बहुत समय से टरत रहा हमार इलाज। तौ आजु हम सुबहियै सरकारी अस्पताल के एक्स-रे रूम मा पहुंचेन, तौ दिखान कि बहुत भीड़ नाइ है।

थोड़ी राहत भई कि देर तक ना बइठेक परी। किनारे-किनारे बनी सीटन पर लोग बइठे रहँय। हमहूँ याक अलँग बैठि गयेन। तबै एक्सरे रुम केर दरवाजा खुला। अउर अंदर सेनि आधा गेट खोलि कै एकु करमचारी कोइ मरीज के नाम पुकारिस, साथै नये आये मरीजन के परचौ लइ लिहिस। हमरौ पर्चा बिटिया पकराय दिहिस। ऊ भीतर चला गवा। हर याक-दुइ मिनट मा दरवाजा खोलिके ऊ अगले मरीज का नाम पुकारै आवै अउर नये आये मरीजन के परचौ साथै लिहे जाय।

       हमका लगभग आधा घंटा बइठै का परा। बइठे-बइठे जौन देखेन, हम सोचित अही कि आपौ का बतावत चली। तौ ऊ करमचारी लंबे कद का नौजवान रहय। अउर ऊकी बात व्यवहार बड़य हँसमुख रहय। मरीजन मा अउर हुवाँ बइठि सब परेसान तीमारदारन के चेहरे पइहाँ  मुस्कान लाय देत रहा। जइसे कौनो नाम लइके पुकारै अउर ऊ ना सुनै, तौ ऊका हल्के से झिड़कि देय कि मेहमानी खाये आए हौ, ध्यानै नाइ दै रहे हौ। भाई एक्स-रे करवायेक है कि नाई। कुछै पल मा फिरि दरवाजा खोलिके फिर पुकारै लाग। नूर बानो, नूर बानो, काफी जोर से बुलाये के बादौ, आवाज न मिली, तौ कहै लाग, अरे भाई एक्सरे करायेक है कि नाइ नूर बानो, तबले पुरबै कोने सेनी धीम आवाज आई। आय तो रहे हन, चिल्लाव ना। कर्मचारी घूरत भये  बोलिस- कौनी तिना बोलती हौ कि हम सुनै नहीं पाए रहेन। लागत है घर मा  बाति नाई कर पउती हौ, सारी पंचायत हिंयै करि लेय का है। चलौ अंदर।  तब ले दुइ-चार मरीज फिरि गेट लगे ठाड़ हुइ गे, तौ समझावत भये बोला, भाई हिंया न ठाड़ रहौ। किनारे-किनारे बइठ लेव। नाइ तौ बहरै बइठ लेव। हिंया खड़े रहे से का फयदा ? काम मा अउर देरेन होई। तनी देर लोग हटैं, तइके लोग धीमे-धीमे फिरि हुवैं ठाड़ हुइ जाँय। ऊ फिरि बाहर निकरि कै उनका समझावै, फिरि मरीज बलावै। परचा लइकै भुनभुनावत भीतर चला जाय। अंदरौ देखि रहा रहै, कि सबका एक्सरे सही से हुइ जाय, फिर जात बेरिया यहौ बतावत जाय कि बारह बजे के बाद आय केनी रिपोर्ट लइ लियत जायौ। वहिम तनीमनी चिड़चिड़ाइउ जाय। अरे हमका का...? परेसानी तुम ही पंचन क होई। कुछ देर बाद हमार नंबर आयेन वाला रहय। तबै आयेक हमरे साथ बैठि रही बिटिया से ऊ बताइस, बिटिया ई परचा मा कुछ कमी दिखात है, ईका डॉक्टर सेनि ठीक कराय लाव। तान्या बिटिया पर्चा सही करावै चली गै, हम हुवैं बैठि रहेन अउर इहै सब देखत रहेन कि अतनी परेशानी के माहौलौ मा तमाम पीड़ा भरे चेहरन पर, ऊ करमचारी के कारन सबके चेहरे पइहां मुस्कुराहट आइन जात रही, और वहौ कर्मचारी अतने थकान भरे नीरस काम का, अपनी हल्की चुहलबाजी सेनी हलुकाय लेत रहा। जइसे खुदौ ऊमा आनंद महसूस करत रहा। कइ ठईं गंभीर मरीजौ आय जात रहे, उनहुक समझाय लेत रहा, चाचा परेसान न हुवौ, अबै नंबर आय जाइ। तबै याक बुजरुग महिला पूछिस, बेटवा ईमा काव लिखा है? अम्मा ईमा एक्सरे नाइ लिखा हवै। तीन नंबर कमरा मा जाव। ई कहिके फिरि अपने कामे मा लागि गा। फिरि भीड़ सहेजै लाग। कुछ देर बादि फिरि नाम पुकारिस रामरती, रामरती। अरे रत्ती भर देखाय परि जावौ। साथ ही साथ रामनाथ आओ, रामलाल तुमहू आय जाओ। कहाँ हौ भाई, घरे चले गयो का ? कहि के हँसत भये कमरा मा चला गवा। ई तिना केर माहौल, हम पहिली दाईं देखेन। 

       तान्या बिटिया परचा सही कराय कै वापिस आय गै। अउर फिरि सेनि पर्चा दाखिल किहिस। कुछै देरि मा हमरो नाम आय गवा। एक्स-रे होय के बादि हमका कुछ अउर रुकै का परा, रिपोर्ट खातिर। ऊकी यही तिना की हल्की-फुल्की बातन का आनंद लियत भये हम बइठ रहेन। रिपोर्ट मिलतै,  घर बदे निकरि परेन। मगर जब ले बइठ रहेन, पीरा केर वतना एहसास नाइ हुआ। जतना चलत बखत। फिरि पाँव का दरद तेज होय लाग। तब महसूस भवा कि पीरा तौ हमका भी अउर बाकी सभैक बहुतै रही। मुला हुवाँ के ऊ माहौल मा अपन-अपन दुख तकलीफ सभै तनी-मनी भुलान रहे। एक्सरे रुम सेनी निकरत भये हम ईश्वर से अरदास लगायेन कि सबका स्वस्थ राखैं और जीवन हंसी खुशी मा बीतै। हियाँ कोऊ का न आवै का परै। इहै अरदास लगावत भये, हम अपनी बिटिया सत्थे घर की तरफ चलि परेन।


(लेखिका, कबौ गोरखपुर आकाशवाणी दूरदर्शन मा एंकर रहीं, वर्तमान मा बाराबंकी की प्रसिद्ध कवयित्री शायरा हैं।)

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