बीसवीं सदी के पहिल दशक के बादि अवधी साहित्य मा खासी कमी आयगै है। खड़ी बोली का हिन्दी प्रदेश केर भाषा बनै तथा मानक भाषा बनै से अस होय लाग रहा। खड़ी बोली के रूप मा मानक भाषा के विकास के कारन अवधी साहित्य बिल्कुलै न के बराबर लिखा जाय रहा रहे। मुला कुछ लोग जौन अवधी मा साहित्य लिखिन उइ अहिलक रचिन। आधुनिक काल मा अवधी मा रचना करै वाले साहित्यकारन मा बलभद्र प्रसाद दीक्षित ‘पढी़स’, वंशीधर शुक्ल, चन्द्रभूषण द्विवेदी (रमई काका), दयाशंकर दीक्षित देहाती, ब्रजनन्दन, आदि उल्लेखनीय हैं। रमई काका कै रचना नेताजी नाम से आल्हा शैली मा है जौन सुभाषचन्द्र बोस के विदेश गमन अउर आजाद हिन्द सेना की स्थापना से सम्बन्धित है। इनकी फुटकर कवितायें हास्य-व्यंग्य केर प्रहसन और आकाशवाणी तईं उनके नाटक बहरे बाबा आदि रचनाएँ अनमोल धरोहर हैं। इनकी अवधी भाषा मा खड़ी बोली अउर बैसवारी अवधी का परयोग है। वंशीधर शुक्ल की भाषा पर खड़ी बोली का परभाव दिखाय देत है। बलभद्र प्रसाद दीक्षित की भाषा पर खड़ी बोली अउर बैसवारी केर परभाव है। तमाम विद्वान पूर्वी-अवधी और पूर्वोत्तर-अवधी का आदर्श अवधी मानत हैं। अवधी के अनेक नामन जइसे पश्चिमी अवधी, दक्षिण या बघेली अवधी, पश्चिमोत्तरी या गाजरी अवधी, बैसवारी अवधी आदि केर उल्लेख मिलत है।
सन् 1757-1857 तक पूरा हिन्दी प्रदेश अंग्रेजन के अधीन होइ गवा रहा। शासन बदलै से देश प्रभावित होतै है। वहिकी सांस्कृतिक मान्यताएँ बदलै लगती हैं। भाषा अउर साहित्य मा उलट फेर होय लागत हैं। अंग्रेजी शासन आवै से खड़ी बोली हिन्दी केर परभाव बढ़ा। हिन्दी औ उर्दू के शब्दन मा दुइ-चारि अंग्रेजी शब्दन की मिलावट का ‘फैशन’ और ‘शिष्टता’ केर द्योतक समझा जाय लाग। परिणामस्वरूप इधर सौ-डेढ़ सौ वर्षन मा हिन्दी की बोलिन मा बहुतै बदलाव भये हैं। यहिलिए अवधी की आधुनिक कविता कै भाषा केर अध्ययन करै तईं संक्षेप मा भाषा केर बदल भई झाँकी पर याक नजर डालब बहुतै जरूरी है। अवधी के विकास का जानै तईं दुइ भाग मा अलग-अलग कीन जाय सकत है। 1- प्राचीन अवधी 2- आधुनिक अवधी। दुई भागन मा अलग-अलग करिकै देखै पर दोनों काल खंड की अवधी मा परसर्ग, सर्वनाम, क्रियारूप, क्रियाविशेषण, अव्यय तथा वहिकी विभक्तिन अउर संज्ञा मा कुछ-न-कुछ बदलाव दिखाय परत हैं। भाषा-विज्ञान मा यही बदलाव का विकास कहा जात है। कहौ गवा है, ”भाषा बहता नीर।” आधुनिक युग मा विभक्तियन केर लोप होत जाय रहा है, उनका स्थान परसर्ग लै रहे हैं। कुछ विभक्तियाँ बिलकुलै गायब होय गई हैं। उदाहरन तईं ‘हि’ या ‘हिं’ विभक्ति का देखा जाय सकत है। पहिले इनका उपयोग सबै कारकन मा होत रहा। बादि मा ई कर्म और सम्प्रदान मा सीमित होइ गई, जौन वर्तमान तक समाप्तप्राय है। पुरुषवाचक सर्वनाम का छोड़िकै अन्य सर्वनामन मा सिरफ परसर्गीय रूपन के साथ बची रहि गई है। जइसे ‘जेहिका’, ‘वहिका’। ईका येकु बदला भवा रूप सम्बन्ध कारक मा विकल्प से प्रयुक्त कीन जात है। उहाँ हकार का लोप होइ जात है अउर ‘हि’ ‘ए’ रूप मा बोला जात है। जइसे– ‘घरका जाउ’ कथन का विकल्प ‘घरै जाउ’ भी है। यहिकी विभक्ति निश्चित ही ‘हि’ विभक्ति केर बदला रूप (घरहि-घरै) है। प्राचीन अवधी मा ‘न्हि’ तथा ‘न्ह’ विभक्तिनौ केर परयोग बदला है। ‘न्ह’ का महाप्राणत्व समाप्त होइकै न हो गया है। जइसे – विप्रन्ह का विप्रन।
यही तरह परसर्ग रूपन मा बदलाव भवा है। सर्वनाम अउर क्रियौ रूप बदले हैं। डॉ. उदय नारायण तिवारी के मतानुसार उक्ति व्यक्ति प्रकरण के अपभ्रंश मा अनुस्वार ध्वनि गायब होइगै अउर आधुनिक कोसली के समान वहिका उच्चारन "न" होइ गवा रहा। गुरु गोरखनाथ केरी भाषा केर ढाँचा अवधी है। क्रिया, कारक अवधी के हैं, मुला उनकी काव्यभाषा मा पंजाबी, राजस्थानी, खड़ी बोली तथा भोजपुरी आदि के शब्द मिलत हैं। सरहपा के दोहाकोश और चर्यागीतन मा ठेठ अवधी के शब्द परयोग कीन गये हैं। अवधी मा काव्य रचना करै वाले कवि सहजै दोहा-चौपाई केर व्यवहार करत रहे। विद्वानन के मतानुसार बारहवीं शताब्दी मा अवधी जौन रूप धारण किहिस, ऊ आजौ तक प्रचलित है।
आधुनिक काल मा खड़ी बोली के सामान अवधी भासौ धीरे-धीरे विकसित भई है। भारतेन्दु हालाँकि ब्रज भाषा मा कविता लिखा करत रहे, परन्तु उइ खड़ी बोलिव मा काव्य रचना किहिन हैं। सन् 1857 का केन्द्र चूँकि अवध रहा, यहिलिए अवधी मा ई बीच बहुत सारा मौखिक साहित्य रचा गवा। कुछ स्थानीय कवि अवधी मा पुरान ढंग कै कवितई लिखत रहे। आगे चलिकै बलभद्रप्रसाद दीक्षित ‘पढीस’, बंशीधर शुक्ल अउर रमई काका सक्रिय भए। छायावाद अउर प्रगतिवाद के संधिकाल मा ‘पढीस’ जी अउर बंशीधर शुक्ल जी अवधी मा प्रचुर साहित्य सृजित किहिन। खड़ी बोली के विकास के साथै अवधी का विकास अवरुद्ध होत गवा। अवधी भाषा के काव्यरूप का विकासक्रम देखै से साफ होत है कि ई लगातार विकासोन्मुख रहा अउर आंचलिक साहित्य मा ई भाषा केर उपयोग व्यापक और प्रभावोत्पादक ढंग से भवा है।
(लेखक, हिंदी दैनिक सन्दौली टाइम्स के सह-सम्पादक हैं अउर डॉ राम मनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय मा अवधी डिप्लोमा के छात्र हैं)
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