रेजिस्टेंस टीबी में फस्र्ट लाइन ड्रग्स आइसोनियाजिड और रिफाम्पिसिन जैसे दवाओं का मरीज पर कोई असर नहीं होता है क्योंकि आइसोनियाजिड और रिफाम्पिसिन का टीबी का जीवाणु (माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरक्लोसिस) प्रतिरोध करता है। 

 2) एक्सटेनसिवली ड्रग रेजिस्टेंस टीबी- इस प्रकार की टीबी मल्टी ड्रग रेजिस्टेंस टीबी से ज्यादा घातक होती है। एक्सटेनसिवली ड्रग रेजीस्टेंट टीबी में मल्टी ड्रग रेजिस्टेंस टीबी के उपचार के लिए प्रयोग होने वाली सेकंड लाइन ड्रग्स का टीबी का जीवाणु प्रतिरोध करता है। एक्सटेनसिवली ड्रग रेजिस्टेंस टीबी में फस्र्ट लाइन ड्रग्स आइसोनियाजिड और रिफाम्पिसिन के साथ-साथ टीबी का जीवाणु सेकंड लाइन ड्रग्स में कोई फ्लोरोक्विनोलोन ड्रग (सीप्रोफ्लॉक्सासिन, लेवोफ्लॉक्सासिन और मोक्सीफ्लोक्सासिन) और कम से कम एक अन्य इंजेक्शन द्वारा दी जाने वाली ड्रग (अमिकासिन, कैनामायसिन और कैप्रीयोमायसिन) का प्रतिरोध करता है। मल्टी ड्रग रेजिस्टेंस टीबी का रोगी द्वारा अगर सेकंड लाइन ड्रग्स को भी ठीक तरह और समय से नहीं खाया जाता या लिया जाता है तो एक्सटेनसिवली ड्रग रेजिस्टेंस टीबी की सम्भावना बढ़ जाती है। इस प्रकार की टीबी में एक्सटेंसिव थर्ड लाइन ड्रग्स द्वारा 2 वर्श से अधिक तक उपचार किया जाता है। लेकिन एक्सटेनसिवली ड्रग रेजिस्टेंस टीबी का उपचार सबसे ज्यादा चुनौतीपूर्ण है। 

टीबी की जांच कैसे की जाती है टीबी के लक्षण दिखाई देने पर डॉक्टर द्वारा रोगी को टीबी को जांचने के लिए कई तरह के टेस्ट कराने की सलाह दी जाती है जो निम्न है- 

 1) स्पुटम/अन्य फ्लूइड टेस्ट- इस टेस्ट में मरीज के बलगम/अन्य फ्लूइड की लैब में प्रोसेसिंग होने के बाद स्लाइड पर उसका स्मीयर बनाया जाता है फिर उसकी एसिड फास्ट स्टैंनिंग की जाती है। स्टैंनिंग के बाद में स्लाइड पर टीबी के जीवाणु की माइक्रोस्कोप के जरिए पहचान की जाती है। माइक्रोस्कोप द्वारा बलगम की जांच में 2-3 घंटे का समय लगता है। इस जांच के आधार पर डॉक्टर रोगी का इलाज शुरू कर देता है। लेकिन विभिन्न कारणों की वजह से इसमे गड़बड़ी की आशंका होती है। इसलिए सैंपल का प्रोसेसिंग के समय पर ही लोएस्टीन जेनसेन मीडिया पर कल्चर लगाया जाता है। इसके बाद सैंपल से इनोक्यूलेटेड कल्चर को इनक्यूबेटर में 37 डिग्री सेल्सियस पर रख देते हैं। इस जांच में 45 दिन या उससे अधिक समय लग सकता है। 

2) स्किन टेस्ट (मोन्टेक्स टेस्ट)- इसमे इंजेक्शन द्वारा दवाई स्किन में डाली जाती है जो 48-72 घंटे बाद पॉजिटिव रिजल्ट होने पर टी.बी. की पुष्टि होती है। लेकिन इस टेस्ट में बीसीजी टीका लगे हुए और लेटेंट टीबी संक्रमण का भी पॉजिटिव रिजल्ट आ जाता है।

3) लाइन प्रोब असे- यह एक रैपिड ड्रग संवेदनशीलता टेस्ट है। इस टेस्ट के जरिए टीबी के जीवाणु के फर्स्ट लाइन ड्रग्स (आइसोनियाजिड और रिफाम्पिसिन) के प्रतिरोध से जुडी जेनेटिक म्यूटेशन की पहचान 1-2 दिनों में कर ली जाती है जिसकी वजह से मल्टी ड्रग रेजिस्टेंस टीबी की भी पहचान हो जाती है। 

4) जीन एक्सपर्ट टेस्ट- नवीनतम तकनीक जीन एक्सपर्ट एक कार्टिरेज बेस्ड न्यूक्लिक एसिड एम्फ्लिफिकेशन आधारित टेस्ट है। जीन एक्सपर्ट द्वारा महज दो घंटे में बलगम द्वारा टीबी का पता लगाया जा सकता है। 

साथ ही इस टेस्ट में जीवाणु के फर्स्ट लाइन ड्रग रिफाम्पिसिन के प्रतिरोध से जुडी जेनेटिक म्यूटेशन तक की भी पहचान कर ली जाती है जिसकी वजह से मल्टी ड्रग रेजिस्टेंस टीबी की भी पहचान हो जाती है। टीबी का उपचार टीबी के जीवाणुओं को मारने के लिए इसका उपचार करने के लिए एंटीबायोटिक दवाओं का उपयोग किया जाता है। टीबी के उपचार में सबसे अधिक इस्तेमाल की जाने वाली दो एंटीबायोटिक्स आइसोनियाजिड और रिफाम्पिसिन हैं, और उपचार कई महीनों तक चल सकता है। 

सामान्य टीबी का उपचार ६-९ महीने में किया जाता है। इन छह महीनों में पहले दो महीने आइसोनियाजिड, रिफाम्पिसिन, इथाम्बुटोल और पायराजीनामाईड का उपयोग किया जाता है। इसके बाद इथाम्बुटोल और पैराजिनामाइड ड्रग्स को बंद कर दिया जाता है बाकी के ४-७ महीने आइसोनियाजिड और रिफाम्पिसिन का उपयोग किया जाता है। इसके साथ ही टीबी के इलाज के लिए स्ट्रेप्टोमाइसिन इंजेक्शन का भी उपयोग किया जाता है।

मल्टी ड्रग रेजिस्टेंस टीबी में फर्स्ट लाइन ड्रग्स का प्रभाव खत्म हो जाता है इसके लिए सेकंड लाइन ड्रग्स का उपयोग किया जाता है जिसमे सीप्रोफ्लॉक्सासिन, लेवोफ्लॉक्सासिन, मोक्सीफ्लोक्सासिन, अमिकासिन, कैनामायसिन और कैप्रीयोमायसिन इत्यादि एंटीबायोटिक्स का उपयोग किया जाता है। मल्टी ड्रग रेजिस्टेंस टीबी का इलाज २ साल तक चलता है। एक्सटेनसिवली ड्रग रेजिस्टेंस टीबी का इलाज डॉक्टर की विशेष देखरेख में थर्ड लाइन ड्रग्स द्वारा किया जाता है। एक्सटेनसिवली ड्रग रेजिस्टेंस टीबी का इलाज दो वर्ष से अधिक समय तक चलाया जाता है। एक्सटेनसिवली ड्रग रेजिस्टेंस टीबी अत्यधिक चुनौतीपूर्ण है।

टीबी की रोकथाम 

1) क्षय रोग की रोकथाम और नियंत्रण के लिए मुख्य रूप से शिशुओं के बैसिलस कैल्मेट-ग्यूरिन (बीसीजी) का टीकाकरण कराना चाहिए बच्चों में यह 20% से ज्यादा संक्रमण होने का जोखिम कम करता है। 

2) सक्रिय मामलों के पता लगने पर उनका उचित उपचार किया जाना चाहिए। टीबी रोग का उपचार जितना जल्दी शुरू होगा उतनी जल्दी ही रोग से निदान मिलेगा। 

3) टीबी रोग से संक्रमित रोगी को खाँसते वक्त मुँह पर कपड़ा रखना चाहिए, और भीड़-भाड़ वाली जगह पर या बाहर कहीं भी नहीं थूकना चाहिए। 

4) साफ-सफाई के ध्यान रखने के साथ-साथ कुछ बातों का ध्यान रखने से भी टीबी के संक्रमण से बचा जा सकता है। 

 5) ताजे फल, सब्जी और कार्बोहाइड्रेड, प्रोटीन, फैट युक्त आहार का सेवन कर रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाया जा सकता है। अगर व्यक्ति की रोक प्रतिरोधक क्षमता मजबूत होगी तो भी टीबी रोग से काफी हद तक बचा जा सकता हैं।

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