व्यंग्य लेख 


आजुइ सबेरे पता लाग कि आजु तौ चाय-दिवस है। "चाय" का हमरे गांव मा "चाह" कहा जात है। कुछ जने छिन-छिन मा चाह पियत हैं।  चाह का लइके तमाम जुमला और बातैं प्रसिद्ध हैं। जइसे अंग्रेजी मा कहा जात है Have a cup of tea with me. यहिका मतलब है कि आओ तुमते तो कुछ जरूरी बातें करेक है तो हमरे लगे आयके बइठो तो एक-एक प्याला चाय पिया जाय अउर बतलावा जाय। 

बड़े लोगन मा एक चीज अउर होत है हाई टी(HIGH TEA). पहिली बार जब एक नेउता मा एहिका नाम सुना तो हम स्वाचा कि का कउनो ऊंचाई पर चढ़िकै या चाह पी जाई मुला जब चाय के साथ तमाम मेल के नास्ता दीख तो समझ मा आवा कि मतलब हाई टी के साथ पेट भरिके खायहौ का मिलत है। हमका लागत है कि या दुनियाँ चाह के बगैर नहीं चलि सकत है। 

कहा जात है कि अंग्रेज अपने साथै चाह पिए की आदत लइके आए रहें। उई तो आजादी के बाद चलेगे मुला या आदत छोड़िगे।

शादी-बियाह, नेउता मा तो तमाम दमाद जइसे फूफा और जीजा यहि बात पर गुस्साए जात हैं कि उनका समय ते चाह नई मिली या जब चाह बनिके आई तो हमते पहिले कोउ दुसरे का मिलि गै। अक्सर परपंच मा याहे बात होत है कि फलाने के हिया गए राहन तो उई तो एक कप चाहेओ न पूछेन। 

ज्यादातर घरन मा सुबह कै सुरुआत चाहै से होत है। चाह पिए बगैर तो बहुत जनेन का प्रेसरौ नहीं बनत। 

हम जब कहुं पुलिस या रेलवे के बड़े अधिकारी के हिया जाई तो एक बड़ी ट्रे मा एक मनई चाय बनावे का पूरा सामान लइके आवे जेहिमा एक केतली मा खउलत पानी राहे अउर दूध और चीनी अलग राहे। वह मनई हाथे मा झक्क सफेद दस्ताना पहिने राहत रहा। जब हम पहिली बार चीनी( sugar cubes) दीख तो हमका लागै कि इ तो लूडो के खेल के पांसा आँय।

वह आदमी पहिले कप मा चाय पत्ती का खउलावा पानी डारै फिर थ्वारा दूध डारै और पूछै कि शक्कर केतनी डारी। तब हम सोच मा परि जाई। उई जमाने मा हम खुब मीठु पियत रही लेकिन मारे सरम के कुछ कहि न पाई। जेत्ती देर मा एत्ता टिटम्ब कइके चाय बनाए के दे तो उत्ती देर मा वा सेराय जाय। हमरे हिसाब ते सबसे सही वा चाह आए जो दूध, चीनी डारिके चूल्हा के ऊपर भगोना मा खउलाए के बनाई जाए। 

अब तो टी बैग का चलन बहुत बढ़िगा है। एहिमा धागा से बंधी एक पुड़िया गरम पानी भरिके कप मा डारि लेव अउर पी जाओ। इहौ मा मजा नई आवत।

अब अउर लेओ नई चीज आय गै। आजकल हरी चाय (Green Tea) का बहुत फैसन है। जेत्ते बड़े आदमी हैं सब ग्रीन टी पीयत हैं वाहो सक्कर डारै बगैर।

वहिमा तो मुंह अइस करुवाए जात है कि बतावा नहीं जा सकत मुला कहा जात है कि या सेहत का बहुत फायदा करत है। 

जेहिका देखौ वाहे कउनो न कउनो मेल की चाह पियत दिखाई देत है। अब तो "चाय पर चर्चा" का जमाना है मुला अब चाह महंगी बहुत है अउर आम मनई की पहुंच ते बाहर होत जा रही है।

दस रूपइया मा तो कुज्जी मा मिलत है जइसे सत्य-नरायन की पूजा केर चरणामृत होए।

कम ते कम बीस रुपइया होए तो ठीक ठाक चाय पी जा सकत है। बड़े होटल मा तो काहौ सौ रुपइया की मिले। 

महंगी चाह बेचे वाले तो मालामाल हुई गै हैं। हमरे लखनऊ मा तो कहुं कहुं चाह वालेन की बहुत कमाई है।

अब चाय पुरान बंद करित है नहीं तो कहुं घरइतिन गुस्साए गई तो बरबराय के हमरे मूड़े मा दरद कई देंहैं। अउर तौ अउर, न दिन मा रोटी मिली न संझा सबेरे का चाह।


(लेखक, अवधी आराधक अउर स्वतंत्र पत्रकार हैं)

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