- प्रदीप सारंग
बड़ौदा गुजरात निवासी श्री पेठकर आजकल जिला बाराबंकी के विकास खण्ड हरख अंतर्गत ग्राम दौलतपुर में ड्राप आउट फिल्म की शूटिंग कर रहे हैं। सूटिंग स्थल पर ही सन्दौली टाइम्स से बातचीत हुई। प्रस्तुत हैं बातचीत के मुख्य अंश-
मास्टर इन जर्नलिज्म एंड मास कम्युनिकेशन की पढ़ाई करने वाले ओंकार पेठकर छुटपन से ही क्रिएटिव माइंड रहे हैं। शुरू से ही इनका मानना रहा है कि कहानियाँ किसी को भी अंदर से बदल देने की क्षमता रखती हैं। कहानी का ही विकसित रूप है उपन्यास और फिल्मों की पटकथा। ओंकार जी बताते हैं कि जब हम बड़े हुए समझ बढ़ी तो मेरा ध्यान जनजातियों की तरफ गया कि ईसाई मिशनरी के लोग धर्म परिवर्तन करा रहे हैं। जनजातीय संस्कृति को कमतर बताकर आघात पहुँचाकर अपनी संस्कृति का प्रसार और विस्तार कर रहे हैं। तो मेरे दिमाग मे आया कि यदि जनजाति के जिन लोगों ने संघर्ष किया है, त्याग किया है ऐसे पूर्वजों की कहानियाँ इन्हें सुनाई जाएं जिससे जनजातीय लोगों में अपनी संस्कृति के प्रति घट रहे गौरव को पुनः बढ़ाया जा सके। मेरी इस सोच को पंख लग गए जब मुझे और उमाशंकर यादव जी को भारत सरकार वेव प्लेट फॉर्म की फिल्म सुखनाथ मोगरा नी वार्ता ( मा बेटा की बात चीत) पर काम करने का मौका मिला। मैनें कहानी लिखी फिल्म का निर्देशन किया इस फिल्म के प्रोड्यूसर उमाशंकर यादव ही प्रोड्यूसर बने।
ओंकार पेठकर के कैरियर की शुरुआत होती है जी युवा में इंडियन मैजिक आय कम्पनी में असिस्टेंट डायरेक्टर के दायित्व से।
इसके बाद जोश टाक शो में इन्सपिरेशइरेशनल लोगो से इंटरव्यू करने का इन्हें मौका मिला। ओंकार जी बताते हैं कि इस काम में बहुत सीखने को मिला। एक मराठी फिल्म भगवद गीता 2017 करके जो आत्म संतुष्टि प्राप्त हुई वो अवर्णनीय है।
2019 में डाक्यूमेंट्री दि मिस्टिक स्ट्रीम, फिल्म में काम करके बहुत मजा आया और सीखा भी।
बड़ौदा में स्थित नदी का नाम है- विश्वामित्री नदी।
इसी नदी पर फिल्म है। इस फिल्म को पद्मश्री डॉ मुनि ने अवार्ड दिया था।
वर्टीवर एडवरटाइजिंग कम्पनी में कम्युनिकेशन स्पेसलिस्ट के रुप मे भी इन्हें काम करने का अवसर मिला। इसी समय भारत सरकार की मिशन लाइफ प्रोजेक्ट के लिए गाने भी लिखे थे, जिंगल लिखे थे।
एक सवाल के जवाब में श्री पेठकर बताते हैं कि मैं किसी की भी तरह नहीं बनाना चाहता हूँ। मेरा सपना है कि वालीवुड में अपनी खुद की जगह बनाऊँ। फिर भी लगान और स्वदेश जैसी फिल्मों के निर्देशक आशुतोष गोवारिकर का काम मुझे हमेशा आकर्षित करता रहा है। इसी तरह वास्तव फिल्म के निर्देशक महेश मांजरेकर का निर्देशन भी प्रेरणा देता है।
कुछ अलग हटकर सोचने वाले ओंकार पेठकर बताते हैं कि कोई अम्बेडकर पढ़ता है कोई मार्क्स पढ़ता है आदि आदि। इस तरह एक अलग तरह की वैचारिकी से लेकिन जातीय भाव उपजता है, घृणा का भाव भी उपजता है किन्तु प्रेरणास्पद कहानियाँ रियल लाइफ की सफल कहानी हर किसी में एक स्वस्थ सोंच पैदा करती हैं।
एक निजी सवाल का भी जवाब बड़ी ही खुबसूरती से देते हैं। एक बेटे के पिता ओंकार पेठकर बताते हैं कि ये बात सही है कि एक से अधिक सप्ताह घर से बाहर रहकर सूटिंग करनी होती है ऐसे में भी मैं सुबह शाम तकनीक का सहारा लेकर वीडियो काल करके अपने बेटे से खेलता हूँ, पत्नी से भी बातें होती रहती हैं। तो मुझे नहीं लगता कि बेटे को बाप की कमी खलती होगी।
एक दृष्टि में ओंकार पेठकरनाम- ओमकार पेठकर
पिता- प्रशांत पेठकर
माता- प्रज्ञा पेठकर
पत्नी- गिरिजा पेठकर
भाई- नहीं
बड़ी बहन- राधिका मलगावकर
प्राथमिक शिक्षा- बड़ौदा में
शिक्षा- मास्टर इन जर्नलिज्म एंड मास कम्युनिकेशन
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