स्त्री अउर पुरुष मा न कोऊ कमतर है, न कोऊ श्रेष्ठतर, न कोऊ वृहत्तर अथवा गुरुतर। दुनहूँ केर अपन अलग-अलग अस्तित्व है, अलग-अलग उपयोगिता है, अलग-अलग भूमिका है। न कोऊ याक दुसरे केर भूमिका निभाय सकत है अउर न कोऊ याक दुसरे का अनुपयोगी साबित करि सकत है। प्रकृति का ताना-बाना बनै अइस है कि येकु दूजे के बिना दुनहूँ का अंतर्मन खालीपन से निजात नई पाय सकत है। इहै ई जिनगी केर सच्चाई आय।       

अफसोस ई बात की है कि जाने-अनजाने अपने बल के घमंड मा चूर, पुरुष अपने का स्त्री से श्रेष्ठतर अउर स्त्री का अपने से कमतर समझि बइठ है। ई भ्रम का स्थाई बनाये राखै तईं पुरुष  कदम-कदम पर बल, बुद्धि का उपयोग करत रहा है। बल के उपयोग से दबंगई अउर मनमानी (सहमति-अनुमति के बगैर बलपूर्वक कोऊ से कुछ छीन लियब, मनमानी करब, हथियाय लियब, कोऊ केर इच्छा या आवाज दबाय दियब) करत रहा है अउर बुद्धि के उपयोग से जाल बुनत रहा है, धोखा दियत रहा है। जइसन बहेलिया जाल मा फँसावै तईं दाना डारत है अउर बहेलिया की चाल न समझै वाले बेचारे परिंदा खुदै दाना के चक्कर मा आय कै जाल मा फँसत चले जात हैं। अइसनै पुरुष समाज की चाल न समझै वाला बेचारा स्त्री समाज, इनके फैलाये राबा-ढाबा अउर ताना-बाना मा फँसत जात है। 

आदिकाल से ई शुरू भवा अउर आजु तलक इहै देखाय परत है। सुहागिन के जतने सिंगार गढ़े गए हैं, उइ इहै जाल अउर ताना-बाना केर तंतु धागा आँय। पुरुष अपन गुलामी करावै तईं बंधक जस बनावै तईं, ई मायाजाल रचिस है। अउर स्त्री बड़ी-बड़ी मीठी-मीठी, नीकी-नीकी बातन मा आय कै गुलामी के ई फंदा अउर बंधन खुशी-खुशी खुदै स्वीकार करत रही है। सिरफ स्त्री के हिस्से मा रचे गये ब्रत त्योहारौ गुलाम बनावै केर टूल्स ( न देखाय परै वाली हथकड़ी बेड़ी) आँय। काहेसे कि पुरुष द्वारा अपने हर रूप ( बेटा, भाय, पति ) की रक्षा सुरक्षा और कुशलता खातिर स्त्री तईं ब्रत त्यौहार गढ़े गये मुल स्त्री के रूप ( बेटी, बहिन, पत्नी, माँ ) की रक्षा सुरक्षा और कुशलता खातिर पुरुष अपनी तईं यक्कौ ब्रत त्योहार नई गढ़िस। यानी अपनी तईं गुलामी के टूल्स (न देखाय परै वाली हथकड़ी-बेड़ी) नई बनाइस।

अब जब शिक्षा अउर ग्यान का प्रसार बढ़ा है, बड़े स्कूलन तक स्त्री केर पहुँच बनी है तौ येकु-येकु करिकै गुलामी केर टूल्स ( न देखाय परै वाली हथकड़ी- बेड़ी) तूरत भये स्त्री अपन उन्नति प्रगति केर नई गाथा लिखि रही है। पुरुष समाज द्वारा गढ़े गए जाल के तंतु धागा (सृंगार के प्रतीक) भर बाँह चूड़ी, भर माँग सेंदुर, घूँघट, पहनावा आदि येकु-येकु सब छोड़त भयी स्त्री मा पुरुष के जाल-जंजाल से मुक्त हुवै केर आजु भरपूर छटपटाहट देखाय परत है जौन कि स्वस्थ समाज के निर्माण तईं शुभ लक्षण आँय। येकु अइस समाज केर निर्माण जहाँ बलात्कार केर गुंजाइश कम से कमतर होत जाई। यानी बिना सहमति बिना अनुमति कोऊ के साथ जोर जबरदस्ती या मनमानी न होइ सकै।

कउनौ समाज ई तिना की जोर-जबरदस्ती अउर मनमानी का इजाजत नई दै सकत है। मुला पुरूष द्वारा गढ़े गये टूल्स (न देखाय परै वाली हथकड़ी-बेड़ी) का जब तक स्त्री खुद न उतारि कै फैंकी तब तक जोर जबरदस्ती, अउर मनमानी केर गुंजाइश बनी रही। 

समझदार स्त्री समाज की सोंच मा पुरूष समाज का पीछे ढकेलि कै आगे निकरै केर मंसा नई है, बल्कि देश दुनियाँ के विकास मा पुरूष के बराबर कंधा से कंधा मिलाय कै योगदान करै केर मंसा है। स्त्री समाज सिर्फ इहै चहत है कि ऊका सिरफ देह न समझा जाय। उहौ मा संवेदनाएं है, सपने हैं, सुख-दुख तथा खुशी अउर पीर महसूस करत हैं।

पुरुष अपनी हरकत से बाज नई आय रहा है। समय बदला है समाज बदला है तौ पुरुषौ, स्त्री का धोखा देय के अउर मनमानी करै के मेर-मेर के उपाय बदलि रहा है। नये-नये जाल बुनत रहा है। स्त्री समाज पुरुष की जोर जबरदस्ती अउर मनमानी से छुटकारा पावै तईं भरपूर कोशिश मा है। ई लगातार कोशिश केर परिणाम है कि जोर जबरदस्ती अउर मनमानी के मामले बहुत कम होइगे हैं।

मुला पुरुष के ई चंगुल से छुटकारा पाउब बहुत आसान नई है। मुला साँचु इहौ आय कि बहुत कठिनौ नई है।

विश्वास अउर धोखा यक्कै सिक्का के दुइ पहलू आँय। धोखा केर गुंजाइश हुवैं बनत है जहाँ विश्वास हुवै। पुरुष पर विश्वास करै तईं स्त्री केर मजबूरी है। मजबूरी या है कि कोमल मना स्त्री द्वारा विश्वास करब येकु सहज सुभाव के तहत है।  मुला पुरुष जब स्त्री द्वारा कीन गए विस्वास का तूरि कै धोखा दियत है तौ यू पुरुष के चाल चरित्र चिंतन के काले पक्ष का उजागर करत है। जी तिना येकु ठग पुरुष अपनी ठगी का सफल बनावै तईं ग्राहक पुरुष का विस्वास मा लइकै धोखा देत है। गलत समान बेंचि देत है। धोखा दइकै पैसा अँइठि लेत है। बिल्कुल ठगै तिना पुरुष अपने विस्वास मा स्त्री का लइकै धोखा देत है। कउनौ अंतर नई देखात है ई ठग-समाज अउर पुरुष-समाज की चंटई-चालाकी मा।

पुरुष समाज की बेहयाई की हद तब चरम पर होत है जब पुरुष से धोखा खाई स्त्री का इहै समाज हेय अउर गिरी नजर से देखत है जबकि धोखा देय वाले पुरुष तईं समाज न हेय नजर से देखत है न गिरी नजर से। बहिष्कार अउर तिरस्कार स्त्री केर नहीं पुरुष केर होय का चाही। मुला पुरुष प्रधान समाज मा ई कमै-कम सम्भव है। मुला शुरुआत होइगै है, दबाव बना है। 

पुरुष प्रधान समाज केर येकु विशेष सोंच है, कुछ आचरण हैं। जहाँ कुछ समझदार अउर उदारमना पुरुष ई सोंच अउर आचरण का खारिज करत हैं उहैं कुछ नासमझ अउर संकुचित-मना स्त्री खुदै ई पुरुष प्रधान सोंच अउर आचरण का अंगीकार करि रही हैं। धोखा खाय वाली स्त्री से धोखा देय वाला पुरुष ज्यादा दोषी है। धोखा देय कै योजना पुरुष के मन मा चलत रही। यानी योजना बनाय कै अपराध करै वाला कानून की नजर मा बड़ा अपराधी माना जात है। स्त्री केर सिरफ अतनी गलती है कि ऊ विस्वास किहिस। विस्वास करब सहज मानवीय सुभाव आय।

पुरुष केर श्रेष्ठता यहि लिए बरकरार रहत आई है कि ऊ आत्म निर्भर होत है। जौन दिन स्त्री समाज आत्म निर्भर बनी उइ दिन पुरुष केर श्रेष्ठता खत्म। पहिले स्त्री केर हिस्सेदारी संपत्ति मा नई होत रही है अब बराबर की हिस्सेदार बनि रही है। सरकारी आवास अब स्त्री के नामै से मिलत हैं। राशन कारड स्त्री के नाम से बनै लागि हैं। स्त्री द्वारा खरीद पर स्टाम्प मा छूट होय से लालची पुरुष स्टाम्प बचावै तईं स्त्री के नाम प्लाट लिखाय रहा है। लालची ई बरे कहा है कि जब स्टाम्प मा छूट नहीं रही तब स्त्री के नाम प्लाट नई लिखे गए हैं। अउर जब स्टाम्प मा छूट न रहि जाई तबौ स्त्री के नाम प्लाट लिखै लिखावै केर संख्या न के बराबर बची।

कुछ पुरुष हैं जौन भरोसे लायक हैं। राति के अंधेरे मा अकेल स्त्री का पाय के ऊकी मजबूरी का फायदा उठाय कै जोर-जबरदस्ती या मनमानी न करिकै मदद करिहैं। मुला ई तिना के पुरुष बहुतै कम हैं। न के बराबर हैं। कुछ स्त्रिव अइस हैं जउन खुदै मनमानी अउर जोरजुलुम करै मा आगे हैं। योजना बनाय कै पुरुषन का धोखा देय मा पीछे नई हैं। मुला अइसन स्त्रिन केर संख्यौ बहुतै कम है। न के बराबर है। कुल मिलाय कै क्रिया कै प्रतिक्रिया होतै है। पुरुष केर अंतः प्रकृति कठोर अउर स्त्री केर अंतः प्रकृति कोमल मानी जात है। देखावै तईं पुरुष ऊपर से कोमल अउर स्त्री कठोर बनै केर कोशिश करत है। साँचु ई आय कि जब कबौ कउनौ घटना-दुर्घटना के कारन-वश  पुरूष केर  अंतः प्रकृति टूटत है तब ऊ स्त्री तिना कोमल प्रकृति का होइ जात है अउर जब यही तिना कउनौ घटना-दुर्घटना के कारन-वश स्त्री केर अंतः प्रकृति टूटत है तब वा पुरुष तिना कठोर प्रकृति केर होइ जात है। ई दुनहूँ स्थितियन का समाज अच्छा नई मानत है। मुला यदि कोऊ पुरुष ग्यान-साधना करिकै वैचारिकी बदलत भये कोमल-मना यानी स्त्री तिना कोमल प्रकृति का बनत है तब अइस पुरुष का कहा जात है- संत हृदय नवनीत समाना। अउर यही तिना जब ग्यान-साधना करिकै वैचारिकी बदलत भये कठोर-मना बनत है तब समाज स्वीकार नई करता है। काहे से कि तब कठोर-मना स्त्री पर पुरुष की सब चालबाजी मायाजाल बेअसर होत हैं। अचेतन मन मा स्थापित पुरुष-प्रधानता स्वीकार नई करै देत है।

 स्त्री पुरुष-विमर्ष मा ई तिना की अउरौ तमाम बातन केर चर्चा कीन जाय सकत है। ई बात कहत भये विमर्ष का अंत करबै कि आदि काल से पुरुष केर जाल, स्त्री के जी का जंजाल बना हुआ है। 


(लेखक, हिंदी दैनिक सन्दौली टाइम्स के सह-सम्पादक हैं अउर डॉ राम मनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय मा अवधी डिप्लोमा के छात्र हैं)

0 comments:

Post a Comment

 
Top