बतकही- 


अबकी तौ बैसाखै मा अतना फूंके है तौ जेठ असाढ़ मा कतना तपी? तपन तौ बढ़तै जाति है। हमरी जान ठंढ अब बहुतै  कम रहि जाई। घाम देखि कै जू लरजति है। भौजी! कहूँ-कहूँ तौ बड़ा नुकसान होइ रहा है। खेतन मा कौनो लुक्की पहुँचि गय तौ खड़ी फसल जरी जाय रही है, कहूँ झुग्गी झोपड़िन मा आगि लागि जाय रही है। सबका तनिक हुसियार रहै का चाही।

हां  जिज्जी आजुकालि अस्पताल मा उल्टी दस्त के मरीजन से बेड भरे परे हैं। यू जानो हमरी पड़ोसिन के उई दिन जाने का होइ गवा फट्टै बेहोस होइ गयीं। उ तौ कहौ लरिका घर मा रहा तौ अस्पताल दौरा।  हुआँ पता चला अचानक से उका का कहत हैं ब्लड-प्रेशर बढ़ि गवा रहा। ई  गरमी मा बहुतै समझ बूझि कै रहै वाला है। 

अई भौजी अब यू सब बतायेव तौ यादि आवत है, हम पंचे गरमी भरि अपनी नानी के घरे चले जाइत रहै। तब कच्चे घर होतै रहैं। बरोठे मा  दुपहरिया भरि जाने कतना काम होत रहा। अब तुम सोंचिहौ गरमी कै दुपहरी मनई तानि कै सोवत है, काम को करत है? तौ  बताइत है जानि लेव हमरी मौसी बड़ी गुनागरी रहीं। उनकी एकु दुइ सहेली आय जाती रहीं। कोई मेर-मेर के पंखा बनाय रहा, कोउ डेलवा नोइया बीनत रहा, हाथे से तमाम कढ़ाई सिलाई होत रही। सब जनेन का जुटान तौ बड़ा नीक लागत रहा। वही मा बतकही अउर जानौ सोहर बन्ना सीखे जाय। मेर-मेर की नई चीजें सीखी जायँ। हमका यादि है कि तब बिजली अउर बिजली के पंखा कमरा मा कहूँ लागिन न रहैं। बाकी तौ हाथ के बेयाना सबुइ डोलावत रहैं। हमरी मौसी सादी के नेउता के कारड औ पियर्स साबुन की डिबिया जोरि कै  बेयाना बनाय लेती रहैं। सांझी पहर आम कै पना बनै, सब कोई पियय औ नहीं तौ सेतुवा खावा जाय, ई सब खाय पियय की देसी चीजन से गरमी तनिक कम जनात रही। अब देखव जैसे तुम कच्चे घरन कै बात कहेव तौ उइ तनिक गन्दे रहत रहैं तौ अब पक्के घर बनिगे तबौ ठीक है। ई जउन सहरन मा एक के ऊपर एक घर बने हैं बरिगा जिनका अपार्टमेंट कहत हैं उनमा सबमा ठंडा करे कि तईं एसी लागि हैं। इनसे घर तो ठंडाति हैं मुला जउन पाछे गरम हवा उनसे निकरि कै हमरे चौगिरदहन फैलि रही है उसे पूरी चउहद्दी गरमाय रही है। यही तना सोंचौ कतनी गाड़ी सड़कन पर दौरि रही हैं। सबमा एसी लागि हैं। उनकै गरमी ऊपर जौ सड़क मा जाम लागि जाय तौ कतना गरम हवा निकरति है। उ सब धरतिन मा तौ फैलति है अउर जानौ सबते बड़ी  समस्या जंगल पेड़ सफाया होइ जाय रहे हैं मुल वतने भरि लागि रहे नहीं हैं, उनहूँ  मा पीपर, बरगद, नीम, पकरिया अब को लगावत है? सुना है ई बिरवा जियय वाली गैस माने उ का कहत हैं आक्सीजन ज्यादा देति हैं। ई नदारत हुवत जाय रहे हैं। लकड़ी बेचै कि तई लिप्ट्स के बिरवा लगाए जाय रहे हैं। अब न घास के मैदान रहिगे न कहूँ हरेरी देखाय परे। चारिउ कैति लागत है सबुइ जरि रहा है इहिसे मानौ दिमागौ मा गरमी चढ़त है।

अब देखव जिज्जी हम यू नहीं कहित है कि विकास न होय। बिकास तौ हुवहिन का चाही, बढ़िया फैक्टरी लागय, मनइन का रोजी-रोजगार मिलै। मुला जतनी जमीन छेकी जाय वही भरिकै आमे के बिरवा लगाय दीन जाय। जीसे बिरवा लागि जाय बढ़िया औ फलौ खाय का मिलै ईका कहत है आम के आम औ गुठली के दाम। कै नहीं भला। हां भौजी।

जिज्जी पहिले हमरी अम्मा होरी और हमहुँ पंचे सूती कपड़ा गरमी मा ज्यादा पहिरित रहै। अब मानौ फैसन वाले कपड़ा ज्यादा पहिने जात हैं। उसे देहीं का नुकसान होति है और एक बात हमारे जू मा आवत है तौ बताय देइत है- अब घर-घर फ्रीजव तौ आय गए हैं। उनका ज्यादा ठंडा पानी न पियय का चाही। वैसे तौ घड़ा का पानी ठीक हुवत है औ बजार का उ ठंडा जउन काला, नारंगी, हरा बिकात है उ जूड़ तौ लागत है पर ठीक नाही होत है। बढ़िया देसी ठंडाई बनाय कै पियव तरबूज, खीरा, ककरी खाव तौ देहीं मा गरमी कम लागी। अब जउन हम पंचे देखेन, जानेन, खायेन वहै बताइत है। नाही, तुम सही कहि रहेव भौजी।  बड़े-बड़े पढ़े लिखे जउन ज्यादा जानकार लोग हैं उइ कहत हैं- जउन बहुत परदूसन फैलि रहा है उसे या गरमी पहाड़न तक मा फैलि रही है। हुँवौ भी ऐसी कूलर लागै लागि हैं। अब कुछ मिली तौ कुछ तौ हेराबै करी। बस यू है भाई की बचे रहौ, यही मा भलाई है। देखव सांझी पहर दिया बत्ती कै बेरिया होइ गय है, हम पंचे बतलावै किहेन। जिज्जी पछिलहरे कुछ पाती डोलिहें तौ जूड़ लागी। जाइत है खाना बनावै नाही तौ देर होइ जाई... राम राम।


(लेखिका, मुंशी रघुनंदन प्रसाद सरदार पटेल महिला स्नातकोत्तर महाविद्यालय बाराबंकी की प्रिंसिपल हैं और हिंदी अवधी की कवि / साहित्यकार हैं।)

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