
इस मंदिर में श्रद्धालुओं को केवल अलग-अलग साइजों के पत्थरों का चढ़ावा चढ़ाने की ही इजाजत है।
प्रार्थना के लिए तीन या पांच पत्थरों का चढ़ावा होता है। सबसे आश्चर्यजनक बात यह है कि यहां पर कोई भी पुजारी या फिर स्थाई ढांचा नहीं है। श्रद्धालुओं को खुद से ही पूजा-अर्चना करनी पड़ती है।
स्थानीय लोगों के अनुसार यहां पर भगवान काडू बसप्पा (भगवान शिव) की मूर्ति पत्थरों की बनी हुई है।
परम्परा के अनुसार इच्छा पूरी होने पर श्रद्धालु अपने खेत या जमीन से लाए गए पत्थरों को चढ़ाते हैं। 3 या 5 की संख्या में चढ़ाए जाने वाले पत्थरों के आकार को लेकर कोई प्रतिबंध नहीं है। ज्यादातर श्रद्धालु किसान अच्छी फसल के लिए ही प्रार्थना करते हैं।
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